Продолжая использовать сайт, вы даете свое согласие на работу с этими файлами.
मासिक धर्म
Kk१० से १३ साल की आयु (puberty) की लड़की के अण्डाशय हर महीने एक विकसित डिम्ब (अण्डा)(ovary) उत्पन्न करना शुरू कर देते हैं। वह अण्डा अण्डवाहिका नली (फैलोपियन ट्यूब) के द्वारा नीचे जाता है जो कि अंडाशय को गर्भाशय से जोड़ती है। जब अण्डा गर्भाशय में पहुंचता है, उसका अस्तर रक्त और तरल पदार्थ से गाढ़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि यदि अण्डा उर्वरित हो जाए, तो वह बढ़ सके और शिशु के जन्म के लिए उसके स्तर में विकसित हो सके। यदि उस डिम्ब का पुरूष के शुक्राणु (sperm) से सम्मिलन न हो तो वह स्राव बन जाता है जो कि योनि (vagina) से निष्कासित हो जाता है। इसी स्राव को मासिक धर्म, पीरियड्स या रजोधर्म या माहवारी (Menstrual Cycle or MC) कहते हैं।
- मासिक चक्र के चरण -
- (1) मेंस्ट्रुअल फेज
- (2) प्रोलिफरेटिव फेज
- (3) सेक्रेटरी फेज
मासिक धर्म के लक्षण ।
सामान्यतः महिलाओं में मासिक धर्म यानी पीरियड आने के चार - पांच दिन पहले कुछ लक्षण महसूस होने लगते हैं जो सामान्यतः हैं –
● थकान महसूस होना।
● हारमोंस के बदलाव के कारण नींद ना आना।
● चिड़चिड़ापन होना।
● पेट में भारीपन महसूस होना।
● पेट के निचले हिस्से में दर्द और ऐंंठन महसूस होना।
● मूड स्विंग होना ।
● चिंता, चिड़चिड़ापन का हावी होना।
● स्तनों में संवेदनशीलता का बढ़ जाना।
● कब्ज का होना।
यह कुछ सामान्य लक्षण है जो कभी न कभी सभी को महसूस होते हैं। वही किशोरावस्था में पीरियड्स के कुछ लक्षण इस प्रकार है –
● गुप्तांगों पर बाल आना ।
● आवाज में परिवर्तन होना ।
● योनि स्राव होना ।
● स्तनों में उभार आना ।
● चेहरे पर मुहांसे होना ।
● स्वभाव परिवर्तन होना जैसे चिड़चिड़ापन, गुस्सेल आदि ।
रजस्वला और रजस्वला परिचर्या
महीने-महीने में स्त्रियों के जो रजःस्राव होता है, उस समय वो स्त्रियाँ रजस्वला कहलाती हैं।
(यह एक पुरानी रुढ़ी है, इसे ऐतिहासिक महत्व से पढ़ा जाना चाहिए, महिलाएं मासिक स्राव में अपनी शारीरिक साफ-सफाई का ध्यान रखें)
रजस्वला परिचर्या
प्राचीन भारतीय संस्कृति में मासिक स्राव के समय विशेष परिचर्या का पालन किया जाता था, जिसे रजस्वला चर्या या रजस्वला परिचर्या कहते हैं। इस परिचर्या के अन्तर्गत रसोई घर मे प्रवेश न करना, अंधेरे कमरे मे रहना, चटाई पर सोना, हल्का खाना खाना, मंदिर मे नहीं जाना, पूजा-पाठ न करना, योग प्राणायाम व्यायाम न करना आदि का पालन करना पड़ता था। रजस्वला परिचर्या के अंतर्गत आयुर्वेद की अनेक संहिताओं में उपरोक्त नियमों का वर्णन है। चरक संहिता इसका सार देती हैं और कहती है कि ऋतुस्राव के आरम्भ होते ही स्त्री को तीन दिनों और तीन रातों के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, धरती पर सोना चाहिए, अनटूटे हुए पात्र से हाथों से भोजन ग्रहण करना चाहिए और अपने शरीर को किसी भी प्रकार से शुद्ध नहीं करना चाहिए I