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रूसो
जाँ जाक रूसो | |
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जन्म |
28 जून 1712 जिनेवा |
मृत्यु |
2 जुलाई 1778 एर्मेनॉविल |
हस्ताक्षर |
जाँ जाक रूसो (28 जून 1712 - 2 जुलाई 1778) एक जिनेवन दार्शनिक, लेखक और संगीतकार थे। उनके राजनीतिक दर्शन ने पूरे यूरोप में प्रबुद्धता के युग की प्रगति के साथ-साथ फ्रांसीसी क्रांति के पहलुओं और आधुनिक राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक विचारों के विकास को प्रभावित किया।
उनका असमानता पर लेख और सामाजिक अनुबंध आधुनिक राजनैतिक और सामाजिक विचारों में आधारशिला हैं। रूसो का भावुक उपन्यास जूली, या द न्यू हेलोइस (1761) उपन्यास में प्रेमपूर्णता और स्वच्छन्दतावाद के विकास के लिए महत्वपूर्ण था। उनका एमिल, या ऑन एजुकेशन (1762) समाज में व्यक्ति के स्थान पर एक शैक्षिक ग्रंथ है। रूसो के आत्मकथात्मक लेखन- मरणोपरांत प्रकाशित कॉन्फ़ेशन्स (1769 में रचित), जिसने आधुनिक आत्मकथा की शुरुआत की, और अधूरे रेवरीज ऑफ द सॉलिटरी वॉकर (1776-1778 की रचना) - 18 वीं शताब्दी के अंत में "एज ऑफ सेंसिबिलिटी" को स्पष्ट किया। उन्होंने व्यक्तिपरकता और आत्मनिरीक्षण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जिसने बाद में आधुनिक लेखन की विशेषता बताई।
1742 में रूसो ने साथी दार्शनिक दनी दिदेरो से मित्रता की, और बाद में अपने इकबालिया बयान में डाइडरोट की रोमांटिक परेशानियों के बारे में लिखा। फ़्रान्सीसी क्रान्ति की अवधि के दौरान, रूसो जाकोबिन क्लब के सदस्यों के बीच दार्शनिकों में सबसे लोकप्रिय था। उनकी मृत्यु के 16 साल बाद, 1794 में, पेरिस में पाँथेंयॉं में उन्हें एक राष्ट्रीय नायक के रूप में शामिल किया गया था।
अनुक्रम
मुख्य रचनाएँ
उसकी मुख्य रचनाएँ ये हैं:
- 1. डिसकोर्सेज ऑन दि मॉरल इफेक्टस ऑफ दि आर्टस एण्ड साइंसेज ।
- 2. डिसकोर्सेज ऑन दि ऑरिजिन ऑफ इनइक्वैलिटी ।
- 3. इकनॉमिक पालिटिक (1755)
- 4. सोशल कान्हेक्ट (1762) राजदर्शन संबंधी विचार
- 5. लेटर्स दि ला मोण्टेन (1764)
- 6. दि ईमाइल (1762)
- 7. कन्फेशन्स
- 8. कान्सटीट्यूशन ऑफ कोर्सिका
- 9. राइटिंग्स ऑफ सेण्ट पियरे (1761)
रूसो का चरित्र व दर्शन
प्रत्येक विचारक का दर्शन उसके जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। कितु रूसो को समझने के लिए उसकी चारित्रिरक विशेषताएँ तथा दुबर्लताएँ विशेष रूप से ज्ञातव्य हैं। अपने व्यक्ति्तगत दोषों के लिए समाज को उत्तरदायी ठहराकर रूसो ने न केवल अपने को निरपराध बल्कि मनुष्यमात्र को निसर्गत: नेक और विशुद्धात्मा बताया। पेरिस की भौतिकवादी सभ्यता के कृत्रिम वातावरण को अपने स्वभाव के प्रतिकूल पाकर उसने प्राकृतिक अवस्था के सरल जीवन की कल्पना की। शिक्षित और सभ्य समाज के साथ अपने व्यक्तित्व का सामंजस्य वह कभी नहीं स्थापित कर पाया। उसके जीवन के अंतिम वर्ष दैहिक संताप, मानसिक विषाद, काल्पनिक भय, विक्षोभ तथा उन्माद के आवेग से पूर्ण थे। बाल्यावस्था से ही वह चरित्रहीन था। कितु वासनाओं का दास होते हुए भी उसमें उदात्त भावनाओं का अभाव नहीं था। उसकी कृतियाँ उसकी सहज अनुभूतियों की अभिव्यक्ति हैं। इसीलिए वे इतनी मर्मस्पर्शनी तथा प्रभावोत्पादक हैं।
