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चिरकारी अवरोधी फुप्फुस रोग
चिरकारी अवरोधी फुप्फुस रोग chronic obstructive pulmonary disease वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | ||
Gross pathology of a lung showing centrilobular-type emphysema characteristic of smoking. This close-up of the fixed, cut lung surface shows multiple cavities lined by heavy black carbon deposits. | ||
आईसीडी-१० | J40.–J44., J47. | |
आईसीडी-९ | 490–492, 494–496 | |
ओएमआईएम | 606963 | |
डिज़ीज़-डीबी | 2672 | |
मेडलाइन प्लस | 000091 | |
ईमेडिसिन | med/373 emerg/99 | |
एम.ईएसएच | C08.381.495.389 |
चिरकारी अवरोधी फुप्फुस रोग (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीस/सीओपीडी या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग्स डिसीस) एक प्रकार का फेफड़ों से सम्बंधित अवरोधी फुप्फुस रोग है जिसे जीर्ण रूप से खराब वायु प्रवाह से पहचाना जाता है। आम तौर पर यह समय के साथ बिगड़ता जाता है। इसके मुख्य लक्षणों में श्वसन में कमी, खांसी, और कफ उत्पादन शामिल हैं।क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस से पीड़ित अधिकांश लोगों को सीओपीडी होता है।
तंबाकू धूम्रपान सीओपीडी का एक आम कारण है, जिसमें कई अन्य कारक जैसे वायु प्रदूषण और आनुवांशिक समान भूमिका निभाते हैं। विकासशील देश में वायु प्रदूषण का आम स्रोत खराब वातायन वाली भोजन पकाने की व्यवस्था और गर्मी के लिए आग जलाने से संबंधित है। इन परेशानी पैदा करने वाले कारणों से दीर्घ कालीन अनावरण के कारण फेफड़ों में सूजन की प्रतिक्रिया होती है जिसके कारण वायुमार्ग छोटे हो जाते हैं और एम्फीसेमा नामक फेफड़ों के ऊतकों की टूटफूट जन्म लेती है। इसका निदान खराब वायुप्रवाह पर आधारित है जिसकी गणना फेफड़ों के कार्यक्षमता परीक्षणों से की जाती है।अस्थामा के विपरीत, दवा दिए जाने से वायुप्रवाह में कमी महत्वपूर्ण रूप से बेहतर नहीं होती है।
ज्ञात कारणों से अनावरण को कम करके सीओपीडी की रोकथाम की जा सकती है। इसमें धूम्रपान की दर घटाने के प्रयास तथा घर के भीतर व बाहर की वायु गुणवत्ता का सुधार शामिल है। सीओपीडी उपचार में:धूम्रपान छोड़ना, टीकाकरण, पुनर्वास और अक्सर श्वसन वाले ब्रांकोडायलेटर और स्टीरॉएड शामिल होते हैं। कुछ लोगों को दीर्घअवधि ऑक्सीजन उपचार या फेफड़ों के प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है। वे लोग जिनमें those who have periods of गंभीर खराबी के लक्षण हों उनके लिए दवाओं का बढ़ा हुआ उपयोग और अस्पताल में उपचार की जरूरत पड़ सकती है।
पूरी दुनिया में सीओपीडी 329 मिलियन लोगों या जनसंख्या के लगभग 5% लोगों को प्रभावित करती है। 2012 में इस विश्वव्यापी मौतों के कारणों में तीसरा स्थान हासिल था क्योंकि इससे 3 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। धूम्रपान की अधिक दर और अनेक देशों में जनसंख्या के बुजुर्ग होने से, होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि का अनुमान है। 2010 में इसके चलते $2.1 ट्रिलियन की राशि का व्यय हुआ।
अनुक्रम
चिह्न तथा लक्षण
सीओपीडी को सबसे आम लक्षण कफ का निकलना, सांस में कमी और उत्पादक खांसी हैं। ये लक्षण लंबी अवधि के लिए बने रहते हैं और आम तौर पर समय के साथ बिगड़ते जाते हैं। यह अस्पष्ट कि क्या सीओपीडी के भिन्न प्रकार होते हैं। जबकि पहले इनको एम्फीसेमा और जीर्ण ब्रॉन्काइटिस में विभाजित किया जाता था, एम्फीसेमा फेफड़ों में परिवर्तन का एक वर्णन मात्रा है न कि कोई रोग और जीर्ण ब्रॉन्काइटिस मात्र उन लक्षणों का व्याख्याता है जो सीओपीडी में उपस्थित हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं।
खांसी
कोई जीर्ण खांसी उत्पन्न होने वाला पहला लक्षण है। जब यह दो वर्षों के लिए साल में तीन माह से अधिक समय तक उपस्थित रहे और बिना अन्य किसी स्पष्ट कारण के कफ की उपस्थिति के साथ बनी रहे तो परिभाषा के अनुसार यह जीर्ण ब्रॉन्काइटिस है। सीओपीडी के पूरी तरह से विकास होने से पहले यह स्थिति पैदा हो सकती है। कफ की मात्रा घंटो से लेकर दिनों तक में बदल सकती है। कुछ मामलो में खांसी नहीं भी हो सकती है या केवल कभी कभार होती है या उत्पादक नहीं भी हो सकती है। सीओपीडी से पीड़ित कुछ लोगों में "धूम्रपान करने वाले की खांसी "के लक्षण होते हैं। कफ को निगला या उगला जा सकता है, यह सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों पर निर्भर करता है। गंभीर खांसी के चलते पसली में फ्रैक्चर या हल्की सी बेहोशीहो सकती है। सीओपीडी से पीड़ित लोगों में अक्सर "आम सर्दी" का असर रहता है जो लंबे समय तक बना रहता है।
सांस की कमी
सांस की कमी वह लक्षण है जो लोगों को अक्सर बुहत चिंतित करता है। इसे आम तौर पर: "मुझे सांस लेने में कोशिश करनी पड़ रही है," "मेरी सांस फूल रही है," या "मुझें पर्याप्त हवा नहीं मिल रही है "जैसे वाक्यांशों से व्यक्त किया जाता है। हालांकि भिन्न संस्कृतियों में भिन्न वाक्यांश इस्तेमाल होते हैं। आम तौर पर लंबे समय में परिश्रम के बाद सांस की कमी महसूस होती है तथा यह बीतते समय के साथ खराब होती जाती है। बाद की अवस्था में यह आराम के समय होती है और हमेशा बनी रह सकती है। सीओपीडी से पीड़ित लोगों के लिए जीवन चिंता तथा खराब गुणवत्ता वाला हो जाता है। अधिक विकसित सीओपीडी सिकुड़े होठों से सांस लेना वाले लोग व यह तरीका कुछ लोगों में सांस की कमीं की समस्या को कम करने में सहायक हो सकता है।
अन्य विशेषताएं
सीओपीडी में सांस को भीतर लेने से अधिक समय उसे बाहर फेंकने में लग सकता है। सीने में कसाव हो सकता है लेकिन यह आम नहीं है और किसी अन्य समस्या का कारण भी हो सकता है। बाधित वायु-प्रवाह वाले लोगों में स्टेथेस्कोप से सीने की जांच करते समय खरखराहट या वायु प्रवेश के साथ घटती हुई आवाज़ सुनाई देती है। बैरल छाती/ढ़ोल वक्ष सीओपीडी का चारित्रिक चिह्न है, लेकिन यह तुलनात्मक रूप से उतना आम नहीं हैं। इस रोग के बदतर होने पर घुटने पर झुककर खड़े होने वाली स्थिति पैदा हो सकती है।
