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क्लीवीकरण

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क्लीवीकरण, संस्कृत क्लीव ('लिंगहीन') से लिया गया है, एक पशु के जननांग को पूर्ण या आंशिक रूप से हटाना है। एक पशु जिसे क्लीव नहीं किया गया है उसे अक्षुण्ण कहा जाता है।

क्लीवीकरण पशु बंध्याकरण का सबसे सामान्य प्रक्रिया है। मानवीय समाज, पश्वाश्रय और सुरक्षा समूह पालतू पशुओं के मालिकों से आग्रह करते हैं कि वे अवांछित पशुवत्सों के जन्म को रोकने हेतु अपने पालतू पशुओं को बन्ध्या करवाएँ, जो बचाव प्रणाली में अवांछित पशुओं की अधिक आबादी में योगदान करते हैं। कई देशों में यह आवश्यक है कि सभी ग्रहण की गई बिल्लियों और कुत्तों को उनके नए घरों में जाने से पूर्व क्लीव किया जाए।

पशुओं का बधियाकरण

खच्चर का बधियाकरण

नर पशु के दोनों अण्ड कोषों अथवा मादा के दोनों अंडाशयों को निकालकर उसे नपुंसक बनाने की क्रिया को बधियाकरण कहते हैं। उन्नत पशु प्रजनन कार्यक्रम की सफलता के लिए अवांक्षित नर पशुओं का बधियाकरण वहुत ही आवश्यक कार्य है जिसके बिना डेयरी पशुओं की नस्ल में सुधार करना असम्भव है। बछड़ों में बधियाकरण की उचित आयु 2 से 8 माह के बीच होती है।

बधियाकरण के लाभ

  • (1) बधियाकरण द्वारा निम्न स्तर के पशु के वंश को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है जिससे उसके द्वारा असक्षम एवं अवांक्षित सन्तान पैदा ही नहीं होती जोकि सफल एवं लाभकारी पशुपालन के लिए आवश्यक है।
  • (2) बधिया किए गये नर पशु को मादा पशुओं के साथ बिना किसी कठिनाई के रखा जा सकता है क्योंकि वह मद में आई मादा के ऊपर नहीं चढ़ता।
  • (3) बधिया किए गये पशु को आसानी से नियन्त्रित किया जा सकता है।
  • (4) बधियाकरण से माँस के लिये प्रयोग होने वाले पशुओं के माँस की गुणवत्ता बढ़ जाती है।

बधियाकरण की विधियाँ

पालतू पशुओं में बधियाकरण सबसे पुरानी शल्य क्रिया समझी जाती है। बधियाकरण निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है।

शल्य क्रिया द्वारा बधियाकरण

इस विधि में शल्य क्रिया द्वारा अंडकोषों के ऊपर चढ़ी चमड़ी (स्क्रोटम)को काटकर दोनों अंडकोषों को निकाल दिया जाता है। इस क्रिया में पशुओं को एक छोटा सा घाव हो जाता है जोकि एंटीसेप्टिक दवाइयों के प्रयोग करके कुछ समय के पश्चात ठीक हो जाता है।

बर्डिजो कास्ट्रेटर द्वारा बधियाकरण

यह विधि आज-कल नर गोपशुओं व भैंसों में बधियाकरण के लिये सर्वाधिक प्रचलित है। इसमें एक विशेष प्रकार का यंत्र जिसे बर्डिजो कास्ट्रेटर कहते हैं प्रयोग किया जाता है। इस विधि में रक्त बिल्कुल भी नहीं निकलता क्योंकि इसमें चमड़ी को काटा नहीं जाता। इसमें पशु के अंड कोषों से ऊपर की ओर जुड़ी स्पर्मेटिक कोर्ड जोकि चमड़ी के नीचे स्थित होती है, को इस यन्त्र के द्वारा बाहर से दबा कर कुचल दिया जाता है जिससे अंडकोषों में खून का दौरा बन्द हो जाता है। फलवरूप अंडकोष स्वतः ही सूख जाते हैं।

बर्डिजो कास्ट्रेटर द्वारा बधियाकरण करते समय निम्नलिखित सवधानियाँ बरतना आवश्यक है।

  • 1. बर्डिजो कास्ट्रेटर को दबाते समय स्पर्मेटिक कोर्ड स्लिप नहीं करनी चाहिये।
  • 2. कास्ट्रेटर में अंडकोष नहीं दबना चाहिये अन्यथा अंडकोषों में भारी सूजन आ जाती है जिससे पशु को तकलीफ होती है।
  • 3. कास्ट्रेटर में चमड़ी का फोल्ड नहीं आना चाहिए क्योंकि इससे चमड़ी के नीचे घाव होने का खतरा रहता है।
  • 4. कास्ट्रेटर को प्रयोग करने से पहले ठीक प्रकार से साफ कर लेना चाहिए।

रबड़ के छल्ले द्वारा बधियाकरण

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पश्चिमी देशों में प्रचलित यह विधि बहुत छोटी उम्र के बछड़ों में प्रयोग की जाती है। इसमें रबड़ का एक मजबूत व लचीला छल्ला अंड कोषों के ऊपरी भाग में स्थित स्परमेटिक कोर्ड के ऊपर चढ़ा दिया जाता है जिसके दबाव से अंडकोषों में खून का दौरा बन्द होजाता है। इससे अंडकोष सूख जाते हैं तथा रबड़ का छल्ला अंडकोषों से निकल कर नीचे गिर जाता है।


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