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दमा

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Asthma
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Two Peak Flow Meters.jpg
Peak flow meters are used to measure the peak expiratory flowrate, important in both monitoring and diagnosing asthma.
आईसीडी-१० J45.
आईसीडी- 493
ओएमआईएम 600807
डिज़ीज़-डीबी 1006
मेडलाइन प्लस 000141
ईमेडिसिन article/806890 
एम.ईएसएच D001249

अस्थमा (दमा) (ग्रीक शब्द ἅσθμα, ásthma, "panting" से) श्वसन मार्ग का एक आम जीर्ण सूजन disease वाला रोग है जिसे चर व आवर्ती लक्षणों, प्रतिवर्ती श्वसन बाधा और श्वसनी-आकर्षसे पहचाना जाता है। आम लक्षणों में घरघराहट, खांसी, सीने में जकड़न और श्वसन में समस्याशामिल हैं।

दमा को आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन माना जाता है।इसका निदान सामान्यतया लक्षणों के प्रतिरूप, समय के साथ उपचार के प्रति प्रतिक्रिया और स्पाइरोमेट्रीपर आधारित होता है। यह चिकित्सीय रूप से लक्षणों की आवृत्ति, एक सेकेन्ड में बलपूर्वक निःश्वसन मात्रा (FEV1) और शिखर निःश्वास प्रवाह दर के आधार पर वर्गीकृत है।दमे को अटॉपिक (वाह्य) या गैर-अटॉपिक (भीतरी) की तरह भी वर्गीकृत किया जाता है जहां पर अटॉपी को टाइप 1 अतिसंवेदनशीलता प्रतिक्रियाओं के विकास की ओर पहले से अनुकूलित रूप में सन्दर्भित किया गया है।

गंभीर लक्षणों का उपचार आम तौर पर एक अंतःश्वसन वाली लघु अवधि मे काम करे वाली बीटा-2 एगोनिस्ट (जैसे कि सॉल्ब्यूटामॉल) और मौखिक कॉर्टिकोस्टरॉएड द्वारा किया जाता है। प्रत्येक गंभीर मामले में अंतःशिरा कॉर्टिकोस्टरॉएड, मैग्नीशियम सल्फेट और अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक हो सकता है। लक्षणों को एलर्जी कारकों और तकलीफ कारकों जैसे उत्प्रेरकों से बचाव करके तथा कॉर्टिकोस्टरॉएड के उपयोग से रोका जा सकता है। यदि अस्थमा लक्षण अनियंत्रित रहते हैं तो लंबी अवधि से सक्रिय हठी बीटा (LABA) या ल्यूकोट्रीन प्रतिपक्षी को श्वसन किये जाने वाले कॉर्टिकोस्टरॉएड को उपयोग किया जा सकता है। 1970 के बाद से अस्थमा के लक्षण महत्वपूर्ण रूप से बढ़ गये हैं। 2011 तक, पूरे विश्व में 235-300 मिलियन लोग इससे प्रभावित थे, जिनमें लगभग 2,50,000 मौतें शामिल हैं।

चिह्न तथा लक्षण

अस्थमा को बार बार होने वाली घरघराहट, सांस लेने में होने वाली तकलीफ, सीने में जकड़न और खांसी से पहचाना जाता है। खांसी के कारण फेफड़े से कफ़ उत्पन्न हो सकता है लेकिन इसको बाहर लाना काफी कठिन होता है। किसी दौरे से उबरने के समय यह मवाद जैसा लग सकता है जो कि श्वेत रक्त कणिकाओं के उच्च स्तर के कारण होता है जिन्हें स्नोफिल्स कहा जाता है। आमतौर पर रात में और सुबह-सुबह या व्यायाम और ठंड़ी हवा की प्रतिक्रिया के कारण लक्षण काफी खराब होते हैं। अस्थमा से पीड़ित कुछ लोगों को आमतौर पर उत्प्रेरकों की प्रतिक्रिया में शायद ही कभी लक्षणों का अनुभव हो, जबकि दूसरों में लक्षण दिखते हैं व बने रहते हैं।

संबंधित स्थितियां

अस्थमा से पीड़ित लोगों में कई सारी अन्य स्वास्थ्य स्थितियां अधिक बार होती है जिनमें:गैस्ट्रो-इसोफैजिएल रिफ्लेक्स रोग (GERD), राइनोसिन्यूसाइटिस और ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनीयाशामिल हैं। मनोवैज्ञानिक विकार भी काफी आम हैं जिसमें से चिंता विकार 16–52% लोगों में और मनोदशा विकार 14–41% लोगों में होता है। हालांकि यह अभी ज्ञात नहीं है कि अस्थमा, मनौवैज्ञानिक समस्याएं पैदा करता है या मनौवैज्ञानिक समस्याएं अस्थमा का कारण होती हैं।

कारण

जटिल तथा अपर्याप्त रूप से समझी गयी पर्यावरणीय और जीन संबंधी पारस्परिक क्रियाओं के संयोजन से अस्थमा होता है। ये कारक इसकी गंभीरता और उपचार के प्रति प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि अस्थमा की दर में में हाल में आयी वृद्धि बदलती एपिजेनिटिक (वे पैतृक कारक जो डीएनए अनुक्रम से संबंधित होने के अतिरिक्त होते हैं) तथा बदलते पर्यावरण के कारण हो रही है।

पर्यावरणीय

अस्थमा के विकास तथा विस्तार से कई पर्यावरणीय कारक जुड़े हुये हैं जिनमें एलर्जी कारक तत्व, वायु प्रदूषण तथा अन्य पर्यावरणीय रसायन शामिल हैं।गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान तथा इसके बाद किया गया धूम्रपान अस्थमा जैसे लक्षणों के गंभीर जोखिम से जुड़ा है। ट्रैफिक प्रदूषण के कारण निम्न वायु गुणवत्ता या उच्च ओज़ोन स्तर, अस्थमा के विकास तथा इसकी बढ़ी हुई गंभीरता से जुड़ा है। घर के भीतर के अस्थिर कार्बनिक यौगिकों अस्थमा के उत्प्रेरक हो सकते हैं; उदाहरण के लिये फॉर्मएल्डिहाइड अनावरण का इससे एक सकारात्मक संबंध है। साथ ही, पीवीसी में उपस्थित पेथफैलेट्स बच्चों तथा वयस्कों में होने वाले अस्थमा से संबंधित हैं इसी तरह से ऐंडोटॉक्सिन अनावरण भी इससे संबंधित है।

अस्थमा, घर के भीतर उपस्थित एलर्जी कारकों के साथ अनावरण से संबंधित है। घर के भीतर के आम एलर्जी कारकों में धूल वाले घुन, कॉकरोच, जानवरों के बालों की रूसी तथा फफूंद सामिल हैं। धूल के घुनों को कम करने के प्रयास अप्रभावी पाये गये हैं। कुछ प्रकार के वायरस जनित श्वसन संक्रमण अस्थमा के विकास के जोखिम को बढ़ा सकते हैं विशेष रूप से तब जबकि उनको बचपन मेंश्वसन सिन्सिशयल वायरस तथा राइनोवायरसके रूप में हासिल किया गया हो। हालांकि कुछ अन्य प्रकार के संक्रमण जोखिम को कम कर सकते हैं।