विकसित सीओपीडी के कारण फेफड़ों की केशिकाओं पर उच्च दाब पैदा हो सकता है जो कि हृदय के दाहिने निलयपर दबाव पैदा करता है। इस परिस्थिति को कॉर पल्मोनेल कहते हैं और इसके चलते पैरों में सूजन और गर्दन की नसों का उभरना जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। सीओपीडी, कॉर पल्मोनेल के किसी अन्य फेफड़े के रोग से अधिक आम कारण है। कॉर पल्मोनेल अनुपूरक ऑक्सीजन के उपयोग के कारण कम आम हो गया है।
सीओपीडी अक्सर अन्य परिस्थितियों के साथ होता है जिसके लिए साझा जोखिम कारक उत्तरदायी होते हैं। इन परिस्थितियों में: इस्केमिक हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मांसपेशियों की बरबादी, ऑस्टियोपोरोसिस, फेफड़े का कैंसर, चिंता विकार और अवसाद। गंभीर रोग से पीड़ित लोगों में हमेशा थकान का एहसास होना आम है।नाखूनों की क्लबिंग सीओपीडी के लिए विशिष्ट नहीं है और इसके लिए फेफड़ों के कैंसर की जांच की संबावना की जानी चाहिए।
प्रकोपन
सीओपीडी के गंभीर प्रकोपन को सांस की बढ़ी हुई कमीं, बढ़े हुए कफ उत्पादन, कफ के रंग का हरे या पीले हो जाने या सीओपीडी से पीड़ित किसी व्यक्ति में खांसी के बढ़ने से निर्धारित किया जा सकता है। यह तेज सांस चलने, तेज हृदय दर, पसीने, गर्दन की मांसपेशियों के सक्रिय उपयोग, त्वचा में नीला सा रंग और उलझन के जैसे श्वसन की बढ़ी हुई दर या गंभीर फुलाव में आक्रामक व्यवहार के चिह्न के साथ उपस्थित हो सकता है। स्टेथेस्कोप के साथ परीक्षण करने पर छोटे विस्फोट जैसी ध्ववियां सुनी जा सकती है।
कारण
सीओपीडी का मूल कारण तंबाकू का धूम्रपान है, पेशेवरीय अनावरण तथा कुछ देशों में घरों के भीतर की आग का प्रदूषण होता है। आम तौर पर लक्षणों के विकास से पहले इन अनावरणों का कई दशकों तक होना जरूरी है। किसी व्यक्ति की आनुवांशिक संरचना भी जोखिम को प्रभावित करती है।
धूम्रपान
वैश्विक रूप से सीओपीडी का प्राथमिक कारण तंबाकू का धूम्रपानहै, उनमें से लगभग 20% को सीओपीडी होगा, और वे जो जीवन भर धूम्रपान करते हैं उनमें से आधों को सीओपीडी होगा। अमरीका व यूके में सीओपीडी से पीड़ित 80-95% प्रतिशत लोग या तो वर्तमान में धूम्रपान करते हैं या पहले करते थे। सीओपीडी के विकसित होने की संभावना कुल धूम्र अनावरणके साथ बढ़ती है। इसके अतिरिक्त, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में धुंएं से प्रभावित होने की अधिक संभावनाएं हैं। धूम्रपान न करने वालों में, द्वितीय श्रेणी के धूम्रपान वाले लोगों में से ऐसे 20% लोगों में यह होता है। अन य प्रकार के धुएं जैसे, गांजा, सिगार तथा हुक्के से भी जोखिम रहता है।गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने वाली महिलाओं के बच्चे में सीओपीडी का जोखिम बढ़ जाता है।
वायु प्रदूषण
कोयले या लकड़ी और जानवर के गोबर जैसे बायोमास ईंधन से खाना पकाने वाले चूल्हों की आग के चलते होने वाला भीतरी वायु प्रदूषण विकासशील देशों में सीओपीडी का सबसे आम कारण है। ये आग लगभग 3 बिलियन लोगों के लिए खाना पकाने व गर्मी करने का मुख्य साधन हैं, इनका प्रभाव इनसे अधिक अनावृत्त होने वाली महिलाओं पर अपेक्षाकृत अधिक है। इनको भारत, चीन और उप सहारा अफ्रीका के 80% घरों में ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बड़े शहरों में रहने वाले लोगों में सीओपीडी की दर उच्च होती है। जबकि शहरी वायु प्रदूषण अधिक गहरा योगादान करने वाला कारक है, इसकी सीओपीडी के कारण बनने की भूमिका अभी तक अस्पष्ट है। खराब बाह्य वायु गुणवत्ता वाले क्षेत्र जिनमें एक्ज़ास्ट गैस वाले क्षेत्र शामिल हैं, आम तौर पर सीओपीडी की अधिक दर प्रदर्शित करते हैं। धूम्रपान की तुलना में समग्र प्रभाव फिर भी कम ही है।
पेशेवरीय अनावरण
कार्यस्थल की धूलों, रासायनों तथा धूम्रों के दीर्घावधि अनावरण के कारण धूम्रपान करने व ना करने वाले, दोनो प्रकार के लोगों में सीओपीडी का जोखिम बढ़ जाता है। ऐसा विश्वास है कि कार्यस्थलों के अनावरण 10-20% मामलों के कारण हैं। संयुक्त राज्य अमरीका में, कभी भी धुम्रपान न करने वाले लोगों में सीओपीडी के 30% से अधिक मामलों के लिए यह कारण उत्तरदायी है और संभवतः पर्याप्त विनियिमों से वंचित देशों में ये अधिक बड़ा जोखिम प्रस्तुत करता है।
कई सारे उद्योंगों तथा स्रोतों को इसका दोषी माना गया है, जिनमें कोयला खनन, सोने का खनन तथा कॉटन टेक्सटाइल उद्योग में धूल के उच्च स्तर तथा कैडमियम और आइसोसाइनेट्स से संबंधित पेशे व वेल्डिंग से उठने वाले धुएं शामिल हैं। कृषि क्षेत्र में काम करना भी जोखिम भरा है। कुछ पेशों में जोखिम की स्थिति कुछ ऐसी है कि जैसे वे लोग आधे से लोकर दो पैकेट तक सिगरेट रोज़ पी रहे हों।सिलिका धूल अनावरण के कारण भी सीओपीडी हो सकता है जिसका जोखिम सिलिकोसिसके लिए जोखिम से असंबंधित है। धूल से अनावरण तथा सिगरेट के धूम्रपान से अनावरण के नकारात्मक प्रभाव योगात्मक या योगात्मक से अधिक दिखाई पड़ते हैं।
आनुवांशिकी
आनुवांशिकी सीओपीडी के विकास में एक भमिका निभाती है। यह तुलनात्मक रूप से उन लोगों में अधिक आम है जिनके संबंधी धुएं से जुड़े हैं और जिनको सीओपीडी है। वर्तमान समय में केवल एकमात्र विरासती जोखिम अल्फा 1-एंटीट्रायप्सिन कमी (एएटी) है। यह जोखिम उनमें अधिक उच्च होता है जिनमें अल्फा 1- एंटीट्रायप्सिन की कमी के साथ धूम्रपान की आदत भी हो। यह लगभग 1-5% मामलों के लिए उत्तरदायी है और यह स्थिति लगभग प्रत्येक 10,000 लोगों में 3-4 में उपस्थित होती है। अन्य आंनुवांशिक कारकों की खोज की जा रही है, जिनके कई सारे होने की संभावनाएं हैं।
अन्य
बहुत सारे अन्य कारक भी हैं जो सीओपीडी के साथ कम नज़दीकी से जुड़े हैं। यह जोखिम उनमे अधिक है जो गरीब हैं, हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि ऐसा अपने आप में गरीबी के कारण है या गरीबी के साथ जुड़े अन्य कारकों के साथ, जैसे कि वायु प्रदूषण, कुपोषण आदि। इस बात के कुछ प्रमाण हैं कि अस्थमा व वायुमार्ग उच्च प्रतिक्रियात्मकता सीओपीडी के जोखिम को बढ़ाते हैं। जन्म संबंधी कारक जैसे कि निम्न जन्म वज़न की भी भूमिका होती है और उसी तरह से एचआईवी/एड्स तथा टीबी जैसे कई संक्रामक रोग।श्वसन संक्रमण जैसे निमोनिया सीओपीडी के जोखिम को कम से कम वयस्कों में तो बढ़ाते हुए नहीं दिखते हैं।
