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बाल
बाल (Hair) स्तनधारी प्राणियों के बाह्य चर्म का उद्वर्ध (outer growth) है। कीटों के शरीर पर जो तंतुमय उद्वर्ध होते हैं, उन्हें भी बाल कहते हैं। बाल कोमल से लेकर रुखड़ा, कड़ा (जैसे सूअर का) और नुकीला तक (जैसे साही का) होता है। प्रकृति ने ठंडे गर्म प्रभाव वाले क्षेत्रों में बसने बाले जीवों को बाल दिये हैं, जो जाडे की ॠतु में ठंड से रक्षा करते है और गर्मी में अधिक ताप से सिर की रक्षा करते हैं। जब शरीर से न सहने वाली गर्मी पडती है, तो शरीर से पसीना बहकर निकलता है, वह बालों के कारण गर्मी से जल्दी नहीं सूखता है, किसी कठोर वस्तु से अचानक हुए हमला से भी बाल बचाव करते है।
बाल की बनावट पक्षियों के परों या सरीसृप के शल्कों से बिल्कुल भिन्न होती है। स्तनधारियों में ह्वेल के शरीर पर सबसे कम बाल होता है। कुछ वयस्क ह्वेल के शरीर पर तो बाल बिल्कुल होता ही नहीं। मनुष्यों में सबसे घना बाल सिर पर होता है। बाल शरीर को सर्दी और गरमी से बचाता है। शरीर के अन्य भागों पर बड़े सूक्ष्म छोटे छोटे रोएँ होते है। पलकों, हथेली, तलवे तथा अँगुलियों और अँगूठों के नीचे के भाग पर बाल नहीं होते। प्रागैतिहासिक काल में मनुष्यों का शरीर झबरे बालों से ढँका रहता था। पर सभ्य मनुष्य के शरीर पर झबरे बाल नहीं होते। इसलिए वह वस्त्र धारण कर अपने शरीर की सर्दी और गरम से रक्षा करता है। मनुष्य के कुछ भागों में, हारमोन के स्राव बनने पर ही बाल उगते हैं, जैसे ओठों पर, काँखों में, लिंगोपरि भागों में इत्यादि।
मनुष्यों के लिए बालों के अनेक उपयोग हैं। घोड़ों और बैलों के बाल गद्दों में भरे जाते हैं। कुछ बालों से वार्निश लेपने के बुरुश, दाँत साफ करने के बुरुश बनते हैं। छोटे-छोटे बाल सीमेंट में मिलाकर गृहनिर्माण में प्रयुक्त होते हैं। लंबे-लंबे बालों से कपड़े बुने जाते हैं। ऐसे कपड़े कोट बनाने में लाइनिंग के रूप में काम आते हैं। भेड़ों और कुछ बकरियों से ऊन प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग कंबलों और ऊनी वस्त्रों के निर्माण में होता है। ऊँटों और कुछ किस्म के खरगोशों के बाल से भी कपड़े बुने जाते हैं। कुछ पशुओं के बाल बड़े कोमल होते हैं और समूर (फर) के रूप में व्यवहृत होते हैं।
अनुक्रम
बाल की संरचना
चमड़े के बाहर बाल का जो अंश रहता है, उसे कांड (sheft) कहते हैं। कांड के तीन भाग होते हैं : सबसे बाहर रहनेवाले भाग को क्यूटिकल (cuticle) कहते हैं। क्यूटिकल के नीचे एक कड़ा अस्तर रहता है, जिसे वल्कुट (cortex) कहते हैं तथा वल्कुट के नीचे के मध्य के भाग को मध्यांश (medulla) कहते हैं। चमड़े के अंदर रहनेवाले बाल के भाग को मूल (root) कहते है। बाल के बढ़ने से मूल धीरे धीरे कांड में बदलता जाता है। भिन्न-भिन्न जंतुओं में बाल की वृद्धि भिन्न-भिन्न दर से होती है। is ke tin bhag Dikhai date h (kutikal,kortaks,mthyans)
