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कॉण्टैक्ट लैंस

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कांटैक्ट लेंस की एक जोड़ी, ऊपर की ओर मुंह किए हुए एक जोड़ी.
एक दिवसीय डिस्पोजेबल पैकेजिंग में नीले रंग की कांटैक्ट लैंस

कांटैक्ट लैंस (कांटैक्ट के नाम से भी लोकप्रिय) सामान्यतः आंख की कोर्निया (स्वच्छपटल) पर रखा जाने वाला एक सुधारक, प्रसाधनीय या रोगोपचारक लैंस होता है। 1508 में कांटैक्ट लैंसों की पहली कल्पनाओं को समझाने और रेखांकित करने का श्रेय लियोनार्डो दा विंसी को जाता है[कृपया उद्धरण जोड़ें] लेकिन वास्तविक कांटैक्ट लैंसों को बनाने और आंख पर लगाने में 300 वर्षों से भी अधिक लगे। आधुनिक नर्म कांटैक्ट लैंसों का आविष्कार चेक केमिस्ट ओटो विक्टरली और उसके सहायक ड्राह्सलाव लिम ने किया, जिसने उनके उत्पादन के लिये प्रयुक्त जेल का आविष्कार भी किया।

कुछ नर्म कांटैक्ट लैंसों को हल्के नीले रंग का बनाया जाता है ताकि साफ करने और रखने के घोलों में वे आसानी से दिखाई दे सकें. कुछ कास्मेटिक लैंसों को आंख दिखावट को बदलने के लिये जानबूझ कर रंगीन बनाया जाता है। आज कल कुछ कांटैक्ट लैंसों पर आंख के प्राकृतिक लैंस को यूवी से नुकसान से बचाने के लिये यूवी रक्षात्मक सतही प्रक्रिया की जाती है।

यह अनुमान है कि विश्व भर में 125 मिलियन लोग कांटैक्ट लैंसों का प्रयोग करते हैं, जिनमें से युनाइटेड स्टेट्स में 28 से 38 मिलियन और जापान में 13 मिलियन लोग हैं। प्रयुक्त और सिफारिश किये गए लैंसों के प्रकार हर देश में भिन्न होते हैं – जापान, नीदरलैंड्स और जर्मनी में आजकल सिफारिश किये जा रहे लैंसों का 20% से अधिक कड़े लैंस होते हैं, जबकि स्कैंडिनेविया में 5% से भी कम लोग इसका प्रयोग करते हैं।

लोग कांटैक्ट लैंसों का प्रयोग कई कारणों से करते हैं, जिनमें अकसर उनकी दिखावट और कार्यशीलता मुख्य होती है। चश्मों की तुलना में, कांटैक्ट लैंसों पर नम मौसम का असर कम होता है, उन पर भाप नहीं जमती और वे दृष्टि का अधिक बड़ा क्षेत्र उपलब्ध करते हैं। वे खेलों की कई गतिविधियों के लिये भी उपयुक्त होते हैं। इसके अतिरिक्त केरेटोकोनस और एनाइसीकोनिया जैसे आंखों के विकारों को चश्मों से सही तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है।

इतिहास

1888 में, एडॉल्फ फिक पहले थे जो सफलतापूर्वक कॉन्टेक्ट लेंस को फिट कर सके थे जो ब्लोन ग्लास से बने थे

लियोनार्डो दा विंसी को अकसर कांटैक्ट लैंसों की कल्पना को प्रस्तुत करने का श्रेय उनकी 1508 में प्रकाशित कोडेक्स ऑफ द आई, मैनुअल डी में करने के लिये दिया जाता है। जिसमें उन्होंने पानी की एक कटोरी में आंख को डुबो कर कोर्निया की ताकत को बदलने का विवरण दिया। लेकिन लियोनार्डो ने यह सलाह नहीं दी कि उनकी इस कल्पना को दृष्टि के सुधार के काम में लाया जाए – उनको तो आंख के समायोजन की प्रक्रिया में अधिक रूचि थी।

रेने डेस्कार्ट्स ने 1636 में एक और विचार पेश किया, जिसमें द्रव से भरी एक टेस्ट ट्यूब को कोर्निया के सीधे संपर्क में रखा जाता है। इसका उभरा हुआ सिरा दृष्टि को सुधारने के लिये साफ कांच का बना हुआ था– लेकिन यह विचार अव्यावहारिक था क्यौंकि इसके कारण पलक झपकना असंभव था।

1801 में, समायोजन की प्रक्रियाओं से संबंधित प्रयोग करते समय, वैज्ञानिक थामंस यंग ने द्रव से भरे एक आई-कप का निर्माण किया जिसे कांटैक्ट लैंस का पूर्वज समझा जा सकता है। आई-कप के तल पर यंग ने माइक्रस्कोप का एक आईपीस लग दिया। लेकिन लियोनार्डो की तरह यंग का उपकरण भी अपवर्तन के दोषों को सुधारने के लिये नहीं बनाया गया था। सर जान हर्शेल ने एनसाइक्लोपीडिया मेट्रपोलिटाना के 1845 के अंक के फुटनोट में दृष्टि के सुधार के दो उपाय प्रस्तुत किये – पहला, पशु की जेली से भरा कांच का एक गोलाकार कैप्सूल और कोर्निया का एक सांचा, जिसे किसी पारदर्शी माध्यम पर ढाला जा सकता था। हालांकि हर्शेल ने कभी इन विचारों का परीक्षण नहीं किया था, उन्हें बाद में कई स्वतंत्र आविष्कारकों द्वारा आगे बढ़ाया गया जैसे हंगेरियन डॉ॰ डैलास (1929), जिन्होंने जीवित आंखों के सांचे बनाने की एक विधि बनाई। इससे आंख के वास्तविक आकार के अनुकूल लैंसों का पहली बार उत्पादन संभव हुआ।

1887 में एक जर्मन ग्लासब्लोअर, एफ.ई. मुल्लर ने पारदर्शी और सहनयोग्य आंख के पहले आवरण का उत्पादन किया। जर्मन चक्षुविशेषज्ञ अडोल्फ गैस्टान यूजेन फिक ने 1887 में पहले सफल कांटैक्ट लैंस का निर्माण और प्रयोग किया। ज्यूरिच में काम करते समय, उन्होंने एफोकल स्क्लेरल कांटैक्ट शेलों के निर्माण और प्रयोग के रूप में उन्हें लगाने का विवरण दिया, जो कोर्निया के चारों ओर ऊतक की कम संवेदनशील किनार पर टिक जाते थे – शुरू में खरगोशों पर, फिर अपने आप पर और अंत में स्वयंसेवकों के एक छोटे से समूह पर. ये लैंस भारी ब्लोन कांच से बनाए गए थे और 18-21 मिमी व्यास के थे। फिक ने कोर्निया/कैलासिटी के और कांच के बीच की खाली जगह में डेक्स्ट्रोज घोल भर दिया। उन्होंने अपने कार्य, कांटैक्टब्रिल को एक जर्नल, आर्चीव फर आगेनहीलकुंडे में मार्च 1888 में प्रकाशित किया।

फिक का बनाया लैंस बड़ा और भारी था और एक बार में केवल कुछ ही घंटों के लिये पहना जा सकता था। कील, जर्मनी में आगस्त मुल्लर ने अपनी स्वयं की निकटदृष्टिता को 1888 में खुद के बनाए हुए एक अधिक सुविधाजनक ग्लास-ब्लोन स्क्लेरल कांटैक्ट लैंस से सुधारा.