तीव्रता(गंभीरता)
एक गंभीर तीव्रता (लक्षणों का अचानक बिगड़ना) आम तौर पर संक्रमण या पर्यावरणीय प्रदूषकों या कभी कभार दवाओं के अनुपयुक्त उपयोगों जैसे दूसरे कारकों के कारण शुरु हो जाती है। 50 से 75% मामलों में संक्रमण कारण दिखता है जिसमें से 25% में बैक्टीरिया, 25% में वायरस, तथा 25% में दोनो दिखते हैं। पर्यावरणीय प्रदूषकों में भीरती व वाह्य हवाओं की गुणवत्ता शामिल होती है। निजी धूम्रपान तथा द्वितीयक धूम्रपान से अनावरण जोखिम को बढ़ा देता है। ठंडे तापमान भी इसमें भूमिका निभाते हैं, क्योंकि तीव्रता जाड़ों में अधिक होती है। वे लोग जिनमें अंतर्निहित रोग गंभीर होता है उनमें प्रकोपन भी अधिक बार होता है: हल्के रोग में 1.8 प्रति वर्ष, मध्यम में 2 से 3 प्रति वर्ष और गंभीर में 3.4 प्रति वर्ष। जिनमें प्रकोपन कई बार होता है उनमें फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी की दर तेज होती है।पल्मोनरी एम्बोलाइ (फेफड़ों में रक्त के थक्के) उन लोगों में लक्षणों को और खराब कर सकते हैं जिनको पहले से पीओपीडी की समस्या होती है।
पैथोफिज़ियोलॉजी(रोग के कारण पैदा हुए क्रियात्मक परिवर्तन)
सीओपीडी एक प्रकार का प्रतिरोधी फेफड़े का रोग है जिसमें जीर्ण अपूर्ण प्रतिवर्ती खराब वायु प्रवाह (वायुप्रवाह सीमितता) और पूरी तरह से श्वास को बाहर फेंक पाने में अक्षमता (वायु का फंसाव) बना रहता है। खराब वायु प्रवाह फेफड़े के ऊतकों (एम्फीसेमा के नाम वाले) की टूटफूट और प्रतिरोधात्मक श्वासनलिकाशोथ के नाम से जाने वाले छोटे वायुमार्ग रोग का परिणाम होता है। इन दो कारकों के तुलनात्मक योगदान भिन्न लोगों के बीच भिन्न हो सकते हैं। वायुमार्ग की गंभीर क्षति, बुलाई के नाम से जाने वाले बड़े वायु क्षेत्रों का निर्माण कर सकती है जो फेफड़े के ऊतकों को प्रतिस्थापित कर देता है। इस प्रकार के रोग को बुनयिस एम्फाइसेमा कहते हैं।
सीओपीडी श्वसित अवरोधों के प्रति जीर्ण फुलाव प्रतिक्रिया के रूप में विकसित होता है। जीर्ण बैक्टीरिया संक्रमण भी इस फुलाव चरण का कारण बन सकते हैं। इन फुलाव वाली कोशिकाओं में दो प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं न्यूट्रोफिल ग्रैन्यूलोकाइट्स और मैक्रोफेज शामिल होती हैं। जो धूम्रपान करते हैं उनमें अतिरिक्त रूप से टीसी1 लिम्फोसाइट्स शामिल होते हैं और सीओपीडी सेपीड़ित कुछ लोगों में अस्थमा पीड़ितों के समान इयोसिनिफोल शामिल होते हैं। इस कोशिकीय प्रतिक्रिया का कुछ भाग केमोटेक्टिक कारकोंजैसे भड़काऊ मध्यस्थों के कारण होता है। फेफड़ों की क्षति से जुड़ी अन्य प्रक्रियाओं में तम्बाकू के धुंए में फ्री रैडिकल्स की उच्च मात्राओं द्वारा पैदा तथा भड़काऊ कोशिकाओं द्वारा मुक्त ऑक्सिडेटिव तनाव तथा प्रोटीस शामिल होते हैं। फेफड़ों के संयोजी ऊतकों के कारण एम्फीसेमा होता है जो खराब वायुप्रवाह को बढ़ाता है और अंततः अवशोषण के साथ श्वसन गैसों को खराब करता है। सीओपीडी में मांसपेशियों की होने वाली सामान्य बरबादी का आंशिक कारण रक्त में फेफड़ों द्वारा मुक्त किए गए भड़काऊ मध्यस्थ हो सकते हैं।
वायुमार्गों का संकुचन उनके भीतर सूजन व क्षति से होता है। इसके कारण पूरी तरह से बाहर सांस फेकने में अक्षमता पैदा होती है। वायु प्रवाह में सबसे तेजी से कमी सांस बाहर निकालने में आती है क्योंकि सीने में दाब वायपमार्गों को एक साथ संपीड़ित कर रहा होता है। इसके चलते पिछली सांस की काफी हवा फेफड़ों में तब बनी रहती है जब अगला श्वसन शुरु होता है जिसके परिणाम स्वरूप किसी भी समय फेफड़ों में वायु की कुल मात्रा बढ़ जाती है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे हाइपरइन्फ्लेशन या वायु का फंस जाना कहते हैं। व्यायाम से जुड़ा हाइपरइन्फ्लेशन सीओपीडी में सांस की कमी से जुड़ा है क्योंकि जब फेफड़ों में पहले से कुछ हवा भरी हो तो श्वसन करना कम आरामदायक होता है।
कुछ लोगों में वायुमार्ग हाइपर रिस्पॉन्सिवनेस की कुछ मात्रा होती है जो कि अस्थमा वाले लोगों जैसी होती है।
निम्न ऑक्सीजन स्तर और अंततः रक्त में उच्च कार्बन डाई ऑक्साइड स्तर, वायुमार्ग बाधा, बेलगाम सूजन और साँस लेने के लिए कम इच्छा से घटे वातायन के कारण गैस विनिमयहोता है। प्रकोपन के दौरान वायुमार्ग में सूजन भी बढ़ जाती है जिसके कारण हाइपरइन्फ्लेशन बढ़ता है, वाह्य श्वसन वायुप्रवाह घटता है और गैस अंतरण खराब होता है। इसके कारण अपर्याप्त वातायन और अंततः रक्त में ऑक्सीजन का स्तर घट जाता है। निम्न ऑक्सीजन स्तर अगर लंबे समय तक बने रहें तो इनके चलते फेफड़ों में धमनियों का संकुचन होने लगता है जबकि एम्फाइसेमा के चलते फेफड़ों में केशिकाओं की टूटन हो जाती है। इन दोनो परिवर्तनों के कारण फुफ्फुसीय धमनियोंमें रक्तदाब बढ़ता है जिससे कॉर पल्मोनेल हो सकता है।
निदान
35 से 40 वर्ष की आयु से अधिक किसी भी ऐसे व्यक्ति में सीओपीडी के निदान पर विचार किया जाना चाहिए जिसे सांस लेने में समस्याहो या जीर्ण खांसी हो, कफ आता हो या बार-बार सर्दी ज़ुकाम होता हो या रोग जोखिम कारकों से अनावरण का इतिहास हो। फिर स्पाइरोमेट्री को निदान की पुष्टि के लिए उपयोग किया जाता है।
स्पाइरोमेट्री
स्पाइरोमेट्री उपस्थित वायुप्रवाह की मात्रा को मापती है और आमतौर पर इसे, वायुमार्ग को खोलने वाली दवा ब्रॉन्कोडाइलेटर्स के उपयोग के बाद किया जाता है। निदान के लिए दो मुख्य घटक उपयोग किए जाते हैं: एक सेंकेड में बलात निःश्वसन मात्रा (एफईवी1), जो कि श्वसन के पहले सेकेंड में निकाली गयी वायु की सबसे बड़ी मात्रा है और बलात महत्वपूर्ण क्षमता (एफवीसी), जो कि एक बार में बड़ी सांस के माध्यम से निःश्वासित वायु की सबसे बड़ी मात्रा है। आम तौर पर एफवीसी का 75-80% पहले सेकेंड में बाहर आ जाता है और किसी में एफईवी1/एफवीसी अनुपात का 70% से कम होना उसमें सीओपीडी के लक्षणों का निर्धारण करता है। इन मापों के आधार पर स्पाइरोमेट्री बुजुर्गों में सीओपीडी का अतिरिक्त-निदान कर सकती है।नैदानिक उत्कृष्टता का राष्ट्रीय संस्थान मापदंड के लिए एफईवी 1 का अतिरिक्त रूप से अनुमान से 80% से कम होना चाहिए।