स्वच्छता परिकल्पना

स्वच्छता परिकल्पना एक सिद्धांत है जो पूरी दुनिया में अस्थमा की बढ़ी दर को गैर-संक्रामक बैक्टीरिया तथा वायरस से बचपन के दौरान घटे हुये अनावरण के प्रत्यक्ष तथा अनजाने परिणाम के रूप में समझाने का प्रयास करता है।धारणा यह है कि बैक्टीरिया और वायरस के प्रति अनावरण में कमी का कारण, कुछ हद तक आधुनिक समाजों में बढ़ी हुई स्वच्छता और परिवार के घटे आकार हैं।स्वच्छता परिकल्पना का समर्थन करने वाले साक्ष्यों में घरेलू व खेती संबंधी पशुओं में अस्थमा की घटी दरें शामिल हैं।

आरंभिक जीवन में एंटीबायोटिक का उपयोग अस्थमा के विकास से जुड़ा हुआ है।साथ ही, शल्यक्रिया द्वारा जन्म अस्थमा के बढ़े हुये जोखिम (लगभग 20 से 80%) से संबंधित है – यह बढ़ा हुआ जोखिम स्वस्थ बैक्टीरिया के झुंड की कमी के कारण होता है जिसे नवजात जन्म नाल के मार्ग के माध्यम से ग्रहण करेगा। अस्थमा तथा समृद्धि की दर के बीच के एक संबंध होता है।

आनुवांशिक

CD14-endotoxin interaction based on CD14 SNP C-159T
Endotoxin levels CC genotype TT genotype
High exposure Low risk High risk
Low exposure High risk Low risk

अस्थमा के लिए पारिवारिक इतिहास एक जोखिम कारक है जिसमें विभिन्न जीन शामिल किये गये हैं। यदि समान जुड़वां में से एक प्रभावित होता है तो दूसरे के प्रभावित होने की संभावना 25% तक होती है। 2005 की समाप्ति तक, 6 से अधिक पृथक जनसंख्याओं में 25 जीन्स को अस्थमा से संबंधित पाया गया है जिनमें दूसरो के साथ GSTM1, IL10,CTLA-4, SPINK5,LTC4S, IL4R और ADAM33 शामिल हैं। इन जीन्स में से अधिसंख्य प्रतिरक्षा प्रणाली या नियमन करने वाली सूजन से संबंधित हैं। अत्यधिक प्रतिरूपित अध्ययनों से समर्थित इन जीन्स की सूची में से भी मिलने वाले परिणाम सभी परीक्षित जनसंख्याओं पर एक रूप नहीं हैं। 2006 में 100 से अधिक जीन्स को एक आनुवांशिक संबंध अध्ययन से संबंधित पाया गया था; और अधिक जीन्स का मिलना जारी है।

कुछ आनुवांशिक भिन्न रूप केवल तब अस्थमा पैदा करते हैं जब उनको विशिष्ट पर्यावरणीय अनावरणों के साथ जोड़ा जाता है।CD14 क्षेत्र में सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमॉरफिज़्म तथा एंडोटॉक्सिन (एक बैक्टीरिया जनित उत्पाद) इसका एक विशिष्ट उदाहरण है। एंडोटॉक्सिन अनावरण कई पर्यावरणीय स्रोतों से हो सकता है जिसमें धूम्रपान, कुत्ते और खेत शामिल हैं। इसलिये अस्थमा का जोखिम व्यक्ति की आनुवांशिकता और एंडोटॉक्सिन अनावरण, दोनो के माध्यम से निर्धारित किया जाता है।

चिकित्सीय परिस्थितियां

एटॉपिक एसेज़्मा, एलर्जिक रिनिटिस और अस्थमा के त्रिकोण को एटॉपी कहते हैं। अस्थमा के विकास के लिए सबसे मजबूत कारक एटॉपिक रोग का इतिहास होता है जिसमें एसेज़्मा या हे बुखारपीड़ित लोगों को अस्थमा होने की अधिक दर होती है। अस्थमा स्वप्रतिरक्षी रोग कुर्ग-स्ट्रॉस सिंड्रोम तथा वैस्क्युलाइटिस से संबंधित रहा है। कुछ विशिष्ट प्रकार की पित्ती से पीड़ित लोगों में अस्थमा के लक्षण दिख सकते हैं।

मोटापे और अस्थमा होने के जोखिम के बीच एक सहसंबंध होता है आजकल ये दोनो काफी बढ़ गये हैं। इसके लिये कई कारण भूमिका निभा सकते हैं जिनमें चर्बी के एकत्र होने के कारण श्वसन क्रिया में कमीं और यह तथ्य कि एडिपोस ऊतक सूजन बढ़ाने की स्थिति पैदा करते हैं शामिल हैं।

बीटा अवरोधक दवाएं जैसे कि प्रोप्रानोलोल उन लोगों में अस्थमा को शुरु कर सकता है जो इसके प्रति अतिसंवेदनशील हैं। हालांकिहृदय संबंधी बीटा अवरोधक, हल्की या मध्यम बीमारी से पीड़ित लोगों में सुरक्षित दिखते हैं। अन्य दवाएं जो समस्याएं पैदा कर सकती हैं उनमें ASA, NSAIDs और एंजियोटेंसिन- परिवर्तक एंज़ाइम अवरोधकशामिल हैं।

तीव्रता (प्रकोपन)

कुछ लोगों को हफ्तों या महीनों स्थिर अस्थमा हो सकता है और फिर अचानक तीव्र अस्थमा की स्थिति पैदा हो सकती है। भिन्न-भिन्न लोग भिन्न कारकों पर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। अधिकतर लोगों में कई सारे उत्प्रेरकों से गंभीर तीव्रता विकसित हो सकती है।

वे घरेलू कारक जो अस्थमा की गंभीर तीव्रता को बढ़ा सकते हैं धूल, जानवर रूसी(विशेष रूप से बिल्ली और कुत्ते के बाल), कॉकरोच एलर्जी कारक और फफूंदीशामिल हैं।सुगंधि (परफ्यूम), महिलाओं व बच्चों में गंभीर दौरों के आम कारण हैं। ऊपरी श्वसनमार्ग के वायरस जनित तथा बैक्टीरिया जनित संक्रमण रोग की स्थिति को और गंभीर कर देते हैं। मानसिक तनाव लक्षणों को और गंभीर कर सकते हैं – ऐसा माना जाता है कि तनाव प्रतिरक्षा प्रणाली में हेरफेर करता है और इस प्रकार एलर्जी और परेशान करने वाले तत्वों की वायुमार्ग की फुलाव प्रतिक्रिया को बढ़ाता है।thanks

पैथोफिज़ियोलॉजी (रोग के कारण पैदा हुए क्रियात्मक परिवर्तन)

वायुमार्ग के एक ऊतक की अनुप्रस्थ काट जो धब्बेदार गुलाबी दीवार को और अंदर भरे सफेद कफ़ को दर्शा रही है
अस्थमा से पीड़ित किसी व्यक्ति में पीक जैसे निष्कर्षण, गॉबलेट सेल मेटाप्लासिया और एपिथेलियल आधार झिल्लीके मोटे होने से सूक्ष्मश्वासनलिका के लूमेन की बाधा।

अस्थमा वायुमार्ग के गंभीर फुलाव के कारण होता है जिसके परिणाम स्वरूप इसके आसपास की चिकनी मांसपेशियों में संकुचन बढ़ जाता है। दूसरे कारकों के साथ इसके कारण वायुमार्ग को सीमित करने के झटके शुरु होते हैं और इसके साथ सांस लेने में तकलीफ के लक्षणों की शुरुआत हो जाती है। संकरे होने की प्रक्रिया उपचार द्वारा या उसके बिना भी प्रतिवर्ती हो सकती है।कभी कभार वायुमार्ग अपने आप बदल जाते हैं। वायुमार्ग के आम बदलावों में स्नोफिल में बढ़ोत्तरी तथा लैमिना की आंतरिक सतह का मोटा होना शामिल है। समय बीतने के साथ वायुमार्ग की चिकनी मांसपेशियां, श्लेष्म ग्रंथियों की संख्या वृद्धि के साथ अपना आकार बढ़ा सकती हैं। अन्य प्रकार की कोशिकाओं में निम्नलिखित शामिल हैं: टी लिम्फोसाइट्स, मैक्रोफेज़ औरन्यूट्रोफिल्सप्रतिरक्षा प्रणाली के अन्य घटक भी इनमें शामिल हो सकते हैं जैसे साइटोकिन्स, केमोकिन्स, हिस्टामाइन औरल्यूकोट्रिनेज़ तथा अन्य।

