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गलसुआ वैक्सीन
गलसुआ वैक्सीन गलसुए (कंठमाला) की सुरक्षित रोकथाम करती है।जब अधिसंख्य लोगों को दी जाती है तो ये जनसंख्या के स्तर पर जटिलताओं में कमी लाती हैं। जनसंख्या के 90% को टीका लगाए जाने पर 85% तक की प्रभावशीलता देखी गयी है। लंबी अवधि की रोकथाम के लिए दो खुराकों की जरूरत होती है। पहली खुराक को 12 से 18 माह की उम्र में दिए जाने की सलाह दी जाती है। इसके बाद दूसरी खुराक आम तौर पर दो से छः साल की उम्र के बीच दी जाती है। पहले से प्रतिरक्षित न हुए लोगों में रोग होने के बाद इसका इस्तेमाल उपयोगी हो सकता है।
यह गलसुआ वैक्सीन बहुत सुरक्षित है तथा इसके पश्च प्रभाव आम तौर पर हल्के हैं। सुई लगने वाली जगह पर दर्द तथा सूजन व हल्का बुखार हो सकता है। अधिक प्रभावशाली पश्च प्रभाव बेहद कम देखे गए हैं। स्नायविक प्रभावों जैसी जटिलताओं को इस वैक्सीन से जोड़ने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिले हैं। इस वैक्सीन को गर्भवती या गंभीर प्रतिरक्षादमन से पीड़ित लोगों को नहीं दिया जाना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान जिन बच्चों की माताओं को वैक्सीन दिया गया उनमें खराब परिणामों का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया। हालांकि वैक्सीन का विकास चिकन कोशिकाओं में किया गया है, लेकिन इनको उन लोगों को दिया जा सकता है जिनको अंडे से एलर्जी है।
अधिकांश विकसित दुनिया और विकासशील दुनिया के अनेक देशों में इसे खसरे के टीके तथा रूबेला टीके के संयोजन वाले एमएमआर के नाम से प्रचलित टीके के रूप में उनके टीकाकरण कार्यक्रमों में शामिल किया गया है। उपरोक्त तीन तथा छोटी माता (छोटी चेचक) के वैरिसेला वैक्सीन का एमएमआरवी के नाम से प्रचिलित संयोजन भी उपलब्ध है। 2005 तक 110 देशों ने इस वैक्सीन को इस तरह से प्रदान किया है। वे क्षेत्र, जहां पर व्यापक टीकाकरण किया जाता है, इसके कारण रोग की दर में 90% तक कमी आयी है। एक प्रकार की लगभग आधा अरब लोगों को यह टीका दिया जा चुका है।
गलसुए के टीके को सबसे पहले 1948 में लाइसेंस दिया गया था; हालांकि इसका प्रभाव छोटी अवधि तक ही रहता था। संशोधित टीके 1960 में बाज़ार में उपलब्ध हुए। जबकि शुरुआती टीका निष्क्रिय किया हुआ था बाद के मिश्रण में ऐसे वायरस थे जो कि कमजोर थे। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक दवाओं की सूची, मूलभूत स्वास्थ्य प्रणाली में सबसे अधिक महत्वपूर्ण, आवश्यक दवाओं में शामिल है। 2007 तक इसके अनेक प्रकार उपयोग में प्रचिलित हैं।