Продолжая использовать сайт, вы даете свое согласие на работу с этими файлами.
वातिल जल
वातिल जल (Aerated water) अथवा कार्बोनेटेड जल (carbonated water), या 'फेनिल पेय' वस्तुत: मद्यरहित पेय होते हैं, जिन्हें विभिन्न दाब पर कार्बोनिक गैस या कार्बन डाइऑक्साइड से कृत्रिम रूप में संतृप्त किया जाता है। सामान्यत: पेय पदार्थों को लवण, शर्करा तथा स्वादसार एवं सुगंधसार पदार्थों के निश्चित परिमाण को मिश्रित करके बनाया जाता है। फेनिल पेय का प्रयोग औषधों एवं सामान्य पेय पदार्थों दोनों के रूप में होता है।
परिचय
फेनिल पेय को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है : एक वर्ग के फेनिल पेय को सामान्य फेनिल पेय कहते हैं। इसमें सामान्यत: कार्बोनिक अम्ल गैसयुक्त जल तथा अल्प मात्रा में नमक एवं अन्य खनिज लवणों का संमिश्रण होता है। सामान्य फेनिल पेय का स्वाद नमक के कारण खारा होता है। इस वर्ग के फेनिल पेय को सामान्य भाषा में सोडा जल, या खारा पानी, कहा जाता है। स्वाद एवं लवणों की विशेषता के कारण इनमें तथा प्राकृतिक खनिज जल में सादृश्य होता है। वस्तुत: सामान्य फेनिल पेय का निर्माण प्राकृतिक खनिज जल को कृत्रिम रूप में उत्पन्न करने के प्रयासों के करण संभव हो सका है। दूसरे वर्ग के फेनिल को सामान्य भाषा में लेमनेड जल, या मीठा पानी, अथवा मृदुपेय, कहा जाता है। इसमें कार्बोनेटेड जल के अतिरिक्त सुगंधसार एवं स्वादसार कारकों का विशेष रूप में प्रयोग होता है तथा अल्प मात्रा में शर्करा अथवा सैकरीन घुला होता है। इसके अतिरिक्त इस वर्ग के फेनिल पेय में प्राकृतिक स्वाद उत्पन्न करने के लिए फल, पुष्प, कंद, मूल एवं पत्तियों के रसों या सारों का प्रयोग होता है। आधुनिक काल में कृत्रिम स्वादसार कारकों का उपयोग अधिकाधिक होने लगा है।
फेनिल पेय को बोतलों में बंद करने के समय १०० से १२० पाउंड दाब का उपयोग किया जाता है, जिससे बोतल के अंदर ४५ से ५५ पाउंड तक दाब उत्पन्न होती है। इस प्रकार के फेनिल पेय की बोतलों के खोलने पर गैस की दाब के कारण बुदबुदान प्रारंभ हो जाता है और पेय से कार्बन डाइऑक्साइड गैस की अधिकांश मात्रा (जल में कुछ घुली हुई गैस को छोड़कर) निकल जाती है। इस क्रिया में अधिक समय नहीं लगता। अत: ऐसे पेय पदार्थों की माँग बढ़ गई है जिनसे बुदबुदन की यह क्रिया अधिक समय तक होती रहे और फेनिल पेय के ऊपरी तल पर फेनयुक्त दशा अधिक समय तक बनी रहे। इस दशा को उत्पन्न करने में सैपोनिन नामक वानस्पतिक उत्पाद का प्रयोग किया जाता है। यह पदार्थ वनस्पति एवं पेड़ पौधों की छाल के निष्कर्ष से प्राप्त होता है तथा इसकी अल्प मात्रा फेनिल पेय में मिश्रित करने से पेय के ऊपरी तल पर फेनिल दशा अधिक समय तक बनी रहती है। सैपोनिन के ग्लुकोसाइड पदार्थों के कारण इसके उपयोग से हानिकर प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। अत: इनका उपयोग सीमित मात्रा में ही होता है।
जल का कार्बोनेटीकरण
फेनिल पेय के कार्बोनेटीकरण की सामान्य रीति में भरे हुए जल में बल पंप की सहायता से कार्बन डाइऑक्साइड को संपीडित किया जाता है। इस रीति का प्रयोग सर्वप्रथम १७९० ई. में पॉल नामक वैज्ञानिक ने फेनिल पेय के निर्माण की इस रीति को जेनेवाप्रक्रम भी कहा जाता है। निर्माण की यह रीति घान प्रक्रम पर आधारित होने के कारण अधिक सफल नहीं हो सकी और शीघ्र ही वैज्ञानिकों ने सततप्रक्रम को विकसित कर लिया। व्यापारिक आधार पर सतत प्रक्रम द्वारा फेनिल पेय के निर्माण की रीति को खोज निकालने का श्रेय हैमिल्टन नामक वैज्ञानिक को है। ब्राह्मा नामक वैज्ञानिक के सततप्रक्रम में विशेष सुधार किया था। कम लागत तथा छोटे आधार पर फेनिल पेय के व्यापारिक निर्माण में अभी भी घान प्रक्रम का प्रयोग होता है, परंतु बड़े पैमाने पर सतत प्रक्रम का ही प्रयोग होता है। सतत प्रक्रम की स्थापना से निर्माण खर्च में बहुत कमी हो जाती है। फेनिल पेय के निर्माण में कार्बनडाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है। यह गैस विशेष स्टील, अथवा अन्य धातुओं, के सिलिंडर में उपलब्ध होती है। कुछ उत्पादन केंद्रों