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पूतिरोधी

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त्वचा पर प्रतिरोधी का प्रयोग

चिकित्सा में प्रतिरोधि (Antiseptics) ऐसे द्रव्य हैं जो सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोकते, या उनका विनाश करते हैं (पूति = संतान)। यहाँ पर इनका विचार विशेष रूप से शरीर के संपर्क में आने वाले सूक्ष्म जीवों के विनाश की दृष्टि से किया गया है। प्रतिरोधी शब्द की परिभाषा कुछ अस्पष्ट ही है, क्योंकि अनेक ऐसे द्रव्य हैं जो जीवाणुनाशक होने के कारण रोगाणुनाशी (disinfectant) श्रेणी में आते हैं, पर जिन्हें प्ररितरोधी द्रव्यों के अंतर्गत भी परिगणित किया जाता है। वास्तव में ये दोनों शब्द सापेक्ष हैं। रोगाणुनाशी द्रव्य प्रतिरोधी द्रव्यों से अधिक तीव्र होते हैं और जल में तनुकृत करने पर ऐसे अधिकांश द्रव्य प्रतिरोधी जैसा कार्य करते हैं। प्रतिरोधी क्रिया मंदप्रभावी होते हुए भी अधिक देर तक बनी रहती है।

आदर्श जीवाणुनाशक द्रव्य ऐसा होना चाहिए जो शारीरिक कोशिकाओं को बिना किसी प्रकार नुकसान पहुँचाए, जीवाणुओं का विनाश या प्रतिरोध कर सके। यद्यपि ऐसा आदर्श द्रव्य अभी तक नहीं प्राप्त हो सका है तथापि चिकित्सा क्षेत्र में ऐसे द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है जो कम से कम हानि पहुँचाएँ। इन द्रव्यों का परस्पर मूल्याकंन करना कठिन है, क्योंकि इनके बहुत अधिक प्रकार हो गए हैं तथा इनको विभिन्न परिस्थितियों में कार्य करना पड़ता है। रोगाणुनाशक क्रिया निम्नालिखित बातों पर निर्भर करती है :

१. ताप, २. द्रव्य के साथ संपर्क की अवधि, ३. जीवाणु प्रकार,

४. जीवणुसंख्या, ५. संवर्धन पोष पदार्थ का स्वरूप एवं ६. अन्य कार्बनिक द्रव्यों की उपस्थिति।

इनका शक्तिप्रमापन (standardisation) रीडिल-वाकर (Rideal-Walkder) पद्धति से किया जाता है। इसमें पहले यह देखते हैं कि किसी निर्धारित समय के अंदर कम से कम कितनी फिनोल (Phenol) की मात्रा से बैसिलस टाइफोसस का २४ घंटे वाला संवर्धन नष्ट हो जाता है, फिर उस परीक्ष्य द्रव्य की कितनी मात्रा उन्हीं परिस्थितियों में वैसा ही प्रभाव दिखलाती है। इन दोनों का अनुपात फिनोल गुणांक (Phenol Coefficient) या रीडिल-वाकर गुणांक कहलाता है। इस कसौटी से प्रतिरोधी द्रव्य की उपयोगिता का ज्ञान केवल कुछ सीमा तक ही होता हे, क्योंकि शरीर के साथ संपर्क में आने पर इन द्रव्यों के प्रभाव में कुछ न कुछ परिवर्तन होता है।

क्रियाविधि (Mechanism of action)

इनमें से बहुत से द्रव्य जीवद्रव्य (protoplasm) पर विषैला प्रभाव डालते है। ये समान रूप से शारीरिक एवं जीवाणु कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं सामान्य स्वरूप की रासायनिक क्रिया ही संभवत: अनेक प्रतिरोधियों में महत्व का कार्य करती है, यथा जीवाणुगत असंयोजित अम्लवर्गीय (free acidic), या क्षारक वर्गीय (basic), प्रोटीन का उदासीनीकरण (neutralization)। ऐसे महत्वपूण्र क्रियाशील वर्गों का उदासीनकरण संभवत: जीवाणु में उपापचयज (metabolic) परिवर्तन लाकर अंतत: उनका विनाश करता है। चिकित्सा में कभी कभी सूत्र को क्षारीय होने पर अम्लीय बनाकर, या अम्लीय होने पर क्षारीय बनाकर, शोधन करते हैं। इसका आधार संभवत: उपर्युक्त सिद्धांत ही है।

ऋणयनिक प्रतिरोधी (Anionic antiseptics) - यह उच्च अणुभार वाले अम्लों के उदासीन या मंद क्षारीय लवण हैं, जैसे साबुन, एमोनियम और कैल्सियम मैंडेलेट तथा उदासीन या रंजित द्रव्य का वर्ग, जिन्हें अम्लरंजक कहा जाता है। क्षारक वर्ग के जीवाणु एवं इनके अम्लीय अयनों की अन्योन्य क्रिया द्वारा क्षीण आयनीकृत योग बनकर यह कार्य करते हैं।

