स्ट्रिकनीन
स्ट्रिकनिन (strychnine) एक ऐल्कलाइड है जिसका आविष्कार १८१८ ई. में हुआ था। यह स्ट्रिकनोस (Strychnos) वंश के एक पौधे नक्सवोमिका (nux-vomica) के बीज से निकाला गया था। पीछे अन्य कई पौधों में भी पाया गया। साधारणतया यह एक अन्य ऐलकेलाइड ब्रुसिन के साथ साथ पाया जाता है। ऐलकोहॉल से यह वर्णरहित प्रिज़्म बनाता है। जल में यह प्राय: अविलेय होता है। सामान्य कार्बनिक विलायकों में भी कठिनता से धुलता है। यह क्षारीय क्रिया देता है। यह अम्लीय क्षार है। स्वाद में बड़ा कड़वा होता है।
स्ट्रिकनीन अत्यन्त विषैला (चूहों के लिये LD50 = 0.16 mg/kg , मनुष्यों के लिये 1–2 mg/kg मुख से लेने पर ), रंगहीन, कड़वा, क्रिस्टलीय एल्केलॉयड है। इसका उपयोग जन्तुनाशक के रूप में (विशेषतः चूहों, चिड़ियों आदि को मारने के लिये) प्रयोग किया जाता है।
औषधियों में इसका व्यवहार होता है। यह बड़ी अल्प मात्रा में बलवर्धक होता है। कुछ शर्बतों में सल्फेट या हाइड्रोक्लोराइड के रूप में प्रयुक्त होता है। बड़ी मात्रा में यह बहुत विषाक्त होता है। यह सीधे रक्त में प्रविष्ट कर जाता है। अल्प मात्रा में आमाशय रस का स्राव उत्पन्न करता है। इसका विशेष प्रभाव केंद्रीय तंत्रिकातंत्र (Central nervous system) पर होता है। रीढ़रज्जु के प्रेरक क्षेत्र (motor area) को यह उत्तेजित करता और प्रतिवर्त क्षोभ्यता (reflex irritability) को बढ़ाता है। अल्प मात्रा में स्पर्श, दृष्टि और श्रवण संवेदनशक्ति को बढ़ाता है। बड़ी मात्रा में पेशियों का स्फुरण और निगलने में कठिनता उत्पन्न करता है। अधिक मात्रा में ऐंठन उत्पन्न करता है। सामान्य मात्रा से शरीर के ताप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता पर अतिमात्रा से ताप में वृद्धि होती है। विषैली मात्रा से बीस मिनट के अंदर विष के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। गरदन के पीछे का भाग कड़ा हो जाता है। पेशियों का स्फुरण होता है और दम घुटने सा लगता है। फिर रोगी को तीव्र ऐंठन होती है। एक मिनट के बाद ही पेशियाँ ढीली पड़ जाती हैं और रोगी थककर गिर पड़ता है। पर चेतना बराबर बनी रहती है। स्ट्रिकनिन विष की दवा काठ के कोयले या अंडे की सफेदी का तत्काल सेवन है। वमनकारी ओषधियों का सेवन निषिद्ध है क्योंकि उससे ऐंठन उत्पन्न हो सकती है। रोगी को पूर्ण विश्राम करने देना चाहिए और बाह्य उद्दीपन से बचाना चाहिए। बारबिट्यूरेटों या ईथर की शिराभ्यंतरिक (Intravenous) सूई से ऐंठन रोकी जा सकती है। कृत्रिम श्वसन का भी उपयोग हो सकता है।