Продолжая использовать сайт, вы даете свое согласие на работу с этими файлами.
वीर्य
वीर्य एक जैविक तरल पदार्थ है, जिसे औरत कि योनि मे छौड़ा जाता हैबीजीय या वीर्य तरल भी कहते हैं, जिसमे सामान्यतः शुक्राणु (स्पर्म) होते हैं। यह जननग्रन्थि (यौन ग्रंथियाँ) तथा नर या उभयलिंगी प्राणियों के अन्य अंगों द्वारा स्रावित होता है और मादा अंडाणु को निषेचित कर सकता है। इंसानों में, शुक्राणुओं के अलावा बीजीय तरल में अनेक घटक होते हैं: बीजीय तरल के प्रोटियोलिटिक और अन्य एंजाइमों के साथ-साथ फलशर्करा तत्व शुक्राणुओं के अस्तित्व की रक्षा करते हैं और उन्हें एक ऐसा माध्यम प्रदान करते हैं जहाँ वे चल-फिर सकें या "तैर" सकें. वो प्रक्रिया जिसके परिणामस्वरूप वीर्य का प्रवाह होता है उसे स्खलन कहा जाता है।
अनुक्रम
शारीरिक पहलू
आंतरिक और बाह्य निषेचन
प्रजातियों के आधार पर, शुक्राणु आंतरिक या बाह्य रूप से अंडाणु को निषेचित कर सकता है। बाह्य निषेचन में, शुक्राणु सीधे-सीधे अंडाणु को निषेचित करता है, मादा के यौनांगों के बाहर से. मादा मछली, उदाहरण के लिए, अपने जलीय वातावरण में अंडाणु जन्म देती हैं, जहाँ वे नर मछली के वीर्य से निषेचित हो जाया करते हैं।
आंतरिक निषेचन के दौरान, मादा या महिला के यौनांगों के अंदर निषेचन होता है। संभोग के जरिये पुरुष द्वारा महिला में वीर्यारोपण के बाद आंतरिक निषेचन होता है। निचली रीढ़ वाले प्राणियों में (जल-स्थलचर, सरीसृप, पक्षी और मोनोट्रीम (monotreme) स्तनधारी (प्राचीनकालीन अंडे देनेवाला स्तनधारी), सम्भोग या मैथुन नर व मादा के क्लोएक (आंत के अंत में एक यौन, मल-मूत्र संबंधी छिद्र या नली) के शारीरिक संगमन के ज़रिए होता है। धानी प्राणी (मारसुपियल) और अपरा (प्लेसेंटल) स्तनधारियों में योनि के जरिये सम्भोग होता है।
मानव वीर्य की संरचना
वीर्य स्खलन की प्रक्रिया के दौरान, शुक्राणु शुक्रसेचक वाहिनी के माध्यम से गुजरते हैं और प्रोस्टेट ग्रंथि नामक शुक्राणु पुटिकाओं और बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियों से निकले तरल के साथ मिलकर वीर्य का रूप लेते हैं। शुक्राणु पुटिकाएं (seminal vesicles) एक फलशर्करा से भरपूर पीला-सा गाढा-चिपचिपा तरल और अन्य सार पैदा करती हैं, जो मानव वीर्य का लगभग 70% होते हैं। डिहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन द्वारा प्रभावित होकर प्रोस्टेटिक स्राव एक सफ़ेद-सा (कभी-कभी पानी जैसा साफ़) पतला तरल होता है, जिसमें प्रोटियोलिटिक एंजाइम, साइट्रिक एसिड, एसिड फॉस्फेटेज और लिपिड होते हैं। इसे चिकना बनाने के लिए मूत्रमार्ग के लुमेन में बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियां एक पानी-सा साफ़ स्राव स्रावित करती हैं।
सरटोली कोशिकाएँ, जो स्पर्माटोसाइट के विकास में पालन-पोषण और सहायता करती हैं, वीर्योत्पादक वृक्क नलिकाओं में एक तरल का स्राव करती हैं, जिससे जननांग नलिकाओं में शुक्राणुओं के जाने में मदद मिलती है। डक्टली एफ्रेंटस (नलिका अपवाही) माइक्रोविली के साथ क्यूबोआइडल (क्यूब जैसे आकार का) कोशिकाओं और लाइसोसोमल दानों से युक्त होता है, जो कुछ तरल से पुनः अवशोषण करवाकर वीर्य को संशोधित करता है। एक बार जब वीर्य प्रमुख कोशिका वाहिनी अधिवृषण में प्रवेश कर जाता है, जहाँ पिनोसायटोटिक नस अंतर्विष्ट होती हैं जो तरल के पुनःअवशोषण का संकेत देती हैं, जो ग्लिस्रोफोस्फोकोलाइन स्रावित करती हैं जिससे बहुत संभव समय से पहले कैपेसिटेशन का अवरोध होता है। सहयोगी जननांग नलिकाएँ, शुक्राणु पुटिका, प्रोस्टेट ग्रंथियाँ और बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियाँ अधिकांश शुक्राणु तरल उत्पादित करती हैं।