स्थिति का समय पूर्व निदान करने के प्रयास में लक्षण रहित लोगों में स्पाइरोमेट्री के उपयोग के साक्ष्य अनिश्चित हैं और इसलिए वर्तमान में अनुशंसित नहीं हैं। आम तौर पर अस्थमा में उपयोग किया जाने वाला शीर्ष निःश्वास प्रवाह (निःश्वास की अधिकतम गति), सीओपीडी के निदान के लिए पर्याप्त नहीं है।
तीव्रता
ग्रेड | प्रभावित गतिविधि |
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1 | केवल श्रमसाध्य गतिविधि |
2 | तेजी से पैदल चलना |
3 | सामान्य रूप से चलना |
4 | चलने के के कुछ ही मिनटों के बाद |
5 | कपड़े बदलते समय |
तीव्रता | FEV1 % अनुमानित |
---|---|
हलकी (गोल्ड 1) | ≥80 |
मध्यम (गोल्ड 2) | 50–79 |
तीव्र (गोल्ड 3) | 30–49 |
अत्यधिक तीव्र (गोल्ड 4) | <30 अथवा क्रोनिक श्वसन विफलता |
यह निर्धारित करने के कई तरीके हैं कि कोई व्यक्ति सीओपीडी से कितना प्रभावित है। संशोधित ब्रिटिश मेडिकल अनुसंधान परिषद प्रश्नावली (mMRC) अथवा सीओपीडी मूल्यांकन परीक्षा (कैट) लक्षणों की गंभीरता को निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किये जा सकने वाली साधारण प्रश्नावलियां हैं. कैट पर स्कोर 0-40 श्रृंखला के बीच होता है, जिसमें उच्चतर स्कोर के साथ, बीमारी और अधिक गंभीर होती है। स्पिरोमेट्री के द्वारा एयरफ्लो की सीमा की गंभीरता को निर्धारित करने में मदद मिल सकती है। यह आमतौर पर एफईवी1 पर आधारित होता है जिसे व्यक्ति की उम्र, लिंग, ऊंचाई और वजन के द्वारा पूर्वानुमेय आधारित "सामान्य" के एक प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। अमेरिकी और यूरोपीय दिशा निर्देश, दोनों ही आंशिक रूप से एफईवी1 सिफारिशों पर आधारित उपचार की अनुशंसा करते हैं। गोल्ड दिशानिर्देश लक्षण आकलन और एयरफ्लो सीमा के आधार पर लोगों को चार श्रेणियों में विभाजित करने का सुझाव देते हैं। वजन में कमी और मांसपेशियों में कमजोरी के साथ ही अन्य रोगों की उपस्थिति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
अन्य परीक्षण
छाती का एक्स-रे एवं कम्प्लीट ब्लड काउंट निदान के समय अन्य स्थितियों को अलग करने में उपयोगी हो सकते हैं। एक्स-रे पर विशेषता लक्षण फेफड़ों का अधिक विस्तार, चपटाडायाफ्राम, बढ़ा हुआ रेट्रोस्टर्नल हवा का क्षेत्र, तथा बुल्ले होते हैं, जबकि यह अन्य फेफड़ों के रोगों को अलग करने में मदद कर सकता है, जैसे न्यूमोनिया, पल्मनरी एडीमा अथवा न्यूमोथोरैक्स। छाती का एक उच्च रेज़ोल्यूशन अभिकलन टोमोग्राफी स्कैन पूरे फेफड़ों में वातस्फीति का वितरण दिखा सकता है तथा फेफड़ों की अन्य बीमारियों को अलग करने में भी सहायक हो सकता है। हालाँकि, जब तक शल्य क्रिया की योजना न बनाई गयी हो, यह बीमारी के प्रबंधन को बहुधा प्रभावित नहीं करना है। ध मनीय रक्त का विश्लेषण का प्रयोग ऑक्सीजन की आवश्यकता को जानने के लिए किया जाता है; इसकी आवश्यकता उन लोगों में पड़ती है जिनमें एफईवी1 35% से कम पूर्वानुमानित होती है, जिनमें परिधीय ऑक्सीजन संतृप्ति 92% से कम तथा जिनमें कंजेस्टिव हार्ट फेलियर के लक्षण उपस्थित होते हैं। दुनिया के उन क्षेत्रों में जहाँ अल्फा -1 एंटीट्राईप्सिन की कमी आम बात है, सीओपीडी से ग्रस्त व्यक्ति को (विशेष रूप से वे जिनकी आयु 45 वर्ष से नीचे तथा जिनके फेफड़े के निचले हिस्सों में वातस्फीति होती है) जांच अवश्य करानी चाहिए।
विभेदक निदान
सीओपीडी को सांस की तकलीफ के अन्य कारणों से विभेदित किए जाने की आवश्यकता हो सकती है जैसे कि कंजेस्टिव हार्ट फेलियर, पल्मनरी एम्बोलिज्म, न्यूमोनिया अथवा न्यूमोथोरैक्स। सीओपीडी से ग्रस्त कई व्यक्ति गलती से ऐसा सोचते हैं कि वे अस्थमा से पीड़ित हैं। अस्थमा और सीओपीडी के बीच भेद के लक्षणों, धूम्रपान के इतिहास एवं क्या स्पिरोमेट्री में ब्रोंकोडाईलेटर्स के द्वारा एयरफ्लो की कमी को पूर्ण किया जा सकता है, इसके आधार पर किया जाता है। टूबरकुलोसिस भी लम्बे समय तक खांसी के साथ उपस्थित रह सकता है तथा रोग निर्धारण करते समय इसके विषय में भी सोचा जाना चाहिए विशेष रूप से ऐसे स्थानों पर जहाँ यह आम है। कम पायी जाने समान लक्षणों वाले रोगों में ब्रोन्कोपल्मोनरी डिस्प्लासिया एवं ऑब्लिटरेटिव ब्रौन्कियोलाइटिस शामिल हैं। क्रोनिक ब्रोंकाइटिस सामान्य एयरफ्लो के साथ भी हो सकता है और इस स्थिति में इसे सीओपीडी नहीं माना जाता है।
निवारण
सीओपीडी के ज्यादातर मामलों को धुंए से बचाव और हवा की गुणवत्ता में सुधार ला कर रोका जा सकता है। सीओपीडी से ग्रस्त लोगों के वार्षिक इन्फ्लूएंजा टीकाकरण के द्वारा रोग के प्रकोप में कमी, अस्पतालों में भर्ती तथा मृत्यु की दर में कमी लायी जा सकती है। न्यूमोकोकल टीकाकरण भी लाभप्रद हो सकता है।
धूम्रपान बंद करना
लोगों को धूम्रपान शुरू करने से रोकना सीओपीडी से बचाव का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सरकारों की नीतियां, सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियां और धूम्रपान विरोधी संगठन धूम्रपान प्रारंभ करने से लोगों को हतोत्साहित करके और लोगों को धूम्रपान बंद करने के लिए प्रोत्साहित करके धूम्रपान की दर कम कर सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्रों में तथा कार्य स्थलों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध दूसरों के छोड़े गए धुंए में सांस लेने को कम करने के लिए महत्वपूर्ण उपाय हैं, और जहाँ अनेकों स्थानों पर ये प्रतिबन्ध प्रभावी हैं, इन्हें और स्थानों पर प्रतिबंधित करना आवश्यक है।
धूम्रपान करने वाले लोगों में, एकमात्र तरीका धूम्रपान बंद करना है जिससे सीओपीडी की वृद्धि को कम किया जा सकता है। यहां तक कि रोग की अंतिम चरण में भी, ऐसा करना फेफड़ों की कार्यक्षमता की बिगड़ती की दर को कम करने और विकलांगता के प्रारंभ और मृत्यु अवधि को टाल सकता है। धूम्रपान छोड़ना, धूम्रपान को रोकने के निर्णय के साथ शुरू होता है, जिसके द्वारा छोड़े जाने के प्रयास शुरू किया जाते हैं. अक्सर कई प्रयासों के पश्चात ही लंबे समय तक का संयम प्राप्त हो पाता है। 5 वर्षों से अधिक के प्रयास से लगभग 40% लोगों में सफलता प्राप्त होती है।