आधुनिक सभ्यता के दोषों का वर्णन करते हुए रूसो अपने समय के अन्य विचारकों की भाँति प्राकृतिक और रूढि़गत का अंतर प्रस्तुत करता है। किन्तु प्राकृतिक अवस्था की कल्पना उसके राज्य संबंधी विचारों की पुष्टि के लिए अनावश्यक सी है। रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में जीवन सरल था। बुद्धि तथा भाषा का विकास नहीं हुआ था। मनुष्य अपनी सहज प्रवृत्तियों के अनुसार आचरण करता था। वह नैतिकता अनैतिकता से परे था। उसे न हम सुखी कह सकते हैं, न दु:खी। यह अवस्था रूसो का आदर्श नहीं है। वह बुद्धि तथा भावना का सामंजस्य चाहता है जो प्राकृतिक अवस्था के विकास की दूसरी मंजिल है। यह प्रारम्भिक जीवन की सरल निष्क्रियता तथा वैज्ञानिक सीयता की विषाक्त जटिलता के बीच की स्थिति है। भाषा का विकास, सामाजिक सहयोग, शांति और सौहार्द्र, इसकी विशेषताएँ हैं। धीरे-धीरे बुद्दि भावनाओं को पराभूत कर लेती है और श्रद्धा, विश्वास प्रेम तथा दया का स्थान अविश्वास, वैमनस्य, स्वार्थ ले लेते हैं। व्यक्तिगत संपत्ति का आविर्भाव होता है और मनुष्य दासता की शृंखला में जकड़ जाता है। आर्थिक शोषण तथा सामाजिक अत्याचार के कारण उसका व्यक्ति नष्ट हो जाता है। इस वर्णन में फ्रांस की राज्यक्रांति के पूर्व की अवस्था प्रतिबिम्बित है। इसी स्थिति से मुक्ति पाने के लिए सामाजिक प्रसंविदा की आवश्यकता होती है।
रूसो की प्रारंम्भिक कृतियों तथा सामाजिक प्रसंविदा के कुछ अंशों के अवलोकन से प्रतीत होता है कि लेखक समाज व्यवस्था का विरोधी है और व्यक्ति की निरपेक्ष स्वतंत्रता में विश्वास करता है। कितु रूसो स्वयं आलोचकों द्वारा वर्णित समानता की उत्पत्ति के घोर व्यक्तिवाद और "सामाजिक प्रसंविदा' के घोर समष्टिवाद के परस्पर विरोध को नहीं मानता। अपनी प्रारंभिक कृतियों में उसका उददेश्य प्रचलित मान्यताओं का खंडन मात्र था। कितु सामाजिक प्रसंविदा में वह अपना स्वतंत्र दर्शन प्रस्तुत करता है। उसके अनुसार मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज में ही उसके मानवोचित गुणों का विकास हो सकता है। कितु वर्तमान समाज उसे अनावश्यक तथा अनिष्टकारी बंधनों से जकड़ देता है। प्रसंविदा का उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना है जो अपनी संपूर्ण सामूहिक शक्ति के द्वारा प्रत्येक सदस्य की स्वतंत्रता और संपत्ति की रक्षा कर सके और जिसमें प्रत्येक व्यक्ति समष्टि में सम्मिलित होकर भी अपनी ही आज्ञा का पालन करे और पूर्ववत् स्वतंत्र बना रहे। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी संपूर्ण शक्तियों को सामान्य संकल्प के सर्वोच्च निर्देशन में समाज को सौंप देता है और फिर समष्टि के अविभाज्य अंश के रूप में उन सभी अधिकारों को प्राप्त कर लेता है। प्रसंविदा के परिणामस्वरूप जिस राज्य की उत्पत्ति होती है वह एक नैतिक अवयवी है जिसका अपना स्वतंत्र संकल्प होता है। यह सामान्य संकल्प जो सदैव समष्टि और व्यष्टि दोनों की रक्षा और कल्याण में प्रवृत्त रहता है, समाज में विधान का स्रोत तथा न्याय का मानदंड है। स्पष्ट है कि ऐसा समाज प्रसंविदा का परिणाम कदापि नहीं हो सकता, क्योंकि प्रसंविदा की पूर्ण मान्यता व्यक्ति की नैतिक तथा तार्किक प्राथमिकता है, न कि समाज की।
रूसो सामान्य संकल्प (जनरल विल) और सबके संकल्प (विल ऑव ऑल) में अंतर बताता है। सबका संकल्प विशेष संकल्पों (पर्टिकुलर विल्स) का योग मात्र है जो व्यक्तिगत हितों के ही स्तर पर रह जाता है। सामान्य संकल्प सदैव स्वार्थरहित तथा सामान्य हित के लिए होता है। कभी कभी रूसो बहुमत को ही सामान्य संकल्प कह देता है। वह यह भी कहता है कि परस्पर विरोधी विचारों के टकराने से जो अवशेष रहता है वही सामान्य संकल्प है। कितु ये बातें उसकी मूल धारणा के विरुद्ध हैं।
सामाजिक प्रसंविदा का सिद्धांत स्वतंत्रता का विरोधाभास उत्पन्न करता है। रूसो के अनुसार सामान्य संकल्प स्थायी अविभाज्य तथा अदेय है। वह नित्य सत्य है। व्यक्ति का हित उसी से संनिहित है। चूंकि मनुष्य को अपने हित के विरुद्ध कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं हो सकती, इसलिए जो व्यक्ति सामान्य संकल्प का विरोध करता है वह वास्तव में आत्मद्रोही है। सामान्य संकल्प का मूर्तरूप होने के नाते राज्य उसे सच्चे अर्थ में "स्वतंत्र' होने के लिए बाध्य कर सकता है। दंड भी स्वतंत्रता का ही रूप है। इस प्रकार यह सिद्धांत स्वतंत्रता के नाम पर अधिनायकवाद का पोषक बन जाता है। रूसो स्वयं अधिनायकवाद का समर्थक है, यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि वह कहता है कि संप्रभु समाज की मान्य प्रथाओं का उल्लंघन नहीं कर सकता। सामाजिक हित के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता आवश्यक है।