निदान

जबकि अस्थमा एक जानी पहचानी परिस्थिति है, लेकिन फिर भी इसकी कोई व्यापक स्वीकृति वाली कोई परिभाषा नहीं है। इसे अस्थमा के लिये वैश्विक पहल द्वारा निम्न रूप में निर्धारित किया गया है "वायुमार्ग का एक जीर्ण फुलाव (उत्तेजक) विकार जिसमें कई कोशिकाओं तथा कोशिकीय तत्वों की भूमिका होती हैं। यह जीर्ण फुलाव (उत्तेजना) वायु मार्ग की अति-प्रतिक्रिया से संबंधित है जिसके कारण बार-बार घरघराहट, श्वसन में कमी, सीने में जकड़न और रात में या भोर में खांसी होती है। ये स्थितियां आम तौर पर फेफड़ों में व्यापक लेकिन परिवर्तनशील वायु प्रवाह बाधा से संबंधित है जो कि तत्काल या उपचार के बाद अक्सर सामान्य हो जाती हैं"।

इसका कोई सटीक परीक्षण नहीं है तथा निदान आम तौर पर लक्षणों के स्वरूप तथा समय के साथ उपचार के प्रति प्रतिक्रिया पर आधारित है। अस्थमा के निदान की शंका तब की जानी चाहिये जब, निम्नलिखित का इतिहास हो: बार-बार घरघराहट होना, खांसी या श्वसन में तकलीफ और इन लक्षण व्यायाम करने से और खराब होते हों, वायरस संक्रमण, एलर्जी या वायु प्रदूषण।स्पिरोमेट्री (फेफड़ों की श्वसन क्षमता का मापन) को निदान की पुष्टि के लिये उपयोग किया जाता है। छः साल से कम उम्र के बच्चों में निदान काफी कठिन हो जाता है क्योंकि वे स्पिरोमेट्री के लिये काफी छोटे होते हैं।

स्पिरोमेट्री (फेफड़ों की श्वसन क्षमता का मापन)

निदान तथा प्रबंधन के लिये स्पिरोमेट्री की अनुशंसा की जाती है। अस्थमा के लिये यह अकेला सर्वश्रेष्ठ परीक्षण है। यदि इस तकनीक द्वारा मापा गया FEV1, सालब्यूटामॉल जैसे ब्रोन्कोडायलेटर के दिये जाने से 12% तक बेहतर हो जाता है तो यह लक्षण का समर्थक माना जाता है। हालांकि यह उनमें सामान्य हो सकता है जिनमें हल्के अस्थमा का इतिहास हो और वह वर्तमान में प्रदर्शित न होता हो।एकल श्वसन फुलाव क्षमता द्वारा अस्थमा व COPD में अंतर करने में सहायता मिलती है। प्रत्येक एक या दो साल में स्पिरोमेट्री करना उपयुक्त होता है जिससे कि यह ज्ञात हो सके कि किसी व्यक्ति का अस्थमा कितने बेहतर तरीके से नियंत्रित हैं।

अन्य

मीथेकोलीन चैलेंज में पहले से संवेदनशील लोगों में श्वसन मार्ग संकुचन के लिये जिम्मेदार किसी तत्व की बढ़ती मात्राओं का अंतःश्वसन शामिल होता है। यदि ऋणात्मक हो तो इसका अर्थ है कि व्यक्ति को अस्थमा नहीं है; हालांकि धनात्मक होना इस रोग के लिये विशिष्ट नहीं होता है।

अन्य साक्ष्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: कम से कम दो सप्ताह तक प्रति सप्ताह तीन दिन में ≥20% का शिखर निःश्वास प्रवाह दर अंतर, सॉलब्यूटामॉल द्वारा उपचार के साथ शिखर निःश्वास प्रवाह दर में ≥20% का सुधार या किसी उत्तेजक के अनावरण के कारण शिखर प्रवाह में ≥20% की कमी। शिखर निःश्वास प्रवाह का परीक्षण स्पिरोमेट्री से अधिक चर है हालांकि नियमित निदान के लिये अनुशंसित है। यह उन लोगों के दैनिक स्व-निरीक्षण के लिये उपयोगी हो सकता है जिनको मध्यम या गंभीर रोग हो सकता है तथा नई दवा की जांच की प्रभावशीलता के लिये भी यह उपयोगी हो सकता है।यह गंभीर तीव्रताओं वाले लोगों में उपचार के मार्गदर्शन में सहायक हो सकता है।

वर्गीकरण

Clinical classification (≥ 12 years old)
Severity Symptom frequency Night time symptoms %FEV1 of predicted FEV1 Variability SABA use
Intermittent ≤2/week ≤2/month ≥80% <20% ≤2 days/week
Mild persistent >2/week 3–4/month ≥80% 20–30% >2 days/week
Moderate persistent Daily >1/week 60–80% >30% daily
Severe persistent Continuously Frequent (7×/week) <60% >30% ≥twice/day

लक्षणों की आवृत्तियों, प्रति सेकेंड बलपूर्वक निःश्वसन मात्रा (FEV1), तथा शिखर निःश्वास प्रवाह दर द्वारा अस्थमा को चिकित्सीय रूप से वर्गीकृत किया जाता है। अस्थमा को एटॉपिक (वाह्य) या गैर-अटॉपिक (आंतरिक) के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है, जो इस आधार पर निर्धारित होता है कि लक्षण एलर्जी (अटॉपिक) द्वारा उपजे हैं या नहीं (गैर-अटॉपिक)। जबकि अस्थमा को गंभीरता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है वर्तमान में इस बात की कोई स्पष्ट विधि नहीं है जो इस प्रणाली से आगे अस्थमा को विभिन्न उप समूहों में वर्गीकृत कर सके। उन उप समूहों की पहचान करने वाले तरीकों की खोज करना, जो विभिन्न प्रकार के उपचारों के साथ सही प्रतिक्रिया करें, अस्थमा शोध का वर्तमान महत्वपूर्ण लक्ष्य है।

हालांकि अस्थमा एक जीर्ण अवरोधक स्थिति है, फिर भी इसे जीर्ण प्रतिरोधी फेफड़े की बीमारी का हिस्सा नहीं माना जाता है क्योंकि यह शब्दावली विशिष्ट रूप से रोग के संयोजनों से सन्दर्भित है जो कि अपरिवर्तनीय होते हैं जैसे कि श्वासनलिकाविस्फार,जीर्ण श्वसनीशोथ और वातस्फीति। इन रोगों के विपरीत, अस्थमा में वायुमार्ग अवरोध आम तौर पर परिवर्तनीय होता है; हालांकि यदि उपचार न किया जाये तो अस्थमा के कारण फेफड़ों में होने वाला जीर्ण फुलाव अपरिवर्तनीय रूप से प्रतिरोधी हो जाता है क्योंकि वायुमार्ग उसी के अनुरूप ढ़ल जाता है।एंफीसेमा के विपरीत, अस्थमा श्वासनलियों को प्रभावित करता है न कि वायुकोष्ठिका को।

