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प्रदाहक आन्त्र रोग
Inflammatory bowel disease वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
Micrograph showing inflammation of the large bowel in a case of inflammatory bowel disease. Colonic biopsy. H&E stain. | |
डिज़ीज़-डीबी | 31127 |
ईमेडिसिन | med/1169 emerg/106 oph/520 |
एम.ईएसएच | D015212 |
चिकित्सा शास्त्र में, प्रदाहक आन्त्र रोग (आईबीडी (IBD)) बृहदान्त्र और छोटी आंत की प्रदाहक दशाओं का एक समूह है। आईबीडी (IBD) के प्रमुख प्रकार हैं क्रोहन रोग और व्रणमय बृहदांत्रशोथ.
अनुक्रम
रूप
आईबीडी (IBD) के प्रमुख रूप हैं क्रोहन रोग और व्रणमय बृहदांत्रशोथ.
गणना के लिए बहुत कम मामलों वाले आईबीडी (IBD) के रूप, जो हमेशा विशिष्ट आईबीडी (IBD) के रूप में वर्गीकृत नहीं होते, ये हैं:
- कोलेजनउत्पादी बृहदांत्रशोथ
- लसीकाकोशिकीय बृहदांत्रशोथ
- स्थानिक अरक्तता संबंधी बृहदांत्रशोथ
- विपथन बृहदांत्रशोथ
- बेचेट का रोग
- अनिश्चित बृहदांत्रशोथ
क्रोहन रोग और यूसी (UC) में मुख्य अंतर स्थान और प्रदाहक परिवर्तनों की प्रकृति है। क्रोहन रोग जठरान्त्रपरक मार्ग के किसी भी भाग को प्रभावित कर सकता है, मुख से गुदा तक (घावों को छोड़ें), हालांकि अधिकतर मामले सीमांत शेषान्त्र से आरंभ होते हैं। इसके विपरीत, व्रणमय बृहदांत्रशोथ बृहदान्त्र और मलाशय तक सामित रहता है।साँचा:Pathophysiology in CD vs. UC अति सूक्ष्म रूपमें व्रणमय बृहदांत्रशोथ श्लेष्मकला (आंत के उपकलापरक अस्तर) तक सामित रहता है, जबकि क्रोहन रोग पूरी आंत की दीवार को प्रभावित करता है।
अंत में, क्रोहन रोग और व्रणमय बृहदांत्रशोथ विभिन्न अनुपातों में बहिरान्त्रिक अभिव्यक्तियां (जैसे जिगर की समस्याएं, गठिया, त्वचा पर अभिव्यक्तियां और नेत्र समस्याएं) प्रस्तुत करते हैं।
शायद ही कभी, प्रस्तुति में स्वभावगत विलक्षणता के कारण न तो क्रोहन रोग और न ही व्रणमय बृहदांत्रशोथ का निश्चित निदान हो पाता है। इस स्थिति में, अनिश्चित बृहदांत्रशोथ का निदान किया जा सकता है। हालांकि यह मान्यता प्राप्त परिभाषा है, सभी केन्द्र इसे नहीं मानते.
लक्षण और निदान
हालांकि बहुत अलग रोग हैं, दोनों निम्नलिखित में से कोई भी लक्षण प्रस्तुत कर सकते हैं: पेट दर्द, उल्टी, दस्त, गुदा से रक्तस्राव, वजन घटना और विभिन्न संबंधित शिकायतें या गठिया, कोथमय त्वक्पूयता और प्राथमिक काठिन्यकर पित्तवाहिनीशोथ जैसे रोग. आम तौर पर इनका निदान विकृतिजन्य घावों की जीवोति-जांच के साथ बृहदान्त्रदर्शन के द्वारा किया जाता है। साँचा:Findings in CD vs. UC
उपचार
साँचा:Treatment in CD vs. UC प्रदाहक आन्त्र रोग का इष्टतम उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि इसका रूप क्या है। उदाहरण के लिए, मेसालजीन क्रोहन रोग की तुलना में व्रणमय बृहदांत्रशोथ में अधिक उपयोगी है। आम तौर पर, गंभीरता के स्तर के आधार पर, आईबीडी (IBD) में लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए प्रतिरक्षादमन की आवश्यकता हो सकती है, जैसे प्रेडनीसोन, टीएनएफ (TNF) निरोध, एजाथायोप्रीन (इम्यूरान), मीथोट्रेक्सेट या 6-मर्केप्टोप्यूरीन. अधिक सामान्यतः, आईबीडी (IBD) के उपचार में मेसालजीन के रूप की आवश्यकता होती है। अक्सर रोग के फैलने पर नियंत्रण के लिए स्टेरॉयड का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक समय रखरखाव दवा के रूप में स्वीकार्य थे। अनेक वर्षों से क्रोहन रोग के मरीजों में प्रयुक्त जैविकों, जैसे टीएनएफ (TNF) निरोधकों का उपयोग हाल में वृणमय बृहदांत्रशोथ के मरीजों हुआ है। गंभीर मामलों में शल्यक्रिया की आवश्यकता हो सकती है, जैसे आंत्र उच्छेदन, आकुंचन संधान या एक अस्थाई या स्थाई बृहदान्त्रछिद्रीकरण या शेषान्त्रछिद्रीकरण. आंत्र रोगों के लिए वैकल्पिक चिकित्सा में कई रूपों में उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन इस तरह की पद्धतियों में अंतर्निहित विकृतियों के नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है ताकि लंबे समय स्टेरॉयड से संपर्क न रहे या शल्यक्रियात्मक चिकित्सा न करानी पड़े.
