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अतिसार
अतिसार वर्गीकरण व बाहरी संसाधन | |
आंत्र मार्ग का चित्र | |
अन्य नाम | डायरिया |
आईसीडी-१० | A09., K59.1 |
आईसीडी-९ | 787.91 |
रोग डाटाबेस | 3742 |
ई-मेडिसिन | ped/583 |
एमईएसएच | D003967 |
अतिसार या डायरिया (अग्रेज़ी:Diarrhea) में या तो बार-बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। पतले दस्त, जिनमें जल का भाग अधिक होता है, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से आते रहते हैं।
लक्षण
अतिसार का मुख्य लक्षण और कभी-कभी अकेला लक्षण, विकृत दस्तों का बार-बार आना होता है। तीव्र दशाओं में उदर के समस्त निचले भाग में पीड़ा तथा बेचैनी प्रतीत होती है अथवा मलत्याग के कुछ समय पूर्व मालूम होती है। धीमे अतिसार के बहुत समय तक बने रहने से, या उग्र दशा में थोड़े ही समय में, रोगी का शरीर कृश हो जाता है और जल ह्रास (डिहाइड्रेशन) की भयंकर दशा उत्पन्न हो सकती है। खनिज लवणों के तीव्र ह्रास से रक्तपूरिता तथा मूर्छा (कॉमा) उत्पन्न होकर मृत्यु तक हो सकती है
- पेट में दर्द
- ऐंठन
- सूजन
- निर्जलीकरण
- बुखार
- मल में खून
- दस्त
- बार - बार उल्टी
कारण
यह अंतड़ियों में अधिक द्रव के जमा होने, अंतड़ियों द्वारा तरल पदार्थ को कम मात्रा में अवशोषित करने या अंतड़ियों में मल के तेजी से गुजरने की वजह से होता है।
प्रकार
डायरिया की दो स्थितियां होती हैं- एक, जिसमें दिन में पांच बार से अधिक मल त्याग करना पड़ता है या पतला मल आता है। इसे डायरिया की गंभीर स्थिति कहा जा सकता है। आनुपातिक डायरिया में व्यक्ति सामान्यतः जितनी बार मल त्यागता है उससे कुछ ज्यादा बार और कुछ पतला मल त्यागता है।
''उग्र अतिसार- उग्र (ऐक्यूट) अतिसार का कारण प्रायः आहारजन्य विष, खाद्य विशेष के प्रति असहिष्णुता या संक्रमण होता है। कुछ विषों से भी, जैसे संखिया या पारद के लवण से, दस्त होने लगते हैं।
जीर्ण अतिसार- जीर्ण (क्रॉनिक) अतिसार बहुत कारणों से हो सकता है। आमाशय अथवा अग्न्याशय ग्रंथि के विकास से पाचन विकृत होकर अतिसार उत्पन्न कर सकता है। आंत्र के रचनात्मक रोग, जैसे अर्बुद, संकिरण (स्ट्रिक्चर) आदि, अतिसार के कारण हो सकते हैं। जीवाणुओं द्वारा संक्रमण तथा जैवविषों (टौक्सिन) द्वारा भी अतिसार उत्पन्न हो जाता है। इन जैवविषों के उदाहरण हैं रक्तविषाक्तता (सेप्टिसीमिया) तथा रक्तपूरिता (यूरीमिया)। कभी निःस्रावी (एंडोक्राइन) विकार भी अतिसार के रूप में प्रकट होते हैं, जैसे ऐडीसन के रोग और अत्यवटुकता (हाइपर थाइरॉयडिज्म)। भय, चिंता या मानसिक व्यथाएँ भी इस दशा को उत्पन्न कर सकती हैं। तब यह मानसिक अतिसार कहा जाता है।
चिकित्सा
डायरिया उग्र या जीर्ण (क्रोनिक) हो सकती है और प्रत्येक प्रकार के डायरिया के भिन्न-भिन्न कारण और इलाज होते हैं। डायरिया से उत्पन्न जटिलताओं में निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन), इलेक्ट्रोलाइट (खनिज) असामान्यता और मलद्वार में जलन, शामिल हैं। निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) को पीनेवाले रिहाइड्रेशन घोल की सहायता से कम किया जा सकता है और आवश्यक हो तो अंतःशिरा द्रव्य की मदद भी ली जा सकती है।
