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श्रमावर्त

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मानव संसाधन के सन्दर्भ में किसी कर्मचारी को किसी दूसरे कर्मचारी के द्वारा प्रतिस्थापित करने को श्रमावर्त या श्रम-प्रतिस्थापन (turnover) कहते हैं। किसी संगठन से कोई कर्मचारी कई कारणों से अलग हो सकता है- निष्कासन (टर्मिनेशन), सेवानिवृत्ति, मृत्यु, स्थानान्तरण, त्यागपत्र आदि। किसी संगठन का श्रमावर्त दर (turnover rate) एक निश्चित समय (जैसे एक वर्ष) में उस संगठन को छोड़ने वाले कर्मचारियों की संख्या, कर्मचारियों की कुल संख्या के प्रतिशत के रूप में व्यक्त की जाती है, अर्थात

श्रमावर्त दर = संगठन को छोड़ने वाले कर्मचारियों की संख्या x १०० / कर्मचारियों की कुल संख्या

श्रमावर्त के कारण

श्रमावर्त की वृद्धि के अनेक कारण हैं। मृत्यु और अवकाश प्राप्ति इसके दो प्राकृतिक कारक हैं जिसके कारण श्रमिक का उसके कार्य से अलगाव होता है। साथ ही यह स्थान शीघ्र ही भर लिये जाते हैं ताकि उत्पादन प्रक्रिया में बाधा न पड़े। श्रमिकों द्वारा कार्य से ऐच्छिक वापसी दूसरा महत्त्वपूर्ण कारक है जो कि श्रमावर्त को बढ़ाता है। यह दो रूपों में व्यक्त होता है , पहला त्याग पत्र के रूप में तथा दूसरा, कार्य परित्याग के रूप में। प्रथम रूप में, श्रमिक कार्य से त्याग पत्र देने की इच्छा व्यक्त करता है और कार्य को छोड़ने के इरादे को व्यक्त करने के लिए प्रबंधक को विधिवत् सूचना देता है जबकि दूसरे रूप में वह कार्य को बिना बताये ही छोड़ देता है। त्यागपत्र के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हो सकते हैं। उदाहरणार्थ - अधिक अच्छी नौकरी मिल जाना, संस्थान की शर्तो का मंजूर न होना, संस्थान के अंतर्गत अपमानित किया जाना, संस्थान का अनुपयुक्त होना, पारिवारिक मामलों में उलझ जाना इत्यादि। तीसरा महत्त्वपूर्ण कारक निष्कासन है। निष्कासन के लिए भी अनेक कारक उत्तरदायी हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, अनुशासनहीनता का प्रदर्शन, कार्य का गुणात्मक और परिमाणात्मक दृष्टिकोण से उचित रूप में न किया जाना, संस्थान के विरुद्ध बगावत, कार्य के समय बिना अवकाश लिए अनुपस्थित रहना इत्यादि। श्रमावर्त के परिणामों को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं।

श्रमावर्त के परिणाम

श्रमावर्त के परिणामों को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं।

प्रत्यक्ष परिणाम : वे परिणाम है जिनके अंतर्गत नये भर्ती किये गये श्रमिकों क प्रशिक्षण हेतु व्यय किये गये खर्च को सम्मिलित किया जाता है, साथ ही भर्ती किये जान में होने वाले छोटे मोटे खर्चे भी आते हैं।

पुनर्स्थापन में होने वाला अतिरिक्त व्यय : इसके अंतर्गत अतिरिक्त व्यय नये भर्ती किये गये श्रमिकों की कुशलता की कमी के कारण होता है जो कि उत्पादन का गुणात्मक एवं परिमाणात्मक दोनों रूपों में प्रभावित करता है।

नये श्रमिकों को भर्ती करने से पूर्व होने वाले अतिरिक्त व्यय : यह हानि इसलिय होती है क्योंकि पुराने श्रमिकों के स्थान पर नये श्रमिकों को भर्ती करने में भी समयान्तर हो जाता है। उस समयान्तर में उत्पादन गिर जाता है जिससे कि संस्थान को क्षति पहुँचती है।

श्रमावर्त कम करने के उपाय

श्रमावर्त की उच्च दर औद्योगिक संबंधों एवं कर्मचारियों में स्थिरता और भक्ति भावना तथा विश्वसनीयता उत्पन्न करने में सहायक नहीं हो सकती। श्रमावर्त क दुष्परिणामों को तभी रोका जा सकता है जबकि इससे संबंधित आंकड़ों का विश्वसनीयता के साथ सतत् एकत्रित किया जाय और उनके विश्लेषण में उन कारका को ढूँढा जाय जो कि बदलती हुई परिस्थितियों में श्रमावर्त की उच्च दरों के लिए उत्तरदायी रहे हैं।