मनुष्य के वीर्य प्लाज्मा जैविक व अजैविक घटकों की एक जटिल क्रमबद्धता से युक्त होते हैं।
वीर्य प्लाज्मा शुक्राणुओं को महिला के प्रजनन पथ की यात्रा के दौरान एक पोषक वसुरक्षात्मक माध्यम प्रदान करता है। योनि का सामान्य माहौल शुक्राणु कोशिकाओं के लिए प्रतिकूल होता है, क्योंकि यह बहुत ही अम्लीय (वहाँ के मूल निवासी माइक्रोफ्लोरा द्वारा लैक्टिक एसिड के उत्पादन से) और चिपचिपा होता है और इम्यून कोशिकाएँ गश्त में होती हैं। वीर्य प्लाज्मा के घटक इस शत्रुतापूर्ण वातावरण की क्षतिपूर्ति करने के प्रयास करते हैं। प्यूटर्साइन, स्पर्माइन, स्पर्माईडाइन और कैडवराइन जैसे बुनियादी एमाइंस वीर्य की गंध और स्वाद के लिए जिम्मेवार हैं। ये एल्कालाइन बेस योनि नलिका के अम्लीय माहौल का सामना करते हैं और अम्लीय विकृतिकरण से शुक्राणु के अंदर स्थित DNA की रक्षा करते हैं।
वीर्य के घटक और योगदान इस प्रकार हैं:
ग्रंथि | अनुमानित % | विवरण |
---|---|---|
वीर्यकोष | 2-5% | प्रति स्खलन में स्खलित होने वाले लगभग 200 - 500 मिलियन स्पर्माटोजोआ (spermatozoa) (शुक्राणु या स्पर्माटोजोयन्स (spermatozoans) भी कहा जाता है) वीर्यकोष या वृषण में बनते हैं। |
वीर्य संबंधी पुटिका | 65-75% | अमीनो एसिड, साइट्रेट एंजाइम फ्लेविंस, फ्रुटोज (शुक्राणु कोशिकाओं के ऊर्जा के मुख्य स्रोत, जो ऊर्जा के लिए वीर्य संबंधी प्लाजमा से पूरी तरह से शर्करा पर आश्रित है), फास्फोरलकोलाइन, प्रोस्टाग्लेडिन्स (महिला द्वारा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में बाहरी वीर्य को दबाने से जुड़ा हुआ है), प्रोटीन और विटामिन सी |
पुरःस्थ ग्रंथि | 25-30% | एसिड फास्फेटैस साइट्रिक एसिड फिब्रीनोलाइसिन प्रोस्टेट विशिष्ट एंटीजन प्रोटेओलिटिक एंजाइम, जिंक (शुक्राणु कोशिका में क्रोमाटिन युक्त डीएनए को स्थिर होने में सहयोग करता है। जिंक की कमी से शुक्राणु की कमजोरी के कारण प्रजनन क्षमता में कमी हो सकती हैं। जिंक की कमी का प्रतिकूल प्रभाव स्पर्माटोजेनिसिस पर पड़ सकता है।) |
बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियाँ | <1% | दुग्धशर्करा (galactose), श्लेष्मा (शुक्राणु कोशिका की गतिशीलता में वृद्धि और शुक्राणु कोशिकाओं के इसमें तैरने के लिए योनि तथा गर्भाशय ग्रीवा एक चिपचिपी वाहिका बनाती है और वीर्य का प्रसार बाहर होने से रोकती है। वीर्य का जेली की-सी संरचना की संलग्नता में योगदान करती है।) स्खलन पूर्व, सियालिक एसिड |
1992 के विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में सामान्य मानव वीर्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि स्खलन के 60 मिनट के अंदर सामान्य मानव वीर्य 2 मिलीलीटर या इससे अधिक मात्रा में, 7.2 से 8.0 पीएच, हुआ करता है; शुक्राणु सांद्रता 20×106 स्पर्माटोजोआ/मि.ली. या अधिक होती है; प्रति स्खलन में शुक्राणु संख्या 40×106 स्पर्माटोजोआ या अधिक; आगे बढ़ते समय (ए और बी श्रेणी) 50% या उससे अधि की मृत्यु दर और तेज अग्रगति (श्रेणी ए) के समय 25% या अधिक मृत्यु दर हुआ करती है।
रूप-रंग और मानव वीर्य की अनुकूलता
अधिकांश वीर्य सफेद होते हैं, लेकिन धूसर या यहां तक कि पीला-सा वीर्य भी सामान्य हो सकते हैं। वीर्य में रक्त से इसका रंग गुलाबी या लाल हो सकता है, जो हेमाटोस्पर्मिया कहलाता है और चिकित्सकीय समस्या पैदा कर सकता है, अगर यह तत्काल समाप्त नहीं होता है तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
