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तुतेदरा
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तुतेदरा

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नेपाल के एक मंदिर में तुतेदरा
भक्तपुर में तुतेदरा
काठमांडू में तुतेदरा

तुतेदरा नेपाल के कई स्थानों पर पाया जाने वाला एक पारंपरिक तौर पर निर्मित पानी पीने का फव्वारा है। यह नल की आकृति का पत्थर से बना हुआ एक जलाशय है, जिसे खोला और बंद किया जा सकता है। ऐसी संरचनाएँ या तो स्वतंत्र बनी होती हैं या किसी अन्य इमारत की दीवार से जुड़ी होती हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि जमीन में जल का कुआँ कहाँ उपस्थित है। नेपाल में प्राचीनकाल में ऐसे कई फव्वारे थें जिनमें कुछ ही आज उपयोग में हैं, लेकिन कुछ फव्वारों के हिस्सों को आज अन्य उपयोगों में लगा दिया गया है। सबसे प्रसिद्ध तुतेदारा काठमांडू दरबार क्षेत्र में शाही महल में एक दीवार पर बनाया गया है। यहाँ पंद्रह अलग-अलग भाषाओं में देवी काली को समर्पित एक कविता भी खुदी हुई है।

नेपाली शब्द तुतेदरा पानी पीने के फव्वारे की मुख्य विशेषताओं को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है अर्थात् एक नल जिसे खोला और बंद किया जा सकता है। वहीं नेवारी लोग इसे जहरू पुकारते हैं, जो संस्कृत के शब्द जलाद्रोनि से व्युत्पन्न प्रतीत होता हैं, जिसका अर्थ है पानी की बाल्टी। जरुन्हिती वर्ग इसे हिती के साथ जोड़ती है, जो कि प्राचीनकाल में पानी पीने के फव्वारे के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है।

इतिहास

नेपाल में कुओं और अन्य तरह के जलकुंडों का निर्माण एक पवित्र कार्य माना जाता है। यही कारण है कि प्राचीनकाल में राजाओं के साथ-साथ अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी ऐसी कई संरचनाओं का निर्माण करवाया है।

तुतेदरा के बारे में आज जानकारी जुटाने का सबसे अच्छा स्रोत शिलालेखों पर उद्धृत जानकारियाँ है। ये शिलालेख हमेशा तो इनके निर्माण का वर्णन नहीं करते हैं, लेकिन कुछ अन्य दिनांकित घटनाओं को दर्शातें है जिससे पता चलता है कि तुतेदरा उस समय पहले से ही अस्तित्व में रहा होगा। इस तरह के शिलालेख 19वीं सदी के मध्य तक के समयकाल को दर्शाते हुए मिले हैं।

पाटन के खापिंचे में एक शिलालेख 530 ईस्वी के एक तुतेदरा को दर्शाता मिला है। यह नेपाल का सबसे पुराना तुतेदरा माना जाता है। भक्तपुर में सबसे पुराना तुतेदरा 1175 ईस्वी का पाया गया है।

नेपाल भाषा के सबसे पुराने ज्ञात शिलालेखों में से एक तुतेदरा पर लिखा 1232 ई॰ का शिलालेख है।

तुतेदरों का व्यापक सर्वेक्षण पाटन शहर में किया जा रहा है। जहाँ अब तक कुल 106 तुतेदरा पाए गए हैं। इनमें से कुछ को पारंपरिक तरीके से चालू रखा गया है और दो को नगरपालिका द्वारा जलापूर्ति के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है।


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