साधारणत: कहा जा सकता है कि एक मास में बाल आधा इंच, या एक वर्ष में पाँच से छह इंच बढ़ता है। मूल एक गड्ढे में होता है, जिसे पुटक (follicle) कहते हैं। पुटक से ही बाल निकलता है। एक पुटक से एक बाल, या एक से अधिक बाल, निकल सकते हैं। पुटक नासपाती के आकार की पैपिला में बना होता है। यह पैपिला चर्म का होता है। पैपिला और पुटक के संगम पर ही बाल बनता है। पैपिला रुधिरवाहिनी से संबद्ध होता है। इसी से मूल को वे सब वस्तुएँ प्राप्त होती हैं जिनसे बाल का निर्माण और उसकी वृद्धि होती है। जब तक पैपिला और पटक नष्ट नहीं होते बाल बढ़ता रहता है। खोपड़ी के बाल दो से छह वर्षों तक जीवित रहते हैं। इसके बाद वे झड़ जाते हैं और उनके स्थान पर नए बाल जमते हैं। यह क्रम वयस्क काल तक चलता रहता है। बाल क्यों झड़ जाता है और उसके स्थान पर नया बाल क्यों नहीं उगता, इसका कारण अभी तक ठीक समझ में नहीं आया है। कुछ लोग तो खोपड़ी के रोगों के कारण गंजे हो जाते हैं।
किरणन द्वारा भी कुछ लोग बहुधा अस्थायी रूप से गंजे हो जाते हैं। अंत:स्रावी ग्रंथियों के स्राव की कमी, वंशागत कारणों तथा जीर्णन से भी बाल झड़ जाते हैं। अपौष्टिक आहार के अभाव में बाल शुष्क और द्युतिहीन (dull) होकर कुछ झड़ सकते हैं, पर सामान्य गंजेपन का यह कारण नहीं है।
मनुष्यों में बाल का रंग और बनावट
वर्णकों के कारण बाल काला, भूरा, या लाल हो सकता है। यह वर्णक वल्कुट की कोशिकाओं में निक्षिप्त होता है। बाल क्यों सफेद हो जाता है, इसका कारण ज्ञात नहीं है। यह संभव है कि उम्र के बढ़ने, रुग्णता, चिंता, शोक, आघात और कुछ विटामिनों की कमी से ऐसा होता हो। डाक्टरों का मत है बाल का सफेद होना वंशागत होता है।
बाल प्रधानत: निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं :
- आदिवासियों (ऑस्ट्रेलिया और भारत के आदिवासी अपवाद हैं) और हबाशियों के बाल छोटे-छोटे, कुंचित और घुँघराले होते हैं। इन्हें ऊनी बालवाले भी कहते हैं। इन बालों के अनुप्रस्थ परिच्छेद दीर्घवृत्तीय, या वृक्क के आकार के होते हैं। इन बालों का रंग सदा ही काला स्याह होता है। ऐसे बाल दो प्रकार के होते हैं। मेलानीशियाई और अधिकांश हबशियों के बाल अपेक्षया लंबे और उनके घूँघर बड़े होते हैं। कुछ आदिवासियों और हबशियों के बाल छोटे और उनके घूँघर छोटे होते हैं।
- पीत जातियों (चीनियों, मंगोलों) और अमरीकी इंडियनों के बाल सीधे, लंबे, अकुंचित और रुखड़े, होते हैं। इनके बालों के अनुप्रस्थ परिच्छेद गोलाकार होते हैं और उनके मध्यांश या मज्जा का विभेद सरलता से किया जा सकता है। इन बालों का रंग भी बिना अपवाद के काला होता है।
- यूरोपवालों के बाल लहरदार, घुँघराले, चिकने और रेशम से मुलायम होते हैं। बाल का अनुप्रस्थ परिच्छेद अंडाभ होता है। इनमें मध्यांश नलाकार होता है। इनका रंग काला, भूरा, लाल, अथवा सन के रेशे सा होता है। भारतीयों के बालों के रंग भी इसी के अंतर्गत आते हैं।
- कुछ लोगों के बाल घुँघराले, हबशियों के बालों से मिलते जुलते हैं इन्हें अंग्रेजी में फ्रिजी (frizzy) बालवाले कहते हैं। ऐसे बाल ऑस्ट्रेलियन, आदिवासी न्यूबियन और मुलाट्टो (mulatto) लोगों के होते हैं।
