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ऑर्थ्रोस्कोपी (अंतःसंधिदर्शन)
ऑर्थ्रोस्कोपी यानी अंतःसंधिदर्शन (जिसे ऑर्थ्रोस्कोपी सर्जरी भी कहा जाता है।) एक कम से कम चीड़फाड़ वाली शल्य प्रक्रिया है, जिसमें एक जांच और कभी-कभी जोड़ के क्षतिग्रस्त भीतरी हिस्से का इलाज ऑर्थ्रोस्कोपी के उपयोग के जरिये किया जाता है, जो एक प्रकार का इंडोस्कोप (शरीर के भीतरी हिस्सों को देखने वाला उपकरण) है, जिसे एक छोटे चीरे के बाद घुटने में डाला जाता है। आर्थोस्कोपिक प्रक्रियाओं का प्रयोग कई तरह की आर्थोपेडिक (हड्डियों या मांशपेशियों से संबंधित) स्थितियों के मूल्यांकन और उपचार के लिए किया जा सकता है, जिनमें अलग हुईं फटी नरम हड्डियां (काटिलेज), सतह की फटीं नरम हड्डियां, एसीएल (ACL) पुनर्निमाण और क्षतिग्रसत नरम हड्डियों की छंटाई शामिल है।
ऑर्थोस्कोपी में परंपरागत खुली सर्जरी से ज्यादा फायदा इसलिए है कि इसमें जोड़ों को पूरी तरह नहीं खोला जाता. इसके बदले, उदाहरण के लिए घुटने की ऑर्थोस्कोपी के लिए केवल दो छोटे चीरे बनाये जाते हैं- एक ऑर्थोस्कोप के लिए और दूसरा सर्जरी के उपकरणों को भीतर ले जाने के लिए, िजन्हें घुटनों की टोपी हटाने के लिए उसकी गुहाओं में ले जाया जाता है। यह निदान के समय को समय कम कर देता है और इससे सर्जरी की कामयाबी की दर भी बढ़ सकती है, क्योंकि इससे संयोजी ऊतक का कम नुकसान होता है। यह विशेष रूप से पेशेवर एथलीटों के लिए उपयोगी है, जो अक्सर घुटने के जोड़ों को घायल कर लेते हैं और जिन्हें घावों को जल्दी ठीक करने की आवश्यकता होती है। छोटे चीरों की वजह से त्वचा पर निशान भी कम पड़ते हैं। जोड़ों को फैलाने और सर्जरी के लिए जगह बनाने के लिए तरल पदार्थ से उन्हें भिंगाने की जरूरत पड़ती है। कभी-कभी यह तरल पदार्थ आसपास के नरम ऊतक में फैल जाता है और जमा हो जाता है तथा उसे निकालने की जरूरत होती है।
इसमें शल्य क्रिया के लिए जिन उपकरणों का इस्तेमाल होता है, वे परंपरागत उपकरणों से छोटे होते हैं। सर्जन एक वीडियो मॉनिटर पर जोड़ के क्षेत्र को देखते हैं और जोड़ के फटे हुए ऊतकों, जैसे स्नायुबंधन और नरम हड्डियां या कार्टिलेज, का पता लगा सकते हैं और उनकी मरम्मत कर सकते हैं।
तकनीकी रूप से मानव शरीर के लगभग हर जोड़ का ऑर्थ्रोस्कोपिक परीक्षण संभव है। जिन जोड़ों का ऑर्थोस्कोपी द्वारा सबसे आम रूप में जांच और इलाज होता है, उनमें घुटने, कंधे, कोहनी, कलाई, टखने, पैर और कूल्हे शामिल हैं।
अनुक्रम
इतिहास
टोक्यो में प्रोफेसर केनजी टकागी को पारंपरिक रूप से 1919 में एक मरीज के घुटने के जोड़ के पहले आर्थ्रोस्कोपिक परीक्षण का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने अपनी पहली आर्थ्रोस्कोपी के लिए एक 7.3 मिमी के सिस्टोस्कोप का प्रयोग किया। हाल ही में यह पता चला है कि डेनमार्क के चिकित्सक सेवेरिन नोर्देनटाफ्ट ने बर्लिन में 1912 की शुरुआत में जर्मन सोसाइटी ऑफ सर्जन्स की 41वीं कांग्रेस की कार्यवाही में घुटने की आर्थ्रोस्कोपी सर्जरी पर रिपोर्ट दी। उन्होंने इस प्रक्रिया को (लैटिन में) ऑर्थ्रोस्कोपिया जेनू नाम दिया। नोर्देनटाफ्ट ने अपने ऑप्टिक मीडिया के रूप में स्टेराइल सैलाइन और बोरिक एसिड का उपयोग किया और घुटने की चक्की की सीमा के बाहरी हिस्से पर एक पोर्टल द्वारा जोड़ों तक पहुंच बनाई। