Мы используем файлы cookie.
Продолжая использовать сайт, вы даете свое согласие на работу с этими файлами.

प्राणिऊष्मा

Подписчиков: 0, рейтинг: 0
नर शेर के शरीर का तापलेखी (थर्मोग्राफिक) चित्र

जंतुओं के शारीरिक क्रियाएँ, शारीरिक ऊष्मा के ह्रास के मार्ग तथा शरीर का ताप बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊष्मोत्पादन की रीति, ये सभी प्रस्तुत विषय के अंतर्गत आते हैं। विविध प्रकार के तापमापियों के आविष्कार ने उपर्युक्त बातों के अध्ययन में बड़ी सहायता पहुँचाई है।

जंतु दो प्रकार के होते हैं : प्रथम समतापी (homeothermic), अर्थात्‌ वे जिनके शरीर का ताप लगभग एक सा बना रहता हे। इस वर्ग में स्तनधारी, साधारणत: पालतू जानवर तथा पक्षी, आते हैं, जो उष्ण रक्तवाले भी कहे जाते हैं। द्वितीय असमतापी (poikilothermic), अर्थात्‌ वे जिनके शरीर का ताप बाह्य वातावरण के अनुसार बदला करता है। इस वर्ग में कीड़े, साँप, छिपकली, कछुआ, मेढक, मछली आदि हैं, जो शीतरक्त वाले कहे जाते हैं। कुछ ऐसे भी जंतु हैं जो उष्ण ऋतु में उष्ण रक्त के, किंतु शीत ऋतु में, जब वे शीत निद्रा में रहते हैं, शीत रक्तवाले हो जाते हैं, जैसे हिममूष (marmot)। इस अवस्था में हिममूष का शारीरिक ताप ३७ डिग्री फा. (लगभग ३ डिग्री सें.) तक गिर जाने पर भी यह पुन: जीवित हो जाता है। उष्ण रक्तवाले प्राणियों के शरीर का ताप संवेदनाहारी अवस्था में तथा रीढ़ रज्जु का वियोजन होने पर, बाह्य वातावरण के अनुसार यथेष्ट कम किया जा सकता है।

शारीरिक ताप में विभेद

चित्र:Kerntemperatur Mensch Grafik01.png
२० डिग्री सेल्सियस तथा ३५ डिग्री सेल्सियस वाह्य ताप की दशा में मानव शरीर का समतापी चित्रण

जंतुओं के शारीरिक ताप में हाथी के ९६ डिग्री फा. (३५.५ डिग्री सें.) से लेकर छोटी चिड़ियों के १०९ डिग्री फा. (४२.८ डिग्री सें.) तक अंतर हो सकता है। मनुष्य, बंदर, खच्चर, गधा, घोड़ा, चूहा तथा हाथी का ९६ डिग्री - १०१ डिग्री फा. (३५.५ डिग्री - १८रू.३ सें.), गाय, बैल, भेड़, कुत्ता, बिल्ली, खरगोश तथा सूअर का १०० डिग्री - १०३ डिग्री फा. (३७.८ डिग्री - १९.४ डिग्री सें.), टर्की हंस, बतख, उल्लू, पेलिकन और गिद्ध का १०४ डिग्री - १०६ डिग्री फा. (४० डिग्री - ४१.१ डिग्री सें.) तथा मुर्गी, कबूतर और अनेक छोटी चिड़ियों का १०७ डिग्री - १०९ डिग्री फा. (४१.९ डिग्री - ४२.८ डिग्री सें.) शारीरिक ताप होता है। इसमें प्रतिदिन समयानुसार थोड़ा हेर फेर हो सकता है। बच्चों के शारीरिक ताप में इस प्रकार का अंतर बड़ों की तुलना में अधिक होता है।