1887 में ही लुई जे जिरार्ड ने कांटैक्ट लैंस के एक ऐसे ही स्क्लेरल प्रकार का आविष्कार किया। 1930 के दशक तक ग्लास-ब्लोन स्क्लेरल लैंस ही कांटैक्ट लैंस के एकमात्र प्रकार रहे, जब पॉलिमिथाइल मेथाक्रिलेट (पीएमएमए या परस्पेक्स/प्लेक्सीग्लास) का विकास हुआ, जिससे पहली बार प्लास्टिक स्क्लेरल लैंसों का उत्पादन संभव हुआ। 1936 में, आप्टोमेट्रिस्ट विलियम फेनब्लूम ने प्लास्टिक लैंस प्रस्तुत किये, जो अधिक हल्के और सुविधापूर्ण थे। ये लैंस कांच और प्लास्टिक के समागम से बने थे।

1949 में पहले कोर्नियल लैंसों का विकास किया गया। ये लैंस मूल स्क्लेरल लैंसों से काफी छोटे थे, क्यौंकि वे आंख की सारी सतह के बजाय केवल कोर्निया पर लगाए जाते थे और प्रतिदिन सोलह घंटों तक पहने रखे जा सकते थे। उत्पादन की (लेथ) तकनीक में निरंतर सुधार के साथ बेहतर गुणवत्ता वाले लैंस डिजाइनों की उपलब्धि के साथ 1960 के दशक में पीएमएमए कोर्नियल लैंस लोकप्रिय होने वाले पहले कांटैक्ट लैंस थे।

1950 व 1960 के दशकों के प्रारंभिक कोर्नियल लैंस आपेक्षाकृत महंगे और भंगुर थे जिसके कारण कांटैक्ट लैंस के बीमे का बाजार विकसित हो गया। रिप्लेसमेंट लैंस इन्श्यौरेंस, इंक. (आजकल आरएलआई कॉर्प) ने 1994 में कांटैक्टों के सस्ते और आसानी से बदले जा सकने होने पर अपने मूल उत्पाद को बंद किया।

पीएमएमए लैंसों की एक मुख्य असुविधा यह है कि लैंस के जरिये नेत्रश्लेष्मला और कोर्निया को जरा भी आक्सीजन नहीं मिलती है, जिसके कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं। 1970 के दशक के अंत में और 1980 और 1990 के दशकों में इस समस्या से निपटने के लिये आक्सीजन पारगम्य लेकिन कड़ी वस्तुओं का विकास हुआ। केमिस्ट नार्मन गेलार्ड ने इन ने, पारगम्य कांटैक्ट लैंसों के विकास में मुख्य भूमिका निभाई. सब मिलाकर इन पॉलिमरों को कड़े गैस पारगम्य या आरजीपी वस्तुओं या लैंसों के नाम से जाना जाता है। हालांकि उपरोक्त सभी लैंसो के प्रकार –स्क्लेरल, बीएमएमए लैंस और आरजीपी – वास्तव में हार्ड (सख्त) या रिजिड (कड़े) कहलाए जाने चाहिये, हार्ड शब्द का प्रयोग आजकल मूस बीएमएमए लैंसों के लिये किया जाता है जो अभी भी कभी-कभार लगाए जाते हैं, जबकि रिजिड शब्द एक आम शब्द है जिसका प्रयोग इन सभी लैंस प्रकारों के लिये किया जा सकता है। अर्थात् हार्ड लैंस (पीएमएमए लैंस) रिजिड लैंसों का एक उपवर्ग है। कभी-कभी आरजीपी लैंसों के लिये गैस-पारगमित पद का प्रयोग किया जाता है, जो गलत है, क्यौंकि नर्म लैंस भी गैस-पारगम्य होते हैं और उनमें से आक्सीजन प्रवेश करके आंख की सतह तक पहुंच सकती है।

नर्म लैंसों में मुख्य खोज चेक केमिस्टों ओटो विक्टरली और ड्राहोस्लाव लिम ने की जिन्होंने अपने कार्य जैव उपयोग के लिये हाइड्रफिलिक जेल का प्रकाशन 1959 में नेचर नामक पत्रिका में किया। इसके बाद 1960 के दशक में कुछ देशों में पहले नर्म (हाइड्रोजेल) लैंस उपलब्ध हुए और यूएस फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिसट्रेशन (एफडीए (FDA)) ने साफ्लेंस पदार्थ को 1971 में पहली अनुमति दी। नर्म लैंसों से प्राप्त तुरंत आराम के कारण जल्दी ही ये लैंस रिजिड लैंसों की अपेक्षा अधिक लिखे जाने लगे – इसकी तुलना में रिजिड लैंसों से पूरा आराम मिलने में कुछ समय लगता है। नर्म लैंसों के उत्पादन में प्रयुक्त पॉलिमरों में अगले 25 वर्षों में सुधार आया – मुख्यतः पॉलिमरों को बनाने में प्रयुक्त वस्तुओं में परिवर्तन करके आक्सीजन की पारगम्यता बढ़ाने में. 1972 में ब्रिटिश आप्टोमेट्रिस्ट रिषी अग्रवाल ने पहली बार डिस्पोजेबल नर्म कांटैक्ट लैंसों के बारे में बताया।

1999 में एक महत्वपूर्ण घटना थी, बाजार में पहले सिलिकोन हाइड्रोजेलों का उतारा जाना. इन नई वस्तुओं ने सिलिकोन – जिसमें अत्यंत आक्सीजन पारगम्यता होती है - के लाभों को 30 वर्षों से काम में लाए जा रहे पारम्परिक हाइड्रोजेलों के आराम और चिकित्सकीय निष्पादन के साथ मिलाकर प्रस्तुत किया। इन लैंसों का प्रयोग प्रारंभ में अधिक समय (रात भर) तक पहने जा सकने के लिये किया गया, हालांकि हाल में ही रोज (रात भर नहीं) पहने जाने वाले सिलिकोन हाइड्रजेल प्रस्तुत किये गए हैं।

एक जरा से संशोधित अणु में सिलिकोन हाइड्रोजेल की संरचना को बदले बिना एक ध्रुवीय समूह जोड़ा जाता है। इसे तनाका मोनोमर कहा जाता है क्यौंकि इसे जापान की मेनिकॉन कम्पनी के क्योइची तनाका द्वारा 1979 में आविश्कृत और पेटेंट किया गया। द्वितीय पीढ़ी के सिलिकोन हाइड्रोजेल. जैसे गैलिफिल्कॉन ए (एक्यूव्यू एडवांस, विस्टाकॉन) और सेनोफिल्कॉन ए (एक्यूव्यू ओएसिस, विस्टाकॉन) तनाका मोनोमर का प्रयोग करते हैं। विस्टाकॉन ने तनाका मोनोमर में और सुधार किया और अन्य अणु जोड़े, जो एक आंतरिक नमीकरण एजेंट की तरह काम करता है।

कॉमफिल्कॉन ए (बायोफिनिटी, कूपरविज़न) पहला तृतीय पीढ़ी का पॉलिमर था। पेटेंट यह दावा करता है कि यह पदार्थ भिन्न आकारों के दो सिलाक्सी मैक्रोमरों का प्रयोग करता है, जो साथ में प्रयोग किये जाने पर बहुत उच्च आक्सीजन पारगम्यता (दिये गए जल की मात्रा पर) उत्पन्न करते हैं। एनफिल्कॉन ए (अवैरा, कूपरविज़न) एक और तृतीय पीढ़ी का पदार्थ है जो प्राकृतिक रूप से नम होने के योग्य है। एनफिल्कॉन ए पदार्थ 46% पानी है।

कांटैक्ट लैंसों के प्रकार

कांटैक्ट लैंसों को भिन्न तरीकों से वर्गीकृत किया गया है।

कार्य

सुधारक कांटैक्ट लैंस

सुधारक कांटैक्ट लैंस दृष्टि में सुधार लाने के लिये बनाए जाते हैं। कुछ लोगों में आंख की अपवर्तन शक्ति और आंख की लंबाई में असमानता होती है जिससे अपवर्तन त्रुटि उत्पन्न हो जाती है। कांटैक्ट लैंस इस त्रुटि को निष्क्रिय करके रेटिना पर प्रकाश को सही तरह से केंद्रित होने देता है। कांटैक्ट लैंस द्वारा ठीक किये सकने वाले रोगों में निकट दृष्टिता, दूरदृष्टिता, एस्टिग्मेटिज्म और प्रेसब्योपिया शामिल हैं। कांटैक्ट पहनने वाले कांटैक्ट के ब्रांड या शैली के अनुसार रोज रात को या कुछ दिनों में एक बार अपने कांटैक्ट लैंसों को निकाल कर रखते हैं। हाल ही में आर्थोकेरेटालाजी में फिर से दिलचस्पी उत्पन्न हुई है, जिसमें निकट दृष्टिता को ठीक करने के लिये कोर्निया को रात भर में सपाट करके, दिन में आंख को बिना कांटैक्ट लैंस या चश्मे के छोड़ दिया जाता है।