स्खलन के बाद, वीर्य पहले एक थक्के (clotting) की प्रक्रिया के माध्यम से गुजरता है और फिर अधिक तरल हो जाता है। यह निर्विवाद है कि प्रारंभिक थक्कापन वीर्य को योनि में रखे रहने में सहायता करता है, लेकिन द्रवीकरण से शुक्राणु मुक्त हो जाते हैं और अंडाणु या स्त्रीबीज की अपनी लंबी यात्रा पर चल पड़ते हैं। स्खलन के तुरंत बाद वीर्य आम तौर पर एक चिपचिपा, जेली की तरह का तरल होता है जो अक्सर ग्लोब्युल्स बनाता है। अंततः सूख जाने से पहले 5 से 40 मिनट के अंदर यह अधिक जलीय और तरल हो जाता है।
वीर्य गुणवत्ता
निषेचन पूरा कर पाने की वीर्य की क्षमता का माप है वीर्य गुणवत्ता. इस प्रकार, यह किसी पुरुष में प्रजननशक्ति का एक माप है। शुक्राणु ही वीर्य का प्रजनन घटक है, और इसीलिए वीर्य गुणवत्ता में शुक्राणु की गुणवत्ता तथा शुक्राणु की संख्या दोनों शामिल हैं।
सेहत पर प्रभाव
प्रजनन में इसकी केंद्रीय भूमिका के अलावा, विभिन्न वैज्ञानिक निष्कर्षों से पता चलता है कि मानव स्वास्थ्य पर वीर्य के कुछ लाभकारी प्रभाव होते हैं, प्रमाणित लाभ और संभावित लाभ दोनों ही:
- अवसादरोधी: एक अध्ययन का कहना है कि वीर्य के योनि अवशोषण से महिलाओं में अवसादरोधी के रूप में काम कर सकता है; अध्ययन ने महिलाओं के दो समूहों की तुलना की, एक वे जो कंडोम का उपयोग करतीं थीं और दूसरा जो नहीं करतीं थीं।
- कैंसर की रोकथाम: अध्ययनों का मानना है कि वीर्य प्लाज्मा कैंसर, खासकर स्तन कैंसर को रोकता है और उससे संघर्ष करता है, इस जोखिम को कम करता है "50 फीसदी से कम नहीं". टीजीएफ-बेटा (TGF-Beta) द्वारा एपोपटोसिस के प्रेरित होने के साथ, ग्लायकोप्रोटीन और सेलेनियम तत्व के कारण यह प्रभाव पड़ता है। एक संबंधित शहरी कहावत इन निष्कर्षों की पैरोडी करते हुए दावा करता है कि सप्ताह में कम से कम तीन बार शिश्न चूषण (fellatio) से स्तन कैंसर का ख़तरा कम हो जाता है।
- गर्भाक्षेप निवारण: यह धारणा है कि वीर्य के सार तत्व मां की इम्यून प्रणाली को शुक्राणु में पाए जाने वाले "बाहरी" प्रोटीन को स्वीकार करने के अनुकूल बनाते हैं साथ ही भ्रूण और गर्भनाल भी तैयार होते हैं, इससे रक्त चाप कम रहता है और इसलिए गर्भाक्षेप का खतरा कम हो जाता है। एक अध्ययन से पता चलता है कि मुख मैथुन और वीर्य निगलने से महिला के गर्भ को सुरक्षित रखने में मदद मिल सकती है, क्योंकि वह अपने साथी के प्रतिजन (एंटीजन) को अवशोषित करती है।
वीर्य और रोग का संचरण
वीर्य एड्स के वायरस एचआईवी सहित अनेक यौन संचारित रोगों का वाहक हो सकता है।
इसके अलावा, माथुर और गौस्ट जैसे शोध में पाया गया कि शुक्राणु की अनुक्रिया में गैर-पूर्वअस्तित्ववान या पहले गैर-मौजूद रोग-प्रतिकारक पैदा होते हैं। ये प्रतिरक्षी या रोग-प्रतिकारक भूलवश स्थानीय टी लिम्फोसाइट्स (T lymphocytes) को बाहरी प्रतिजन (एंटीजन) मां लेते हैं और फलस्वरूप टी लिम्फोसाइट्स पर बी लिम्फोसाइट्स (B lymphocytes) का हमला होने लगता है।
वीर्य में शक्तिशाली जीवाणुनाशक गतिविधि के साथ प्रोटीन हुआ करता है, लेकिन ये प्रोटीन नेइसेरिया गनोरिया जैसे एक आम यौन संचारित रोग के विरुद्ध सक्रिय नहीं होते हैं।
वीर्य में रक्त (हेमाटोस्पर्मिया)
वीर्य में खून की मौजूदगी या हेमाटोस्पर्मिया पता लगाने योग्य नहीं हो सकता (इसे सिर्फ माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है) या यह तरल में दिखता भी नहीं। इसकी वजह पुरुष प्रजनन क्षेत्र में सूजन, संक्रमण, अवरोध, या चोट हो सकती है या मूत्रमार्ग, अंडकोष, अधिवृषण या प्रोस्टेट के अंदर कोई समस्या हो सकती है।