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं हो सका कि ये परीक्षण जीवित मरीजों या मृतकों के शारीरिक अध्ययन के लिए किये गये।
ऑर्थोस्कोपी के क्षेत्र में अग्रणी कार्य 1920 के दशक की शुरुआत में यूगेन बिर्चर के साथ शुरू हुआ। बिर्चर ने 1920 के दशक में नैदानिक प्रयोजनों के लिए घुटने की आर्थोस्कोपी के उपयोग के बारे में अपने कई पत्र प्रकाशित किये। आर्थोस्कोपी के माध्यम से फटे ऊतक की पहचान के बाद बिर्चर ने क्षतिग्रस्त ऊतकों को हटाने व उनकी मरम्मत के लिए खुली सर्जरी का इस्तेमाल किया। प्रारंभ में उन्होंने अपने नैदानिक प्रक्रियाओं में एक इलेक्ट्रिक जैकोबीअस थोराकोलापरोस्कोप का उपयोग किया, जिसके जरिये जोड़ की एक धुंधली तस्वीर ही दिखी. बाद में, उन्होंने दृश्यता बढ़ाने के लिए एक दोहरा विपरीत दृष्टिकोण विकसित किया। बिर्चर ने 1930 में एंडोस्कोपी छोड़ दी और उनका काम कई दशकों तक बड़े पैमाने उपेक्षित रहा।
जबकि बिर्चर को अक्सर घुटने की आर्थोस्कोपी का आविष्कारक माना जाता है, जापानी सर्जन, एमडी मासाकी वातानाबे को इंटरवेंशनल (मध्यवर्ती) सर्जरी के लिए आर्थोस्कोपी के उपयोग का प्राथमिक श्रेय दिया जाता है। वातानाबे डॉ॰ रिचर्ड ओ'कोन्नोर के कार्यों और शिक्षा से प्रेरित हुए. बाद में डॉ॰ हेशमत शहरियारी ने जोड़ों के सतह की नरम हड्डियों को अलग करने के उपायों के िलए प्रयोग शुरू कर दिया।
इन लोगों ने संयुक्त रूप से पहले चालित ऑर्थ्रोस्कोप की डिजाइन तैयार की और पहली उच्च गुणवत्ता वाली इंट्राआर्टिक्युलर (भीतरी) फोटोग्राफी के परिणाम के लिए संयुक्त रूप से काम किया। तकनीकी के विकास से खासकर, 1970 और 1980 के दशक में लचीले फाइबर आप्टिक्स के क्षेत्र में प्रगति के कारण इस क्षेत्र को महत्वपूर्ण लाभ हुआ।
घुटने की ऑर्थ्रोस्कोपी
कई मामलों में भूतकाल में पारंपरिक ऑथ्रोटॉमी की जगह घुटने की ऑर्थोस्कोपी की गई है। आज घुटने की ऑर्थोस्कोपी उपास्थि की चोट के इलाज, सामने के क्रॉसनुमा स्नायुबंधनों के पुनर्निर्माण और कार्टिलेज के माइक्रोफ्रैक्चरिंग के लिए आम तौर पर की जाती है। ऑर्थोस्कोपी सिर्फं घुटने के रोगों की पहचान और जांच के लिए भी हो सकती है; हालांकि बाद में मुख्य रूप से इसके बदले चुंबकीय प्रतिध्वनि इमेजिंग का उपयोग किया गया।
घुटने की ऑर्थोस्कोपी होने के बाद आपके घुटने के आसपास सूजन हो जाती है इसलिए आपको गंभीर किस्म के व्यायाम या अत्यधिक चलने से पहले घाव को पूरा भरने देना चाहिए। सूजन के खत्म होने में 7-15 दिनों का समय लग सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि सूजन के खत्म होने तक इंतजार किया जाये क्योंकि ऐसे में घुटना शल्य चिकित्सा की दृष्टि से पर्याप्त स्थिर नहीं होगा, इसके कारण दर्द हो सकता है और कुछ मामलों में घुटने की सूजन बढ़ भी सकती है।