में कार्बन डाइऑक्साइड के सिलिंडर के स्थान पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस जेनरेटर का उपयोग किया जाता है। इसमें कार्बोनेट अथवा बाइकार्बोनेट पर सलफ्यूरिक अथवा अन्य अम्लों की क्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड बनता है। धान प्रक्रम द्वारा फेनिल पेय के निर्माण में टिन धातु के अस्तर युक्त ताँबे के पात्र, अथवा सिलिंडर का उपयोग किया जाता है। एक साथ प्राय: दो पात्र अथवा दो सिलिंडरों का उपयोग श्रेयस्कर होता है, क्योंकि जब एक पात्र खाली हो जाता है तब उतने समय में दूसरा पात्र भरकर संपीडन क्रिया के लिए उपलब्ध हो जाता है। इस प्रक्रम में प्रयुक्त होनेवाले पात्र में द्रव तथा गैस को क्षुब्ध अवस्था में बनाए रखने के लिए विशेष प्रकार के क्षुब्धक लगे रहते हैं। इस रीति से द्रव में कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग होता है। सतत प्रक्रम में द्रव कार्बन डाइऑक्साइड सिलिंडर में द्रव के रूप में उपलब्ध होता है। आजकल बड़े पैमाने पर फेनिल पेय के उत्पादन में स्वचालित मशीनों का उपयोग होता है। इस प्रकार की बोतल भरण मशीन से हजारों की संख्या में बोतलों में बंद फेनिल पेय प्रति घंटा प्राप्त होता रहता है। फेनिल पेय के निर्माण एवं उपभोग में आजकल आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। ग्रीष्म ऋतु में जल के स्थान पर फेनिल पेय के उपयोग में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है तथा सामाजिक समारोहों में इसका अधिकाधिक उपयोग होने लगा है। संभवत: इसका कारण यह हो सकता है कि फेनिल पेय के निर्माताओं ने विज्ञापनों द्वारा इसकी बिक्री बढ़ाई है। अत: मृदुपेय का व्यवसाय उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। अमरीका में मृदुपेय का उपयोग बहुत अधिक है। भारत में भी इसके उपयेग में बराबर वृद्धि हो रही है।
इतिहास
फेनिल पेय उद्योगों के विकास का इतिहास मनोरंजक है। प्राचीन काल से ही अनेक वैज्ञानिकों का प्रयास रहा है कि प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त स्वास्थ्यवर्धक बुदबुद जल का निर्माण कृत्रिम रूप में किया जाए। इन सोतों के जल में बुदबुदन को अधिक महत्व दिया जाता था। फॉन हेल्मॉएट (सन् १५७७-१६४४) ने पहले पहल पता लगाया कि ऐसे जल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस रहती है। ऐसे जल को वायुयुक्त (फेनिल) जल का नाम ग्रेवियेल केनेल ने दिया। जोसेफ ब्लैक नामक रासायनिक चिकित्सक ने सर्वप्रथम प्राकृतिक सोते के गैस अंश के लिए स्थिरवायु शब्द का प्रयोग किया। इसपर अनुसंधान के फलस्वरूप प्राकृतिक सोतों के विशेष गुणयुक्त जल का कृत्रिम निर्माण शुरू हो गया। फेनिल पेय के उद्योग का प्रारंभ यहीं से होता है। १७७२ ई. में अंग्रेज वैज्ञानिक प्रीस्टले ने स्थिर वायु द्वारा जल प्राप्त करने की क्रिया नामक लेख प्रकाशित किया, जिसके आधार पर लंदन की रॉयल सोसाइटी ने उन्हें कौपली मेडल द्वारा सम्मानित किया था। स्वीडन के वैज्ञानिक शीले तथा फ्रांस के वैज्ञानिक लवाज़्ये के सतत प्रयत्नों द्वारा यह ज्ञात हो गया कि प्रीस्टले की स्थिर वायु कार्बन एवं ऑक्सीजन संयोजित गैस है। ऐसा मालूम होते ही जौन मेरविन नूथ नामक अंग्रेज वैज्ञानिक ने १७७५ ई. में फेनिल पेय के अल्प मात्रा में निर्माण के लिए एक विशेष उपकरण तैयार करने में सफलता प्राप्त की। इस उपकरण में ज़ीन हयासींथ ड मैगेलन के प्रयासों के कारण १७७७ई. में विशेष सुधार संभव हो सका। १७८१-८३ ई. के बीच हेनरी नाक अंग्रेज वैज्ञानिक ने व्यावसायिक आधार पर फेनिल पेय के उत्पादन की मशीन की योजना की रूपरेखा तैयार की। फिर यूरोप तथा इंग्लैंड के अनेक नगरों में १७८९ ई. से १८२१ ई. के बीच व्यापारिक स्तर पर उत्पादन प्रारंभ हो गया। अमरीका में सर्वप्रथम १८०७ ई. में फेनिल पेय का बोतल भरण कारखाना कनेक्टिकट के न्यू हेवे नगर में प्रारंभ हुआ। इस प्रकार का एक अन्य कारखाना हाकिंस द्वारा फिलाडेल्फिया में १८०९ ई. में प्रारंभ किया गया। इसके उपरांत संसार के अनेक देशों में फेनिल पेय के बड़े बड़े कारखाने स्थापित हो गए।