जिन लोगों में रंग के विकार होते हैं उनके लिये लाल-रंग के एक्स-क्रोम कांटैक्ट लैंस प्रयोग किये जा सकते हैं। हालांकि इससे लैंस सामान्य रंगीन दृष्टि तो वापस नहीं लाता है, पर कुछ रंगांध्य लोगों को बेहतर तरीके से रंगों को पहचानने में मदद करता है।

क्रोमाजेन लैंसों का प्रयोग किया जाता है और उनमें रात के समय दृष्टि में कुछ सीमाएं पाई गई हैं, हालांकि अन्यथा रंगीन दृष्टि में अचछा सुधार आता है। एक पहले के अध्ययन में रंगीन दृष्टि और रोगी की संतुष्टि में बहुत अच्छा लाभ देखा गया।

बाद में किये गए एक रैंडमाइज्ड, डबल-ब्लाइंड, प्लेसिबो-नियंत्रित अध्ययन में इन क्रोमाजेन लेंसों का डिसलेक्सिकों में प्रयोग किया गया जिसमें देखा गया कि बिना लैंसों से पढ़ने की तुलना में इनसे पढ़ने की योग्यता में बहुत अचछा सुधार हुआ। इस विधि को यूएसए में एफडीए की अनुमति मिल गई है।

कास्मेटिक कांटैक्ट लैंस

कास्मेटिक कांटैक्ट लैंस का काम आंख की दिखावट में बदलाव लाना होता है। ये लैंस दृष्टि में सुधार भी ला सकते हैं, लेकिन रंग या डिजाइन के कारण दृष्टि का कुछ धुंधलापन या अवरोध हो सकता है। यूएसए में फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिसट्रेशन गैर-सुधारक कास्मेटिक लैंसों को अकसर सजावटी कांटैक्ट लैंसों की संज्ञा देता है। इस तरह के लैंस लगाने के समय हल्का क्षोभ उत्पन्न करते हैं, लेकिन आंखों के इसके आदी होने के बाद, भली प्रकार सहन किये जाते हैं। किसी भी कांटैक्ट लैंस की तरह, कास्मेटिक लैंसों से भी हल्की और गंभीर जटिलताओं का जोखम होता है, जिनमें आंखों का लाल हो जाना, क्षोभ और संक्रमण शामिल हैं। कास्मेटिक लैंस पहनने वाले सभी लोगों को अंधेपन की जटिलताओं से बचने के लिये आंख के विशेषज्ञ की निगरानी में रहना आवश्यक है।

थियेटर में प्रयुक्त कांटैक्ट लैंस एक प्रकार के कास्मेटिक कांटैक्ट लैंस होते हैं जो मुख्यतः मनोरंजन उद्योग में अकसर डरावनी और जौम्बी फिल्मों में आंखों को असमंजस में और उत्तेजक दिखाने,[कृपया उद्धरण जोड़ें] या उन्हें भूत-नुमा, बादली या जीवनहीन दिखाने या पहनने वाले की पुतलियों को बड़ा दिखाने, जिससे लगे कि पहनने वाला विभिन्न तरह के नशीले पदार्थों से प्रभावित है, के लिये प्रयोग में लाए जाते हैं।

स्क्लेरल लैंस आंख के सफेद भाग (श्वेतपटल) पर लगाए जाते हैं और कई थियेटरी लैंसों में प्रयुक्त होते हैं। उनके आकार के कारण, इन लैंसों को लगाना कठिन होता है और वे आंख के भीतर अच्छी तरह से नहीं लगते. ये दृष्टि में भी अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं क्यौंकि प्रयोग करने वाले के देखने के लिये लैंस में थोड़ी सी जगह होती है। इस वजह से उन्हें 3 घंटों से अधिक देर तक नहीं पहना जा सकता है क्यौंकि वे दृष्टि में अस्थायी बाधाएं उत्पन्न कर सकते हैं।

इस तरह के लैंसों के सीधे चिकित्सकीय प्रयोग होते हैं। उदा. कुछ लैंस आंख के तारे को बड़ा दिखा सकते हैं, या तारे की अनुपस्थिति (अनिरिडिया) या जख्म जैसे विकारों (डैस्कोरिया) को छिपा सकते हैं।

जापान और दक्षिण कोरिया में एक नया चलन है, वलयाकार कांटैक्ट लैंस. वलयाकार लैंस बड़े दिखते हैं क्यौंकि वे न केवल आंख के तारे को ढंकने वाले भाग पर ही रंगीन होते हैं बल्कि लैंस के अधिक चौड़े बाहरी छल्ले में भी गहरे रंग के होते हैं। इससे तारा बड़ा और चौड़ा दिखाई देता है।

हालांकि कांटैक्ट लैंसों के अनेक ब्रांड हल्के रंगीन होने से उनका प्रयोग आसान होता है, आंख का रंग बदलने के लिये कास्मेटिक लैंसों का प्रयोग काफी कम होता है – 2004 में फिट किये गए कांटैक्ट लैंसों का यह केवल 3% ही था।

कास्मेटिक कांटैक्ट लैंस स्वास्थ्य के लिये जोखिमपूर्ण हो सकते हैं।

चिकित्सकीय कांटैक्ट लैंस

नर्म लैंस अकसर आंखों के अनावर्तनीय विकारों के इलाज और प्रबंधन के लिये प्रयोग किये जाते हैं। बैंडेज कांटैक्ट लैंस जख्मी या रोगी कोर्निया को झपकती हुई पलकों से लगातार रगड़ से बचाता है, जिससे उसे ठीक होने में मदद मिलती है। उनका प्रयोग बुल्लस केरेटोपैथी, शुष्क आंखों, कोर्नियल छालों और स्खलन, कोर्निया के शोथ, कोर्निया की सूजन, डेससेमेटोसील, कोर्नियल एक्टेसिस, मूरेन्स अल्सर, एंटीरियर कोर्नियल डिस्ट्राफी और न्यूरोट्राफिक केरेटोकंजक्टिवाइटिस जैसे रोगों में किया जाता है। आंखों में दवाईयों का प्रतिपादन करने वाले कांटैक्ट लैंसों का विकास भी किया गया है।

निर्माण की सामग्री

कांटैक्ट लैंस, कॉस्मेटिक किस्म के अलावा, लगभग अदृश्य एक बार आंख में सम्मिलित हो जाते हैं। सबसे ज्यादा कांटैक्ट लेंसेस लाईट "हैंडलिंग टिंट" के साथ आता है जो आंखो पर थोडा सा दिखाई दे.

पहले कांटैक्ट लैंस कांच से बनाए जाते थे, जो आंख में क्षोभ उत्पन्न करते थे और लंबी अवधियों के लिये पहनने योग्य नहीं थे। लेकिन जब विलियम फेनब्लूम ने पलिमिथाइल मेथाक्रिलेट (पीएमएमए या परस्पेक्स/प्लेक्सिग्लास) से बने लैंस प्रस्तुत किये, तो कांटैक्ट बहुत अधिक सुविधाजनक हो गए। इन पीएमएमए लैंसों को आम तौर पर सख्त लैंसो के नाम से संबोधित किया जाता है (यह शब्द अन्य प्रकार के कांटैक्ट लैंसों के लिये प्रयुक्त नहीं किया जाता है).

लेकिन पीएमएमए लैंसों के अपने दुष्प्रभाव भी होते हैं। लैंस में से कोर्निया तक आक्सीजन का संचार नहीं होता, जिससे कई अवांछित प्रभाव हो सकते हैं। 1970 के दशक के अंत में और 1980 व 1990 के दशकों में बेहतर कड़ी वस्तुओं का - जो आक्सीजन पारगम्य भी थीं – का विकास हुआ। इन पॉलिमरों को सामूहिक रूप से कड़े गैस पारगम्य या आरजीपी वस्तुओं या लैंसों की संज्ञा दी गई है। सख्त लैंसों का एक फायदा है, उनके छिद्रहीन होने के कारण वे रसायनों या धुंए को अवशोषित नहीं करते. अन्य प्रकार के कांटैक्टों द्वारा ऐसे यौगिकों का अवशोषण उन लोगों के लिये समस्या हो सकता है, जो पेंटिंग या अन्य रसायनिक प्रक्रियाओं का आम तौर पर सामना करते हों.