घुटने के औसत ऑर्थ्रोस्कोपी के दौरान एक छोटे, करीब 4 मिमी (1/8 इंच) लंबे चीरे के बाद जोड़ में एक फाइबरऑप्टिक कैमरा डाला जाता है। जोड़ के हिस्सों को देखने के लिए एक विशेष तरल पदार्थ का उपयोग किया जाता है। घुटने के अन्य हिस्सों की जांच के लिए और अधिक चीरे लगाये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त नया छोटे उपकरणों का इस्तेमाल भी किया जाता है और सर्जरी पूरी की जाती है।
घुटने की ऑर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी कई कारणों से की जाती है, लेकिन ऑस्टियोर्थराइटिस के लिए सर्जरी की कामयाबी संदिग्ध है। 2002 में ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए ऑर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी पर एक डबल ब्लाइंड प्लेसबो नियंत्रित अध्ययन न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित किया गया था। इस तीन समूहों वाले अध्ययन में घुटने के पुराने ऑस्टियोअर्थराइटिस वाले 180 सैन्य दिग्गजों को बेतरतीब तरीके से चुना गया, जिनका तरल पदार्थ के साथ क्षतिग्रस्त ऊतकों को ऑर्थ्रोस्कोपिक तरीके से हटाने या क्षतिग्रस्त ऊतकों को हटाये बिना इलाज किया जाना था (एक प्रक्रिया, जिसमें शल्य क्रिया द्वारा क्षतिग्रस्त ऊतकों को हटाने की नकल की जाती है और जहां त्वचा की सतह पर चीरा लगाया जाता है, जिससे लगे कि क्षतिग्रस्त ऊतकों को हटाने की प्रक्रिया की गई है). सर्जरी के दो साल बाद, रोगियों ने दर्द के स्तर के बारे में सूचित किया और जोड़ की गतिशीलता का मूल्यांकन किया। न तो रोगियों को और न ही स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ताओं को पता था कि कौन से मरीज की कौन सी सर्जरी (इस प्रकार " डबल ब्लाइंड" अंकन) की गई थी। अध्ययन की रिपोर्ट में बताया गया, "किसी भी बिंदु पर किसी भी हस्तक्षेप समूह ने प्लेसबो समूह की तुलना में कम दर्द या बेहतर कार्य की रिपोर्ट दी." क्योंकि घुटने की ऑस्टियोअर्थराइटिस के मामलों में इन शल्य चिकित्साओं के लाभ की पुष्टि नहीं की जा सकी और कई भुगतानकर्ताओं ने एक ऐसी प्रक्रिया के लिए शल्य चिकित्सकों और अस्पतालों को पैसा चुकाने से अनिच्छुक दिखे, जो सवालिया निशान वाले या बिना किसी प्रदर्शित लाभ के साथ सर्जरी का जोखिम पैदा करती हो। 2008 में किये गये एक अध्ययन से पुष्टि होती है कि इससे दुसाध्य दर्द में दवा और शारीरिक चिकित्सा से ज्यादा लंबे समय तक लाभ नहीं हुआ। चूंकि ऑर्थोस्कोपी कराने के मुख्य कारणों में से एक दर्द पैदा कर रहे फटे या क्षतिग्रस्त उपास्थि की मरम्मत और उसे तराशना है, न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि उपास्थि के फटने के करीब 60% मामलों में कोई दर्द नहीं होता है और वे लक्षणरहित विषयों वाले होते हैं और इस तरह तार्किक आधार पर इस तरह की प्रक्रिया को सवालों के घेरे में खड़ा करते हैं।