चिकित्सा के लिए रोगी के मल की परीक्षा करके रोग के कारण का निश्चय कर लेना आवश्यक है, क्योंकि चिकित्सा उसी पर निर्भर है। कारण को जानकर उसी के अनुसार विशिष्ट चिकित्सा करने से लाभ हो सकता है। रोगी को पूर्ण विश्राम देना तथा क्षोभक आहार बिलकुल रोक देना आवश्यक है। उपयुक्त चिकित्सा के लिए किसी विशेषज्ञ चिकित्सक का परामर्श उचित है।
डॉक्टर आपके दस्त का कारण जानने के लिए निम्नलिखित परीक्षणों का आदेश दे सकता है:
- रक्त परीक्षण
- मल परीक्षण
अतिसार का घरेलू इलाज :
आपने अक्सर देखा होगा कि बच्चों को दस्त होने की शिकायत हो जाती है और कभी-कभी बड़ों को भी हो जाती है। लेकिन घरेलू इलाज की जानकारी के अभाव में कभी-कभी बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए हम यहां आपको 10 ऐसे घरेलू नुस्खे बता रहे हैं, जो आपके लिए काफी उपयोगी हो सकते हैं (लेकिन यदि समस्या गम्भीर हो, तो किसी डाक्टर से तुरन्त सम्पर्क करें) |
1. 12 ग्राम सौंफ, 6 ग्राम सफेद जीरा दोनों को कूट-पीस लें और इसमें 12 ग्राम खांड मिलाकर सुरक्षित रख लें। सुबह-शाम नित्य एक-एक चम्मच ताजा पानी के साथ लें। 10-15 दिन के सेवन से ही आंत संबंधी सब प्रकार के रोग और पेट दर्द, अफारा आदि ठीक हो जाते हैं। जिन्हें खाना खाने से घृणा हो गई हो या खाना खाने के बाद उल्टी हो जाती हो या पतले दस्त diarrhea हो जाते हों, उनके लिए यह औषधि बहुत अधिक लाभप्रद है ।
2. छाछ या मट्ठा दिन में दो-तीन बार देने से बहुत लाभ होता है। रोगी से खाना खाए बिना रहा न जाए, तो उसे चावल-दही दें, लेकिन बुखार होने पर चावल दही न दें। खिचड़ी देने से अधिक लाभ होता है।
3. खूनी दस्त (diarrhea) का इलाज-यदि खूनी दस्त (diarrhea) हो रहे हों, तो गाय के दूध मक्खन 10 ग्राम खाएं और साथ ही एक गिलास छाछ पी लें। इससे खूनी दस्त बंद हो जाते हैं।
4. आम और जामुन की गुठली की गिरी एक समान मात्रा में पीस लें और से बना दो चम्मच चूर्ण एक कप छाछ में मिलाकर पी जाएं, तुरंत लाभ होगा।
5. ईसबगोल की भूसी 5 से 10 ग्राम, दही 125 ग्राम दोनों को अच्छी तरह से मिलाकर सुबह-शाम खाने से दस्त (diarrhea) बंद हो जाते हैं। ईसबगोल की भूसी मल को गाढ़ा करती है और आतों की पीड़ा कम करती है। इसका लसीलेपन का गुण मरोड़ और पेचिश को शांत करने में मदद करता है।
6. भोजन करने के बाद 200 ग्राम छाछ में 1 ग्राम भुना जीरा पाउडर और आधा ग्राम काला नमक मिलाकर पिएं। इससे दस्त बंद हो जाते हैं।
7. कच्चे केले की सब्जी खाने से अतिसार में लाभ होता है। कच्चे केलों को पानी में उबालकर छिलके उतार लें। अब कड़ाही में जरा-सा घी गरम करके 2 लौंग भूनें। फिर इसमें केले के टुकड़े करके डाल दें। अब कड़ाही में दही, धनिया, हल्दी, सेंधा नमक डालकर मिलाएं, साथ ही थोड़ा-सा पानी भी डालकर मिला दें। 2-3 मिनट तक पकाकर आंच बंद कर दें। केले की इस सब्जी का सेवन करने से दस्त के रोग में तुरंत लाभ होता है।
8. 200 ग्राम दही में 3 ग्राम भुना जीरा पाउडर डालकर खाने से दस्त में लाभ होता है।
9. नाभि के आस-पास अदरक का रस लगाने से भी दस्त में तुरंत आराम मिल जाता है।
10. बच्चों के दस्त का इलाज- थोड़ी-सी पिसी हल्दी तवे पर भूनकर उसमें थोड़ा सा काला नमक मिला लें। बड़ों को एक चम्मच और बच्चों को आधा चम्मच ठंडे पानी के साथ 3-3 घण्टे के अंतराल पर दें। दस्त बंद हो जाएंगे। आगे पढ़े