कड़े लैंसों के अनेक अनूठे गुण होते हैं। वास्तव में यह लैंस कोर्निया के प्राकृतिक आकार को एक नई अपवर्ती सतह के द्वारा विस्थापित कर देता है। इसका अर्थ यह है कि एक सामान्य (गोलाकार) कड़ा कांटैक्ट लैंस उन लोगों को दृष्टि का एक अच्छा स्तर उपलब्ध करा सकता है, जिन्हें दृष्टिवैषम्य (एस्टिग्मेटिज्म) या केरेटोकोनस की तरह बिगड़े आकार की कोर्निया हो।

जबकि कड़े लैंस करीब 120 वर्षों से उपलब्ध हैं, नर्म लैंस अभी हाल में ही विकसित हुए हैं। ओटो विक्टरली द्वारा नर्म लैंसों का आविष्कार करने के बाद पहले नर्म (हाइड्रोजेल) लैंस कुछ देसों में 1960 के दशक में प्रस्तुत किये गए और 1971 में युनाइटेड स्टेट्स एफडीए ने साफ्लेंस सामग्री (पॉलिमेकान) को स्वीकृति दी। नर्म लैंस तुरंत आराम पहुंचाते हैं, जबकि कड़े लैंसों को पूरा आरामदायक होने में कुछ समय लगता है। जिन पॉलिमरों से नर्म लैंसों का उत्पादन होता है उनमें 25 वर्षों में काफी सुधार आया है, मुख्यतः पॉलिमरों को बनाने वाली सामग्री में परिवर्तन करके उनकी आक्सीजन पारगम्यता बढ़ाने के मामले में.

कुछ मिश्रित कड़े/नर्म लैंस उपलब्ध हैं। एक वैकल्पिक तकनीक है, एक छोटे, कड़े लैंस को एक बड़े, नर्म लैंस पर चढ़ाना. ऐसा विभिन्न चिकित्सकीय स्थितियों में किया जाता है, जब एक अकेला लैंस आवश्यक दृष्टि क्षमता, लगाने के गुण या आराम पहुंचाने में असमर्थ हो।

1999 में सिलिकोन हाइड्रोजेल उपलब्ध हुए. सिलिकोन हाइड्रोजेलों में सिलिकोन की अत्यधिक आक्सीजन पारगम्यता तथा पारम्परिक हाइड्रोजेलों का आराम और चिकित्सकीय कार्यक्षमता होती है। ये लैंस पहले मुख्यतः बढे हुए (रातभर) के उपयोग के लिये दिये जाते थे, हालांकि आजकल दिन में (रातभर नहीं) पहने जाने वाले सिलिकोन हाइड्रोजेल स्वीकृत किये गए हैं और बाजार में उतारे गए हैं।

सिलिकोन आक्सीजन पारगम्यता बढाने के साथ-साथ लैंस की सतह में तीव्र जलसंत्रास भी उत्पन्न कर देता है और उसकी नम होने की क्षमता को कम कर देता है। इससे अकसर लैंस को पहनने पर तकलीफ और शुष्कता उत्पन्न हो जाती है। उस जलसंत्रासता से निपटने के लिये हाइड्रोजेल (इसीलिये नाम –सिलिकोन हाइड्रोजेल) मिलाए जाते हैं जो लैंसों को आर्द्रताग्राही बना देते हैं। लेकिन, लैंस की सतह फिर भी जल-संत्रासक रह सकती है। इसलिये कुछ लैंसों पर लैंस की सतह की जलसंत्रासक प्रकृति को बदलने वाले प्लाज्मा उपचारों द्वारा सतह परिवर्तक प्रक्रियाएं की जाती हैं। अन्य प्रकार के लैंसों में आंतरिक पुनर्नमीकारक एजेंट मिलाकर लैंस की सतह को आर्द्रताग्राही बनाया जाता है। एक तीसरी प्रक्रिया में अधिक लंबी पृष्ठ पॉलिमर श्रंखलाओं के प्रयोग से क्रास-लिंकिंग घटा कर बिना सतह को परिवर्तित किये या अतिरिक्त एजेंटों को मिलाए नमीकरण में वृद्धि की जाती है।

पहनने की अवधि

दैनिक प्रयोग वाले कांटैक्ट लैंस को सोने के पहले निकाल लेना होता है। अधिक समय (एक्सटैंडेड वियर - ईडबल्यू) तक पहने जाने वाले कांटैक्ट लैंस लगातार रात भर पहनने के लिये बने होते हैं, सामान्यतः लगातार 6 या अधिक रातों के लिये। नई वस्तुएं, जैसे सिलिकोन हाइड्रोजेल उन्हें लगातार 30 रातों तक पहनने के उपयुक्त बना सकते हैं। इन लंबे अर्से तक पहने जाने वाले लैंसों को कंटीनुअस वियर (सीडबल्यू) कहा जाता है। साधारणतः अक्सटेंडेड वियर लैंसों को एक निश्चित अवधि के बाद फेंक दिया जाता है। इनकी सुविधाजन्यता के कारण ये अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें] इन लैंसों को अधिक समय तक इसलिये पहना जा सकता है क्यौंकि उनमें अधिक आक्सीजन पारगम्यता (पारम्परिक नर्म लैंसों से 5-6 गुना अधिक) होती है, जो आंख को स्वस्थ बनाए ऱखती है।

एक्सटैंडेड लैंस पहनने वालों को कोर्निया के संक्रमण और व्रण हो जाने का अधिक जोखिम होता है - मुख्यतः लैंसों की अपर्याप्त देखभाल व सफाई, आंसू की फिल्म की अस्थिरता और बैक्टीरिया के जमाव के कारण. कोर्निया का नवरक्तनलिकाकरण भी ऐतिहासिक रूप से एक्सटेंडेड लैंस प्रयोग की सामान्य समस्या रही है, हालांकि सिलिकोन हाइड्रोजेल एक्सटेंडेड वियर में यह समस्या नहीं देखी जाती. एक्सटेंडेड लैंस प्रयोग की सबसे आम समस्या है, नेत्रश्लेष्माशोथ – सामान्यतः एलर्जीजन्य या जायंट पैपिलरी नेक्रश्लेष्माशोथ (जीपीसी), जो कभी-कभी ठीक से न बैठे कांटैक्ट लैंस के कारण होता है।

प्रतिस्थापन की दर

अनेक उपलब्ध नर्म कांटैक्ट लैंसों को उन्हें प्रतिस्थापित करने के कार्यक्रम के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। सबसे छोटा प्रतिस्थापन कार्यक्रम एक बार (रोजाना डिस्पोजेबल) प्रयोग किये जाने वाले लैंसों का होता है, जो हर रात को बदल दिये जाते हैं। पहनने के समय टिकाऊपन की कम आवश्यकता के कारण कम प्रतिस्थापक चक्र वाले लैंस साधारणतः पतले और हल्के होते हैं और इसलिये अपने वर्ग और जनरेशन में सबसे आरामदायक होते हैं। ये आखों की एलर्जी या अन्य विकारो से ग्रस्त रोगियों के लिये सर्वोत्तम हो सकते हैं, क्यौंकि वें एंटीजनों और प्रोटीनों के जमाव को सीमित करते हैं। एक बार प्रयोग वाले लैंस उन लोगों के लिये फायदेमंद हैं जो कांटैक्टों का प्रयोग कभी-कभी करते हैं या ऐसे कामों (जैसे तैरना या खेलकूद) के लिये उनका प्रयोग करते हैं जिनमें उनके गुम हो जाने की संभावना होती है। अधिकतर लैंसों को 2 हफ्ते या एक महीने के बाद फेंक देने की सलाह दी जाती है। त्रैमासिक और वार्षिक लैंस जो पहले बहुत लोकप्रिय थे अब प्रयोग में नहीं लाए जाते हैं क्यौंकि कम दर वाला कार्यक्रम पतले लैंसों और कम जमाव को प्रोत्साहित करता है। कड़े गैस पारगम्य लैंस बहुत टिकाऊ होते हैं और बिना बदले कई सालों तक चलते हैं। पीएमएमए (PMMA) सख्त लैंस भी बहुत टिकाऊ होते हैं और सामान्यतः 5 से 10 वर्षों तक पहने जाते हैं। मजे की बात यह है कि दैनिक डिस्पोजेबल लैंस भी अकसर लंबी अवधि (उदा.मासिक प्रतिस्थापन वाले) के लिये बनाए गए लैंसों के उत्पादन में प्रयुक्त सामग्री (उदा.सिलिकोन-हाइड्रोजेल-सेनोफिल्कान-ए) से ही उसी कंपनी द्वारा बनाए जाते हैं। लैंसों में केवल व्यास या आधार वक्रता में ही भिन्नता होती है।