कई धूम्रपान करने वाले संकल्प मात्र के माध्यम से लंबे समय तक धूम्रपान करना बंद कर देते हैं। धूम्रपान, हालांकि, अत्यधिक व्यसनकारी नशे की लत है, और कई और धूम्रपान करने वालों को अधिक सहायता की आवश्यकता होती है। छोड़ने के संयोग में सामाजिक समर्थन, किसी धूम्रपान समाप्ति कार्यक्रम में भाग लेने, और निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी, ब्यूप्रोपियन अथवा वैरेनिक्लाइन जैसी दवाओं के लेने से सुधार होता है।
व्यावसायिक स्वास्थ्य
ऐसे उद्योगों में, जहाँ सीओपीडी के विकसित होने का खतरा अधिक होता है, जैसे कोयला खनन, निर्माण और पत्थर की चिनाई, इस रोग की संभावना को कम करने के लिए कई उपायों को अपना या गया है। इन उपायों के उदाहरणों में शामिल हैं: सार्वजनिक नीति की रचना, जोखिम के बारे में श्रमिकों और प्रबंधन को शिक्षा देना, धूम्रपान बंद करने को बढ़ावा देना, श्रमिकों में जांच ताकि सीओपीडी के प्रारंभिक लक्षण पकड़ में आ सकें, श्वासयंत्र का प्रयोग, तथा धूल पर नियंत्रण। धूल पर प्रभावी नियंत्रण वेंटिलेशन में सुधार, पानी स्प्रे का उपयोग और कम से कम धूल पैदा करने की खनन तकनीक का उपयोग करके प्राप्त किया जा सकता है। यदि किसी श्रमिक में सीओपीडी विकसित होता है तो लगातार धूल के संपर्क में आने से बचने के द्वारा फेफड़ों को होने वाले अधिक नुकसान से बचा जा सकता है, उदाहरण के लिए काम की भूमिका बदलकर।
वायु प्रदूषण
इनडोर और आउटडोर, दोनों ही की हवा की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है जो सीओपीडी रोकने में अथवा मौजूदा रोग की बिगड़ती स्थिति को धीमा करने में सहायक हो सकती है। ऐसा सार्वजनिक नीति के प्रयासों, सांस्कृतिक परिवर्तन, और निजी भागीदारी द्वारा किया जा सकता है।
कई विकसित देशों ने नियमों को लागू करके सफलतापूर्वक आउटडोर हवा की गुणवत्ता में सुधार किया है। इसके द्वारा उनकी जनसंख्या के फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार हुआ है। आउटडोर हवा की गुणवत्ता ख़राब होने की स्थिति में यदि सीओपीडी’ के मरीज़ घर के अन्दर रहें तो उनमें बीमारी के लक्षण कम प्रकट होते हैं।
<!—इनडोर हवा --> एक प्रमुख प्रयास घरों में वेंटिलेशन तथा बेहतर स्टोव और चिमनियों में सुधार के द्वारा खाना पकाने और गर्मी पैदा करने वाले ईंधन से उत्पन्न धुंए से संपर्क को कम करना है। अच्छे स्टोव के द्वारा घर के अंदर हवा की गुणवत्ता में 85% से अधिक सुधार हो सकता है। सौर ऊर्जा द्वारा खाना पकाने जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग और बिजली की हीटिंग प्रभावी होती है, इसी प्रकार केरोसीन अथवा कोयले जैसे ईंधनों का प्रयोग जैव-ईंधन की तुलना में अधिक प्रभावी होता है।
प्रबंधन
सीओपीडी का कोई ज्ञात उपचार नहीं है, लेकिन लक्षणों का इलाज किया जा सकता है और इसके फैलाव की गति को कम किया जा सकता है। प्रबंधन का प्रमुख लक्ष्य, जोखिम वाले कारकों कम करना, स्थिर सीओपीडी का प्रबंधन, रोग की रोकथाम, तीव्र प्रकोप को रोकना और संबद्ध बीमारियों का प्रबंधन होता है। मृत्यु दर को कम करने में सफल उपाय सिर्फ धूम्रपान बंद करना और पूरक ऑक्सीजन हैं। धूम्रपान बंद करने से से मृत्यु के जोखिम 18% तक कम हो जाता है। अन्य सिफारिशों में शामिल हैं: वर्ष में एक बार इन्फ्लूएंजा टीकाकरण, हर 5 वर्ष में एक बार न्यूमोकोकल टीकाकरण, और पर्यावरण के वायु प्रदूषण से संपर्क कम करना। उन व्यक्तियों में जिनमें बीमारी उच्च अवस्था में हो, प्रशामक देखभाल से लक्षणों को कम किया जा सकता है, जिसमें मॉर्फीन के द्वारा सांस की तकलीफ में सुधार किया जाता है। अवेध्य वेंटिलेशन का प्रयोग सांस लेने में सहायता के लिए किया जा सकता है।
व्यायाम
पल्मोनरी पुनर्वास व्यायाम, रोग प्रबंधन और सलाह का एक कार्यक्रम है, जो व्यक्तिगत लाभ के लिए समन्वित होता है। उन व्यक्तियों में जिनमें रोग का प्रकोप हाल ही में बढ़ा हो, पल्मोनरी पुनर्वास से जीवन की समग्र गुणवत्ता और व्यायाम करने की क्षमता में सुधार लाया जा सकता है तथा मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। इसके द्वारा व्यक्ति को अपने रोग पर नियंत्रण के बोध में सुधार होने के साथ ही अपनी भावनाओं पर नियंत्रण भी प्रदर्शित होता है। श्वसन के व्यायामों की इसमें एक सीमित भूमिका होती है।
सामान्य से कम अथवा अधिक वज़न का होना लक्षणों, अशक्तता की डिग्री तथा सीओपीडी के रोग का निदान को प्रभावित कर सकता है. सीओपीडी से पीड़ित सामान्य से कम वज़न के व्यक्ति कैलोरी की मात्रा में वृद्धि से अपनी सांस लेने की मांसपेशियों की शक्ति में सुधार कर सकते हैं। नियमित व्यायाम अथवा पल्मोनरी पुनर्वास कार्यक्रम के साथ ऐसा करने से सीओपीडी के लक्षणों में सुधार लाया जा सकता है। कुपोषित व्यक्तियों में पूरक पोषण लाभप्रद हो सकता है।
ब्रौंकोडाईलेटर्स
सूंघे जाने वाले ब्रौंकोडाईलेटर प्रयोग की जाने वाली प्राथमिक दवाएं होते हैं और इनका परिणाम थोड़ा सा समग्र लाभ होता है। इनके दो प्रमुख प्रकार हैं, β2 एगोनिस्ट एवं एंटीकोलीनर्जिक्स; दोनों ही लम्बे समय तथा छोटे समय तक कार्य करने वाले रूपों में उपलब्ध हैं। वे सांस की कमी, साँस की घरघराहट तथा व्यायाम न कर सकने को कम करने में सहायक होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जीवन की गुणवत्ता में सुधार आता है। वे अंतर्निहित रोग की प्रगति को बदलते हैं अथवा नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है।