यह आमतौर पर इलाज के बिना ही ठीक हो जाया करता है, या एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक हो जाता है, लेकिन इसके जारी रहने पर इसकी वजह जानने के लिए वीर्य विश्लेषण या अन्य मूत्र-जननांग प्रणाली परीक्षण जरुरी हो सकते हैं।
वीर्य एलर्जी
बहुत ही कम मामलों में, लोगों को मानव वीर्य संबंधी प्लाज्मा अतिसंवेदनशीलता (human seminal plasma hypersensitivity) के नाम से ज्ञात वीर्य तरल की एलर्जिक प्रतिक्रिया का अनुभव करते पाया गया है। लक्षण या तो स्थानीय या सर्वांगी हो सकता है और योनि में खुजली, सूजन, लालिमा, या संपर्क के 30 मिनट के भीतर छाले भी हो सकते हैं। इनमे सामान्य खुजली, खराश और यहां तक कि सांस लेने में कठिनाई भी शामिल हो सकती है।
संभोग के समय कंडोम लगाकर मानव वीर्य संबंधी प्लाज्मा संवेदनशीलता की जांच की जा सकती है। अगर कंडोम के उपयोग से लक्षण दूर होते हैं तो यह संभव है कि वीर्य की संवेदनशीलता मौजूद है। वीर्य तरल के बार-बार निष्कासन से वीर्य एलर्जी के हल्के मामले अक्सर ठीक हो जा सकते हैं। अधिक गंभीर मामलों में, चिकित्सक की सलाह लेना महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब कोई जोड़ा गर्भ धारण का प्रयास कर रहा हो, ऐसे मामले में, कृत्रिम वीर्यारोपण की सलाह दी जा सकती है।
मनोवैज्ञानिक पहलू
एक ताजा अध्ययन का कहना है कि वीर्य महिलाओं में अवसादरोधी के रूप में काम करता है, सो जो महिलाएं वीर्य के साथ शारीरिक संपर्क में आती हैं उनमें अवसाद आने की संभावना कम होती है। यह सोचा जाता है कि मनोदशा में विभिन्न बदलाव लाने वाले हारमोंस (टेस्टोस्टेरोन, ओएस्टरोजेन, फोलिकल-उत्तेजन हारमोन, ल्युटीनाइजिंग हारमोन, प्रोलैक्टिन और अनेक अलग प्रोस्टाग्लैंडिन्स) सहित वीर्य के जटिल रासायनिक संघटन के परिणामस्वरुप इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा करते हैं। 293 कॉलेज महिलाओं के एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि जो महिलाएं कंडोम का इस्तेमाल नहीं करती रहीं, ज्यादातर यौन संबंध की पहल करती रहीं और एक रिश्ता समाप्त हो जाने पर नए साथी की तलाश में करने लगीं, बताया गया कि वीर्य पर रासायनिक निर्भरता "रिबाउंड इफेक्ट्स" पैदा करती है। किसी पुरुष यौन साथी (वीर्य प्राप्तकर्ता) पर वीर्य का प्रभाव ज्ञात नहीं है।
सांस्कृतिक पहलू
किगोंग
किगोंग और चीनी दवामें 精 कहे जाने वाले ऊर्जा के एक रूप को विशेष महत्व दिया जाता है (पिनयिन: जिंग, एक रूपिम द्योतक "सार" या "आत्मा" भी) - जो विकसित और संचित होने का प्रयास करता है। "जिंग" यौन ऊर्जा है और माना जाता है कि जो स्खलन से नष्ट हो जाती है, इसीलिए इस कला के अभ्यास में लगे लोगों का मानना है कि हस्तमैथुन "ऊर्जा की आत्महत्या" है। किगोंग सिद्धांत के अनुसार, यौन उत्तेजना के दौरान अनेक मार्गों/बिंदुओं से हटकर ऊर्जा खुद को यौनांगों में स्थानांतरित कर लेती है। परिणामी चरम-आनंद और स्खलन से अंततः ऊर्जा शरीर से पूरी तरह निष्कासित हो जाती है। चीनी कहावत - 滴精,十滴血 (पिनयिन: यी डी जिंग, शि डी क्सुए, शाब्दिक: वीर्य की एक बूंद खून की दस बूंदों के बराबर होती है) से इसकी व्याख्या हो जाती है।
चीनी में वीर्य के लिए वैज्ञानिक शब्दावली है 精液 (पिनयिन: जिंग ये, शाब्दिक: सार का तरल/जिंग) और शुक्राणु की शब्दावली है 精子 (पिनयिन: जिंग जी, शाब्दिक: सार का बुनियादी तत्व/जिंग), शास्त्रीय संदर्भ के साथ दो आधुनिक शब्दावलियां.