अस्थमा की तीव्रता

Severity of an acute exacerbation
Near-fatal High PaCO2 and/or requiring mechanical ventilation
Life threatening
(any one of)
Clinical signs Measurements
Altered level of consciousness Peak flow < 33%
Exhaustion Oxygen saturation < 92%
Arrhythmia PaO2 < 8 kPa
Low blood pressure "Normal" PaCO2
Cyanosis
Silent chest
Poor respiratory effort
Acute severe
(any one of)
Peak flow 33–50%
Respiratory rate ≥ 25 breaths per minute
Heart rate ≥ 110 beats per minute
Unable to complete sentences in one breath
Moderate Worsening symptoms
Peak flow 50–80% best or predicted
No features of acute severe asthma

जीर्ण अस्थमा फुलाव को आम तौर पर एक “अस्थमा दौरा” कहा जाता है। हमेशा से प्रतिष्ठित लक्षणों में श्वसन में कमी, घरघराहट और सीने में जकड़न शामिल है। जबकि ये अस्थमा के प्राथमिक लक्षण हैं, कुछ लोगों को शुरुआत में खांसी होती है और गंभीर मामलो में वायु गति इतनी अधिक बाधित हो सकती है कि कोई भी घरघराहट न सुनाई दे।

एक अस्थमा दौरे के समय दिखने वाले चिह्नों में श्वसन की सहायक मांसपेशियों का उपयोग (गले की स्टर्नोकलाइडोमास्टरॉएड और स्केलीन मांसपेशियां) शामिल हैं, पैराडॉक्सिकल नाड़ी-स्पंद (एक ऐसा नाड़ी-स्पंद जो अंतःश्वसन के समय कमज़ोर तथा निःश्वसन के समय मजबूत होता है), तथा सीने का अतिरिक्त फुलाव भी हो सकता है। ऑक्सीजन की कमी के कारण त्वचा तथा नाखूनों में नीला रंग दिख सकता है।

एक हल्के उभार में शिखर निःश्वास प्रवाह दर (PEFR) is ≥200 L/min या सर्वश्रेष्ठ भविष्यवाणी का ≥50% होता है। मध्यम उभार को 80 और 200 L/min के बीच या सर्वश्रेष्ठ भविष्यवाणी का 25% और 50% जबकि गंभीर को ≤ 80 L/min या सर्वश्रेष्ठ भविष्यवाणी का ≤25% के रूप में निर्धारित किया जाता है।

जीर्ण गंभीर अस्थमा, जिसे पहले अस्थमेटिकस स्थिति कहा जाता था, अस्थमा की एक ऐसी गंभीर दशा होती है जो ब्रोन्कोडायलेटर्स तथा कॉर्टिकोस्टरॉएड के मानक उपचारों के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। मामलों में से आधे संक्रमणों के कारण होते हैं जो एलर्जी, वायु प्रदूषण या अपर्याप्त या अनुपयुक्त दवाओं के उपयोग से पैदा होते हैं।

भंगुर अस्थमा, अस्थमा का एक ऐसा प्रकार है जिसमें बार-बार व गंभीर दौरे होते हैं। भंगुर अस्थमा का टाइप 1 एक ऐसा रोग है जिसमें गंभीर दवा उपचार के बावजूद विस्तृत शिखर प्रवाह परिवर्तनीयता होती है। भंगुर अस्थमा का टाइप 2 एक सुनियंत्रित पृष्ठभूमि अस्थमा होता है जिसमें अचानक गंभीर उभार होता है।

व्यायाम प्रेरित

व्यायाम के कारण, अस्थमा से पीड़ित तथा गैर-पीड़ित, दोनो लोगों में ब्रोन्कोकन्सट्रिक्शन पैदा हो सकता है। यह अस्थमा से पीड़ित अधिकांश लोगों में तथा गैर-पीड़ित लोगों में 20% लोगों को होता है। एथलीटों में यह कुलीन एथलीटों में यह काफी आम तौर पर होता है, जिसकी दर बॉबस्लेय रेस वालों में 3% से लेकर साइकिल धावकों में 50% तथा क्रॉस कंट्री स्कीइंग करने वाले एथलीटों में 60% तक होता है। जबकि किन्ही भी जलवायु परिस्थितियों हो सकता है फिर भी यह शुष्क व ठंडी जलवायु परिस्थितियों में अधिक आम है। अंतःश्वसन बीटा2-एगोनिस्ट, अस्थमा से गैर-पीड़ित एथलीटों के प्रदर्शन पर कोई सुधार नहीं दिखता है हालांकि मौखिक खुराक सहनशक्ति और ताकत बढ़ा सकती है।

पेशेवर

कार्यस्थल अनावरण के परिणामस्वरूप होने वाला (या बिगड़ा हुआ) अस्थमा एक आम तौर पर बताया गया पेशेवर रोग है। हालांकि बहुत से मामले इस प्रकार से न तो रिपोर्ट किये गये हैं और न ही दर्ज किये गये हैं। यह अनुमानित है कि अस्थमा के 5-25% मामलें कार्य से संबंधित हैं। कुछ सौ विभिन्न एजेन्टों को इसके सबसे आम कारणों के रूप में संलिप्त पाया गया है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: आइसोसाइनेट, अनाज या लकड़ी का बुरादा, कोलोफोनी, सोल्डरिंग फ्लक्स, लेटेक्स, जानवर औरएल्डीहाइड्स। समस्याओं के उच्चतम जोखिमों से जुड़े रोज़गार में निम्नलिखित शामिल हैं: वे जो पेंट स्प्रे करते हैं, बेकरी वाले और जो खाद्य प्रसंस्करण से जुड़े हैं, नर्सें, रासायनों के साथ काम करने वाले, जो जानवरों के साथ काम करते हैं, वेल्डिंग करने वाले, बाल लंवारने वाले तथा लकड़ी का काम करने वाले।

विभेदक निदान

बहुत सी अन्य परिस्थितियां हैं, जो अस्थमा जैसे लक्षणों को पैदा कर सकती हैं। बच्चों में, अन्य ऊपरी वायुमार्ग रोगों जैसे कि, एलर्जिक रिनीटिसतथा साइनॉसिटिस को तथा वायुमार्ग प्रतिरोध के अन्य कारणों में निम्न शामिल हैं: बाहरी तत्वों का अंतःश्वसन, ट्रैकियल स्टेनोसिस या लैरिंगोंट्रैकियोमलासिया, वैस्कुलर रिंग, बढ़े हुये लिंफनोड्स या गर्दन का मांस। वयस्कों में, COPD, संकुलन जनित हृदय विफलता, श्वसनपथ जमाव साथ ही ACE अवरोधकों के कारण दवा-प्रेरित खांसी पर ध्यान दिया जाना चाहिये। दोनो प्रकार की जनसंख्याओं में स्वर रज्जु में शिथिलता समान रूप से उपस्थित हो सकती है।

जीर्ण प्रतिरोधी फेफड़े का रोग अस्थमा के साथ मौजूद रहता है तथा जीर्ण अस्थमा की जटिलताओं के रूप में हो सकता हैं। 65 की उम्र के बाद प्रतिरोधी वायुमार्ग रोग से पीड़ित अधिकतर लोगों को अस्थमा और COPD होगा। इस सेटिंग में, COPD को बढ़े हुए वायुमार्ग, असमान्य रूप से बढ़ी हुई दीवार की मोटाई तथा श्वासनलियों में बढ़ी चिकनी मांसपेशियों द्वारा विभेदित किया जा सकता है। हालांकि COPD और अस्थमा के प्रबंधन सिद्धांत एक जैसे होने के कारण इस स्तर की जांच नहीं की जाती है: कॉर्टिकॉस्टरॉएड, लंबे समय तक काम करने वाले बीटा एगिनस्ट और धूम्रपान समाप्ति। ये लक्षणों में अस्थमा के काफी समान होता है और यह सिगरेट के धुंए के अतिरिक्त अनावरण से, अधिक उम्र, ब्रोन्कोडायलेटर देने का बाद भी लक्षणों में कम परिवर्तन तथा अटॉपी के पारिवारिक इतिहास की घटी संभावनाओं से संबंधित है।