हल्के रोग से पीड़ित लोगों में, लघु अवधि में कार्य करने वाले एजेन्टों की आवश्यकतानुसार उपयोग की अनुशंसा है। गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों के लिए दीर्घ अवधि तक काम करने वाले एजेंटों की अनुशंसा की है। यदि दीर्घ अवधि तक कार्य करने वाले ब्रॉन्कोडायलेटर्स अपर्याप्त हों तो आम तौर पर श्वसन किए जाने वाले कॉर्टिकॉस्टरॉएड जोड़े जाते हैं। दीर्घ अवधि तक कार्य करने वाले एजेंटों के संबंध में, यह अस्पष्ट है कि टियोट्रोपियम (दीर्घ अवधि तक काम करने वाला कोलीनधर्मरोधी) या दीर्घ अवधि तक काम करने वाला(ले) बीटा एगोनिस्ट (एलएबीए) में से क्या बेहतर हैं, और दोनो के उपयोग की चेष्टा की जानी चाहिए और जो बेहतर काम करे उसका उपयोग जारी रखना चाहिए। दोनो प्रकार के एजेंट, गंभीर प्रकोपन के जोखिमों को 15-25% तक कम करते दिखते हैं। दोनो का एक साथ उपयोग करना कुछ लाभ प्रदान कर सकता है लेकिन यदि मिलता है तो इस लाभ पर महत्वपूर्ण संशय शेष है।
बहुत सारे लघु अवधि β2 एगोनिस्ट उपलब्ध हैं जिनमें सालब्यूटामॉल (वेन्टोलिन) और टरब्यूटालाइन शामिल हैं। वे चार से छः घंटे तक लक्षणों में कुछ आराम देते हैं। दीर्घ-अवधि β2 एगोनिस्ट्स जैसे कि सालमेटेरॉल और फॉरमोटेरॉल अक्सर रखरखाव उपचार के तौर पर उपयोग किया जाता है। कुछ लोगों को लगता है कि लाभ का साक्ष्य सीमित है जबकि अन्य को लगता है कि लाभ का साक्ष्य स्थापित हो गया है। सीओपीडी में दीर्घ अवधि उपयोग सुरक्षित दिखते हैं इसके विपरीत प्रभावों में थरथराहट और दिल में धड़कन का बढ़नाशामिल है। श्वसन द्वारा दिए जाने वाले स्टेरॉएड के साथ उपयोग किए जाने पर वे निमोनिया का जोखिम बढ़ा देते हैं। जबकि स्टीरॉएड्स और एलएबीए एक साथ बेहतर काम कर सकते हैं, यह अस्पष्ट है कि इस हल्का सा बढ़ा हुआ लाभ, बढ़े जोखिमों की तुलना में बेहतर है या नहीं।
सीओपीडी में दो मुख्य कोलीनधर्मरोधी उपयोग किए जाते हैं, इप्राट्रोपियम और टियोट्रोपियम। इप्राट्रोपियम एक लघु-अवधि एजेंट एजेंट है जबकि टियोट्रोपियम एक दीर्घ-अवधि एजेंट है। टियोट्रोपियम के कारण प्रकोपन में कमी होती है तथा जीवन की गुणवत्ता बेहतर होती है, और टियोट्रोपियम इंप्राट्रोपियम से अधिक लाभदायक है। यह मृत्यु-दर या समग्र रूप से अस्पताल में भर्ती होने की दर को प्रभावित करता नहीं दिखता है। कोलीनधर्मरोधी के कारण मुंह सूखा -सूखा लग सकता है तथा मूत्र मार्ग संबंधी लक्षण पैदा हो सकते हैं। इनके चलते हृदय रोग या दौरों के जोखिम बढ़ सकते हैं।एक्लीडिनियम, जो कि एक और दीर्घ-अवधि एजेंट है बाज़ार में 2012 में आया, जिसे टियोट्रॉपियम के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
कॉर्टिकॉस्टरॉएड
कॉर्टिकॉस्टरॉएड आम तौर पर श्वसन द्वारा लिए जाने वाले प्रारूप में उपयोग किए जाते हैं लेकिन गंभीर प्रकोपन से बचने व उपचार किए जाने के लिए इनको टैबलेट के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। श्वसन द्वारा लिए जाने वाले कॉर्टिकॉस्टरॉएड (आईसीएस), हल्के सीओपीडी से प्रभावित लोगों को अधिक लाभ देते नहीं दिखते हैं, वे मध्यम या गंभीर रोग से पीड़ित लोगों में प्रकोपन को कम करते दिखते हैं। जब इसे एलएबीए के साथ संयोजन में उपयोग किया जाता है तो आईसीएस या एलएबीए के अलग-अलग उपयोग से अधिक मृत्यु दर में कमीं लाते हैं। अपने आप में वे समग्र एक वर्षीय मृत्यु-दर पर कोई प्रभाव नहीं डालते हैं तथा वे निमोनिया की बढ़ी हुई दर संबंधित हैं। यह अस्पष्ट है कि इनका रोग की प्रगति पर कोई प्रभाव है या नहीं। स्टेरॉएड टैबलेट द्वारा दीर्घ-अवधि उपचार के कारण गंभीर पश्च-प्रभाव होते हैं।
अन्य दवाएं
दीर्घ-अवधि एंटीबायोटिक विशेष रूप से मैक्रोलाइड वर्ग वाली जैसे कि एरिथ्रोमाइसिन, दो या अधिक वर्ष से प्रभावित लोगों में प्रकोपन की दर को कम करती है।यह अभ्यास दुनिया के क्षेत्रों में लागत-प्रभावी हो सकता है। इससे संबंधित चिंताओं में एंटीबायोटिक प्रतिरोध तथा एज़िथ्रोमाइसिन से जुड़ी सुनने वाली समस्या शामिल है।मेथिलज़ैक्थाइन्स जैसे थियोफाइलिन आम तौर पर लाभ से अधिक हानि पहुंचाते हैं इसी कारण से आम तौर पर उनको अनुशंसित नहीं किया जाता है, लेकिन इसे उन लोगों में द्वितीय पंक्ति के एजेंट के रूप में उपयोग किया जा सकता है जिनमें किसी अन्य उपया से नियंत्रण न हो रहा हो।म्यूकोलिटिक उन कुछ लोगों में उपयोगी हो सकता है जिनमें म्यूकस काफी गाढ़ा हो, हालांकि आम तौर पर इसकी जरूरत पड़ती नहीं है।कफ की दवाओं की अनुशंसा नही की जाती है।
ऑक्सीजन
अनुपूरक ऑक्सीजन की अनुशंसा उन लोगों में की जाती है जिनमें आराम के समय निम्न ऑक्सीजन स्तर मिलते हैं (50–55 mmHg से कम ऑक्सीजन का आंशिक दाब या 88% से कम ऑक्सीजन सैचुरेशन)। यदि इसे 15 घंटे प्रतिदिन उपयोग किया जाए तो लोगों के इस समूह में यह हृदय की विफलता तथा मौत के जोखिम को कम करता है और लोगों के व्यायाम करने की क्षमता को बेहतर कर सकता है। सामान्य या मध्यम निम्न ऑक्सीजन स्तरों वाले लोगों में ऑक्सीजन पूरकता सांस की कमी (दम घुटने की समस्या) को बेहतर कर सकती है। इसमें आग का जोखिम है तथा धूम्रपान जारी रखने वालों को कम होता है। इस स्थिति में कुछ लोग इसकी अनुशंसा का विरोध करते हैं। गंभीर प्रकोपन के दौरान, बहुत से लोगों को ऑक्सीजन उपचार की जरूरत होती है, व्यक्ति के ऑक्सीजन सैचुरेशन को ध्यान में न रखते हुए ऑक्सीजन की उच्च सांद्रता का उपयोग कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तरों को बढ़ा सकता है तथा परिणामों को प्रभावित कर सकता है। उच्च कार्बन डाई ऑक्साइड स्तरों के उच्च जोखिम वाले लोगों में 88–92% ऑक्सीजन सैचुरेशन अनुशंसित है जबकि इस जोखिम के बिना अनुशंसित स्तर 94-98% है।
शल्य क्रिया
गंभीर रूप से पीड़ित लोगों के लिए कभी-कभार शल्यक्रिया सहायक हो सकती है और इसमें फेफड़े का प्रत्यारोपण या लंग वॉल्यूम रिडक्शन सर्जरीशामिल हो सकती है। लंग वॉल्यूम रिडक्शन सर्जरी में एम्फीसेमा द्वारा क्षतिग्रस्त फेफड़े के हिस्से को हटाना शामिल होता है जिससे कि तुलनात्मक रूप से शेष बेहतर हिस्से को फैलने व बेहतर रूप से काम करना संभव हो सके।फेफड़े का प्रत्यारोपण कभी-कभार ही किया जाता है तथा इसे गंभीर सीओपीडी पीड़ित पर किया जाता है वह भी विशेष रूप से युवा व्यक्ति पर।
प्रकोपन
गंभीर प्रकोपन का उपचार, आम तौर पर लघु-अवधि ब्रॉकोडाएलेटर्स के उपयोग को बढ़ा कर किया जाता है। इसमें आम तौर पर लघु-अवधि, श्वसन वाले बीटा एगोनिस्ट तथा कोलीनधर्मरोधी के संयोजन का उपयोग किया जाता है। इन दवाओं को स्पेसर के साथ मीटरकृत-खुराक इनहेलर के माध्यम से या नेब्युलाइज़र के माध्यम से दिया जाता है तथा ये दोनो ही समान रूप से प्रभावी दिखते हैं। जो अधिक बीमार हैं उनके ऊपर नेब्युलाइजेशन करना आसान हो सकता है।