ग्रीक दर्शन
प्राचीन ग्रीक में, अरस्तू ने वीर्य के महत्व के बारे में टिप्पणी की है: "अरस्तू के लिए, वीर्य पोषक पदार्थ, जो कि रक्त है, से निकला हुआ अवशेष होता है, जो अनुकूलतम तापमान में बहुत ही गाढ़ा हो जाता है। यह केवल पुरुष द्वारा ही उत्सर्जित किया जा सकता है, क्योंकि प्रकृति ने उन्हें ऐसा ही बनाया है, इसीलिए केवल पुरुष में अपेक्षित गर्मी होती है जो रक्त को गाढ़ा कर वीर्य बना देती है।" अरस्तू के अनुसार, भोजन और वीर्य के बीच सीधा संबंध होता है: "शुक्राणु आहार का उत्सर्जन है, या और भी खुल कर कहा जाए तो यह हमारे आहार का सर्वोत्कृष्ट घटक है।"
एक ओर भोजन और शारीरिक विकास के बीच संबंध और दूसरी ओर वीर्य, अरस्तू को बहुत कम उम्र में यौन गतिविधियों में लिप्त होने के खिलाफ चेतावनी देने के लिए बाध्य कर देता है।.. [क्योंकि] इसका प्रभाव उनके शारीरिक विकास पर पड़ता है। अन्यथा आहार शारीरिक विकास करने के बजाए वीर्य उत्पादन के काम में लग जाएगा .... अरस्तू कहते है कि इस उम्र में शरीर का विकास जारी रहता है; यौन गतिविधियां शुरू करने के लिए सर्वोत्तम समय वह होता है जब शरीर का विकास बहुत बड़े पैमाने पर होना नहीं होता है, शरीर की उच्चता कमोवेश पूरी हो जाती है, तब पोषण का रूपांतरण वीर्य में हो जाने पर शरीर के आवश्यक तत्व बर्बाद नहीं होते हैं।"
इसके अतिरिक्त, "अरस्तू हमें बताते हैं कि आंखों के आसपास का क्षेत्र सिर का क्षेत्र बीज ("सबसे अधिक बीज वाला" σπερματικώτατος) के लिए सबसे उपजाऊ होता है, यौन लिप्तता और व्यवहार का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव आमतौर पर आंखों में होता है जिसका तात्पर्य यह होता है कि बीज आंखों के तरल क्षेत्र से होकर आता है।" पैथागोरियन मान्यता द्वारा इसकी व्याख्या इस तरह की जा सकती है कि वीर्य मस्तिष्क का एक कतरा है [τὸ δε σπέρμα εἶναι σταγόναἐγκέφαλου]."
ग्रीक स्टोइक दर्शन ने लोगोस स्पर्मैटिकोज को ("वीर्य संबंधी शब्द") जो कि निष्क्रिय उत्पादित द्रव्य है, सक्रिय कारण के सिद्धांत के रूप में देखा है। यहूदी दार्शनिक फिलो ने इसी तरह कारण के मर्दाना सिद्धांत के रूप में पतीकों (लोगोस) की यौन शब्दावली में स्त्रैण आत्मा में पुण्य के बीज बोने की बात कही.
क्रिश्चन प्लेटोवादी क्लीमेंट ऑफ़ एलेक्जेंड्रा ने लोगोस की उपमा शारीरिक रक्त से की, "आत्मा के सार तत्व" के रूप में, और कहा कि "प्राणी वीर्य मूलतः इसके रक्त का झाग है". क्लीमेंट प्रारंभिक ईसाई विचार को प्रतिबिंबित करते हैं कि "बीज को व्यर्थ नहीं करना चाहिए, न ही बिना सोचे-समझे बिखेरना चाहिए, न ही इसे इस तरह रोपना चाहिए कि यह पनप ही न सके".
