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गिरीन्द्रशेखर बोस
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गिरीन्द्रशेखर बोस

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गिरीन्द्रशेखर बसु
चित्र:Girindrasekhar bose.jpg
जन्म गिरीन्द्रशेखर बसु
31 जनवरी 1887
दरभंगा (सम्प्रति बिहार में)
मृत्यु 3 जून 1953(1953-06-03) (उम्र 66)
कोलकाता
राष्ट्रीयता भारतीय

गिरीन्द्रशेखर बोस (30 जनवरी 1887 – 3 जून 1953) दक्षिण एशिया के मनोविश्लेषक थे। वे भारतीय मनोविश्लेषण सोसायटी के प्रथम अध्यक्ष थे (1922 से 1953)। उन्होने सिग्मंड फ्रायड के साथ २० वर्षों तक वार्ता की। फ्रायड के कुछ सिद्धान्तों पर गम्भीर प्रश्न खड़ा करने के लिये वे प्रसिद्ध हैं।

फ्रायड द्वारा प्रतिपादित ईदिपस मनोग्रंथि (Oedipus complex) तथा देह-मन पर उनके विचार फ्रायड के विचारों से अलग थे। उनका सिद्धान्त थियरी ऑफ अपॉजिटिव विश नाम से प्रसिद्ध है। सन १९३३ ई में कलकाता के राधागोविन्द कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में उन्होंने भारत की प्रथम 'मनोचिकित्सा ईकाई' आरम्भ की।

परिचय

गिरीन्द्रनाथ का जन्म दरभंगा में हुआ था। उनका पैतृक निवास अविभक्त बंगाल के नदिया जिले के बीरनगर में था। उनके पिता चन्द्रशेखर दरभंगा राज के दीवान, पण्डित और दार्शनिक थे। माता का नाम लक्ष्मीमणि था। उनके चार बहनें और तीन भाई थे। शशिशेखर, राजशेखर और कृष्णशेखर उनके बड़े भाई थे। उन सबकी स्कूली शिक्षा दरभंगा में ही हुई।

बाद में वे कोलकाता के पारसीबागान में आ गये। उन्होने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में रसायन विज्ञान का अध्ययन किया। इसके पश्चात उन्होने चिकित्साशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की जो १९१० में समाप्त हुई। वे योग, जादू तथा सम्मोहन में बहुत रुचि रखते थे।

प्रतिदिन सुबह घर पर बिना शुल्क लिये पास की बस्तियों के गरीब लोगों की चिकित्सा करते थे। उस सम भारत में मानसिक रोगों की चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं थी। फ्रायड द्वारा प्रतिपादित मनोविश्लेषण पद्धति से भी भारत का कोई विशेष परिचय नहीं था। फ्रायड द्वारा जर्मन भाषा में रचित ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद भी भारत में उपलब्ध नहीं था। ऐसी अवस्था में अनुशीलन (प्रैक्टिस) द्बारा उस रोग की चिकित्सा में भिड़े। उन्होंने रोगियों के लिये कुछ पद्धतियाँ भी बनायी।

चिकित्सा करते करते ही वे विशेष अनुमति लेकर १९१५ ई में कलकाता विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान में एमए कक्षा में भर्ती हुए एवं १९१७ ई  में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त करके एमएससी उत्तीर्ण की। १९२१ ई में मानसिक अवदमन (Concept of Repression) विषय पर उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि मिली मानसिक अवदमन का उनका सिद्धान्त इस सम्बन्ध में पारम्परिक हिन्दू चिन्तन और फ्रायड द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का सम्मिश्रण था।

सन १९२१ से उन्होंने सम्पूर्ण रूप से मानसिक रोगों की चिकित्सा में अपने को लगा दिया और सिग्मंड फ्रायड के साथ पत्रालाप शुरु किया। उन्होंने अपना डीएससी का शोधप्पत्र फ्रायड को भेजा। इसके बाद दोनों के बीच पत्र-व्यवहार होना शुरू हुआ और भारतीय मनोचिकित्सा सोसायटी की स्थापना (१९२२) में हुई।

मानसिक रोगियों की चिकित्सा में योगदान

१९२२ ई० में कलकाता के १४ नम्बर पारसीबागान लेन में अपने घर में उन्होंने भारतीय मनःसमीक्षा  समिति की स्थापना की। सिग्मंड फ्रायड और अर्नेस्ट जोनस के सहयोग से समिति को ‘अन्तरराष्ट्रीय मनोविश्लेषण संघ' (इन्टरनेशनल साइकोएनालिटिकल एशोसिएशन) का अनुमोदन प्राप्त हुआ। १९९४० ई में उनके बड़े भाई राजशेखर बसु 'परशुराम' छद्मनाम से दान करके तीन शय्या वाले एक मानसिक चिकित्सालय की स्थापना किये। बर्तमान समय में यह 'लुम्बिनी पार्क मानसिक अस्पताल' नाम से सुपरिचित है।

१९११ ई० से १९१५ ई० तक वे मेडिकल कालेज के शारीरीरिकी (एनाटॉमी) के अध्यापक एवं १९१७ से १९४९ ई० तक कोलकाता विश्वविद्यालय के '[[अपसामान्य मनोविज्ञान' (abnormal psychology) विभाग के अध्यापक थे। लम्बे समय तक विभागाध्यक्ष एवं प्रधान अध्यापक इत्यादि पदों पर रहने के पश्चात अपनी अस्वस्थता के कारण पदत्याग कर दिया।

३ जून १९५३ को कलकता में उनका देहान्त हुआ।

रचित ग्रन्थ

मनोबिज्ञानेर ग्रन्थ
  • स्वप्न
  • Everyday psychoanalysis
  • Concept of Repression. By Girindrashekhar Bose. Published by G. Bose, 14 Parsi Bagan, Calcutta, India. 1921. 223 pp. Rs. 10/ net.
  • मनोबिद्यार परिभाषा (मनोविज्ञान की परिभाषा)
  • Glossary for the use of translators of psycho-analytic works, 1926 (Ernest Jones और अन्य के साथ मिलकर)
  • Bose, G. (1930). "The psychological outlook of Hindu philosophy". Indian Journal of Psychology. 5: 119–46.
  • "A New Theory of Mental Life". Indian Journal of Psychology, 37-157 (सन १९३३ में)
अन्यान्य-
  • लालकालो (शिशु साहित्य)
  • पुराण प्रबेश
  • भगबद्गीता

एक वैज्ञानिक होने के बाद भी भारतीय दर्शन में उनकी प्रबल आसक्ति थी। छिल। भारतीय दर्शन ने उनके वैज्ञानिक चिन्ताधारा को किस प्रकार प्रभावित किया, यह उनके द्वारा रचित विभिन्न ग्रन्थों में मिलता है। इनमें उनका "निउ थियरी ऑफ मेन्टल लाइफ अन्यतम है।

पारिवारिक जीवन

गिरीन्द्रशेखर का विवाह मात्र सत्रह वर्ष की आयु में इन्दुमती देवी के साथ हुआ। उनकी दो बेटियाँ हुईं। बड़ी बेटी दुर्गावती थीं।

बाहरी कड़ियाँ


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