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अहंकार

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अहंकार या गर्व है अधिक महत्वपूर्ण होने की इच्छा।

अहंकार ____ कुछ हिन्दू पुरूष अत्यधिक अहंकार के कारण विश्व का परम् सत्य जाने की कोशिश करते हैं वे नर से नारायण बनने की इच्छा करते हैं कुछ परमात्मा से भी ऊपर ब्रह्म बनना चाहते हैं कुछ स्वयं के भीतर की आत्मा को परमात्मा मानते है इसलिए कुछ हिन्दू पुरूषो को अंत में ज्ञात हो जाता है कि उसकी ही आत्मा परमात्मा है वह ही ब्रह्म है तथा वही नर है वही नारायण है और सम्पूर्ण हिन्दू देवी देवता ऋषि असुर राक्षस व बुध्द सब उसकी आत्मा के ही विभिन्न स्वरूप है इसलिए यहां जानकर वहां निश्चित ही अपने हिन्दू धर्म को स्वीकार करता है । हिन्दू धर्म के ग्रंथों में बहुत कुछ है परंतु सभी लोग पढ़ नहीं पाते अत: अधिकतर कुछ लोग स्वयं भी भर्मित होते हैं और अहंकार वश दूसरो के लिए भी भृम की स्थिति उत्पन्न करते हैं । यह कदाचित सत्य नहीं है कि धर्म में स्पष्ट वेदों पुराणों में कहा गया है कि तुम ही परमात्मा हो मात्र तुम्हें ज्ञात नहीं और न ही गीता में कहीं भी कृष्ण ने अर्जुन से यह कहा था तुम भी परमात्मा हो तुम्हे ज्ञात नहीं। और न ही यह कि स्वयं की आत्मा परमात्मा है परन्तु किसी अन्य की आत्मा मात्र उसकी आत्मा है । भगवान कृष्ण ने तो भगवद गीता में पाँच विष्यों आत्मा, परमात्मा, कर्म, संसार और काल (समय) और इनके पारस्परिक संबंधों के विषय में व्यावहारिक ज्ञान दिया है ।

परमपिता परमात्मा का प्रकाश हर जीव के हृदय में है अर्थात् परमात्मा जीव के हृदय में निवास करता है परंतु परमात्मा तो कण कण में स्थित है इसलिए जीव परमात्मा नहीं है । जिस प्रकार दोपहर को सूर्य की धूप सभी जगह ओर हमारे घर में भी होती है परंतु हम यह नहीं कह सकते कि हमारा घर ही सूर्य है ।

अन्य सभी अपने धर्म के सिध्दान्त व मान्यता को ही माने ।


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