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वर्णान्धता
वर्णांधता (Colourblindness) आँखों का एक रोग है जिसमें रोगी को किसी एक या एक से अधिक रंगों का बोध नहीं हो पाता है; जिससे उसकी रंगबोध की शक्ति साधारण व्यक्तियों के रंगबोध की शक्ति से कम होती है। यह रोग जन्म से हो सकता है, अथवा कतिपय रोगों के बाद उत्पन्न हो सकता है।
साधारण व्यक्ति रंग के हलकेपन या गहरेपन का भली भाँति बोध (perception) कर सकता है। पर इस रोग में व्यक्ति की रंगों के गहरेपन का बोध या रंगों को पहचानने की शक्ति लुप्त हो जाती है।
वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम /spectrum) के एक रंग अथवा रंगों के मिश्रण के बोध के लोप होने के आधार पर रोग के पृथक्-पृथक् वर्ग तथा उनके नाम भी हैं।
यह नर में होता है, लेकिन इसकी वाहक मादा होती है।
यह तीन प्रकार का होता हैं -
- ड्यूटेरोनोनोपिया - हरे रंग की अंधता
- टाइट्रोनोपिया - नीले रंग की अंधता
- प्रोटेनोपिया - लाल रंग की अंधता
परिचय
मनुष्य में समान रूप से रंग का बोध त्रिवर्णता (Trichromatism) के सिद्धांत से होता है। इस सिद्धांत के अनुसार रंग का बोध तीन रंगों के विविध मिश्रण से होता हैं। ये तीनों शुद्ध और मुख्य (primary) रंग हैं : लाल, हरा तथा नीला; जिनकी पृथक मात्रा के मिश्रण से सब प्रकार के रंग बन जाते हैं तथा इन पृथक रंगों का विशेष बोध दृष्टि द्वारा होता है। यह त्रिवर्णता पुरुषों में प्राय: 92 प्रतिशत तथा स्त्रियों में 99.5 प्रतिशत सामान्य होती है। शेष पुरुषों तथा स्त्रियों में यह बोधशक्ति मानक से इस अर्थ में भिन्न होती है कि उन्हें पूरे स्पेक्ट्रम के बोध के लिए तीनों शुद्ध रंगों से कम रंगों या अधिक रंगों की आवश्यकता होती है। ऐसे व्यक्तियों की विकृत त्रिवर्णक (Anomalous Trichromats) कहते हैं जिनको सामान्य व्यक्तियों की तुलना में रंगबोध के लिए तीनों शुद्ध रंगों की विभिन्न अनुपात में आवश्यकता पड़ती है। जिन व्यक्तियों में तीन के स्थान पर दो या एक ही रंग द्वारा रंगबोध होता है, वे क्रमश: द्विवर्णक (Dichromates) तथा एकवर्णक (Monochromates) कहलाते हैं। वर्णांधता का विकार सबसे अधिक एकवर्णिक (monochromatic) व्यक्तियों में, इनसे कम द्विवर्णिक (dichromatic) व्यक्तियों में तथा अंत में सबसे कम त्रिवर्णिक (trichormatic) व्यक्तियों में पाया जाता है। जिन व्यक्तियों को लाल तथा हरे रंगों का बोध नहीं होता, उन्हें लाल एवं हरा वर्णांध तथा पीले एवं नीले रंगों का बोध न होने पर पीला एवं नीला वर्णांध आदि कहते हैं।
जन्म के वर्णांध को हरे रंग की मात्रा की सबसे अधिक आवश्यकता पड़ती है तथा ऐसे व्यक्ति को हल्के हरे और पीले रंग के अलग-अलग बोध में कठिनाई पड़ती है। कुछ व्यक्तियों को लाल रंग का बोध नहीं होता है, अत: ऐसे व्यक्तियों को इस वर्णांधता के कारण सामान्य जीवन में बड़ी कठिनाई उठानी पड़ती है। यह सच है कि ऐसा वर्णांध व्यक्ति रंग की विविध गहराई, चमक, तथा आकार से ही वस्तुओं को पहचान लेने की शक्ति उत्पन्न कर लेता है, लेकिन ऐसा व्यक्ति ठीक ठीक रंग पहचानने के ज्ञान पर निर्भर विषयों पर निश्चय लेने में गलती करता है, जिसका भीषण परिणाम हो सकता है, उदाहरणार्थ ट्रैफिक सिगनल पहचानने की गलती आदि।
कभी कभी नेत्ररोग, जैसे दृष्टितंत्रिका (optic nerve) विकार या मस्तिष्क विकार, के कारण वर्णांधता उत्पन्न हो जाती है, जो उचित उपचार द्वारा दूर की जा सकती है, पर जन्म की वर्णांधता का कोई उपचार नहीं है।
बाहरी कड़ियाँ
- Color Blindness Examples
- Deuteranope Color Blindness Examples - Most common form of Red/Green
- Color vision deficiency tests and facts
- Vischeck - Simulates colorblind vision
- Colorblind Barrier-Free, contains a proposal for dichromacy safe palette.
- Online Color Blind Selftest
- Colorblind Web Page Filter - View Web sites like a color blind person would see them.
- Color Universal Design Organization in Japan (CUDO) - How to create the Color Universal Design . Japanese Visual Science Groupe.
- Colour Blindness and Medicine - Information and advice for medical practitioners, medical students and prospective medical students who are colour blind