पवित्र वीर्य
पूर्व-औद्योगिक कुछ समाज में, वीर्य और शरीर के अन्य तरल पदार्थों का बड़ा मान हुआ करता था, क्योंकि वे इसे जादुई समझा करते थे। रक्त ऐसे ही एक द्रव की मिसाल है, लेकिन व्यापक रूप से वीर्य का उदगम और प्रभाव अलौकिक माना जाता था और इसी कारण इसे पावन तथा पवित्र माना गया।
वर्तमान समय में और पुराने समय से बौद्धों और दाओवादी परंपराओं में वीर्य को बहुत मान दिया जाता रहा है, क्योंकि यह मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण घटक है।
एक समय में ओस को एक तरह की बारिश समझा जाता था, जिससे पृथ्वी निषेचित होती है और बाद के समय में यह वीर्य के लिए उपमा बन गयी। बाइबल के कुछ पद्यों में जैसे सॉन्ग ऑफ सोलोमन 5:2 और स्तुति 110:3 में अर्थ में "ओस" शब्द का उपयोग हुआ है[कृपया उद्धरण जोड़ें], परवर्ती पद्य में, उदाहरण के लिए, घोषणा की गयी है कि लोगों को केवल राजा का अनुसरण करना चाहिए, जो युवा "ओस" से भरपूर वीर्यवान है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
प्राचीन काल में व्यापक रूप से यही माना गया कि रत्न दैवीय वीर्य की बूंदें हैं जो पृथ्वी के निषेचित होने के बाद जम जाती हैं। विशेष रूप से, एक प्राचीन चीनी मान्यता है कि जेड (jade) आकाशीय ड्रेगन का सूखा हुआ वीर्य था।
सिंहपर्णी रस से मानव वीर्य की समानता के आधार पर ऐतिहासिक रूप से यह माना जाता था कि इसके फूल जादुई रूप से शुक्राणु के प्रवाह में वृद्धि करते हैं। (यह धारणा संभवत: हस्ताक्षर के सिद्धांत से उत्पन्न हुआ है।)
आर्किड के जुड़वां गट्टे अंडकोष के सदृश समझे जाते थे और प्राचीन रोमन मान्यता है कि ज़िनाकार के मैथुन से वीर्य के छलक जाने से फूल खिलते हैं।
बारबरा जी. वाकर ने पवित्र वीर्य के इन मिसालों को शोधपत्र द वुमेन डिक्शनरी ऑफ सिंबल्स एण्ड सेक्रेट ऑब्जेक्ट में लिखा है कि ये मिथक और लोकोक्तियां यह दिखाती हैं कि पूर्व पितृसत्तात्मक समाज में शासन महिलाओं द्वारा होता था, जो बाद में मर्दाना संस्कृति का पूरक बन गया।
दुनिया भर के प्राचीन पौराणिक कथाओं में ज्यादातर वीर्य को किसी न किसी तरह से स्तन दुग्ध का पर्याय माना गया है। बाली की परंपराओं में, मां के दूध के वापस होने या जमा होने को पोषक उपमा से जोड़ कर देखा गया है। पत्नी पति को पिलाती है, जो उसे उसके वीर्य, जो मानवीय दयालुता का दूध, की तरह माना जाता था, के रूप में वापस देता है।
चिकित्सा दर्शन की कुछ प्रणालियों में, जैसे कि पारंपारिक रूसी चिकत्सा और हरवर्ट नोवेल के वाइटल फोर्स थ्योरी में वीर्य को (पुरुष प्रजनन प्रणाली के एक उत्पाद के बजाए) महिला और पुरुष के बीच जटिल दैहिक पारस्परिक क्रिया का उत्पाद माना गया है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
चारवृत्ति में वीर्य
जब ब्रिटिश सीक्रेट इंटेलिजेंस सर्विस (एसएसबी) को पता चला कि वीर्य एक अच्छा अदृश्य स्याही है, सर जार्ज मैन्सफिल्ड स्मिथ कुमिंग ने अपने एजेंट को लिखा कि "हर आदमी का अपना स्टाइलो होता (है)."
वीर्य अंतर्ग्रहण
कामोद्दीपक संतुष्टि तथा शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ, मनुष् चरमसुख के दौरान शिश्न चूषण या लिंग चूषण के समय वीर्य निगल लेना सबसे आम तरीका है।
पोषक गुण
वीर्य मुख्यतः पानी है, लेकिन मानव शरीर द्वारा उपयोग किए जानेवाले लगभग सभी प्रकार के पोषक तत्व की मात्रा पायी जाती है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] इसमें आमतौर पर न्यून मात्रा में पाये जानेवाले खनिज जैसे मैग्नीशियम, पोटाशियम और सेलेनियम कुछ हद तक उच्च मात्रा में पाये जाते हैं। एक आम स्खलन में 150 मिलीग्राम प्रोटीन, 11 मिलीग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 6 मिलीग्राम वसा, 3 मिलीग्राम कोलेस्ट्रोल, 7% US RDA पोटेशियम और 3% US RDA तांबा और जस्ता होता है। जब चयापचय होता है तब प्रोटीन 4 किलो कैलोरी/ग्रा., कार्बोहाइड्रेट भी 4 किलो कैलोरी/ग्रा. और वसा 9 किलो कैलोरी/ग्रा. प्राप्त होता है। इसलिए एक आम वीर्य स्खलन में खाद्य ऊर्जा 0.7 किलो कैलोरी (2.9 kJ) है।
सेहत के खतरे
एक सेहतमंद व्यक्ति के वीर्य अंतर्ग्रहण में कोई खतरा नहीं है। शिश्न चूषण में अतार्निहित के अलावा वीर्य निगलने में कोई अतिरिक्त खतरा नहीं है। शिश्न चूषण से एचआईवी या दाद, जैसे यौन संक्रमित रोग हो सकते हैं, खासकर उन्हें जिनके मसूड़ों से खून आता है, मसूड़ों में सूजन हो या खुले घाव हों.