डिजाइन

गोलाकार कांटैक्ट लैंस वह लैंस होता है जिसके अंदर और बाहर की आप्टीकल सतहें गोलक की भाग होती हैं। टोरिक लैंस के की एक या दोनों सतहों का प्रभाव सिलिंड्रिकल लैंस के समान होता है और यह सामान्यतः गोलाकार लैंस के प्रभाव के साथ होता है। निकटदृष्टि और दूरदृष्टि लोग जिन्हें दृष्टिवैषम्य (एस्टिग्मेटिज्म) भी होता है और जो नियमित कांटैक्ट लैंसों के लिये उपयुक्त नहीं होते हैं वे लोग टोरिक लैंसों का प्रयोग कर सकते हैं। यदि केवल एक आंख में एस्टिग्मेटिज्म हो, तो रोगी को एक आंख में गोलाकार लैंस और दूसरी में टोरिक लैंस लगाने के लिये कहा जा सकता है। टोरिक लैंस नियमित कांटैक्ट लैंसों के लिये प्रयुक्त की जाने वाली वस्तुओं से ही बनते हैं पर उनमें कुछ अतिरिक्त गुण होते हैं:

  • वे गोलाकार और बेलनाकार दोनों तरह की त्रुटियों को ठीक करते हैं।
  • उनमें विशिष्ट ऊपरी और निचला सिरा हो सकता है, क्यौंकि वे अपने केंद्र के चारों और समान नहीं होते और उन्हें घुमाया नहीं जाना चाहिये। लैंसों को इस तरह से बनाया जाना चाहिये कि वे आंखों के हिलने के साथ अपनी दिशा नहीं बदलें. अकसर ये लैंस नीचे की ओर मोटे होते हैं और यह मोटा भाग ऊपरी पलक द्वारा झपकने के समय लैंस को सही दशा में घूमने देता है (इस मोटे भाग के आंख पर 6 बजे की स्थिति में रहने पर). टोरिक लैंस को लगाने में सहायता के लिये उन पर बारीक लकीरें बनी होती हैं।
  • इनका उत्पादन साधारणतया गैर-टोरिक लैंसों की अपेक्षा महंगा होता है – इसलिये अकसर इन्हें लंबी अवधि के प्रयोग (एक्सटेंडेड वियर) के लिये बनाया जाता है। पहले डिस्पोजेबल टोरिक लैंस विस्टाकान द्वारा 2000 में प्रस्तुत किये गए।

चश्मों की तरह, कांटैक्ट लैंसों में भी एक या अधिक फोकल बिंदु हो सकते हैं।

प्रेस्ब्योपिया या समायोजन की अपर्याप्तता को सुधारने के लिये बहुकेन्द्रिक कांटैक्ट लैंसों का प्रयोग तो लगभग हमेशा ही किया जाता है। एकल दृष्टि लैंसों को मोनोविजन नामक एक प्रक्रिया में भी काम मे लाया जाता है। एकल दृष्टि लैंस से एक आंख की दूरदृष्टिता और दूसरी आंख की निकटदृष्टिता को ठीक किया जाता है। वैकल्पिक रूप से, कोई व्यक्ति दूरदृष्टिता के लिये एकल दृष्टि कांटैक्ट लैंस और निकट दृष्टि के लिये पढ़ने के चश्मे का प्रयोग कर सकता है।

कड़े गैस पारगम्य द्विकेंद्रिक कांटैक्ट लैंसों में आम तौर पर निकट दृष्टि के सुधार के लिये नीचे की ओर एक छोटा लैंस लगा होता है। जब आंखों को पढ़ने के लिये नीचे किया जाता है, तो यह लैंस दृष्टि के मार्ग में आ जाता है। आरजीपीयों को ठीक काम करने के लिये ऊर्ध्व दिशा में चलना होता है, जिससे आंख की टकटकी दृष्टि द्विकेन्द्रिक चश्मों की तरह निकट से दूर के भागों में बदल सके।

बहुकेन्द्रिक नर्म कांटैक्ट लैंसों का उत्पादन अधिक कठिन होता है और उन्हें लगाने के लिये अधिक कौशल की जरूरत होती है। सभी नर्म द्विकेंद्रिक लैंस समकालीन दृष्टि कहलाते हैं क्योंकि दूर और निकट दृष्टि के सुधार एक साथ रेटिना पर प्रस्तुत किये जाते हैं भले ही आंख किसी भी स्थिति में क्यौं न हो। बेशक केवल एक ही सुधार सही होता है और त्रुटिपूर्ण सुधार से धुंधलापन होता है। आम तौर पर इन्हें लैंस के बीच में दूर दृष्टि के सुधार और परिधि पर निकट दृष्टि के सुधार या इसके विपरीत प्रभाव के लिये डिजाइन किया जाता है।

आरोपण

आंख के भीतर लगाए जाने वाले (इंट्राआक्युलार) लैंस, जिन्हें आरोपणयोग्य कांटैक्च लैंस भी कहा जाता है, विशेष छोटे उपचारक लैंस होते हैं जिन्हें शल्य चिकित्सा से आंख के पिछले चैम्बर में तारे के पीछे और लैंस के सामने अधिक तीव्र निकट दृष्टिता और दूर दृष्टिता को ठीक करने के लिये आरोपित किया जाता है।

कांटैक्ट लैंसों का उत्पादन

अधिकांश कांटैक्च लैंसों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है।

  • स्पिन-कास्ट लैंस – स्पिन-कास्ट लैंस एक नर्म कांटैक्ट लैंस है जिसका उत्पादन घूमते हुए सांचे पर सिलिकोन द्रव को फैला कर किया जाता है।
  • लेथ टर्न्ड – लेथ टर्न्ड कांटैक्ट लैंस को सीएनसी लेथ पर काटकर पालिश किया जाता है। शुरू में यह लैंस एक बेलनाकार डिस्क के रूप में होता है जो लेथ के जबड़ों में पकड़ा हुआ होता है। लेथ में काटने के औजार के तौर पर एक औद्योगिक श्रेणी का हीरा लगा होता है। सीएनसी लेथ लगभग 6000 आरपीएम पर घूमता है, जिसके साथ कटर लैंस के भीतर से पदार्थ की अपेक्षित मात्रा को निकालता है। लैंस की अवतल (भीतरी) सतह की फिर तेज गति पर घूमने वाले महीन घिसने के पेस्ट, तेल और एक छोटी सी पालिएस्टर की काटनबाल से पालिश की जाती है। नाजुक लैंस को उल्टी स्थिति में पकड़े रखने के लिये मोम को गोंद की तरह प्रयोग में लाया जाता है। लैंस की बाहरी सतह को इसी विधि से काट कर पालिश किया जाता है।
  • मोल्डेड – नर्म कांटैक्ट लैंसों के कुछ ब्रांडों के फत्पादन के लिये मोल्डिंग का प्रयोग किया जाता है। घूमते हुए मोल्डों का प्रयोग करके पिघला हुआ पदार्थ डाला जाता है और अपकेन्द्री बलों से उन्हें आकार दिया जाता है। इंजेक्शन मोल्डिंग और कम्प्यूटर नियंत्रण के प्रयोग से भी लगभग संपूर्ण लैंस बनाए जाते हैं।.
  • संकर

हालांकि कई कंपनियां कांटैक्ट लैंस बनाती हैं, यूएस में इसके चार मुख्य उत्पादक हैं।

  • अक्युव्यु/विस्टेकॉन (जॉनसन एंड जॉनसन)
  • सिबा विजन (नोवार्टिस)
  • बौश एंड लोम्ब (Bausch & Lomb)
  • कूपरविज़न

हाइड्रोजेल सामग्री

  • अल्फ़ाफिल्कन ए
  • असमोफिल्कन ए
  • बालाफिल्कन ए
  • कॉमफिल्कन ए
  • एनफिल्कन ए
  • गैलीफिल्कन ए
  • हिलाफिल्कन ए
  • हिलाफिल्कन बी
  • हायोफिल्कन
  • लोट्राफिल्कन बी
  • मेथाफिल्कन ए
  • ओमाफिल्कन ए
  • फेमफिल्कन ए
  • पॉलीमैकन
  • सेनोफिल्कन
  • टेट्राफिल्कन ए
  • वीफिल्कन ए

कांटैक्ट लैंस के नुस्खे

कांटैक्ट लैंसों के नुस्खे सामान्यतः आंखो के विशेषज्ञों द्वारा दिये जाते हैं। युनाइटेड स्टेट्स (जहां सभी कांटैक्ट लैंसों को एफडीए द्वारा मेडिकल उपकरण माना जाता है), यूके और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में साधारणतया आप्टोमेट्रिस्ट यह काम करते हैं। फ्रांस और पूर्वी यूरोपियन देशों में चक्षुरोग विशेषज्ञ मुख्य भूमिका निभाते हैं। विश्व के अन्य भागों में, आप्टीशियन कांटैक्ट लैंसों के नुस्खे देते हैं। कांटैक्ट लैंसों और चश्मों के नुस्खे समान हो सकते हैं लेकिन आपस में परिवर्तनीय नहीं होते.