आमतौर पर उच्च प्रदाहरोधी प्रभाव वाली दवाएं, जैसे प्रेडनीसोन देकर उपचार आरंभ किया जाता है। एक बार प्रदाह सफलतापूर्वक नियंत्रित हो जाता है, तो रोगी को आम तौर सुधार होने के लिेए हल्की दवाओं, जैसे आसाकोल, एक मेसालमीन पर स्थानांतरित कर दिया जाता है। यदि असफल रहते हैं तो रोगी के आधार पर, एक मेसालमीन (जिसमें भी प्रदाहरोधक प्रभाव हो सकता है) के साथ उपर्युक्त प्रतिरक्षादमन दवाओं का एक संयोजन दिया या नहीं दिया जा सकता है।
ऊतकप्लाविका द्वारा विष उत्पन्न किए जाते हैं, जिनके कारण हिस्टोप्लाज्मोसिस नामक आन्त्र रोग होता है, जो एक आईबीडी (IBD) के लक्षणों वाले प्रतिरक्षकताहीन रोगी के लिए एक गंभीर चिंता का कारण है। दस्त, वजन कम होना, बुखार और पेटदर्द जैसे समान लक्षणों वाले आईबीडी (IBD) रोगों, जैसे क्रोहन रोग और व्रणमय बृहदान्त्रशोथ के उपचार के लिए फंगसरोधी दवाओं, जैसे नायस्टेटिन (एक स्थूलक्रम आन्त्र फंगसरोधी) और या तो इट्राकोनाजोल (स्पोरानोक्स) या फ्लूकोनाजोल (डिफ्लूकैन) का सुझाव दिया गया है।
विकसित हो रहे उपचार
निम्नलिखित उपचार रणनीतियों को नियमित नहीं किया गया है, लेकिन प्रदाहक आन्त्र रोगों के अधिकतर रूपों में ये आशाजनक दिखाई पड़ती हैं।
प्रारंभिक रिपोर्ट का सुझाती हैं कि "कृमिनिस्सारक चिकित्सा" आईबीडी (IBD) को न केवल रोक सकती है बल्कि ठीक (या नियंत्रित) भी कर देती हैः कशाकृमि सुइस कृमि के लगभग 2,500 डिम्बों को एक महीने में दो बार पिलाने से कई रोगियों में स्पष्ट रूप से लक्षण कम हुए हैं। यह भी अनुमान लगाया गया है कि कम उम्र में कॉकटेल के अंतर्ग्रहण से एक प्रभावी "प्रतिरक्षण" प्रक्रिया विकसित की जा सकती है।
पूर्वजैविकी और प्राजैविकी आईबीडी (IBD) के उपचार में वृद्धिजनक आशा दिखा रहे हैं और कुछ अध्ययनों में सिद्ध हुआ है कि ये नुस्खो द्वारा निर्धारित दवाओं जितनी ही प्रभावी हैं।
2005 में न्यू साइंटिस्ट ने ब्रिस्टल ब्रिस्टल विश्वविद्यालय और बाथ विश्वविद्यालय के आईबीडी (IBD) में भांग की दृश्य उपचारात्मक शक्ति पर एक संयुक्त अध्ययन को प्रकाशित किया। इस रिपोर्ट ने कि भांग से आईबीडी (IBD) के लक्षण कम होते हैं, आन्त्र अस्तर में कैनेबिनोइड अभिग्राहकों, जो जो वनस्पति-जनित रसायनों के अणुओं के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं, की उपस्थिति की संभावना का संकेत दिया है। सीबी1 (CB1) कैनेबिनोइड अभिग्राहक - जो मस्तिष्क में मौजूद होने के लिए जाने जाते हैं - आंतों के अस्तर की अंतःअस्तर कोशिकाओं में पहते हैं, यह सोचा गया है कि वे क्षतिग्रस्त होने पर आंतों के अस्तर की मरम्मत में शामिल होते हैं। दल ने आंतों के अस्तर में प्रदाह उत्पन्न करने के लिए जानबूझ कर कोशिकाओं को नष्ट किया और तब संश्लेषित कैनाबिनोइड दिया गया; परिणाम यह हुआ कि अस्तर की सूजन ठीक होने लगीः टूटी हुई कोशिकाओं की मरम्मत हो गई और दरारों को भरने के लिए वापस पास-पास आ गईं. यह माना जाता है कि एक स्वस्थ पेट में, घायल होने पर प्राकृतिक अंतर्जात कैनाबिनोइड अंतःअस्तर कोशिकाओं से मुक्त होते हैं और तब वे सीबी1 (CB1) अभिग्राहकों से बद्ध हो जाते हैं। इस प्रक्रिया से घाव भरने की एक अभिक्रिया आरंभ होती दिखाई देती है और जब लोग भांग का प्रयोग करते हैं, इसी प्रकार कौनाबिनोइड इन अभिग्राहकों से बद्ध हो जाते हैं। पिछले अध्ययनों से पता चला है कि सीबी1 (CB1) पेट में तंत्रिका कोशिकाओं पर स्थित अभिग्राहक आंतों की गतिशीलता को धीमा करके कैनाबिनोइड के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं, इस प्रकार दस्त के साथ जुड़े दर्दनाक मांसपेशी संकुचन को कम करते हैं। दल ने आईबीडी पीड़ितों की आंतों में अन्य कैनानिबोइड सीबी2 (CB2) की भी खोज की, जो स्वस्थ आोतों में मौजूद नहीं होते. ये अभिग्राहक जो भांग के रसायनों से भी प्रतिक्रिया करते हैं, एपोप्टोसिस - क्रमादेशित कोशिका मृत्यु - के साथ भी सम्बद्ध प्रतीत होते हैं और अतिक्रियाशील प्रतिरक्षा प्रणाली का दमन करने तथा अतिरिक्त कोशिकाओं का सफाया करके प्रदाह को कम करने में भी इनकी भूमिका हो सकती है।
पूर्वानुमान
जबकि दर्द, उल्टी, दस्त और अन्य सामाजिक रूप से अस्वीकार्य लक्षणों के कारण आईबीडी (IBD) जीवन की गुणवत्ता को सीमित कर सकते हैं, ये अपने आप में शायद ही कभी घातक होते हैं। विषाक्त महाबृहदान्त्र, आन्त्रवेधन तथा शल्य जटिलताओं जैसी जटिलताओं के कारण घातक परिणाम दुर्लभ हैं। साँचा:Complications of CD vs. UC
जबकि आईबीडी (IBD) के रोगियों को बृहदान्त्र-मूलान्त्र कैंसर का बढ़ा हुआ खतरा होता है, यह बृहदान्त्र-दर्शन द्वारा आम तौर पर पेट की निगरानी की दिनचर्या में सामान्य आबादी की तुलना में बहुत पहले पकड़ में आ जाता है और इसलिए रोगियों के जीवित रहने की अधिक संभावना होती है।
नया सबूत सुझाते हैं कि आईबीडी (IBD) वाले रोगियों को अंतःअस्तर दुष्क्रिया और चक्रीय धमनी रोग का उच्च जोखिम रहता है।
उपचार का लक्ष्य कमी प्राप्त करने की ओर होता है, जिसके बाद रोगी को आमतौर पर कम संभावित दुष्प्रभावों के साथ एक हल्की दवा पर स्थानांतरित कर दिया जाता है। हर संभव है कि, मूल लक्षणों का एक तीव्र पुनरुत्थान दिखाई दे सकता है, यह एक "फ्लेयर-अप' के रूप में जाना जाता है। परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि यह अपने आप दूर हो सकता है या दवा की आवश्यकता हो सकती है। दो फ्लेयर-अप के बीच का समय सप्ताहों से सालों के बीच कहीं भी हो सकता है और मरीजों के बीच बेतहाशा बदलता है - कुछ ने कभी भी फ्लेयर-अप अनुभव नहीं किया।
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