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धनुर्जानु
धनुर्जानु (Bow-leg) का वैज्ञानिक नाम 'जीनू वेरम' (Genu varum) है। इस रोग के अंतर्गत दोनों पैरों की हड्डियाँ विकृत होकर इस प्रकार टेढ़ी हो जाती हैं कि सीधे खड़े होने पर यदि उस के रोगी के दोनों टखने (ankles) पास-पास हों तो दोनों घुटनों (knees) में काफी अंतर रहता है। प्राय: इस विकार में दोनों पैर की हड्डियों में ऊर्वास्थि (फीमर, femur) और प्रजंधिका (टीबिया, tibia) बाहर की तरह मुड़ जाती हैं।
यह रोग प्राय: बच्चों में होता है। जन्म के बाद बहुधा बच्चों के पैर घुटने के पास से मुड़े (bandy legged) होते हैं। ये बच्चे जब दाइयों की गोद में पलते हैं तब गोद में उनके पैर इस प्रकार मुड़े रहते हैं कि दोनों पैरों के तलुए आमने सामने रहते हैं तथा प्रजंघिका (tibia) और उरोस्थि बाहर की ओर मुड़ी रहती है। ऐसे बच्चों के पैरों को जब फैलाकर उनकी दोनों एड़ियाँ मिलाई जाती हैं तब दोनों पैरों के घुटनों के बीच काफी अंतर मिलता है। जन्म के प्रथम वर्ष में ही, ज्यों ज्यों बच्चा बड़ा होता जाता है, इसमें परिवर्तन दिखाई देने लगता है। पैर फैलाने पर दोनों घुटने क्रमश: समीप आने लगते हैं। दोनों प्रजंघिका हड्डियाँ सीधी हो जाती हैं तथा तलुए नीचे अपनी प्राकृतिक दिशा की ओर आ जाते हैं। जिस समय ये परिवर्तन होते रहते हैं वे हड्डियाँ, जो पहले उपास्थि की बनी थीं, पूर्ण हड्डी का रूप ग्रहण कर लेती हैं। एक स्वस्थ बच्चे में, जब तक वह चलने योग्य होता है, पैर की हड्डियाँ अपनी दिशा और दृढ़ता में इस प्रकार की हो जाती हैं कि खड़े होने पर बच्चे के संपूर्ण शरीर के भार को सह सकें। कभी कभी यदि बच्चे समय के पूर्व चलने की कोशिश करते हैं अथवा बलपूर्वक चलाए जाते हैं, तो फलत: पैर कुछ टेढ़ा होने लगता है। इसी समय यदि बच्चा कमजोर या सूखा रोगग्रस्त हो, उसे पौष्टिक भोजनक खिलाया पिलाया न गया हो अथवा कुछ ऐसे रोगों से आक्रांत हो जो कमजोर करते हों, तो इस प्रकार का पैरों का टेढ़ा होना आगे तक भी बना रह सकता है।
अत: धनुर्जानु की उत्पत्ति का मुख्य कारण सूखरोग (rickets) है। इसके अतिरिक्त अस्थिकंद (condyle) पर आघात लगने से भी यह रोग हो सकता है।
सूखा रोग द्वारा उत्पन्न धनुर्जानु की चिकित्सा में उपर्युक्त व्याधि की उचित चिकित्सा करें। साथ ही बच्चे को खुली हवा में अधिक से अधिक समय तक रखें और मालिश करें। बच्चे के सामान्य स्वास्थ्य की वृद्धि का सदा प्रयत्न करें। इससे लाभ तो होता है, पर जल्दी लाभ के लिए काँख या कमर से लेकर पैर तक लकड़ी की खपची बाँधते हैं। यदि किसी अधिक अवस्थावाले व्यक्ति को चोट लगने या व्यावसायिक कारणों से धनुर्जानु हुआ हो, तो उसका एकमात्र उपचार शल्यकर्म (surgical operation) है।