रोकथाम

अस्थमा के विकास की रोकथाम के उपायों की प्रभावशीलता के साक्ष्य कमजोर हैं। कुछ सकारात्मक दिखते हैं जैसे: गर्भ के दौरान और प्रसव के बाद दोनो ही स्थितियों में धुंए से अनावरण सीमित करना, स्तनपान और दिन की देखभाल में बढ़त तथा बड़ा परिवार, लेकिन इनमें से कोई भी साक्ष्यों से इतना अधिक समर्थित नहीं है कि इस प्रयोजन के लिये उसकी अनुशंसा की जाये। पालतू जानवरों के साथ पहले से अनावरण उपयोगी हो सकता है। अन्य समयों पर पालतू जानवरो से अनावरण के परिणाम अधूरे हैं और केवल यह अनुशंसित है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी पालतू जानवर से एलर्जी है तो उस जानवर को घर से हटा देना चाहिये। गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान खानपान में प्रतिबंधों को प्रभावी नहीं पाया गया है इसलिये इनकी अनुशंसा नहीं की जाती है। संवेदनशील लोगों के के लिये ज्ञात यौगिकों को कार्यस्थलों से कम करना या हटाना प्रभावी हो सकता है।

प्रबंधन

हालांकि अस्थमा का कोई उपचार नहीं है लेकिन आमतौर पर लक्षणों को बेहतर किया जा सकता है। लक्षणों की अग्रसक्रिय रूप से निगरानी तथा प्रबंधन के लिये एक विशिष्ट तथा अनुकूलित योजना बनायी जानी चाहिये। इस योजना में एलर्जी के अनावरण को करना, लक्षणों की गंभीरता का आंकलन करने के लिये परीक्षण तथा दवाओं का उपयोग शामिल होना चाहिये। उपचार योजना को लिखा जाना जाना चाहिये और लक्षणों में परिवर्तन के आधार पर उपचार में समायोजन की सलाह दी जानी चाहिये।

अस्थमा के सबसे प्रभावी उपचार के लिये उत्प्रेरकों की पहचान की जानी चाहिये जैसे कि सिगरेट का धुंआ, पालतू जानवर या एस्पिरीन और उनसे अनावरण को समाप्त किया जाना चाहिये। यदि उत्प्रेरकों से बचाव अपर्याप्त हो तो दवा का उपयोग अनुशंसित है। चिकित्सीय दवाओं का चुनाव, अन्य चीज़ों के साथ रोग की गंभीरता तथा लक्षणों की आवृत्ति पर आधारित है। अस्थमा के लिये विशिष्ट दवाओं को मोटे तौर पर तीव्र क्रिया तथा दीर्घ अवधि में क्रिया करने वाली श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।

ब्रोन्कोडायलेटर्स को लक्षणों में थोड़ी ही अवधि में आराम देने के लिये अनुशंसित किया जाता है। दौरों के कभी-कभार होने की दशा में किसी अन्य दवा की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यदि रोग की हल्की नियमित उपस्थिति (सप्ताह में दो से अधिक दौरे) हो तो श्वसन द्वारा ली जाने वाली कॉर्टिकॉस्टरॉएड की हल्की खुराक या वैकल्पिक रूप से एक मौखिक ल्यूकोट्राईन एन्टागोनिस्ट या कोई मास्ट सेल स्टेबलाइजर अनुशंसित है। जिनको दैनिक दौरे पड़ते हैं उनके लिये श्वसन द्वारा ली जाने वाली कॉर्टिकॉस्टरॉएड की बेहतर खुराक का उपयोग किया जाता है। मध्यम या गंभीर तेज़ी की स्थिति में, इन उपचारों के साथ मौखिक कॉर्टिकॉस्टरॉएड जोड़ी जाती है।

जीवन शैली में संशोधन

नियंत्रण बेहतर करने तथा दौरों की रोकथाम के लिये उत्प्रेरकों से बचाव मुख्य घटक है। सबसे आम उत्प्रेरकों में एलर्जी, धुंआ (तंबाकू तथा अन्य), वायु प्रदूषण,गैर चयनात्मक बीटा ब्लॉकर्स तथा सल्फाइट वाले खाद्य शामिल हैं। धूम्रपान करना और द्वितीयक धूम्रपान(अप्रत्यक्ष धुंआ) कॉर्टिकॉस्टरॉएड जैसी दवाओं की प्रभावशीलता कम कर सकता है। धूल की घुन वाले नियंत्रण उपाय जिनमें वायु निस्यन्दन, घुनों को मारने वाले रसायन, चूषण, गद्दे के कवर तथा अन्य विधियों के अस्थमा लक्षणों पर कोई प्रभाव नहीं थे।

दवाएं

अस्थमा का उपचार करने वाली दवाओं को दो वर्गों में बांटा गया है: गंभीर लक्षणों का उपचार करने वाली तीव्र क्रिया दवाएं तथा अतिरिक्त उभार को रोकने वाली दीर्घ अवधि में क्रिया करने वाली दवाएं।

Fast–acting
नीले प्लास्टिक के धारक के ऊपर एक गोल कनस्टर
सॉलब्यूटामॉल मीटर वाला खुराक इन्हेलर, जिसे अस्थमा दौरों के उपचार में आम तौर पर उपयोग किया जाता है।
  • Short-acting beta2-adrenoceptor agonists (SABA), such as salbutamol (albuterol USAN) are the first line treatment for asthma symptoms.
  • Anticholinergic medications, such as ipratropium bromide, provide additional benefit when used in combination with SABA in those with moderate or severe symptoms. Anticholinergic bronchodilators can also be used if a person cannot tolerate a SABA.
  • Older, less selective adrenergic agonists, such as inhaledepinephrine, have similar efficacy to SABAs. They are however not recommended due to concerns regarding excessive cardiac stimulation.
Long–term control
कार्बनिक प्लास्टिक के धारक के ऊपर एक गोल कनस्टर
फ्लूटीकैसोन प्रोपियोनेट मीटर वाला खुराक इन्हेलर आम तौर पर दीर्घ-अवधि नियंत्रण के लिये उपयोग किया जाता है।
  • Corticosteroids are generally considered the most effective treatment available for long-term control. Inhaled forms are usually used except in the case of severe persistent disease, in which oral corticosteroids may be needed. It is usually recommended that inhaled formulations be used once or twice daily, depending on the severity of symptoms.
  • Long-acting beta-adrenoceptor agonists (LABA) such as salmeterol andformoterol can improve asthma control, at least in adults, when given in combination with inhaled corticosteroids. In children this benefit is uncertain. When used without steroids they increase the risk of severe side-effectsand even with corticosteroids they may slightly increase the risk.
  • Leukotriene antagonists (such as montelukast and zafirlukast) may be used in addition to inhaled corticosteroids, typically also in conjunction with LABA. Evidence is insufficient to support use in acute exacerbations. In children under five years of age, they are the preferred add-on therapy after inhaled corticosteroids.
  • Mast cell stabilizers (such as cromolyn sodium) are another non-preferred alternative to corticosteroids.
Delivery methods

दवाओं को आम तौर पर अस्थमा स्पेसर या एक शुष्क पाउडर इन्हेलर के साथ मीटर वाली खुराक इन्हेलर (MDIs) के संयोजन में दिया जाता है। स्पेसर एक प्लास्टिक का सिलेंडर होता है जो दवा को वायु के साथ मिलाता है जिससे कि यह आसानी के साथ दवा की पूरी खुराक के रूप में ली जा सके। नेब्युलाइज़र तथा स्पेसर उन लोगों के लिये समान रूप से प्रभावी होते हैं जो हल्के से मध्यम लक्षणों से प्रभावित होते हैं लेकिन गंभीर लक्षणों वाली स्थितियों के लिये किसी प्रकार के अंतर को निर्धारित करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।

Adverse effects

श्वसन द्वारा ली जाने वाली कॉर्टिकॉस्टरॉएड के दीर्घ अवधि तक पारम्परिक खुराकों के साथ उपयोग में विपरीत प्रभावों के हल्के जोखिमों की उपस्थिति बनी रहती है। जोखिमों में मोतियाबिंद का विकास होना और कद में हल्की कमी शामिल है।

अन्य

जब अस्थमा सामान्य उपचारों के प्रति प्रतिक्रियात्मक नहीं होता है तो आकस्मिक प्रबंधन तथा अप्रत्याशित उभार की रोकथाम दोनो के लिये अन्य विकल्प उपलब्ध हैं। आकस्मिक प्रबंधन के लिये अन्य विकल्पों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • यदि संतृप्तता 92% से कम हो जाये तो अल्प-ऑक्सीयता की स्थिति को कम करने के लिये ऑक्सीजन
  • मैग्नीशियम सल्फेट का अन्य उपचारों के साथ अंतःशिरा उपचार, गंभीर अस्थमा दौरों के समय ब्रोन्कोडायलेटिंग प्रभाव दिखाता है।
  • हेलियोक्स, जो कि हीलियम और ऑक्सीजन का एक मिश्रण है जिसे अप्रतिक्रियात्मक मामलों में उपयोग किया जा सकता है।
  • अंतःशिरीय साल्ब्यूटामॉल उपलब्ध साक्ष्यों से समर्थित नहीं है और इस कारण से केवल बेहद गंभीर मामलों में उपयोग किया जाता है।
  • मेथिलज़ेन्थिन्ज़ (जैसे कि थियोफाइलिन) पहले काफी प्रयोग की जाती थीं लेकिन श्वसन द्वारा लिये जाने वाले बीटा-एगोनिस्ट के प्रभावों पर महत्वपूर्ण असर नहीं डालती है। गंभीर स्थितियों में इनका उपयोग विवादास्पद है।
  • विघटनकारी चेतनाशून्य करने वाली केटामाइन सैद्धांतिक रूप से तब उपयोगी है यदि वे लोग जो श्वसन अवरोध (दौरा) की स्थिति में पहुंच गये हों और उनको इन्ट्यूबेशन तथा यांत्रिकी श्वसन की आवश्यकता पड़े; हालांकि, इसके समर्थन के लिये कोई चिकित्सीय परीक्षणों के साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।

वे लोग जिनमें श्वसन के माध्यम से दिये जाने वाले कॉर्टिकॉस्टरॉएड और LABAs से अस्थमा नियंत्रित नहीं होता है ब्रॉन्किएल थर्मोप्लास्टी एक विकल्प हो सकता है। इसमें ब्रोनेकोस्कोपी श्रृंखलाओं के दौरान, वायुमार्ग दीवार पर नियंत्रित तापीय ऊर्जा प्रवाहित की जाती है। जबकि यह पहले कुछ महीनों में तीव्रता की आवृत्ति को बढ़ा सकता है लेकिन ऐसा लगता है कि बाद की दर में कमी लाता है। एक साल से अधिक के प्रभाव अज्ञात हैं।

वैकल्पिक चिकित्सा

अस्थमा से पीड़ित बहुत से लोग जैसे जीर्ण विकार वाले लोग वैकल्पिक उपचारों का उपयोग करते हैं; सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि लगभग 50% लोग गैरपारम्परिक उपचार का उपयोग करते हैं। ऐसे अधिकांश उपचारों की प्रभावशीलता के समर्थन में बेहद कम आंकड़े उपलब्ध हैं। विटामिन सी के उपयोग का समर्थन करने वाले साक्ष्य भी अपर्याप्त हैं।एक्यूपंचर को उपचार के लिये अनुशंसित नहीं किया जाता है क्योंकि इसके उपयोग के समर्थन में अपर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं।एयर आयनाइज़र भी ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करते कि वे अस्थमा के लक्षणों को बेहतर करते हैं या फेफड़ों के संक्रमण को लाभ पहुंचाते हैं; यह धनात्मक और ऋणात्मक आयन जेनरेटर्स पर भी समान रूप से लागू होता है।

"मैनुअल उपचार" द्वारा अस्थमा के उपचार के समर्थन में अपर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं, जिनमें ऑस्टियोपैथिक, कायरोप्रैक्टिक, फिज़ियोथेराप्यूटिक और श्वसनीय थेराप्यूटिक युक्तियां शामिल हैं। उच्च श्वसन दर का नियंत्रण करने के लिये ब्यूटिको श्वसन तकनीक दवा के उपयोग में कमी ला सकता है हालांकि इसका फेफड़ों के प्रकार्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार एक विशेषज्ञ पैनल को यह लगा कि इसके उपयोग के लिये पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।

रोग के सुधार का पूर्वानुमान

विश्व का एक मानचित्र जिसमें यूरोप पीले रंग से प्रदर्शित है, अधिकांश उत्तरी व दक्षिणी अमरीका नारंगी रंग से प्रदर्शित है तथा दक्षिणी अफ्रीका गहरे लाल रंग से
2004 में प्रति 1,00,000 निवासियों में अस्थमा के लिये असमर्थता समायोजित जीवन के वर्ष
██ no data ██ <100 ██ 100–150 ██ 150–200 ██ 200–250 ██ 250–300 ██ 300–350
██ 350–400 ██ 400–450 ██ 450–500 ██ 500–550 ██ 550–600 ██ >600

विशेष रूप से हल्के रोग से पीड़ित बच्चों में अस्थमा के रोग का पूर्वानुमान सामान्य रूप से अच्छा रहता है। बेहतर पहचान तथा देखभाल में सुधार के कारण पिछले कुछ दशकों में मृत्यु दर में कमी आयी है। वैश्विक रूप से 2004 में 19.4  मिलियन लोगों में इसने मध्यम या गंभीर असमर्थता पैदा की थी (इसमें से 16  मिलियन निम्न व मध्यम आय वाले देशों से थे)। बचपन में पता चले अस्थमा के आधे मामले एक दशक के बाद निदान नहीं जारी रहेगा। वायुमार्ग की संरचना में पुनर्रचना होते देखा गया है लेकिन यह अज्ञात है कि ये लाभदायक परिवर्तनों का प्रतिनिधित्व करते हैं या हानिकारक परिवर्तनों का।कॉर्टिकॉस्टरॉएड के साथ आरंभिक उपचार, फेफड़ों की गतिविधि में रोकथाम या सुधार करता दिखता है।

महामारी विज्ञान

विश्व का एक मानचित्र जिसमें यूरोप, उत्तरी अमरीका, ऑस्ट्रेलिया का अधिकांश हिस्सा लाल रंग में है अधिकांश एशिया पीला तथा अधिकांश अफ्रीका ग्रे रंग में रंगा है
2004 में विश्व के विभिन्न देशों में अस्थमा की दर।
██ no data ██ <1% ██ 1-2% ██ 2-3% ██ 3-4% ██ 4-5% ██ 5-6%
██ 6-7% ██ 7-8% ██ 8-10% ██ 10-12.5% ██ 12.5–15% ██ >15%