धनायनिक प्रतिरोधी - ये उच्च अणुभार वाले क्षारकों के उदासीन या रंजित द्रव्य का वर्ग, जिन्हें अम्लरंजक कहा जाता है। क्षारक वर्ग के जीवाणु एवं इनके अम्लीय अयनों की अन्योन्य क्रिया द्वारा क्षीण अयनीकृत योग बनकर यह कार्य करते हैं।

धनायनिक प्रतिरोधी - ये उच्च अणुभार वाले क्षारकों के उदासीन लवण हैं, जिन्हें क्षारकीय रंजक कहा जाता है, जैसे ब्रिलियैंट ग्रीन, क्रिस्टल वायोलेट, जेंशियन वायोलेट, एक्रिडीन रंजक आदि, एवं कुछ उच्च ऐलिफैटिक ऐमाइन सेट्रिमाइड तथा पारद के कुछ ऐलिफैटिक ऐमाइन सेट्रिमाइड तथा पारद के कुछ कार्बनिक योग (फैनिल मरक्यूरिक नाइट्रेट भी इसी वर्ग का है)। अम्लवर्गीय जीवाणुओं के साथ क्षारकीय अयन अन्योन्य क्रिया द्वारा यह कार्यं करते हैं, ऐसा माना जाता है।

कुछ द्रव्य जीवाणुकोशिकाओं में प्रवेश कर कोशिकीय एंजाइमो के कार्य में बाधा डालते हैं। जीवाणुवृद्धि के लिये आवश्यक सल्फहाईड्रिल (sulfhydril) वर्ग के द्रव्यों के साथ संयोग करके पारद के योग कार्य करते हैं। इसी प्रकार सल्फा औषधियाँ भी पैराऐमिनो बेंज़ाईक अम्ल के साथ मिलकर उनको उपयोग में लाने से जीवाणुओं को वंचित करती हैं। कुछ द्रव्य जीवाणुओं के ऊपरी स्तर पर अधिशोषित (adsorbed) होकर कार्य करते हैं। प्रोटीन के असंयुक्त ऐमिनो वर्ग के साथ विशेष जटिल योग (complexes) बनाकर, फारमैल्डिहाइड का कार्य करता है।

कुछ स्पष्ट रूप से आक्सीकारक (oxidising) होते हैं, जैसे ओजोन, हाइड्रोजन परॉक्साइड एवं पोटैशियम्‌ परमैंगेनेट। इसके

अतिरिक्त कुछ शुष्कण (desication) के द्वारा कार्य करते हैं, जैसे ग्लिसरीन।

प्रतिरोधी एवं जीवाणुनाशक द्रव्यों का वर्गीकरण

यह इस प्रकार है :

स्थानिक पूतिरोधी (Topical antiseptics)

आक्सीकारक द्रव्य : हाइड्रोजन परॉक्साइड, क्लोरैमाइन, आयोडीन, आयडोफॉर्म।

अम्ल या क्षार : अकार्बनिक अम्ल तथा बेंजोइक, बोरिक, सैलिसिलिक, मैंडिलिक और क्रोमिक अम्ल।

ऐलकोहल तथा ऐल्डिहाइड : फॉरमैल्डिहाइड।

धात्वीय लवण - रजत, पारद तथा ताम्र लवण।

रंजक (Dyes) - स्कार्लेट रेड, एैक्रिफ्लेबीन, प्रोक्लेविन, जन्शियन वायोलेट, ब्रिलियंट ग्रीन, मेथिलिन ब्लू।

कोलतार जीवाणुनाशी - फीनोल, क्रीसोल, टेट्टॉल हैक्साक्लोरोफेन, क्रियोज़ोट, गायोकोल, रिसीर्सिनोल, थाइमो, पाइरोगैलोल,

पिक्रिक ऐसिड, कोलतार।

प्रक्षालक (Detergents) - साबुन, सेट्रिमाइड, जेफिरान, ट्राइलिन इत्यादि।

अन्य - ट्राइलिन इत्यादि।

अन्य - ऐलकैलॉयड, जैसे क्विनीन, नाइट्रोफ्युराज़ाइन, वाष्पशील तेल।

कच्छुनाशी (Scabicides)

गंधक, बेंजिल बेंजोंएट, रोटिनौन, टेट्रा-एथिल थिउरम्‌-मॉनो-सल्फाइड, डाइकोफेन, बोनेंट।

फफूंदनाशी (Fungicides)

कैप्रिलिक अम्ल एवं अंडेसीलेनिक अम्ल व्युत्पन्न (derivative) द्रव्य, सैलिसिलिक तथा

बेंज़ोइक अम्ल, क्राइसेरोबिन ऐंथ्रोनोल, सोडियम थायोसल्फेट, आयोडीन, प्रतिजीवी।

कीटनाशी (Insecticides)

सिंट्रोनेला तेल, नैफ्थेलीन, डामेथिलथैलेट, डी. डी. टी. गैमैक्सीन, पाईथ्रोम।

शुक्राणुनाशी (Spermaticides)

भौतिक साधन (Physical agents)

आर्द्र ताप, जैसे अतितप्त भाप, शुष्कताप, सूर्यप्रकाश, पराबैंगनी किरणें, (ultra-violet rays) नमक तथा शर्करा का सांद्र विलयन।


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