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अलोपेसिया अरीटा
अलोपेसिया अरीटा (अंग्रेज़ी: Alopecia areata), जिसको स्पॉट बाल्डनेस (सर के कुछ हिस्सों में बालों का नहीं होना) एक ऑटोइम्यून रोग हैंI जिसमें सर के कुछ या संपूर्ण हिस्से से बाल झड़ जाते हैं। इसमें बाल ज्यादातर सिर की त्वचा से ही झड़ते हैं क्यूंकि इसमें शरीर, स्वयं को ही पहचानना छोड़ देता हैं एवं अपने ही ऊतकों को नष्ट कर डालता हैं, जैसे की वो कोई आक्रमणकारी हो। प्रथम चरण में यह सर पर बाल रहित क्षेत्रों (गंजे धब्बों) का निशान बना देता हैंI 1-2 % मामलों में यह सारे शरीर में एवं पूरे एपिडर्मिस में फ़ैल जाता हैं। अलोपेसिया अरीटा जैसी हालात एवं होने के कारण अन्य प्रजातियों में भी पाई जाती हैं।
वर्गीकरण
आमतौर पर, अलोपेसिया अरीटा के मामलों में सिर की त्वचा पर एक या एक से अधिक गोल धब्बे में बालों के झड़ने शामिल है।
अलोपेसिया अरीटा मोनोलोकुलरिस, में सर के बाल एक जगह पर झड़ जाते हैं। यह सिर में कही पर भी हो सकता हैं।
अलोपेसिया अरीटा ऑफ़िसीस, सिर की परिधि में एक लहर के आकार में, बालों के झड़ने को संदर्भित करता है।
यह कुछ मामलों में दाढ़ी तक सीमित रहता हैं इस दशा में अलोपेसिया अरीटा बारबै के नाम से जाना जाता हैं।
यदि मरीज सिर के सभी बालों को खो देता है, रोग तो अलोपेसिया अरीटा टोटलिस कहा जाता है।
यदि शरीर के सभी बाल (जननांग के भी) मरीज खो देता हैं तो उस दशा में रोग की पहचान अलोपेसिया यूनिवर्सलिस के तौर पर की जाती हैं। अलोपेसिया अरीटा टोटलिस एवं यूनिवर्सलिस दुर्लभ किस्म के प्रकार हैं
रोग के चिह्न एवं लक्षण
इसका पहला प्रमुख लक्षण छोटे (बाल रहित क्षेत्रों) का होना हैं। यह दाग़ कई आकार में हो सकते हैं लेकिन ज्यादातर गोल या अंडाकार आकर के होते हैं। अलोपेसिया अरीटा, सबसे अधिक बार सिर की त्वचा और दाढ़ी को प्रभावित करता है लेकिन ये शरीर के उस हिस्से पर भी हो सकते हैं जहाँ पर अमूमन बाल उगते हैं। रोग कुछ समय बाद छूट भी जा सकता हैं या फिर स्थायी हो सकते हैं। यह बच्चों में आम है।
बालों के झड़ने वाले क्षेत्र में झुनझुनाहट या दर्द हो सकता हैं एवं सारे बाल थोड़े ही समय के अंतराल में झड़ जाते हैं। सामान्यता जब स्वस्थ बालों को खींचा जाता हैं तो बहुत कम ही बाल उखड़ते हैं लेकिन जब अलोपेसिया अरीटा से पीड़ित व्यक्ति के बालों को खींचा जाता हैं बहुत सारे बाल जड़ से निकल आते हैं।
रोग की पहचान
अलोपेसिया अरीटा को सामान्यता नैदानिक विशेषताएँ के आधार पर निदान किया जाता हैं। ट्रिचोस्कोपी इस दिशा में सहायक सिद्ध होता हैं। ट्रिचोस्कोपी में पीले धब्बे, छोटे ऐक्सक्लामेशन चिन्हित बाल (!) एवं काले धब्बों का पता चलता हैं।
अलोपेसिया अरीटा के मामलों में बाईओप्सी की शायद ही जरूरत पड़ती हैं।
कारण
अलोपेसिया अरीटा एक छुआछूत की बीमारी नहीं हैं। ये उन लोगों में ज्यादा पाया जाता हैं जिनके परिवार के सदस्यों को ये पहले हुआ हैं। इस रोग के होने के कारण में आनुवंशिकता एक प्रमुख कारक हैं इसके अतिरिक्त उन लोगों को ज्यादा खतरा होता हैं जिनके रिश्तेदार ऑटोइम्यून रोग से पीड़ित हैं।
उपचार
यदि प्रभावित क्षेत्र कम हैं तो उपचार की सम्भावना बनती हैं एवं बाल फिर उग सकते हैं। लेकिन जहाँ बाल ज्यादा झड़ चुके हैं तो वहाँ पे देखा गया हैं कि अगर कर्टिको स्टेरॉयड्स क्लोबीटासोल और फ्लूओसिनोनाइड , कर्टिकोस्टेरॉइड इंजेक्शन्स या क्रीम से आ का उपचार किया जाये तो भी सीमित लाभ ही प्राप्त होता हैं। ओरल कर्टिको स्टेरॉयड्स से बालों का भी झड़ना रुकता हैं, लेकिन ये दवा के प्रयोग की अवधी तक सीमित रहता हैं एवं इस दवा के हानि कारक प्रभाव भी होते हैं।