2011 में पूरी दुनिया में 235-300 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित थे, और लगभग 2,50,000 लोग हर साल इस रोग से मरते हैं। देशों के बीच इसकी दर इसकी उपस्थिति के आधार पर 1 से लेकर 18% के बीच है। यह विकासशील देशों से अधिक विकसित देशों में आम है। इस प्रकार से इसकी दर एशिया, पूर्वी यूरोप तथा अफ्रीका में कम दिखती है। विकसित देशों में यह उनमें अधिक आम है जो आर्थिक रूप से वंचित हैं जबकि इसके विपरीत विकासशील देशों में यह समृद्ध लोगों में आम है। इन भिन्नताओं का कारण अच्छी तरह से ज्ञात नहीं है। निम्न या मध्यम आय देशों में मृत्यु दर 80% तक होती है।

लड़कियों की तुलना में अस्थमा, लड़कों में दुगनी दर से आम है, लेकिन गंभीर अस्थमा दोनो में समान रूप से होता है। इसके विपरीत वयस्क महिलाओं में अस्थमा की दर पुरुषों से अधिक होती है तथा यह बुजुर्गों की तुलना में युवाओं में अधिक आम है।

असथमा की वैश्विक दर 1960 से 2008 के बीच महत्वपूर्ण रूप से बढ़ी थी 1970 से इसे प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य के रूप में मान्यता दी गयी है। 1990 के मध्य से विकसित देशों में अस्थमा की दर स्थिर हो गयी है और हाल की बढ़त मुख्य रूप से विकासशील दुनिया में आयी है। अस्थमा अमरीका की लगभग 7% जनसंख्या तथा यूनाइटेड किंगडम की 5% जनसंख्या को प्रभावित करता है। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड में यह प्रतिशत लगभग 14–15% है।

इतिहास

अस्थमा को प्राचीन मिस्र में पहचाना गया था और इसे कायफी नाम के एक सुगन्धितमिश्रण को पिलाकर ठीक किया जाता था। इसे ईसा पूर्व 450 में हिप्पोक्रेट्स द्वारा आधिकारिक रूप से विशिष्ट तरह की श्वसन संबंधी समस्या के रूप में, ग्रीक शब्द “पैंटिंग” से नामित किया गया था जिसने हमारे आधुनिक ना का आधार प्रस्तुत किया। ईसा पूर्व 200 में ऐसा विश्वास किया जाता था कि यह आंसिक रूप से ही सही लेकिन भावनाओं से जुड़ा रोग है।

1873 में, इस रोग पर पहले पर्चों में से एक ने 1873, one of the first papers in modern medicine on the subject tried to explain theपैथोफिज़ियोलॉजी (रोग के कारण पैदा हुए क्रियात्मक परिवर्तन) को समझाने का प्रयास किया जबकि एक ने 1872 में इसका प्रयास किया और निष्कर्ष निकाला कि छाती पर क्लोरोफॉर्म लेप का लेपन करने से अस्थमा को ठीक किया जा सकता है।Medical treatment in 1880, included the use of intravenous doses of a drug called pilocarpin. 1886 में एफ.एच. बोस्वर्थ ने अस्थमा और हे ज्वर(परागज ज्वर) के बीच के संबंध पर सिद्धांत प्रस्तुत किया।<इपेनिफ्राइन का अस्थमा के उपचार के रूप में पहली बार 1905 में उपयोग किया गया। मौखिक कॉर्टिकॉस्टरॉएड को 150 में इन परिस्थितियों में उपयोग किया जाने लगा जबकि श्वसन द्वारा कॉर्टिकॉस्टरॉएड तथा चुनिंदा कार्यकारी बीटा एंटीगोनिस्ट 1960 में विस्तृत उपयोग में आने शुरु हुये।

1930-50 के दौरान अस्थमा को “होली सेवन” मनोदैहिक रोगों में से एक के रूप में जाना जाता था। इन मनोविश्लेषकों ने अस्थमा संबंधी घरघराहट की व्याख्या, बच्चों द्वारा अपनी माँ के लिये दबी हुई चीख के रूप में की, उन्होने अस्थमा के रोगियों के लिये अवसाद के उपचार को विशेष रूप से महत्व दिया।

दमा के पहले और बाद में

दमा (अस्थमा) एक गंभीर बीमारी है, जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है। श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। दमा होने पर इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन होता है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देता है और किसी भी बेचैन करनेवाली चीज के स्पर्श से यह तीखी प्रतिक्रिया करता है। जब नलिकाएं प्रतिक्रिया करती हैं, तो उनमें संकुचन होता है और उस स्थिति में फेफड़े में हवा की कम मात्रा जाती है। इससे खांसी, नाक बजना, छाती का कड़ा होना, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ आदि जैसे लक्षण पैदा होते हैं।

दमा को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है, ताकि दमे से पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सके। दमे का दौरा पड़ने से श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती है। यह चिकित्सकीय रूप से आपात स्थिति है। दमे के दौरे से मरीज की मौत भी हो सकती है।

परिचय

दमा या दमा एक अथवा एक से अधिक पदार्थों (एलर्जेन) के प्रति शारीरिक प्रणाली की अस्वीकृति (एलर्जी) है। इसका अर्थ है कि हमारे शरीर की प्रणाली उन विशेष पदार्थों को सहन नहीं कर पाती और जिस रूप में अपनी प्रतिक्रिया या विरोध प्रकट करती है, उसे एलर्जी कहते हैं। हमारी श्वसन प्रणाली जब किन्हीं एलर्जेंस के प्रति एलर्जी प्रकट करती है तो वह दमा होता है। यह साँस संबंधी रोगों में सबसे अधिक कष्टदायी है। दमा के रोगी को सांस फूलने या साँस न आने के दौरे बार-बार पड़ते हैं और उन दौरों के बीच वह अकसर पूरी तरह सामान्य भी हो जाता है।

अस्थमा यूनानी शब्द है, जिसका अर्थ है - 'जल्दी-जल्दी साँस लेना' या 'साँस लेने के लिए जोर लगाना'। जब किसी व्यक्ति को दमा का दौरा पड़ता है तो वह सामान्य साँस के लिए भी गहरी-गहरी या लंबी-लंबी साँस लेता है; नाक से ली गई साँस कम पड़ती है तो मुँह खोलकर साँस लेता है। वास्तव में रोगी को साँस लेने की बजाय साँस बाहर निकालने में ज्यादा कठिनाई होती है, क्योंकि फेफड़े के भीतर की छोटी-छोटी वायु नलियाँ जकड़ जाती हैं और दूषित वायु को बाहर निकालने के लिए उन्हें जितना सिकुड़ना चाहिए उतना वे नहीं सिकुड़ पातीं। परिणामस्वरूप रोगी के फेफड़े फूल जाते हैं, क्योंकि रोगी अगली साँस भीतर खींचने से पहले खिंची हुई साँस की हवा को ठीक से बाहर नहीं निकाल पाता।

लक्षण

दमा या तो धीरे-धीरे उभरता है अथवा एकाएक भड़कता है। जब दमा या दमा एकाएक भड़कता है तो उससे पहले खाँसी का दौरा होता है, किंतु जब दमा धीरे-धीरे उभरता है तो उससे पहले आमतौर पर श्वास प्रणाली में संक्रमण हो जाया करता है। दमा का दौरा जब तेज होता है तो दिल की धड़कन और साँस लेने की रफ्तार दोनों बढ़ जाती हैं तथा रोगी बेचैन व थका हुआ महसूस करता है। उसे खाँसी आ सकती है, सीने में जकड़न महसूस हो सकती है, बहुत अधिक पसीना आ सकता है और उलटी भी हो सकती है। दमे के दौरे के समय सीने से आनेवाली साँय-साँय की आवाज तंग श्वास नलियों के भीतर से हवा बाहर निकलने के कारण आती है। दमा के सभी रोगियों को रात के समय, खासकर सोते हुए, ज्यादा कठिनाई महसूस होती है।