राज्य के लिए रूसो विधायकों (लेजिस्लेटर्स) को आवश्यक बताता है। उसकी आवश्यकता इसलिए पड़ती है कि यद्यपि जनता सर्वदा लोककल्याण चाहती है तथापि उसको समझने में वह सदैव समर्थ नहीं होती। विधायक या व्यवस्थापक उचित परामर्श देकर उसका पथप्रदर्शन करता है।
रूसो संसदीय प्रतिनिधित्व को सामान्य संकल्प के प्रतिकूल बताता है। वह प्रत्यक्ष जनतंत्र के पक्ष में है जो केवल उसकी जन्मभूमि जिनीवा जैसे छोटे राज्य में ही संभव है। राष्ट्रसंघ की संभावना मानते हुए भी रूसो राष्ट्रराज्य को ही विशेष महत्व देता है। जब तक सत्ता जनता के हाथ में है, सरकार का स्वरूप गौण है। सरकार केवल जनता के हित का साधन है। अत: उसे किसी भी समय बदला जा सकता है। गायर्के (Gierke) ने इसे "नित्यक्रांति (permanent revolution) का सिद्धांत कहा है। रूसो सरकार के दो अंशों की चर्चा करता है : व्यवस्थापिका तथा कार्यकारिणी। व्यवस्थापिका को वह श्रेष्ठ बताता है, क्योंकि सामान्य संकल्प उसी के द्वारा व्यक्त होता है। राजनीतिक दल सामान्य संकल्प की अभिव्यक्ति में बाधक होते हैं। अत: रूसो उनके विरुद्ध है। एक समिति अर्थ में धर्म को वह राज्य के लिए उपयोगी बताता है। समाज की सुव्यवस्था के लिए राज्य को धर्म के कुछ सिसद्धांतों को निर्दिष्ट कर देना चाहिए और जनता को उन्हें मानने के लिए बाध्य करना चाहिए। रूसो लोकतन्त्र का समत्रक था।
बुद्धिवादी व्यक्तिवाद एवं प्राकृतिक विधान रूसो में कहाँ तक विद्यमान है, यह मतभेद का विषय है। किंतु इसमें संदेह नहीं कि उसने इन सिद्धांतों का अतिक्रमण किया और आधुनिक राजदर्शन में यूनानी दृष्टिकोण को पुन: प्रतिष्ठित किया जिसके अनुसार राज्य की सामूहिक चेतना ही व्यक्ति की नैतिकता और स्वतंत्रता का स्रोत है। जैसा अरस्तू ने कहा था, राज्य के बाहर रहनेवाला व्यक्ति या तो पशु है या देव। इसीलिए रूसो को प्रसंविदावादी विचारकों में अंतिम न कहकर आधुनिक प्रत्ययवादियों में प्रथम कहा जाता है। कांट ने उसे आचारशास्त्र का न्यूटन कहा है। हीगेल तथा उसके आंग्ल अनुयायियों (ग्रीव, बोसांके आदि) पर उसका प्रभाव स्पष्ट है। आधुनिक जनतंत्र तथा राष्ट्रवाद को उससे विशेष प्रेरणा मिली है।
इन्हें भी देखें
- लोकतंत्र
- उद्दात विचारकों की सूची (List of liberal thinkers)
- समाजवाद
मुख्य कार्य
- Dissertation sur la musique moderne 1736
- Discourse on the Arts and Sciences (Discours sur les sciences et les arts), 1750
- Narcissus, or The Self-Admirer: A Comedy, 1752
- Le Devin du Village: an opera, 1752, scoreपीडीऍफ (21.7 MiB)
- Discourse on the Origin and Basis of Inequality Among Men (Discours sur l'origine et les fondements de l'inégalité parmi les hommes), 1754
- Discourse on Political Economy, 1755
- Letter to M. D'Alembert on Spectacles, 1758 (Lettre à d'Alembert sur les spectacles)
- Julie, or the New Heloise (Julie, ou la nouvelle Héloïse), 1761
- Émile: or, on Education (Émile ou de l'éducation), 1762
- The Creed of a Savoyard Priest, 1762 (in Émile)
- The Social Contract, or Principles of Political Right (Du contrat social), 1762
- Four Letters to M. de Malesherbes, 1762
- Pygmalion: a Lyric Scene, 1762
- Letters Written from the Mountain, 1764 (Lettres de la montagne)
- Confessions of Jean-Jacques Rousseau (Les Confessions), 1770, published 1782
- Constitutional Project for Corsica, 1772