किसी व्यक्ति के अंतर्ग्रहण से पहले भले ही वीर्य ठंडा हो, लेकिन एक बार शरीर से बाहर निकल आया तो वायरस लंबे समय तक सक्रिय रह सकते हैं।
शोध में कहा गया हैं कि ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) से संक्रमित व्यक्ति से असुरक्षित मुख मैथुन करने पर मुंह या गले के कैंसर का खतरा हो सकता है। अध्ययन में पाया गया कि 36 प्रतिशत कैंसर के मरीज की तुलना में केवल 1 प्रतिशत स्वस्थ नियंत्रण समूह को एचपीवी था। माना जाता है कि ऐसा होने के पीछे कारण एचपीवी के संक्रमण है क्योंकि यह वायरस ज्यादातर गले के कैंसर के मामले में पाया गया है।
स्वाद और मात्रा
एक स्रोत ने उल्लेख किया है कि वीर्य के स्वाद की "कुछ महिलाओं ने प्रशंसा की है।" हालांकि आमतौर पर ऐसा कहा जाता है वीर्य का स्वाद आहार से उल्लेखनीय रूप से प्रभावित होता है, ऐसा कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है जिसमें किसी खाद्य पदार्थ की बात कही गयी हो।
वीर्य स्खलन की मात्रा पृथक होती है। 30 अध्ययन की समीक्षा का निष्कर्ष निकला कि औसत मात्रा 3.4 मिलीलीटर (एमएल) के आसपास थी, कुछ अध्ययन में उच्चतम 4.99 मिलीलीटर या न्यूनतम 2.3 मिलीलीटर पायी गयी। स्वीडेन और डेनमार्क के पुरुषों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि वीर्य स्खलनों में लंबे अंतराल के कारण वीर्य में शुक्राणु की गिनती में वृद्धि हुई लेकिन इसकी मात्रा में बढ़ोत्तरी नहीं हुई। युवा पुरुषों में बड़ी मात्रा में इसका निर्माण होता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
सांस्कृतिक व्यवहार
कुछ संस्कृतियों में, मर्दानगी के गुणों का श्रेय वीर्य को दिया गया है। सैबिया और इटोरो समेत पापुआ न्यू गिनी की कई जनजातियों का विश्वास है कि उनकी जनजाति के युवा पुरुषों में वीर्य उनमें यौन परिपक्वता प्रदान करते है। आदिवासी वयस्कों में शुक्राणु मर्दाना स्वभाव का द्योतक है और अगली पीढ़ी के युवा पुरुषों को अपनी सत्ता और हकूमत सौंपे जाने के क्रम में उनके लिए अपने बड़ों का शिश्न चूस कर उनका वीर्य ग्रहण करना जरूरी है। यह रिवाज जवान होते पुरुषों और बुजुर्गों के बीच शुरू हो जाती है। इनके और अन्य आदिवासियों के बीच यह काम सांस्कृतिक रूप से सक्रिय समलैंगिकता का द्योतक है।
आध्यात्मिक विचार
चर्च फादर इपिफैनियस कहते है कि बोरबोराइट्स और अन्य व्याभिचारी रहस्यवादी संप्रदाय ईसा के शरीर के रूप में वीर्य का पान करते हैं। पिस्टिस सोफिया और टेस्टामॉनी ऑफ ट्रूथ कठोरतापूर्वक ऐसे रिवाजों की निंदा की।
आधुनिक सेंट प्रियापस चर्च में, दूसरों की उपस्थिति में वीर्य पान पूजा का एक रूप है। चूंकि इसमें जीवन देने की दैवीय क्षमता है, इसीलिए इसे पवित्र माना गया है। कुछ अध्यायों में एसस्लेसिया ग्नॉस्टिका कैथोलिका प्रथा में, ग्नॉस्टिक धार्मिक सभा के दौरान वीर्य पान एलेइस्टर क्रोवले के द्वारा प्रकृतिस्थ है।
यौन चलन
वीर्य के अंतरर्ग्रहण से संबंधित बहुत सारे यौन चलन हैं। एक या एक से अधिक साथी के साथ, स्नोबोलिंग की तरह, फ्लेचिंग और क्रीमपाई ईटिंग (योनि या गुदा से वीर्य चूसने और चाटने का कृत्य) किया जा सकता है, या अनेक हिस्सेदारों के साथ, जापान में आरंभ हुए, बुक्काके और गोक्कुन की तरह भी इस कृत्य को किया जा सकता है।
