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दुष्चक्र

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दुश्चक्र एक ऐसा काल्पनिक या आभासी चक्र है जिसमें एक बार घुस जाने पर बाहर निकलना सम्भव नहीं होता। इस चक्र में एक तरह का धनात्मक पुनर्भरण काम करता है जो घटनाओं एवं उनके परिणामों को इस चक्र के अन्दर बने रहने के लिए बाध्य करता है। समाज में, अर्थतंत्र, मनोविज्ञान आदि में दुश्चक्र इतस्ततः देखने को मिलता है।

अर्थशास्त्र में दुष्चक्र के कुछ उदाहरण

आर्थिक उन्नति को भी एक दुष्चक्र (virtuous circle) की तरह देखा जा सकता है। एक बार आर्थिक उन्नति शुरू हो गयी (जैसे किसी तकनीकी नवाचार के परिणामस्वरूप) तो यह और अधिक उन्नति को जन्म देती है। इसका कारण यह हो सकता है कि जब अधिक लोग नयी तकनीक से परिचित होजाते हैं तो हो सकता है की दूसरों को सीखने में और कम समय लगे। इसके अलावा अधिक मात्रा में उत्पादन के कारण भी कुछ लाभ मिल सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप लागत कम होने और दक्षता अधिक होने की सम्भावना है। किसी स्पर्धायुक्त बाजार में इसके कारण कम औसत मूल्य पर सामान बेचा जा सकता है। जब मूल्य कम होते हैं तो उपभोग अधिक होता है। इससे आउटपुट और अधिक बढ़ेगा। ...और इसी क्रम में उत्तरोतर उन्नति होती रहेगी।

किन्तु कुछ चक्रों के बाद या किसी स्तर पर जाकर कुछ नये कारक (जैसे अत्यधिक प्रदूषण, प्रौद्योगिकी का अबाधित प्रसार एवं विसरण (डिफ्यूजब)) जन्म लेते हैं जो इस चक्र में वृद्धि के विपरीत काम करते हैं जिसके कारण यह सिलसिला कमजोर पड़ जाता है।

एक दुष्चक्र (Virtuous circle)

दुष्चक्र की विशेषताएँ

दुष्चक्र की अवस्था को कारण और प्रभाव के रूप में अलग करके देखना/समझना सम्भव नहीं होता। इसमें एक ही चीज कारण भी है और प्रभाव भी। एक अन्य विचार के अनुसार, दुष्चक्र अपने को बार बार दोहराने वाली वह प्रक्रिया है जिसका कोई आदि या अन्त न हो।

दुष्चक्र के कुछ लक्षण/विशेषताएँ हैं-

  • किसी क्रिया का बार-बार दोहराया जाना
  • किसी बुराई या दुखद स्थिति का बने रहना
  • अन्त न होने वाले चक्र का बने रहना

अन्य उदाहरण

बाहरी कड़ियाँ

इन्हें भी देखें


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