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दृग्विषय
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पृथ्वी पर एक मोमबत्ती की शिखा (बाएँ) और एक सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षक वातावरण में तुलना, जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन (दाएँ) पर पाया जाता है। जलने की एक ही परिघटना देखी जाती है, किन्तु विभिन्न शिखाकार और रंग की परिघटनाएँ भी देखी जाती हैं।
दृग्विषय या परिघटना कोई वह चीज़ हैं जो स्वयं प्रकट होती हैं। भले सदैव नहीं, पर आम तौर पर दृग्विषयों को "चीजें जो दृष्टिगोचर होती हैं" या संवेदन-समर्थ जीवों के "अनुभव" समझे जाते हैं, या वे जो सैद्धान्तिक रूप से हो सकते हैं। यह शब्द इमानुएल काण्ट के द्वारा आधुनिक दार्शनिक प्रयोग में आया, जिन्होंने इसे मनस्विषय के विपरीत बताया। दृग्विषय के विपरीत, मनस्विषय अन्वेषण के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से अभिगम्य नहीं हैं। काण्ट गॉट्फ़्रीड लाइब्नित्स के दर्शन के इस भाग से बेहद प्रभावित थे, जिसमें, दृग्विषय और मनस्विषय पारस्पारिक तकनीकी शब्द थे।