  • सामान्यतया अचानक शुरू होता है
  • किस्तों मे आता है
  • रात या अहले सुबह बहुत तेज होता है
  • ठंडी जगहों पर या व्यायाम करने से या भीषण गर्मी में तीखा होता है
  • दवाओं के उपयोग से ठीक होता है, क्योंकि इससे नलिकाएं खुलती हैं
  • बलगम के साथ या बगैर खांसी होती है
  • सांस फूलना, जो व्यायाम या किसी गतिविधि के साथ तेज होती है
  • शरीर के अंदर खिंचाव (सांस लेने के साथ रीढ़ के पास त्वचा का खिंचाव)

कारण

दमा कई कारणों से हो सकता है। अनेक लोगों में यह एलर्जी मौसम, खाद्य पदार्थ, दवाइयाँ इत्र, परफ्यूम जैसी खुशबू और कुछ अन्य प्रकार के पदार्थों से हो सकता हैं; कुछ लोग रुई के बारीक रेशे, आटे की धूल, कागज की धूल, कुछ फूलों के पराग, पशुओं के बाल, फफूँद और कॉकरोज जैसे कीड़े के प्रति एलर्जित होते हैं। जिन खाद्य पदार्थों से आमतौर पर एलर्जी होती है उनमें गेहूँ, आटा दूध, चॉकलेट, बींस की फलियाँ, आलू, सूअर और गाय का मांस इत्यादि शामिल हैं। कुछ अन्य लोगों के शरीर का रसायन असामान्य होता है, जिसमें उनके शरीर के एंजाइम या फेफड़ों के भीतर मांसपेशियों की दोषपूर्ण प्रक्रिया शामिल होती है। अनेक बार दमा एलर्जिक और गैर-एलर्जीवाली स्थितियों के मेल से भड़कता है, जिसमें भावनात्मक दबाव, वायु प्रदूषण, विभिन्न संक्रमण और आनुवंशिक कारण शामिल हैं। एक अनुमान के अनुसार, जब माता-पिता दोनों को दमा या हे फीवर (Hay Fever) होता है तो ऐसे 75 से 100 प्रतिशत माता-पिता के बच्चों में भी एलर्जी की संभावनाएँ पाई जाती हैं।

दमे के कुछ कारण इस प्रकार हैं-

  • जानवरों से (जानवरों की त्वचा, बाल, पंख या रोयें से)
  • दीमक (घरों में पाये जाते हैं)
  • तिलचट्टे
  • पेड़ और घास के पराग कण
  • धूलकण
  • सिगरेट का धुआं
  • वायु प्रदूषण
  • ठंडी हवा या मौसमी बदलाव
  • पेंट या रसोई की तीखी गंध
  • सुगंधित उत्पाद
  • मजबूत भावनात्मक मनोभाव (जैसे रोना या लगातार हंसना) और तनाव
  • एस्पिरीन और अन्य दवाएं
  • खाद्य पदार्थों में सल्फाइट (सूखे फल) या पेय (शराब)
  • गैस्ट्रो इसोफीगल भाटा
  • विशेष रसायन या धूल जैसे अवयव
  • संक्रमण
  • पारिवारिक इतिहास
  • तंबाकू के धुएं से भरे माहौल में रहनेवाले शिशुओं को दमा होने का खतरा होता है। यदि गर्भावस्था के दौरान कोई महिला तंबाकू के धुएं के बीच रहती है, तो उसके बच्चे को दमा होने का खतरा होता है।
  • मोटापे से भी दमा हो सकता है। अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं।

दमा का प्राकृतिक उपचार

दमा के प्राकृतिक उपचार में निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-

सुस्ती या कमजोर निर्गमन अंगों को बल प्रदान करना। रोगी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने के लिए समुचित आहार कार्यक्रम अपनाना। शरीर का पुनर्निमाण करना अथवा शरीर की कमजोरी को दूर करना। योगासन और प्राणायाम का अभ्यास करना, ताकि भोजन ठीक तरह से हजम होकर शरीर को लगे। फेफड़ों को बल मिले, उनमें लचीलापन आए, पाचन क्रिया सुधरे और तेज हो तथा श्वास प्रणाली बलशाली हो। रोगी को एनीमा देकर उसकी आँतों की सफाई करना चाहिए, ताकि उनके भीतर विसंगति न पनप सके। पेट पर गीली पट्टी रखने से बिना पचे हुए खाद्य पदार्थ सड़ नहीं पाएँगे और आँतों की क्रिया तेज होने के कारण, जल्दी ही पानी में भीगा कपड़ा रखने से फेफड़ों की जकड़न कम होती है और उन्हें बल मिलता है। रोगी को भाप, स्नान कराकर उसका पसीना बहाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त उसे गरम पानी में कूल्हों तक या पाँव डालकर बैठाया जा सकता है और धूप स्नान भी करवाया जा सकता है। इससे त्वचा उत्तेजित होगी और उसे बल मिलेगा तथा फेफड़ों की जकड़न दूर होगी।

अपने शरीर की प्रणाली को पोषक तत्त्व प्रदान करने के लिए और हानिकारक तत्त्व बाहर निकालने के लिए रोगी को कुछ दिन तक ताजे फलों का रस ही लेना चाहिए और कुछ नहीं। इस उपचार के दौरान उसे ताजा फलों के एक गिलास रस में उतना ही पानी मिलाकर दो-दो घंटे के बाद सुबह आठ बजे से शाम आठ बजे तक लेना चाहिए। बाद में धीरे-धीरे ठोस पदार्थ भी शामिल किए जा सकते हैं। किंतु रोगी को सामान्य किस्म की भोजन संबंधी गलतियों से दूर रहना चाहिए। यदि उसके आहार में कार्बोहाइड्रेट चिकनाई एवं प्रोटीन जैसे तेजाब बनाने वाले पदार्थ सीमित मात्रा में रहें और ताजे फल, हरी सब्जियाँ तथा अंकुरित चने जैसे क्षारीय खाद्य पदार्थ भरपूर मात्रा में रहें तो सबसे अच्छा रहता है।

चावल, शक्कर, तिल और दही जैसे कफ या बलगम बनाने वाले पदार्थ तथा तले हुए एवं गरिष्ठ खाद्य पदार्थ न ही खाए जाएँ तो अच्छा है।

दमा के रोगियों को अपनी क्षमता से कम ही खाना चाहिए। उन्हें धीरे-धीरे और अपने भोजन को चबा-चबाकर खाना चाहिए। उन्हें प्रतिदिन कम से कम आठ से दस गिलास पानी पीना चाहिए। भोजन के साथ पानी या किसी तरह का तरल पदार्थ लेने से परहेज करना चाहिए। तेज मसाले, मिर्च अचार बहुत अधिक चाय कॉफी इत्यादि से भी दूर रहना चाहिए।

दमा, विशेषकर तेज दमे का दौरा, हाजमे को खराब करता है। ऐसे मामलों में रोगी पर खाने के लिए जोर मत दीजिए, ऐसे मामलों में जब तक दमे का दौरा दूर न हो जाए तब तक रोगी को लगभग उपवास करने दीजिए। रोगी हर दो घंटे के बाद एक प्याला गरम पानी पी सकता है। ऐसे मामले में यदि रोगी एनीमा लेता है तो उसे बहुत फायदा होता है।

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