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अफ्रीकी ट्रिपेनोसोमयासिस

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अफ्रीकी ट्रिपेनोसोमयासिस
निद्रालु व्याधि

वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Trypanosoma sp. PHIL 613 lores.jpg
Trypanosoma forms in a blood smear
आईसीडी-१०  B56.
आईसीडी-  086.5
डिज़ीज़-डीबी 29277  13400
मेडलाइन प्लस 001362
ईमेडिसिन med/2140 
एम.ईएसएच D014353

अफ्रीकी ट्रिपेनोसोमयासिस अथवा निद्रालु व्याधि मनुष्यों तथा अन्य पशुओं में होने वाली एक परजीवीजन्य बीमारी है। यह परजीवियों की एक प्रजाति ट्रिपैनोसोमा ब्रुसे के कारण होता है। मनुष्यों को संक्रमित कर सकने वाले परजीवी दो प्रकार के होते हैं, ट्रिपैनोसोमा ब्रुसे गैम्बिएन्स (T.b.g) तथा ट्रिपैनोसोमा ब्रुसे रोडेसिएंस (T.b.r.). T.b.g दर्ज मामलों में 98% से अधिक का कारण बनता है। दोनों प्रकार आमतौर पर एक संक्रमित सीसी मक्खी के काटने से फैलते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे आम हैं। 

प्रारंभ में, बीमारी के पहले चरण में, बुखार, सिर दर्द, खुजली और जोड़ों में दर्द होता है। यह काटने के एक से तीन सप्ताह के अन्दर शुरू होता है। कुछ सप्ताहों अथवा महीनों के अन्दर दूसरा चरण प्रारंभ होता है जिसमें मरीज़ भ्रम, ख़राब समन्वय, सुन्न होना तथा सोने में कठिनाई महसूस करता है। रोग परीक्षण रक्त स्मीयर में अथवा लिम्फ नोड के तरल पदार्थ में परजीवी खोजने के जरिए किया जाता है। अक्सर पहले और दूसरे चरण की बीमारी के बीच अंतर बताने के लिए लम्बर पंक्चर की आवश्यकता होती है।

गंभीर बीमारी की रोकथाम के लिए जोखिमग्रस्त जनसंख्या की स्क्रीनिंग के साथ ही T.b.g. के लिए रक्त परीक्षण करना शामिल है। रोग का निदान अपेक्षाकृत सरल है जबकि रोग का पता जल्दी चल गया हो तथा स्नायविक लक्षण प्रकट न हुए हों। रोग के पहले चरण का उपचार पेंटामाईडीन अथवा स्यूरामिन दवाओं से किया जाता है। रोग के दुसरे चरण के उपचार के लिए एफ्लोनाईथीन अथवा T.b.g. के लिए नाईफर्टिमॉक्स तथा एफ्लोनाईथीन के संयोजन की आवश्यकता होती है। हालाँकि मेलार्सोप्रोल दोनों के लिए कारगर है, फिर भी इसे आमतौर पर केवल T.b.r. के लिए प्रयोग किया जाता है जिसका कारण इसके कुछ गंभीर साइड इफेक्ट हैं।

उप-सहारा अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों में यह बीमारी नियमित रूप से होती है, जिसमें जोखिम-ग्रस्त जनसँख्या 36 देशों में 70 मिलियन के लगभग है। 2010 में इस बीमारी के कारण लगभग 9,000 व्यक्तियों की मृत्यु हुई, जबकि 1990 में इनकी संख्या लगभग 34,000 थी। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में लगभग 30,000 लोग इससे संक्रमित हैं जिसमें 2012 में हुए 7000 नए मामले भी शामिल हैं। इन मामलों में से 80% से अधिक कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में हैं। हाल ही के इतिहास में इस बीमारी के तीन बड़े प्रकोप हुए हैं: एक 1896 से 1906 के बीच मुख्यतः युगांडा तथा काँगो बेसिन में तथा दो 1920 एवं 1970 में अनेक अफ्रीकी देशों में। अन्य पशु, जैसे गाय, इस बीमारी के वाहक बन सकते हैं तथा इससे संक्रमित हो सकते हैं।

संदर्भ


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