विशेषज्ञ या कांटैक्ट लैंस फिटर आंख की परीक्षा के समय व्यक्ति की कांटैक्ट लैंस के लिये उपयुक्तता निश्चित करता है। कोर्निया के स्वास्थ्य को जांचा जाता है – आंख की एलर्जी या शुष्क आंखें व्यक्ति के सफलतापूर्वक कांटैक्ट लैंस धारण करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं।

कांटैक्ट लैंस के नुस्खे में निर्दिष्ट मानकों में शामिल हैं:

  • पदार्थ (उदा. आक्सीजन पारगम्यता/संचारकता (डीके/एल, डीके/टी), पानी की मात्रा, माड्युलस, ऐच्छिक)
  • आधार वक्र अर्धव्यास (बीसी, बीसीआर, आवश्यक)
  • व्यास (डी, ओएडी, आवश्यक)
  • शक्ति डायाप्टरों में (गोलाकार आवश्यक, सिलिंड्रिकल केवल एस्टिग्मेटिज्म के उपचार के लिये, पढ़ने के लिये केवल द्विकेंद्रिक नुस्खे में)
  • सिलिंड्रिकल एक्सिस (अक्सर केवल एक्सिस, सिलिंड्रिकल उपचार के लिये ही आवश्यक)
  • केंद्र की मोटाई (सीटी, ऐच्छिक और बहुत कम जरूरी)
  • ब्रांड (ऐच्छिक)

ध्यान रखें कि हालांकि कांटैक्ट लैंस के नुस्खे में व्यक्ति के लिये उपयुक्त लैंस का व्यास और आधार वक्र निर्दिष्ट किया गया होता है, कई उत्पादक केवल कुछ सीमित अंतरालों पर ही लैंसों का उत्पादन करते हैं। एक्यूव्यू 2 के निर्माता जानसन एंड जानसन केवल 8.3 मिमी या 8.7 मिमी के आधार वक्रों और केवल 14.0 मिमी व्यास के ऐसे लैंसों का ही उत्पादन करते हैं – ऐसे लैंस सिर्फ किसी विशेष समुदाय के लोगों को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं जिन्हें ये लैंस फिट हो सकते हों या वे इन्हें पर्याप्त रूप से आरामदेह पा सकते हों.

कई लोग इंटरनेट पर आर्डर दे कर मंगाए गए लैंस पहनते हैं। युनाइटेड स्टेट्स में, फेयरनेस टू कांटैक्ट लैंस कंज्यूमर ऐक्ट जो 2004 में लागू हुआ, रोगियों को कांटैक्ट लैंसों के नुस्खे उपलब्ध कराने के लिये बनाया गया था। कानूनन, उपभोक्ताओं को कांटैक्ट लैंस नुस्खे की एक नकल पाने का अधिकार है, जिससे वे अपनी पसंद की दुकान से वह लैंस खरीद सकें. इस बात पर कुछ विवाद उत्पन्न हुआ है कि कुछ आनलाइन विक्रेताओं को नुस्खे के अनुसार लैंस बेचने की अनुमति है यदि मूल नुस्खा लिखने वाला 8 व्यापारिक घंटों में जवाब न दे क्यौंकि प्रमाणीकरण के संदेश अकसर नुस्खा देने वाले के व्यापार के बंद रहने के समय भेजे जाते हैं, जिससे समाप्त हो चुके नुस्खे पर भी लैंस बनाए जा सकते हैं।

जटिलताएं

कांटैक्ट लैंस पहनने से होने वाली जटिलताएं कांटैक्ट लैंस पहनने वाले लोगों में से करीब 5% को प्रभावित करती हैं। कांटैक्ट लैंसों का अत्यधिक प्रयोग, विशेषकर रात भर लगाने से अधिकांश सुरक्षा-चिंताओं का कारण है। कांटैक्ट लैंस के पहनने से होने वाली समस्याएं आंख की पलक, नेत्रश्लेष्मा, कोर्निया की विभिन्न पर्तों और आंख की बाहरी सतह को ढकने वाली आंसू की फिल्म को भी प्रभावित करती हैं।

लंबे समय तक कांटैक्ट लैंसों को पहनने से होने वाले दुष्प्रभावों अर्थात् 5 वर्ष से अधिक के ज़ुगुओ लियु और अन्य द्वारा किये गए अध्ययन से पता चला है कि, लंबी अवधि तक कांटैक्ट लैंस पहनने से कोर्निया की सारी मोटाई कम हो जाती और वक्रता व सतह की असमानता बढ़ जाती है।

कड़े कांटैक्ट लैंस को लंबे समय तक पहनने से कोर्निया के केरेटोसाइटों का घनत्व कम और उपकला की लैंगरहांस कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है।

आंख की पलक

  • टोसिस

नेत्रश्लेष्मा

  • जायंट पैपिलरी नेत्रश्लेष्माशोथ
  • सुपीरियर लिम्बिक केरेटो-नेत्रश्लेष्माशोथ

कोर्निया

  • उपकला
    • कोर्निया की छिलन
    • कोर्निया का स्खलन
    • कोर्निया का छाला/वृण
    • अल्पवायुता
  • स्ट्रोमा
  • कोर्नियल अंतर्कला

प्रयोग का तरीका

कांटैक्ट लैंसों या आंखों को छूने के पहले यह जरूरी है कि बिना मायस्चराइजरों या एलर्जनों जैसे की खुशबू वाले साबुन से हाथ धो लिये जाएं. साबुन जीवाणु रोधक नहीं होना चाहिये क्यौंकि इससे हाथों की अपर्याप्त सफाई का जोखिम और आंखों पर पाए जाने वाले प्राकृतिक बैक्टीरिया को नष्ट हो जाने की संभावना होती है। ये बैक्टीरिया रोगकारक बैक्टीरिया को कोर्निया में बसने से रोकते हैं। कांटैक्ट लैंस को लगाने या निकालने की तकनीक लैंस के नर्म या कड़े होने के अनुसार जरा सी भिन्न होती है।

सभी मामलों में लैंसों को लगाने या निकालने के लिये प्रयोगकर्ता को कुछ अभ्यास की जरूरत होती है, जिससे अपनी उंगली के सिरे से आंख के गोलक को छूने का डर दूर हो सके।