- Considerations on the Government of Poland, 1772
- Essay on the origin of language, published 1781 (Essai sur l'origine des langues)
- Reveries of a Solitary Walker, incomplete, published 1782 (Rêveries du promeneur solitaire)
- Dialogues: Rousseau Judge of Jean-Jacques, published 1782
अंग्रेजी संस्करण
- Basic Political Writings, trans. Donald A. Cress. Indianapolis: Hackett Publishing, 1987.
- Collected Writings, ed. Roger D. Masters and Christopher Kelly, Dartmouth: University Press of New England, 1990-2005, 11 vols. (Does not as yet include Émile.)
- The Confessions, trans. Angela Scholar. Oxford: Oxford University Press, 2000.
- Emile, or On Education, trans. with an introd. by Allan Bloom, New York: Basic Books, 1979.
- "On the Origin of Language," trans. John H. Moran. In On the Origin of Language: Two Essays. Chicago: University of Chicago Press, 1986.
- Reveries of a Solitary Walker, trans. Peter France. London: Penguin Books, 1980.
- 'The Discourses' and Other Early Political Writings, trans. Victor Gourevitch. Cambridge: Cambridge University Press, 1997.
- 'The Social Contract' and Other Later Political Writings, trans. Victor Gourevitch. Cambridge: Cambridge University Press, 1997.
- 'The Social Contract, trans. Maurice Cranston. Penguin: Penguin Classics Various Editions, 1968-2007.
जालोप्लब्ध पुस्तकें
- Emile Archived 2008-12-22 at the Wayback Machine French text and English translation (Grace G. Roosevelt's revision and correction of Barbara Foxley's Everyman translation, at Columbia)
- Mondo Politico Library's presentation of Jean-Jacques Rousseau's book, The Social Contract (G.D.H. Cole translation; full text)
- 'Elementary Letters on Botany', 1771-3पीडीऍफ (4.23 MiB) English translation
- A Discourse on the Moral Effects of the Arts and Sciences English translation
- Narcissus, or The Self-Admirer: A Comedy Archived 2004-08-14 at the Wayback Machine English translation
- Discourse on the Origin and Basis of Inequality Among Men English translation
- Discourse on Political Economy English translation
- The Creed of a Savoyard Priest Archived 2007-03-06 at the Wayback Machine English translation
- The Social Contract, Or Principles of Political Right English translation
- Confessions of Jean-Jacques Rousseau English translation, as published by Project Gutenberg, 2004 [EBook #3913]
- Constitutional Project for Corsica English translation
- Considerations on the Government of Poland English translation
- Project Concerning New Symbols for Music Archived 2008-07-23 at the Wayback Machine French text and English translation
- प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग पर Jean-Jacques Rousseau की रचनाएँ
बाहरी कड़ियाँ
- जीन-जैकुइस रूसो (आखरमाला)
- Rousseau Association/Association Rousseau Archived 2008-07-12 at the Wayback Machine, a bilingual association (English and French) devoted to the study of Rousseau's life and works
- The European Enlightenment: Jean-Jacques Rousseau Archived 2005-08-29 at the Wayback Machine
- Jean-Jacques Rousseau, from Encyclopedia Britannica, latest edition full article.
- Jean-Jacques Rousseau page at Internet Encyclopedia of Philosophy
- Jean-Jacques Rousseau Bibliography Archived 2008-05-05 at the Wayback Machine