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आनुवांशिक संशोधित फसल

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विश्व के वे क्षेत्र जहाँ अनुवांशिक संशोधित फसलें उगायी जा रही हैं ९२००५ में)
परिवर्तित जीन प्लम

आनुवांशिक संशोधित फसल (अंग्रेज़ी:जेनेटिक मॉडिफाइड फूड) वे फसलें हैं, जिनके आनुवांशिक पदार्थ (डीएनए) में बदलाव किये जाते हैं, अर्थात ऐसी फसलों की उत्पत्ति इनकी बनावट में अनुवांशिकीय रूपांतरण से की जाती है। इनका आनुवांशिक पदार्थ आनुवांशिक अभियांत्रिकी से तैयार किया जाता है। इससे फसलों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है और आवश्यक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है।

इतिहास

इस तरीके से पहली बार १९९० में फसल पैदा की गयी थी। सबसे पहली इस विधि से टमाटर को रूपांतरित किया गया था। कैलिफॉर्निया की कंपनी कैलगेने ने टमाटर के धीरे-धीरे पकने के गुण को खोजा था, तब उस गुण के गुणसूत्र में परिवर्तन कर ये नयी फसल निकाली थी। इसी तरह का प्रयोग बाद में पशुओं पर भी किया जा रहा है। २००६ में सूअर पर प्रयोग किया गया। उत्तरी अमेरिका में अनुवांशिकीय रूपांतरित फसलों का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है।

आलोचना

कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व भर में खाद्य पदार्थो में कमी का कारण खराब वितरण है न कि उत्पादन में कमी। इस स्थिति में ये छेड़छाड़ अनावश्यक होगी। तब ऐसी फसलों के उत्पादन पर जोर नहीं दिया जाना चाहिये, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हों। हंगरी, वेनेजुएला जैसे कई देशों ने ऐसी फसलों के उत्पादन और आयात पर रोक भी लगा दी है। फिर भी बढ़ती जनसंख्या और खाद्यानों की बढ़ती मांग को देखते हुए विश्व भर में अब कई फसलों और जानवरों पर ऐसे प्रयोग हो रहे हैं। भारत की जैवप्रौद्योगिकी नियामक संस्था द जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (बायोटेक) आनुवांशिक बदलाव किये गये बैंगन को मान्यता देने पर विचाराधीन है। यदि ये मान्यता मिल गयी, तो यह भारत में पहला आनुवांशिक संशोधित खाद्य होगा, हालांकि इसे लेकर कई जगह विरोध उठे हैं, जिनका तर्क है कि इससे स्वास्थ्य प्रभावित होगा। अब तक भारत में सिर्फ बीटी कॉटन ही वाणिज्यिक तौर पर प्रमाणित फसल थी।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ


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