प्रवेशन

कांटैक्ट लेंस डालते हुए

कांटैक्ट लैंसों को आम तौर पर आंख में इनको तर्जनी उंगली पर अवतल भाग को ऊपर की ओर रख कर फिर उठाकर कोर्निया को छूकर लगाया जाता है। दूसरे हाथ से आंख को खुला रखा जा सकता है। विशेषकर डिस्पोजेबल नर्म लैंसों से समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं – यदि लैंस और उंगली के बीच सतह का तनाव बहुत अधिक हो, तो लैंस उल्टा हो सकता है, या वह दोहरा हो सकता है। जब लैंस का आंख से पहली बार संपर्क होता है, तब आंख को उसकी आदत होने तक या लैंस पर पड़ी धूल के कारण (यदि बहुकेंद्रिक लैंस को ठीक से साफ न किया गया हो) थोड़ी सी देर के लिये क्षोभ महसूस हो सकता है। ऐसे समय आंख को धोने से लाभ हो सकता है लेकिन यह एक मिनट से अधिक नहीं करना चाहिये। यह ध्यान देने की बात है कि हालांकि कुछ तरह के कांटैक्ट लैंसों में यह सरलता से मालूम हो जाता है कि आपने लैंस को उल्टी ओर से लगा लिया है (चूंकि यह दर्दपूर्ण होता है और इससे ठीक से नजर नहीं आता), आप लैंस की सही स्थिति का पता पहले ही लगा सकते हैं। इसके लिये लैंस को अपनी उंगली के सिरे पर रख कर अपने दूसरे हाथ की दो उंगलियों से उसके निचले भाग को निचोड़ना चाहिये – आपको सही स्थिति ज्ञात हो जाएगी यदि लैंस के सिरे किसी टैको की तरह भीतर की ओर मुड़ गई हों. यदि वे बाहर की ओर मुड़ जाएं तो आपको लैंस को फ्लिप करने की जरूरत पड़ेगी. लेकिन कुछ तरह के लैसों में यह कठिन होता है क्यौंकि वे दोनों ओर से समान दिखते हैं। कई लैंसों को आंख में लगाने के बाद भी यह बताना कठिन होता है कि वे उन्हें उल्टा लगाया गया है। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि इन लैंसों के दोनों तरफ से नजर व अनुभूति समान होती है। इस वजह से कई लोग यह कोशिश करते हैं कि वे पहले दिन से ही अपने कांटैक्ट लैंसों को दोनों ओर से देखकर पहचान लें ताकि जब उन्हें लगे कि लैंस उल्टा लग गया है तो वे कभी भी उसे सही तरह से लगा सकें. लैंसों को कभी भी उल्टा नहीं पहनना चाहिये भले ही वे आरामदेह लगते हों और उनसे स्पष्ट क्यौं न दिखता हो।

निकालना

नर्म लैस को आंख की पलकों को पकड़ कर खुला रख कर और लैंस को दो उंगलियों से पकड़ कर निकाला जाता है। इस तरीके से क्षोभ हो सकता है, आंख को चोट लग सकती है और कई बार ऐसा करना, पलक के झपकने के कारण कठिन हो सकता है। यदि लैंस को कोर्निया पर से धकेल दिया जाय (लैंस को अपनी तर्जनी उंगली से छूकर, अपनी नाक की ओर देखते हुए, लैंस को खिसका कर) तो यह मुड़ सकता है, जिससे इसे (वक्रता में भिन्नता के कारण) सरलता से पकड़ा जा सकता है।

विकल्प के ऱूप में, एक बार लैंस को कोर्निया पर से आंख के भीतरी कोने की ओर खिसका देने के बाद उसे ऊपरी पलक को उंगली से नीचे की ओर दबाकर बाहर निकाला जा सकता है। इस तरीके में आंख को उंगलियों से छूने का जोखम कम हो जाता है और लंबे नाखूनों वाले लोगों के लिये आसान तरीका है।

कड़े कांटैक्ट लैंसों को बाहरी कोने पर एक उंगली से खींच कर और फिर पलक झपका कर लैंस के आसंजन को कमजोर करके निकाला जा सकता है। दूसरे हाथ को लैंस को पकड़ने के लिये आंख के नीचे प्याले की तरह रखा जाता है। लैंसों को निकालने के लिये कुछ छोटे उपकरण भी उपलब्ध हैं, जो लचीले प्लास्टिक से बने छोटे मुसकों के जैसे होते हैं। अवतल सिरे को उठाकर आंख तक ले जाया जाता है और लैंस को छुआ जाता है, जिससे लैंस और कोर्निया के बीच की सील से अधिक मजबूत सील बन जाती है और लैंस आंख के बाहर निकल जाता है।

देख-रेख

कांटैक्ट लेंस को रखने के लिए लेंस कवर

हालांकि दैनिक डिस्पोजेबल लैंसों को साफ करने की जरूरत नहीं होती है, अन्य प्रकारों को नियमित सफाई और विसंक्रमित करना आवश्यक होता है ताकि साफ दिखाई दे सके और लैंस की सतह पर बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया, कवक और एकैंथअमीबा सहित अनेक सूक्ष्मजीवाणुओं से उत्पन्न तकलीफ और संक्रमणों की रोकथाम की जा सके। ऐसे कई उतेपाद उपलब्ध हैं जिन्हें इस उद्देश्य के लिये प्रयोग किया जा सकता है।

  • बहुउद्देश्यीय घोल – कांटैक्ट लैंसों की सफाई कै सबसे लोकप्रिय घोल. लैंसों को धोने, विसंक्रमित करने और भंडारण करने के लियो प्रयुक्त. इस उत्पादन के प्रयोग से अधिकांश मामलों में प्रोटीन निकालने की एंजाइम गोलियों की जरूरत नहीं पड़ती. कुछ बहुउद्देशीय घोल लैंस से एकैंथअमीबा को हटाने में कामयाब नहीं होते. मई, 2007 में, बहु उद्देशीय घोल के एक ब्रैंड को एकांथअमीबा के संक्रमण के कारण वापस ले लिया गया। नये बहुउद्देशीय घोलक बैक्टीरिया, कवक और एकैंथअमीबा के प्रति असरकारी हैं और लैंसों को भिगोने के समय उन्हें साफ करने के लिये बनाए गए हैं।
  • नमकीन घोल – लैंस को साप करने के बाद धोने और लगाने के लिये तैयार करने के लिये प्रयुक्त. नमकीन घोल लैंसों को विसंक्रमित नहीं करते हैं।
  • दैनिक सफाईकारक – रोजाना लैंसों की सफाई के लिये प्रयुक्त. लैंस को हथेली पर रख कर उस पर क्लीनर की कुछ बूंदें डाली जाती हैं, फिर लैंस को दोनों ओर से उंगली के सिरे से (क्लीनर के निर्देशों के अनुसार) करीब 20 सेकंडों तक घिसा जाता है। लंबे नाखून लैंस को नुकसान पहुंचा सकते हैं इसलिये ध्यान रखना चाहिये।
  • हाइड्रोजन पराक्साइड घोल – लैंसों को विसंक्रमित करने के लिये प्रयुक्त. टू-स्टेप या वन-स्टेप सिस्टमों में उपलब्ध. टू-स्टेप उत्पादन का प्रयोग करते समय यह सुनिश्चित कर लें कि लैंस को पहनने के पहले हाइड्रोजन पराक्साइड को निष्क्रिय कर दिया गया है, अन्यथा लगाने पर तीव्र दर्द हो सकता है। पराक्साइड को साफ करने के लिये सैलाइन का प्रयोग करना चाहिये। यदि यह घोल आंखों में चला जाय तो तुरंत इमरजेंसी रूम में जाकर आंखों की धुलाई करवाना चाहिये।
  • दैनिक क्लीनर के पर्याप्त न होने पर, अकसर साप्ताहिक तौर पर, लैंसों पर से प्रोटीन के संग्रहों को साफ करने के लिये प्रयुक्त. यह क्लीनर गोलियों के रूप में मिलता है। प्रोटीन का जमाव कांटैक्ट लैंसों को असुविधाजनक बना देता है और इससे अनेक समस्याएं हो सकती हैं।
  • पराबैंगनी, वाइब्रेशन या अल्ट्रासोनिक उपकरण – कांटैक्ट लैंसों को विसंक्रमित और साफ करने के लिये प्रयुक्त. लैंसों को 2 से 6 मिनट के लिये पोर्टेबल उपकरण (बैटरी या प्लग-इन से चालित) में डाल दिया जाता है, जिससे सूक्ष्मजीवाणु और प्रोटीन का जमाव अच्छी तरह से साफ हो जाता है। सैलाइन घोल का प्रयोग किया जाता है क्यौंकि बहुउद्देशीय घोलों की आवश्यकता नहीं होती. ये उपकरण आप्टिक दुकानों में न मिलकर अकसर कुछ इलेक्ट्रो-घरेलू स्टोरों में बेचे जाते हैं।

कुछ उत्पादनों का प्रयोग केवल कुछ विशेष प्रकार के कांटैक्ट लैंसों के साथ ही करना चाहिये। यह आवश्यक है कि उत्पादन के लेबल की इस बात के लिये जांच कर ली जाय कि उसे किस प्रकार के लैंस के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है। कांटैक्ट लैंस को साफ करने के लिये केवल पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये क्यौंकि पानी लैंस को पूरी तरह से विसंक्रमित नहीं कर सकता. कांटैक्ट लैंस को साफ करने के लिये पानी का इस्तेमाल करने से लैंस दूषित हो सकता है और कभी-कभी इससे आंख को न ठीक होने वाली हानि पहुंच सकती है। आंख के संक्रमण या क्षोभ से बचाव के लिये उत्पादन के निर्देशों का पालन करना भी जरूरी है। इसके अलावा, कांटैक्ट के डिब्बों या लैंस को पानी या बहुउद्देशीय घोल या हाइड्रोजन पराक्साइड से अच्छी तरह धोना नहीं भूलना चाहिये ताकि उसकी सतहों पर बायोफिल्में न बनने पाएं.