औद्योगिक दृष्टि से प्रगतिशील पश्चिमी देशों में बहिर्गमन साक्षात्कार श्रमावर्त की दरों को घटाने के लिए एक कारगर यंत्र के रूप में सामने आया है। इसके अंतर्गत कार्मिक विभाग द्वारा एक टोली की नियुक्ति की जाती है जो इस बात के लिए सतत् कार्यरत रहती है कि श्रमिकों के संस्थान से अलगाव का क्या कारण है, यह ऐच्छिक है या अनैच्छिक। जब भी कोई त्याग पत्र प्राप्त होता है, त्याग पत्र देने वाले श्रमिक का साक्षात्कार किया जाता है और उसे इस बात की पूर्ण स्वतंत्रता दी जाती है कि वह बिना किसी भय और संकोच के अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सके। यदि श्रमिक कार्य को बिना सूचना के ही छोड़ जाता है तो इस बात का सतत् प्रयास किया जाता है कि उससे वहीं संबंध स्थापित किया जाये जहाँ वह मिल सके और उन तथ्यों को प्रकाश में लाने की कोशिश की जाती है जिनके कारण श्रमिक कार्य को छोड़कर चला गया था। यदि मामला छँटनी या बर्खास्तगी का है तो इस बात की पूर्ण परीक्षा की जाती है कि जो भी कार्यवाही की गई है वह श्रम विधानों एवं स्थायी अध्यादेशों के प्राविधानों क अंतर्गत की गई है या नहीं। इस प्रकार के बहिर्गमन साक्षात्कार प्रबंधकों को इस बात की विशेष सूझ बूझ और जानकारी प्रदान करते हैं कि किन परिस्थितियों एवं कारणों क अंतर्गत श्रमिक संस्थान को छोड़कर चले जाते हैं। इस प्रकार प्रबंधक इस बात का निर्णय लेने में अपने को सक्षम पाता है कि उसके संस्थान में श्रमावर्त की ऊँची दर का कारण खराब कार्य की परिस्थितियों, या अन्य जगहों पर उत्तम कार्य की प्राप्ति, प्रबंध की श्रम नीति या व्यवहार, श्रमिक की खुद की गलतियाँ या दुराचरण, श्रमिक संघ के नेताओं का व्यवहार या कार्य की नीरसता है; इन कारकों में से कौन से कारक श्रमावर्त की उच्च दर के लिए कितना जिम्मेदार है, और इनको समाप्त करने के लिए कौन स निरोधात्मक उपाय अपनाये जा सकते हैं।

इस प्रकार के बहिर्गमन साक्षात्कारों के परीक्षण हेतु प्रबंधकों को अपने-अपने संस्थानों के अंतर्गत अवसर अवश्य प्रदान किया जाना चाहिए ताकि उच्च श्रमावर्त की दरों के कारकों का पता लगाया जा सके और उनको समाप्त करने के लिए निरोधात्मक उपायों को भी ढूँढा जा सके। इस प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए मालिका और श्रमिकों की संयुक्त समितियों का गठन प्रत्येक संस्थान में किया जाना चाहिए। इन समितियों में मालिकों और श्रमिकों के प्रतिनिधि होने चाहिए। साथ ही इन सबकों इस दिशा में संयुक्त प्रयास करने चाहिए।

सामान्यतया श्रमावर्त कम करने के लिए मौलिक रूप से उन सभी उपायों का अपनाया जाना चाहिए जो त्याग पत्र और निष्कासन से संबंधित हुआ करते है। त्याग पत्रों को कम करने के लिए संस्थान के अंतर्गत कार्य की शर्तो एवं दशाओं में सुधार करते हुए वे सभी कार्य करने होंगे जिससे कि श्रमिक कार्य संतोष की भावना का अनुभव कर सकें और किसी भी स्तर पर उसके आत्म सम्मान को ठेस न पहुँचे। श्रमिक को जो वेतनमान संस्थान के बाहर प्राप्त हो सकता है उसे संस्थान के अंतर्गत उतना वेतन अवश्य दिया जाना चाहिए। निष्कासन को कम करने के लिए श्रमिकों में कार्य तथा संस्थान के प्रति भक्ति भावना को बढ़ाते हुए अुशासनहीनता को कम करना होगा। इसके लिए श्रमिकों के साथ प्रबंधकों, निरीक्षकों एवं सहकर्मियों को सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करना चाहिए। श्रमिकों को प्रबंध में भाग लेने का अवसर प्रदान किया जाय, साथ ही उनके द्वारा अनुभव की गयी कठिनाइयों को भी दूर किया जाय, श्रमिक संघों की बहुलतता को कम किया जाय और श्रमिकों में प्रजातांत्रिक मूल्यों को विकसित किया जाय ताकि उनके अपने वर्ग में पारस्परिक सम्मान की वृद्धि हो सके। सहकारिता जैस उपायों को प्रयोग में लाया जाए। निपुणतापूर्ण भर्ती, कार्य एवं श्रमिक विश्लेषण आदि अधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं।


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