मौखिक कॉर्टिकॉस्टरॉएड सुधार के अवसर बढ़ाता है तथा लक्षणों की समग्र अवधि कम करता है। गंभीर प्रकोपन वाले लोगों में एंटीबायोटिक्स परिणामों को बेहतर कर सकते हैं।एमॉक्सिसिलीन, डॉकसीसाइक्लीन या एज़ीथ्रोमाइसीनजैसे भिन्न-2 एंटीबायोटिक्स उपयोग किए जा सकते हैं। इनमे कौन सा बेहतर हैं यह अस्पष्ट है। कम गंभीर मामलों में स्पष्ट साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।
गंभीर रूप से बढ़े हुए CO2 स्तरों (टाइप 2 श्वसन विफलता) वाले लोगों में गैर-आक्रामक सकारात्मक वातायन मृत्यु की संभावना या यांत्रिक वातायन के लिए गहन देखभाल में भर्ती होने की जरूरत को कम करती है। इसके साथ ही थियोफाइलिन की कोई भूमिका उन लोगों में हो सकती है जो दूसरे उपायों को प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। प्रकोपन के 20% से कम मामलों में अस्पताल में भर्ती हे की जरूरत पड़ती है। श्वसन विफलता के कारण एसिडोसिस की उपलब्धता के बगैर वालों के लिए घरेलू देखभाल ("घर पर अस्पताल") कुछ भर्तियों से बचाव में सहायता कर सकता है।
रोग का निदान
सीओपीडी आमतौर पर धीरे-धीरे समय के साथ खराब होता जाता है और अंततः मृत्यु हो सकती है। ऐसा आंकलन है कि सभी सभी असमर्थता का 3% सीओपीडी से संबंधित है। मुख्य रूप से एशिया में घर के भीतर की बेहतर वायु गुणवत्ता के कारण 1990 से 2000 के बीच सीओपीडी से असमर्थता की विश्वव्यापी दर में कमी आयी है। सीओपीडी से हुई असमर्थता के साथ जीवन जीने की अवधि में वृद्धि हुई है।
सीओपीडी के बिगड़ने की दर उन कारकों की उपस्थिति के साथ बदलती है जो खराब परिणाम की भविष्यवाणी करते हैं, इनमें शामिल है: गंभीर वायुप्रवाह अवरोध, व्यायाम करने की कम क्षमता, सांस का फूलना, अत्यधिक कम वजन या बहुत अधिक वजन होना, संकुलित हृदय विफलता, नियंत्रित धूम्रपान तथा बार-बार प्रकोपन होना। सीओपीडी में दीर्घ-अवधि परिणामों का आंकलन बीओडीई इन्डेक्स का उपयोग करके (जो एफईवी1 के आधार पर शून्य से दस तक का अंक प्रदान करता है), शरीर-वज़न सूचकांक, छः मिनटों में टहली गयी दूरी और संशोधित एमआरसी श्वासकष्ट स्केल किया जा सकता है। वज़न में काफी कमी होना एक बुरा चिह्न है। स्पाइरोमेट्री के परिणाम भी रोग की भविष्य की प्रगति का एक अच्छा भविष्यवक्ता है लेकिन यह बीओडीई सूचकांक जितना अच्छा नहीं है।
महामारी - विज्ञान
वैश्विक रूप से 2010 में सीओपीडी से लगभग 329 मिलियन (जनसंख्या का 4.8%) लोग प्रभावित हैं और यह महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में थोड़ी अधिक आम है। 2004 में इससे पीड़ित लोगों की संख्या 64 मिलियन थी। विकासशील देशों में 1970 से 2000 के बीच की वृद्धि के लिए माना जाता है कि यह इस क्षेत्र में धूम्रपान की बढ़ती दर, बढ़ती जनसंख्या तथा संक्रामक रोगों जैसे अन्य कारकों के कारण कम मृत्युदर के कारण बढ़ती औसत उम्र इसके लिए जिम्मेदार हैं। कुछ विकसित देशों में दर में बढ़ोत्तरी देखी गयी, कुछ में यह दर स्थिर बनी रही और कुछ देशों में सीओपीडी की दर कम हुई है। वैश्विक संख्याएं बढ़ने की संभावनाएं हैं क्योंकि जोखिम कारक आम हैं तथा जनसंख्या लगातार बुजुर्ग हो रही है।
1990 तथा 2010 के बीच सीओपीडी से होने वाली मृत्यु थोड़ा सा घट गयी हैं उनकी संख्या 3.1 मिलियन से घट कर 2.9 मिलियन हो गयी है। कुल मिला कर मृत्यु का यह चौथा सबसे प्रमुख कारण है। कुछ देशों में पुरुषों में मृत्यु-दर घट गयी है लेकिन महिलाओं में बढ़ गयी है। संभवतः इसका मुख्य कारण महिलाओं और पुरुषों में धूम्रपान की समान हो रही दर है। सीओपीडी अधिक उम्र वाले लोगों में अधिक आम है; यह 65 वर्ष से अधिक की उम्र वाले 1000 लोगों में 34-200 लोगों को प्रभावित करता है, यह संख्या अवलोकन वाली जनसंख्या पर निर्भर करती है।
इंग्लैंड में, लगभग 0.84 मिलियन लोग (कुल 50 मिलियन में से) सीओपीडी से प्रभावित हैं; जिसका अर्थ है हर 59 व्यक्ति में से 1 को उसके जीवन में कभी न कभी सीओपीडी का निदान हुआ है। देश के सामाजिक आर्थिक रूप से सबसे अधिक पिछड़े हिस्सों में 32 में से 1 को सीओपीडी का निदान हुआ है, जिसकी तुलना में सबसे अधिक समृद्ध क्षेत्रों में यह संख्या 98 में 1 है। संयुक्त राज्य अमरीका में वयस्क जनसंख्या का लगभग 6.3% अर्थात कुल 15 मिलियन लोगों में सीओपीडी का निदान हुआ है। यदि वर्तमान समय के गैर-निदानित लोगों को जोड़ लें तो 25 मिलियन लोगों को सीओपीडी का निदान हो सकता है। संयुक्त राज्य अमरीका में 2011 में लगभग 7,30,000 लोग सीओपीडी के कारण अस्पताल में भर्ती हुए थे।
इतिहास
शब्द "एम्फिसेमा" को ग्रीक भाषा के ἐμφυσᾶν एम्फिसेन शब्द से लिया गया है जिसका अर्थफुलाव" है -जो कि ἐν en, अर्थात "in", और φυσᾶν physan, अर्थात "breath, blast" से मिल कर बना है। क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस शब्द को सबसे पहले 1808 में उपयोग किया गया, जबकि ऐसा विश्वास किया जाता है कि सीओपीडी शब्द को सबसे पहले 1965 में उपयोग किया गया था। पहले इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता था जिनमें निम्नलिखित शामिल थे: क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव ब्रॉन्कोप्लमोनरी डिसीस, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव रेस्पिरेटरी डिसीस, क्रॉनिक एयरफ्लो ऑब्सट्रक्शन, क्रॉनिक एयरफ्लो लिमिटेशन, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी सिन्ड्रोम। शब्द क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस तथा एम्फिसेमा को औपचारिक रूप से 1959 में सीआईबीए अतिथि संगोष्ठी में तथा 1962 में अमरीकी थोरेकिक सोसाइटी की नैदानिक मानकों पर कमेटी बैठक में निर्धारित किया गया था।