यह निश्चित करना जरूरी है कि उत्पादन सूक्ष्मजीवाणुओं से दूषित न हो। इन घोलकों के पात्रों के सिरों कभी भी किसी सतह के संपर्क में न आना चाहिये और प्रयोग में न होने पर पात्र को बंद रखना चाहिये। उत्पाद के हल्के दूषण से बचाव और कांटैक्ट लैंस पर मौजूद सूक्षमजीवाणुओं को खत्म करने के लिये, कुछ उत्पादों में थायोमर्साल, बेंजअल्कोनियम क्लोराइड, बेंजाइल अल्कोहल और अन्य यौगिक परिरक्षक के रूप में मिलाए जाते हैं। 1989 में कांटैक्ट लैंसों से होने वाली समस्याओं में से करीब 10% के लिये थायोमर्साल को जिम्मेदार पाया गया। बिना परिरक्षक वाले उत्पाद जल्दी खराब हो जाते हैं। उदा. गैर-एयरोसाल, बिना परिरक्षक वाले सैलाइन घोल खोलने के बाद केवल दो हफ्तों तक उपयोग में लिये जा सकते हैं। 1999 में सिलिकोन-हाइड्रोजेल नर्म कांटैक्ट लैंस वस्तुओं के उपलब्ध होने के बाद उचित विसंक्रमण घोलक का चुनाव और महत्वपूर्ण हो गया। प्योरविजन सिलिकोन हाइड्रोजेल लैंसों (बाश एंड लाम्ब, रोचेस्टर, एनवाई) के साथ एलर्गान अल्ट्राकेयर विसंक्रमण सिस्टम (एलर्गान, इंक, इरविन, सीए) या उसके किसी घटक (अल्ट्राकेयर विसंक्रमण घोल, न्यूट्रलाइजिंग टैबलेट्स, लैंस प्लस डेली क्लीनर और अल्ट्राजाइम एंजाइमेटिक क्लीनर) का कभी प्रयोग नहीं करना चाहिये।

वर्तमान अनुसंधान

वर्तमान कांटैक्ट लैंस शोध का बड़ा हिस्सा कांटैक्ट लैंस के दूषण और विदेशी जीवों के घर बनाने से उत्पन्न विकारों के उपचार और रोकथाम में जुटा हुआ है। चिकित्सकों द्वारा आम तौर पर माना जाता है कि कांटैक्ट लैंस के प्रयोग की सबसे बड़ी समस्या जीवाणुजन्य केरेटाइटिस है और सबसे आम सूक्ष्मजीवाणु सूडोमोनास एयरूजिनोजा है। अन्य जीवाणु भी कांटैक्ट लैंस को पहनने से संबंधित बैक्टीरियल केरेटाइटिस का मुख्य कारण होते हैं, हालांकि उनकी व्यापकता भिन्न स्थानों पर भिन्न होती है। इनमें अन्य जातियों के साथ स्टैफिलोकाकल जाति (आरियस और एपिडिडर्मिस) और स्ट्रेप्टोकाकल जाति शामिल हैं। वर्तमान शोध में सूक्ष्मजीवाणुजन्य केरेटाइटिस इसके आंख पर होने वाले अंधेपन सहित भयंकर प्रभाव के कारण एक गंभीर केन्द्र बिंदु है।

शोध का एक विशेष रूचिकर विषय है, यह जानना कि सूडोमोनास एयरूजिनोजा जैसे सूक्ष्मजीवाणु कैसे आंख में घुसते और उसे संक्रमित करते हैं। यद्यपि सूक्ष्मजीवाणु-जन्य केरेटाइटिस के रोगजनन को भली-भांति समझा नहीं गया है, कई भिन्न कारकों की जांच की जा रही है। कुछ शोधकों ने दिखाया है कि कोर्निया में आक्सीजन की कमी से सूडोमोनास के कोर्नियल बाह्यकला से संयोग, सूक्ष्मजीवाणुओं के अंतरीकरण तथा शोथकीय प्रक्रिया के शुरू होने को बढ़ावा मिलता है। अल्पआक्सीयता को कम करने का एक तरीका कोर्निया को प्राप्त आक्सीजन की मात्रा को बढ़ाना है। हालांकि सिलिकोन-हाइड्रोजेल लैंस उनकी अति उच्च आक्सीजन पारगम्यता के कारण अल्पआक्सीयता को लगभग खत्म कर देते हैं, पारम्परिक हाइड्रजेल नर्म कांटैक्ट लैंसों की अपेक्षा वे भी बैक्टीरियल दूषण और कोर्नियल अंतःसंचरण के लिये अधिक प्रभावी स्थिति उपलब्ध करते लगते हैं। हाल के एक अध्ययन में पाया गया कि सूडोमोनास एयरूजिनोजा और स्टैफिलोकाकल एपिडर्मिस पार्म्परिक हाइड्रजेल कांटैक्ट लैंसों की अपेक्षा सिलिकोन हाइड्रजेल कांटैक्ट लैंसों से अधिक मजबूती से चिपकते हैं और सूडोमोनास एयरूजिनोजा का आसंजन स्टैफिलोकाकस एपिडिडर्मिस से 20 गुना अधिक मजबूत होता है। इससे पता चलता है कि सूडोमोनास का संक्रमण सबसे अधिक क्यौं होता है।

काटैक्ट लैंस शोध का एक और महत्वपूर्ण भाग है, रोगी द्वारा स्वीकृति. अनुकूलता कांटैक्ट लैंसों के प्रयोग से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा है क्यौंकि रोगी के अस्वीकृत किये जाने पर लैंस और उसके केस अकसर दूषित हो जाते हैं। बहुउद्देशीय घोलकों और दैनिक डिस्पोजेबल लैंसों की उपलब्धि से अपर्य़ाप्त सफाई से उत्पन्न कुछ समस्याओं में कमी आई है, लेकिन सूक्ष्मजीवों के दूषण को रोकने के लिये नए तरीके अभी विकसित किये जा रहे हैं। एक चांदी-युक्त लैंस केस बनाया जा रहा है जो लैंस केस के संपर्क में आने वाले किसी भी दूषक सूक्ष्मजीवाणु को दूर कर सकता है। इसके अलावा कई सूक्ष्मजीव-प्रतिरोधकों का विकास किया जा रहा है जो स्वयं कांटैक्ट लैंसों में प्रविष्य किये जा सकते हैं। सेलेनियम अणुओं से युक्त कांटैक्ट लैंसों को खरगोश की आंख की कोर्निया को बिना हानि पहुंचाए बैक्टीरिया के जमाव को कम करते दिखाया गया है और कांटैक्ट लैंस सर्फैक्टैंट के रूप में प्रयुक्त आक्टीइलग्लुकोसाइड बैक्टीरिया के आसंजन को काफी हद तक कम करता है। ये यौगिक कांटैक्ट लैंसों के निर्माताओं और आप्टोनेट्रिस्टों को रूचिकर लगते हैं क्यौंकि बैक्टीरियल जमाव के प्रभाव को प्रभावशाली रूप से रोकने के लिये इनके प्रयोग के लिये रोगी की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती.

इन्हें भी देखें

  • बीओनिक संपर्क लेंस
  • सुधारात्मक लेंस
  • चश्मे के लिये निर्देश
  • दृश्य तीक्ष्णता

आगे पढ़ें

  • एफ्रोन, नाथन (2002). कांटैक्ट लेंस अभ्यास, एल्सीवियर स्वास्थ्य विज्ञान. ISBN 0-7506-4690-X.

बाहरी कड़ियाँ


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