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संज्ञान

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कई उदाहरणों को देखकर बुद्धि संज्ञान से उनकी समानताएँ निकाल लेती है और फिर 'वृक्ष' नामक एक उच्च-स्तरीय अवधारणा से वास्तविकता में मौजूद करोड़ों अलग-अलग दिखने वाले वृक्षों को एक ही अवधारणा के प्रयोग से समझने में सक्षम होती है

संज्ञान (cognition, कोग्निशन) कुछ महत्वपूर्ण मानसिक प्रक्रियाओं का सामूहिक नाम है, जिनमें ध्यान, स्मरण, निर्णय लेना, भाषा-निपुणता और समस्याएँ हल करना शामिल है। संज्ञान का अध्ययन मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, भाषाविज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान और विज्ञान की कई अन्य शाखाओं के लिए ज़रूरी है। मोटे तौर पर संज्ञान दुनिया से जानकारी लेकर फिर उसके बारे में अवधारणाएँ बनाकर उसे समझने की प्रक्रिया को भी कहा जा सकता है।

‘संज्ञान’ शब्द का अर्थ है ‘जानना’ या ‘समझना’। यह एक ऐसी बौद्धिक प्रक्रिया है जिसमें विचारों के द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है। संज्ञानात्मक विकास शब्द का प्रयोग मानसिक विकास के व्यापक अर्थ में किया जाता है जिसमें बुद्धि के अतिरिक्त सूचना का प्रत्यक्षीकरण (perception), पहचान (recognition), प्रत्याह्वान (remembering) और व्याख्या आता है। अतः संज्ञान में मानव की विभिन्न मानसिक गतिविधियों का समन्वय होता है। मनोवैज्ञानिक ‘संज्ञान’ का प्रयोग ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया के रूप में करते हैं। 'संज्ञानात्मक मनोविज्ञान' शब्द का प्रयोग गुस्ताव नाइसर (Ulric Gustav Neisser) ने अपनी पुस्तक ‘संज्ञानात्मक मनोविज्ञान’ में सन् 1967 ई0 में किया था। संज्ञानात्मक विकास इस बात पर जोर देता है कि मनुष्य किस प्रकार तथ्यों को ग्रहण करता है और किस प्रकार उसका उत्तर देता है। संज्ञान उस मानसिक प्रक्रिया को सम्बोधित करता है जिसमें चिन्तन, स्मरण, अधिगम और भाषा के प्रयोग का समावेश होता है। जब हम शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया में संज्ञानात्मक पक्ष पर बल देते है तो इसका अर्थ है कि हम तथ्यों और अवधारणाओं की समझ पर बल देते हैं।

यदि हम विभिन्न अवधारणाओं के मध्य के सम्बन्धों को समझ लेते हैं तो हमारी संज्ञानात्मक समझ में वृद्धि होती है। संज्ञानात्मक सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि व्यक्ति किस प्रकार सोचता है, किस प्रकार महसूस करता है और किस प्रकार व्यवहार करता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अपने अन्दर ज्ञान के सभी रूपों यथा स्मृति, चिन्तन, प्रेरणा और प्रत्यक्षण को शामिल करती है

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