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पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी
जब जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग प्राकृतिक पर्यावरण के अध्ययन के लिए या में किया जाता है, तो उसे पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी कहते हैं। व्यावसायिक उपयोग और इस्तेमाल हेतु जैव प्रौद्योगिकी के प्रयोग को भी पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी समझा जा सकता है। पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी हेतु अंतरराष्ट्रीय सोसायटी ने पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी की व्याख्या इस प्रकार की है, "दूषित वातावरण (जमीन, हवा, पानी) को ठीक करने और पर्यावरण-अनुकूल प्रक्रियाओं (हरित विनिर्माण प्रौद्योगिकी और स्थायी विकास) के लिए जैविक तंत्रों का विकास, उपयोग तथा विनियमन".
पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी को सामान्य रूप से इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है, "वनस्पति, बैक्टीरिया, जीव-जंतु, कवक तथा शैवाल, द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा, खाद्य पदार्थ एवं पोषक तत्वों के एकीकृत चक्र रूपी तारतम्य में लाभान्वित करने वाली प्रक्रियाओं के तहत निर्माण हेतु प्रकृति का इष्टतम उपयोग, जहां प्रत्येक प्रक्रिया का अपशिष्ट पदार्थ किसी अन्य प्रक्रिया का भोजन बन जाए.
अनुक्रम
कृषि, खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन उपशमन एवं अनुकूलन और एमडीजी में महत्व
आईएएएसटीडी (IAASTD) के माध्यम से विज्ञान ने, कम पैमाने वाले कृषि पारिस्थितिक कृषि तंत्रों और प्रौद्योगिकी में विकास की अपील की है ताकि खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन उपशमन, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों, आदि की प्राप्ति हो सके। यह देखा गया है कि शून्य निस्तार युक्त कृषि उपज के रूप में पारिस्थितिक कृषि में और सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप से 15 मिलियन बायोगैस रासायनिक पाकपात्रों के कार्यान्वयन के माध्यम से, पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी में महत्व
एक ऐसे वातावरण पर विचार करें जिसमे एक विशेष प्रकार का प्रदूषण अधिकतम है। आईये विचार करते हैं कि एक स्टार्च उद्योग (जैसे कि साबुदाना उद्योग) से उपजे अपशिष्ट पदार्थों का, जो स्थानिक तालाब या झील जैसे जल कुम्भ में मिश्रित हो चुका हो। हम स्टार्च के विशालकाय संग्रह देखते हैं जो इतनी आसानी से सूक्ष्म जीवों द्वारा निचले पदार्थों में नहीं बदले जाते, कुछ एक अपवाद छोड़ कर. हम प्रदूषित स्थल से कुछ सूक्ष्म जीवों को पृथक कर उनके जीनोम जैसे कि, द्विभाजित प्रजनन अथवा उत्पत्ति जैसे किसी महत्वपूर्ण बदलाव के लिए स्कैन करते हैं। उसके बाद जीन्स में हुए बदलाव को जाना/समझा जाता है। यह इसलिए करते हैं ताकि पता लगाया जा सके कि पृथक किये हुए जीव ने, स्टार्च को निचले पदार्थों में परिवर्तित करने हेतु स्वयं को अन्य सूक्ष्म जीवों की तुलना में बेहतर स्वरूप में बदला अथवा नहीं। इस तरह परिणामी जीन्स क्लोन हो जाते हैं सूक्ष्म जीवों में, जो औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बन आर्थिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं जैसे कि दवा उद्योग, खमीर/उफान इत्यादि, के उपयोग में लाये जाते हैं।
इसी तरह की परिस्थितियों का उदाहरण दिया जा सकता है- महासागरों के जल पर तेल छलक जाने पर सफाई अनिवार्य हो जाती है, तेल कुएं, तेल स्थानांतरण में उपयोगी पाइपलाइनों आदि की तरह तेल समृद्ध वातावरण से पृथक किये गए सूक्ष्म जीवों में यह योग्यता पायी गयी कि, वे तेल को निचले पदार्थ में बदल अथवा उसे ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रयुक्त करने हेतु तब्दील कर सकते हैं। इस तरह वे तेल फैलने पर, एक उपाय के रूप में प्रयुक्त किये जा सकते हैं।
अब एक और उदाहरण दिया जा सकेगा- सूक्ष्म जीव जिन्हें कीटनाशक से प्रचुर मिट्टी से अलग किया जाता है, उनमें यह क्षमता होती है कि, वे ऊर्जा स्रोत के रूप में कीटनाशकों को उपयोग में लाये जाने लायक रूप में तब्दील कर सकते हैं और इसलिए जैविक खाद में मिलाने पर, वे कृषि के मंच पर कीटनाशक की बढ़ती विषाक्तता के स्तर को काबू में करने वाले उत्कृष्ट उपाय साबित होते हैं।
लेकिन विपरीत तर्क यह हो सकता है कि, उक्त नव पदार्पित सूक्ष्मजीव, कहीं पर्यावरण में असंतुलन न पैदा करें। वह विशिष्ट पर्यावरण, जिसमे हम नवीन खोजे गए जीव को पदार्पित करने जा रहे हैं, उसमें अस्तित्व रखने वाले जीवों के बीच के आपसी सद्भाव के स्वरूप में बदलाव हो सकता है, एवं हम लोगों का अत्यंत सावधान रहना अनिवार्य है ताकि पर्यावरण में आपसी संबंधों के अस्तित्व में दखल न हो। लाभ और नुकसान इन दोनों का विश्लेषण, पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी के एक तात्कालिक संस्करण के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा। अंततः, वह पर्यावरण ही है जिसे सुरक्षित रखने में हम प्रयासरत हैं।
इन्हें भी देखें
- कृषि जैव-प्रौद्योगिकी
- सूक्ष्मजीवी पारिस्थितिकी
- गेरबेन जे ज़िल्स्त्रा और जेरोम जे कुकोर, पर्यावरण जैव-प्रौद्योगिकी क्या है? जैव-प्रौद्योगिकी में वर्तमान जनमत 16(3):243-245, 2005
- विद्या सागर. के, पर्यावरण जैव-प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय सम्मेलन, बंगलौर 2005.
बाहरी कड़ियाँ
- इंटरनेशनल सोसायटी फॉर इनवायरमेंटल बायोटेक्नोलॉजी
- ऑरबिट असोसिएशन एक जर्मन एनजीओ है जो जैव-प्रौद्योगिकी के वैज्ञानिक और तकनीकी विकास को बढ़ावा देता है।
- इनवायरमेंटल बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्रियल प्लेटफार्म
- सेंटर फॉर इनवायरमेंटल बायोटेक्नोलॉजी, लॉरेंस बर्कले राष्ट्रीय प्रयोगशाला में स्थित.
- इनवायरमेंटल बायोटेक्नोलॉजी सीआरसी.
- राजेश कुमार, जेआरएफ-डीआरडीओ, डेप्ट ऑफ इनवायरमेंटल बायोटेक्नोलॉजी, स्कूल ऑफ इनवायरमेंटल साइंसेस, भारतीदासन यूनिवर्सिटी, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु, इंडिया.
- इनवायरमेंटल बायोटेक्नोलॉजी बाय डी.ए. वलेरो, ड्यूक यूनिवर्सिटी पर्यावरण पर जैव-प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग और असर, दोनों पर चर्चाएं