मनुष्य के शरीर के बाह्य भाग का ताप अंतर्भाग से ७ डिग्री - ९ डिग्री फा. (४ डिग्री - ५ डिग्री सें.) कम होता है। मलाशय का ताप औसत शारीरिक ताप से २ डिग्री - ४ डिग्री फा. (१.१ डिग्री - २.२ डिग्री सें.) तक अधिक हो सकता है। भोजन के एक या दो घंटे पश्चात्‌ तक शरीर का ताप अधिक रहता है। स्त्रियों और पुरुषों पर पर्यावरण के ताप का प्रभाव भिन्न होता है। इसके अतिरिक्त स्त्रियों का शारीरिक ताप रजोधर्म से डिंबोत्सर्ग के समय तक लगभग एक डिग्री गिर जाता है।

शारीरिक ताप परिवर्तन की सीमाएँ

उष्ण रक्तवाले जीव ताप की सीमित अंतर ही सह सकते हैं। यह सीमा इस बात पर निर्भर है कि उस जंतु के शरीर में स्वेदग्रंथियाँ हैं या नहीं। ज्वर में मनुष्य के शरीर का उच्चतम ताप १०७ डिग्री फा. (४१.७ डिग्री सें.) तक चढ़ जाता है, किंतु मृत्यु के पूर्व ११० डिग्री फा. (४३.३रूसें.) तक चढ़ता पाया गया है। मधुमेहजनित संमूर्छा में ताप ९२ डिग्री फा. (३३.३ डिग्री सें.) तक गिर सकता है। बर्फ से ढककर मूर्छित मनुष्य के शरीर का ताप ८० डिग्री फा. (२६.६ डिग्री सें.) के लगभग ८ दिन तक बिना हानि रखा गया है। शीत रक्तवले प्राणियों का शारीरिक ताप हिमताप तक गिर जाने पर भी उन्हें कोई हानि नहीं होती, किंतु वे इसका ९८.६ डिग्री फा. (३७ डिग्री सें.) से अधिक बढ़ना नहीं सह सकते। साँप, छिपकली आदि इस अवस्था में मर जाते हैं।

शारीरिक ताप का नियंत्रण

स्तनधारियों के शरीर का तापनियंत्रण

प्राणियों के शरीर का ताप ऊष्मा के उत्पादन तथा उसकी हानि के अंतर से बना रहता है। शीत रक्तवाले जीवों में ऊष्मोत्पादन बाह्य ताप के अनुसार बदला करता है, किंतु वह सर्वदा ही ऊष्ण रक्तवाले प्राणियों से कहीं कम होता है। उष्ण रक्तवाले भीमकाय जीवों में ऊष्मा का उत्पादन लघुकायों से अधिक होता है, किंतु यह कायावृद्धि के अनुपात में नहीं बढ़ता। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में ऊष्मोत्पादन कम होता है।

शरीर का ताप बनाए रखने के लिए उत्पन्न ऊष्मा का शरीर से बाहर निकलना आवश्यक है। यह क्रिया विकिरण, संवहन तथा जल के वाष्पीकरण से होती है। स्वेद-ग्रंथि-रहित जंतुओं, जैसे कुत्ते, में त्वचा से वाष्पीकरण नहीं होता है। इसकी पूर्ति वह जोर जोर से हाँफकर करता है। गाय, भैंस आदि में भी स्वेदग्रंथियाँ बहुत कम होती हैं। इसलिए इन्हें उच्च ताप असह्य हाता है। उच्च ताप का प्रभाव दुग्धोत्पादन पर भी पड़ता है। मुर्गियाँ भी गर्मी नहीं सह पातीं, किंतु भेड़ को कोई कष्ट नहीं होता।

ताप का नियंत्रण त्वचा तथा स्वेद द्वारा ही मुख्यत: होता है। गर्मी में त्वचा की रक्तनलियाँ फैल जाती हैं, रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है और ऊष्मा का ह्रास अधिक होता है। शीत ऋतु में यह प्रत्येक बात विपरीत होती है। गर्मी या परिश्रम करने से निकले हुए स्वेदजल की पूर्ति के लिए जल पीना आवश्यक हो जाता है। जीवों में ऊष्मा का नियंत्रण केंद्रीय तंत्रिकातंत्र द्वारा होता है। अनुमान है, तापकेंद्र अधश्चेतक ग्रंथि (hypothalamus) में अवस्थित है।


Новое сообщение