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सम्मिलन (भाषाविज्ञान)

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भाषाविज्ञान में सम्मिलन उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें एक शब्द का अंत की ध्वनी दुसरे शब्द के आरम्भ की ध्वनी के साथ पूरी तरह जुड़ी हो, यानि बोलते समय उन दोनों शब्दों के बीच कोई ठहराव न हो। सम्मिलन की स्थिति में बोलने वाले का मुंह और स्वरग्रंथि एक शब्द ख़त्म करने से पहले ही दुसरे शब्द की आरंभिक ध्वनी को उच्चारित करने के लिए तैयार होने लगती है। उदहारण के लिए "दिल से दिल" तेज़ी से बोलते हुए हिंदी मातृभाषी अक्सर पहले "दिल" की अंतिम "ल" ध्वनी पूरी तरह उच्चारित नहीं करते और न ही "से" में "ए" की मात्रा पूरी तरह बोलते हैं, जिस से वास्तव में इन तीनो शब्दों का पूरा उच्चारण "दि' स' दिल" से मिलता हुआ होता है।

अन्य भाषाओँ में

अंग्रेज़ी में "सम्मिलन" को "असिम्मीलेशन" (assimilation) कहते हैं।

उदाहरण

पड़ौसी शब्द खंड के साथ पूर्वाभासी सम्मिलन

यह सम्मिलन की सब से आम क़िस्म है जिसमें शब्द के एक खंड का उच्चारण उसके बाद आने वाले खंड की वजह से बदल जाता है। इसमें शब्द-खण्डों के उच्चारण के बदलाव के लिए एक ऐसा सरल नियम होता है जो भाषा के सभी शब्दों पर लागू होता है। उदाहरण के लिए अंग्रेज़ी में नासिक व्यंजन (म, न और इनसे मिलते व्यंजन) मुंह में अपना उच्चारण स्थान बदलकर वहीँ बना लेते हैं जो उनके बाद आने वाले रुकाव-वाले व्यन्जन (जैसे कि क, ग, च, प, इत्यादि) का होता है।

  • अंग्रेज़ी मिसाल - 'hand' का उच्चारण 'हैन्ड' (अ॰ध॰व॰ में [hæŋd]) होता है - इसमें ध्यान रहे के बीच के 'न्' का उच्चारण ज़ुबान को उपर के तालु से छुआकर किया जाता है। अंग्रेज़ी मातृभाषी 'handbag' का उच्चारण तेज़ी से बोलते हुए 'हैम्बैग' (अ॰ध॰व॰ में [hæmbæɡ]) करते हैं - क्योंकि 'बैग' (bag) के 'ब' का उच्चारण दोनों होंठो को जोड़कर किया जाता है और 'म' का उच्चारण भी दोनों होंठों को जोड़कर किया जाता है। इस तरह से 'न' की ध्वनी उसके बाद में आने वाले 'ब' में सम्मिलित होकर 'म' बन जाती है।
  • हिन्दी मिसाल - हिन्दी में नासिक स्वर वाले बिंदु का सम्मिलन अपने बाद आने वाले वर्ण में सम्मिलित हो जाता है। 'संबंध' में पहला बिंदु तो आने वाले 'ब' की वजह से 'म' की ध्वनी बनता है लेकिन दूसरा बिंदु अपने बाद वाले 'ध' की वजह से 'न' की ध्वनी बनता है, जिस वजह से शब्द का उच्चारण 'सम्बन्ध' होता है।

पड़ौसी शब्द खंड के साथ पश्चातीय खंड का सम्मिलन

यह सम्मिलन भी काफ़ी देखा जाता है और इसमें एक खंड का उच्चारण अपने से पहले वाले खंड की वजह से परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण के लिए आदिम-हिन्द-यूरोपी भाषा में 'दूध दोहने' की क्रिया को 'दुघ-तो' कहते थे, लेकिन वैदिक संस्कृत भाषियों को 'ग'/'घ' के बाद 'द'/'ध' कहना ज़्यादा सरल लगा इसलिए आख़िर का 'त' वर्ण अपने पहले के 'घ' मे सम्मिलित होकर 'ध' बन गया। 'दुघ-तो' बदलकर 'दुग्ध' हो गया।

ग़ैर-पड़ौसी शब्द खंड के साथ पूर्वाभासी सम्मिलन

यह बहुत कम देखा जाता है, लेकिन इसका उदाहरण वैदिक संस्कृत के एक शब्द में देखा जा सकता है। आदिम-हिन्द-यूरोपी भाषा में 'सास' (पति/पत्नी की माता) के लिए शब्द 'स्वॅक्रु' था जो बदलकर पहले 'स्वॅश्रू' बना। उसके पश्चात, पहला स्वर 'स' शब्द के पिछले हिस्से के 'श्र' में सम्मिलित होकर स्वयं 'श' बन गया और शब्द का वैदिक संस्कृत रूप 'श्वश्रू' बन गया।

ग़ैर-पड़ौसी शब्द खंड के साथ पश्चातीय खंड का सम्मिलन

यह भी बहुत कम देखा जाता है। आदिम-हिन्द-यूरोपी भाषा में 'ख़रगोश' को 'कसो' कहा जाता था, जिसका अर्थ 'भूरा' होता है। समय के साथ-साथ पहला स्वर 'क' बदलकर 'श' हो गया और अंत की 'ओ' ध्वनि लुप्त हो गई। लेकिन वैदिक संस्कृत का शब्द 'शस' की बजाए 'शश' हो गया क्योंकि अंत का 'स' पहले की 'श' ध्वनि में सम्मिलित हो गया।

संलगन

इस क़िस्म के सम्मिलन में दो ध्वनियाँ सम्मिलित होकर एक ध्वनि बना देती हैं। लातिनी भाषा में 'द' और 'व' मिलकर 'ब' बना देती हैं। यूनानी और संस्कृत में 'दो' के लिए शब्द 'द्वी' (dvi) है, जो लातिनी में सम्मिलन से 'बि' (bi, अंग्रेज़ी उच्चारण: 'बाइ') हो गया। पुरानी लातिनी में युद्ध को 'दुऍल्लम' (duellum) कहते थे, जो न​ई लातिनी में 'बॅल्लम' (bellum) हो गया - ध्यान रहे के 'दुऍल्लम'/'द्वॅल्लम' का संस्कृत में सजातीय शब्द 'द्वन्द' है (प्रयोग उदाहरण: प्रतिद्वन्दी)।

इन्हें भी देखें


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