कंधे की ऑर्थ्रोस्कोपी
ऑर्थोस्कोपी का आम तौर पर उपयोग सबएक्रोमियल इमपिंगमेंट, पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस, अंग को घुमानेवाली पेशी के फटने, अकड़े कंधे (एडहेसिव कैप्सुलपटिस), कंडरा के दुसाध्य रोग, कंधे को मोड़नेवाली लंबी पेशी के आंशिक रूप से फटने, स्लैप लेशंस और कंधे के अचल हो जाने सहित कंधे के विभिन्न रोगों के लिए किया जाता है।
कलाई की ऑर्थ्रोस्कोपी
कलाई की ऑर्थोस्कोपी का उपयोग बार-बार पेशियों के चोटिल होने, कलाई के टूटने और फटी या क्षतिग्रस्त स्नायु की जांच और इलाज के लिए होता है। इसका उपयोग गठिया के कारण जोड़ के नुकसान का पता लगाने के लिए किया जाता है।
रीढ़ की हड्डी की ऑर्थ्रोस्कोपी
रीढ़ की सर्जरी की कई प्रक्रियाओं में हड्डियों, मांसपेशियों और स्नायु को हटाना शामिल है, जिससे समस्याग्रस्त क्षेत्रों की पहचान और इलाज हो सके। कुछ मामलों में, वक्ष (मध्यवर्ती रीढ़) के हिस्से की स्थिति ऐसी होती है कि सर्जन को पसलियों के ढांचे के माध्यम से समस्या का पता लगाना होता है, जिससे स्वस्थ होने का समय आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाता है।
ऑर्थ्रोस्कोपिक (इंडोस्कोपिक भी) स्पाइनल प्रक्रियाएं सर्जन को यह सुविधा देती हैं कि वह आसपास के ऊतकों के न्यूनतम नुकसान के साथ रीढ़ की हर तरह की स्थितियों का पता लगा सके और उनका इलाज कर सके। अपेक्षाकृत कम बहुत छोटे आकार के चीरे की जरूरत के कारण स्वस्थ होने का समय काफी कम हो जाता है और कई रोगियों का आउट पेशेंट के आधार पर इलाज किया जाता है। स्वस्थ होने की दर और समय हालत की गंभीरता और रोगी के समग्र स्वास्थ्य के हिसाब से बदलता हैं।
ऑर्थ्रोस्कोपिक प्रक्रियाओं के जरिये निम्नलिखित का इलाज होता है।
- रीढ़ की हड्डी के डिस्क के बाहर आने और अपक्षयी डिस्क
- रीढ़ की विकृति
- ट्यूमर
- सामान्य रीढ़ आघात
नोट्स
विकिपीडिया पर ऑर्थ्रोस्कोपी जर्नल
बाहरी कड़ियाँ
- हिप आर्थ्रोस्कोपी सर्जन Archived 2016-01-09 at the Wayback Machine - निगेल केली (सर्जन)
- उत्तरी अमेरिका के आर्थ्रोस्कोपी एसोसिएशन Archived 2013-01-21 at the Wayback Machine
- आर्थ्रोस्कोपी: आर्थ्रोस्कोपिक और संबंधित सर्जरी के जर्नल
- नैदानिक आर्थ्रोस्कोपी - डॉ॰ एंगस स्ट्रोवर द्वारा ट्यूटोरियल Archived 2009-12-21 at the Wayback Machine - नीगुरु
- शोल्डर स्लैप टियर इमेजेस Archived 2010-09-09 at the Wayback Machine
- नी 3D प्रस्तुति Archived 2009-12-07 at the Wayback Machine
- स्पाइनयूनिवर्स मिनिमली इनवेसिव स्पाइन सर्जरी इंफॉर्मेशन सेंटर - विभिन्न संस्थानों, संगठनों और रीढ़ की हड्डी के पेशेवरों से लेख
- विभिन्न आर्थ्रोस्कोपिक प्रक्रियाओं पर लेख
- खेल चिकित्सा - आर्थ्रोस्कोपी
- गाउट या गठिया - कारण, लक्षण, निदान और उपचार
साँचा:Operations and other procedures on the musculoskeletal system