वीर्य की मात्रा में वृद्धि
बहुत सारे पुरुषों जिन्हें उत्थानशीलता में गड़बड़ी या नपुंसकता है, वे प्राकृतिक वीर्य की मात्रा के लिए गोलियों का उपयोग शुरू कर देते हैं। ये हर्बल गोलियां खाद्य व औषधि प्रशासन द्वारा अनुमोदित नहीं है और पौरुष संवर्धन की श्रेणी में आते हैं। वीर्य की मात्रा से संबंधित गोलियों की संरचना यौन संबंध बनाने के दौरान स्खलन या सीमेन की मात्रा में वृद्धि के लिए की जाती है।
इन हर्बल गोलियों को पहली बार वयस्कों के लिए मौज-मस्ती उद्योग में लाया गया और व्यस्क पोर्न स्टार रोन जेरेमी द्वारा प्रवक्ता के रूप इसका प्रचार किया गया।
इनमें से किसी के दावों को सत्यापित नहीं किया गया है और एफडीए ने न तो इसे अनुमोदित किया है और न ही स्खलन की मात्रा में वृद्धि के उद्देश्य के लिए किसी हार्बल की सिफारिश की है।
व्यंजनाएं
वीर्य को लेकर विभिन्न तरह की व्यंजनाओं और उपमाओं का आविष्कार किया गया है। इन शब्दों की पूरी सूची के लिए, देखें यौन अपभाषा
लोकप्रिय संस्कृति में
- बहुत पुराने समय से वीर्य का चित्रण कला और लोकप्रिय संस्कृति में एक वर्जित विषय माना गया है।
- जापानी कलाकार ताकेशी मुरकामी मंगा शैली के माई लोंसम काउब्वॉय शीर्षक की पेंटिग्स के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसमें सुपरहीरो एक नग्न चरवाहे को अपने वीर्य का उपयोग फंदा के रूप में करते हुए दिखाया है।
- एंड्रेस सेर्रानो, जिसकी तस्वीर (सीमेन वाई सैंग्रे II) (1990) में शरीर के तरल पदार्थों जैसे रक्त और वीर्य II दिखाया गया था, अपने कृत्य में वीर्य दिखाए जाने से विवादास्पद व्यक्ति बन गए। अपत्तिजनक कला के प्रदर्शन के लिए कुछ लोगों ने उनकी बहुत आलोचना की, वहीं अन्य लोगों ने कलात्मक स्वतंत्रता के नाम पर उनका बचाव किया। उनकी तस्वीरें को दो मेटालिका एलबम लोड और रिलोड के आवरण कला में दिखाया गया, इस तस्वीर को चमकदार रोशनी द्वारा एक साफ प्लास्टिक के टुकड़े में सीमेन, रक्त और मूत्र को छींटे और भंवर की तरह दिखाया गया था।
- 1990 से द साइलेंस ऑफ द लैंब्स (1991), किका (1993), देयर'ज समथिंग अवाउट मेरी (1998) (हॉलीवुड की मुख्यधारा की हार्ड-कोर कॉमेडी की पहली फिल्म), हैपीनेस (1998), अमेरिकन पाई (1999), स्केरी मुवी (2000), वाई टू मामा टैमबीन (2001), स्केरी मुवी 2 (2001) प्रेडी गॉट फिंगर्ड (2001), नेशनल लैंपून'ज वैन वाइल्डर (2002), क्लेर्क्स II (2006), जैकास नंबर टू (2006) और एनीमी मुवी एण्ड ऑफ इवैनजेलीऑन में सीमेन का वर्णन किया गया है।
इन्हें भी देखें
- वीर्य विश्लेषण
- शुक्राणु
- शुक्राणु दान
- शुक्राणुजन
- स्परमेटोजून
बाहरी कड़ियाँ
- Grizard G, Sion B, Bauchart D, Boucher D (2000). "Separation and quantification of cholesterol and major phospholipid classes in human semen by high-performance liquid chromatography and light-scattering detection". J Chromatogr B Biomed Sci Appl. 740 (1): 101–7. PMID 10798299. डीओआइ:10.1016/S0378-4347(00)00039-6.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
- सनी पॉडकास्ट - वीर्य अध्ययन के परिणाम