उत्तर यूरोपवालों के बालों के रंग हलके होते हैं और दक्षिण यूरोपवालों के गाढ़े। साधारणतया सीधा बाल अधिक लंबा होता है और ऊनवाला बाल सबसे कम लंबा होता है। लहरदार बालों का स्थान मध्यम है। ऑस्ट्रेलियन और टैसमैनियनों के शरीर पर सबसे अधिक बाल होते हैं। पीत जातियों के शरीर पर सबसे कम बाल होते हैं। कुछ पीत जाति के लोगों की तो दाढ़ी कदाचित् ही होती है।
बालों की सुंदरता बहुत कुछ व्यक्ति के स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। शिरोवल्क (scalp) की स्वच्छता रुधिर परिसंचारण पर निर्भर करती है। यदि रुधिर परिसंचारण में कोई बाधा पहुँचती है तो बालों को पोषण नहीं मिलता। इससे बाल कमज़ोर और आभाहीन हो जाते हैं। स्वस्थ रहन सहन, बाह्य कसरत, उपयुक्त आहार तथा मानसिक सुखशांति का बालों के सौंदर्य और स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। शिरोवल्क को प्रतिदिन कम से कम एक बार थपथपाकर मालिश करना अच्छा है। सिर में कंधी करने, या बुरुश से झाड़ने से भी सिर की मालिश हो जाती है। इससे शिरोवल्क में रुधिर परिसंचारण होने से बाल मुलायम और चमकदार हो जाते हैं।
बालों का, विशेषत: महिलाओं के बालों का, सजाना एक कला है। कुछ जातियाँ इस कला में बड़ी निपुण हैं। सब देशों की महिलाएँ अपने अपने ढंग से अपने बालों को सजाती हैं।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- Anatomie und Physiologie: Haare (बेसिक फिजियोलॉजी)
- Discussion about shaving and cultures
- Schéma représentant une coupe de poil (बाल कूप)
- How to measure the diameter of your own hair using a laser pointer
- Instant insight outlining the chemistry of hair from the Royal Society of Chemistry
- Aufbau des menschlichen Haares (संरचना)
- आदिवासियों (ऑस्ट्रेलिया और भारत के आदिवासी अपवाद हैं) और हबाशियों के बाल छोटे-छोटे, कुंचित और घुँघराले होते हैं। इन्हें ऊनी बालवाले भी कहते हैं। इन बालों के अनुप्रस्थ परिच्छेद दीर्घवृत्तीय, या वृक्क के आकार के होते हैं। इन बालों का रंग सदा ही काला स्याह होता है। ऐसे बाल दो प्रकार के होते हैं। मेलानीशियाई और अधिकांश हबशियों के बाल अपेक्षया लंबे और उनके घूँघर बड़े होते हैं। कुछ आदिवासियों और हबशियों के बाल छोटे और उनके घूँघर छोटे होते हैं।
- पीत जातियों (चीनियों, मंगोलों) और अमरीकी इंडियनों के बाल सीधे, लंबे, अकुंचित और रुखड़े, होते हैं। इनके बालों के अनुप्रस्थ परिच्छेद गोलाकार होते हैं और उनके मध्यांश या मज्जा का विभेद सरलता से किया जा सकता है। इन बालों का रंग भी बिना अपवाद के काला होता है।
- यूरोपवालों के बाल लहरदार, घुँघराले, चिकने और रेशम से मुलायम होते हैं। बाल का अनुप्रस्थ परिच्छेद अंडाभ होता है। इनमें मध्यांश नलाकार होता है। इनका रंग काला, भूरा, लाल, अथवा सन के रेशे सा होता है। भारतीयों के बालों के रंग भी इसी के अंतर्गत आते हैं।
- कुछ लोगों के बाल घुँघराले, हबशियों के बालों से मिलते जुलते हैं इन्हें अंग्रेजी में फ्रिजी (frizzy) बालवाले कहते हैं। ऐसे बाल ऑस्ट्रेलियन, आदिवासी न्यूबियन और मुलाट्टो (mulatto) लोगों के होते हैं।