संभावित एम्फिसेमा के आरंभिक वर्णनों में निम्नलिखित शामिल हैं: 1679 में टी.बोनेट की "सूजे हुए फेफड़ों" की स्थिति में और 1769 में फेफड़ों का जियोविनी मारगागानि जो कि "विशेष रूप से हवा से सूजा हुआ"था। 1721 में एम्फीसेमा की पहली ड्राइंग रुयेश द्वारा बनाई गई थीं। इसके बाद 1789 में इस अवस्था पर मैथ्यू बैली वर्णनात्मक तथा विस्फोटक प्रकृति के चित्र सामने आए। 1814 में चार्ल्स बाधम ने जीर्ण ब्रॉन्काइटिस में कफ और अतिरिक्त म्यूकस को समझाने के लिए "कैटराह" का उपयोग किया था। स्टेथेस्कोपका अविष्कार करने वाले चिकित्सक रेने लाएनेक ने अपनी किताबA Treatise on the Diseases of the Chest and of Mediate Auscultation (1837) में "एम्फीसेमा" का उपयोग किया था, जिसे उन्होने उन फेफड़ों के लिए उपयोग किया था ऑटोप्सी के दौरान सीना खोलने पर पिचके नहीं थे। उन्होने बताया कि वे इसलिए नहीं पिचके क्योंकि वे हवा से भरे थे और वायुमार्ग में म्यूकस भरा हुआ था। 1842 में जॉन हचिन्सन ने स्पाइरोमीटर का अविष्कार किया था जिससे फेफड़ों की महत्वपूर्ण क्षमता की माप संभव हो सकी थी। हालांकि उनका स्पाइरोमीटर केवल मात्रा नाप सकता था न कि वायु का प्रवाह। टिफनेउ और फलेनी ने 1947 में वायुप्रवाह मापने के सिद्धांत का वर्णन किया।
1953 में डॉ॰ जॉर्ज एल. वॉल्डबॉट जो कि एक अमरीकी एलर्जी विशेषज्ञ थे, ने 1953 के जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में पहली बार एक नए रोग का वर्णन किया जिसे उन्होने "स्मोकर्स रेस्पिरेटरी सिन्ड्रोम" का नाम दिया। धूम्रपान तथा जीर्ण श्वसन रोग के बीच यह पहला संबंध था।
आरंभिक उपचारों में अन्य चीज़ो के साथ लहसुन, दालचीनी व इपीकाकशामिल था। आधुनिक उपचारों का विकास 20वीं सदी के बाद के वर्षों में हुआ। सीओपीडी के उपचार में स्टीरॉएड के समर्थन वाले साक्ष्य 1950 के दशक के अंत में प्रकाशित हुए थे। आइसोप्रेनालिन के अच्छे परिणामों के बाद श्वासनली की पेशियों को फैलाने वाले तत्वों को 1960 में उपयोग करना शुरु किया गया। इसके पश्चात सालब्यूटामॉल जैसे ब्रॉन्कोडायलेटर्स का विकास 1970 के दशक में हुआ और लाबा (LABA) का उपयोग 1990 के दशक के मध्य में शुरु हुआ।
समाज तथा संस्कृति
- इन्हें भी देखें: COPD Awareness Month
सीओपीडी को "धूम्रपान करने वाले के फेफड़े" के रूप में बताया जाता रहा है। जिनको एम्फीसेमा की समस्या होती है उनके "पिंक पफर्स" या "टाइप ए" जाना जाता रहा है जो कि उनकी गुलाबी रंगत, तेज श्वसन दर तथा मोटे होठों के कारण होता है जीर्ण ब्रॉन्काइटिस से पीड़ित लोगों को "ब्लू ब्लॉटर्स" या "टाइप बी" जाना जाता रहा है जो कि निम्न ऑक्सीजन स्तर तथा उनके टखनों की सूजन के कारण उनकी त्वचा तथा होठों के नीले रंग के कारण है। यह शब्दावली अब उपयोगी नहीं मानी जाती क्योंकि सीओपीडी से पीड़ित अधिकांश लोगों में दोनो का संयोजन होता है।
बहुत सारी स्वास्थ्य प्रणालियों में सीओपीडी से पीड़ित लोगों में उपयुक्त पहचान, निदान तथा देखभाल सुनिश्चित करने में कठिनाइयां आती हैं; ब्रिटेन के स्वास्थ्य विभाग राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के लिए इसे एक प्रमुख मामले के रूप में पहचाना है तथा इन समस्याओं से पार पाने के लिए एक विशिष्ट रणनीति पर काम शुरु किया है।
अर्थशास्त्र
वैश्विक रूप से 2010 में सीओपीडी के कारण $2.1 ट्रिलियन की हानि (आर्थिक लागत) का अनुमान है जिसका आधा हिस्सा विकासशील देशों में हो रहा है। इस कुल लागत में से लगभग $1.9 ट्रिलियन प्रत्यक्ष चिकित्सीय देखभाल पर व्यय हो रहा है, जबकि $0.2 ट्रिलियन, काम के नुक्सान जैसी अप्रत्यक्ष लागत का व्यय है। अगले 20 वर्षों में इसके दोगुने होने की संभावना है। यूरोप में स्वास्थ्य-देखभाल संबंधी व्यय का 3% व्यय सीओपीडी पर होता है। संयुक्त राज्य अमरीका में इस रोग की लागत $50 बिलियन होने का आंकलन है, जिसका अधिकांश हिस्सा इसकी तीव्रता पर व्यय होता है। अमरीकी अस्पतालों में 2011 सीओपीडी सबसे अधिक महंगी परिस्थितियों में से एक थी जिसकी कुल लागत लगभग $5.7 बिलियन थी।
शोध
- इन्हें भी देखें: COPD: Journal of Chronic Obstructive Pulmonary Disease
इनफ्लेक्सिमैब जो कि एक प्रतिरक्षा-दमनकारी एंटीबॉडी है, सीओपीडी के लिए जांची गयी थी लेकिन हानि की संभावना के साथ इसके लाभ के कोई साक्ष्य नहीं मिला है।रोफ्लूमिलास्ट तीव्रताओं की दर में कमी लाने की क्षमता दर्शाता है लेकिन जीवन की गुणवत्ता में कोई परिवर्तन लाता नहीं दिखता है। दीर्घ अवधि के लिए काम करने वाले एजेंटों के एक सदस्य का विकास चल रहा है।स्टेम सेल के साथ उपचार पर अध्ययन किया जा रहा है। 2014 तक पशुओं से संबंधित आंकड़े आम तौर पर आशाजनक हैं लेकिन मानवों पर ऐसे आंकड़े बेहद कम उपलब्ध हैं।
अन्य जन्तु
अन्य जानवरों में भी सीओपीडी हो सकती है और इसका कारण धूम्रपान से अनावरण हो सकता है। अधिकांश रोग हालांकि तुलनात्मक रूप से हल्का होता है।घोड़ों में इसे बार-बार होने वाली वायुमार्ग बाधा के नाम से जाना जाता है जिसका कारण फंगस लगे भूसे होने वाली एलर्जी की प्रतिक्रिया है। सीओपीडी आम तौर पर बूढ़े हो रहे कुत्तों में पायी जाती है।
अतिरिक्त पठन हेतु
- "Global Strategy for the Diagnosis, Management, and Prevention of Chronic Obstructive Pulmonary Disease, Updated 2013" (PDF). Global Initiative for Chronic Obstructive Lung Disease. मूल (PDF) से 4 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि November 29, 2013.
- साँचा:NICE
- Qaseem, Amir; Wilt, TJ; Weinberger, SE; Hanania, NA; Criner, G; Van Der Molen, T; Marciniuk, DD; Denberg, T; Schünemann, H; Wedzicha, W; MacDonald, R; Shekelle, P; American College Of, Physicians; American College of Chest Physicians; American Thoracic, Society; European Respiratory, Society (2011). "Diagnosis and Management of Stable Chronic Obstructive Pulmonary Disease: A Clinical Practice Guideline Update from the American College of Physicians, American College of Chest Physicians, American Thoracic Society, and European Respiratory Society". Annals of Internal Medicine. 155 (3): 179–91. PMID 21810710. डीओआइ:10.7326/0003-4819-155-3-201108020-00008.
वाह्य कड़ियां
- DMOZ: [1]