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विलयन

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पानी में नमक घोलकर खारे पानी का घोल बनाना। नमक विलेय है और जल विलायक है।

दो या दो से अधिक पदार्थों के समांगी मिश्रण को विलयन कहते हैं। किसी निश्चित तापमान पर विलयन के उपादानों का आपेक्षिक अनुपात एक सीमा तक परिवर्तित किया जा सकता है। जब नमक को पानी में घोला जाता है तो एक समांगी मिश्रण बनता है। यह समांगी मिश्रण नमक का पानी में विलयन कहलाता है। विलेय + विलायक = विलयन

परिचय

जब दो पदार्थों को एक दूसरे के संपर्क में लाया जाता है, तब उसके चार परिणाम हो सकते हैं:

  • (१) वे दोनों पदार्थ एक दूसरे के संपर्क में आने पर भी अलग अलग रहें,
  • (२) वे दोनों पदार्थ, यदि उनमें से एक जल है तो एक दूसरे से मिलकर, पायस (emulsion) बने,
  • (३) वे दोनों पदार्थ एक दूसरे से मिलकर एक समांग मिश्रण बनें तथा
  • (४) उन दोनों पदार्थों के बीच रासायनिक क्रिया होकर, एक या अधिक दूसरे यौगिक बनें।

यदि हम खड़िया के कुछ टुकड़ों को पानी में डालकर भली भाँति हिला डुलाकर रख दें, तो खड़िया के टुकड़े पात्र के पेंदे में बैठ जायेंगे और पानी से घिरे रहेंगे। यदि खड़िया को महीन पीसकर पानी में डालें, तो खड़िया के बहुत छोटे छोटे कणों के पानी के साथ मिलने से पानी दूध की भाँति बन जाता है और वह कुछ समय तक उसी दशा में रहता है। यहाँ खड़िया का पानी में पायस बना है। यदि इसे छन्ने कागज पर छानें, तो खड़िया जल से अलग हो जाएगी। यदि नमक के टुकड़े को पानी में डालें और उसे हिलावें डुलावें, तो कुछ ही समय में नमक का टुकड़ा पानी में घुलकर समाप्त हो जाएगा और जो पदार्थ बनेगा वह पानी सा ही दिखाई पड़ेगा। यदि उसे चखें, तो उसका स्वाद नमकीन होगा। ऐसे नमक घुले जल को नमक का जल में विलयन (solution) कहते हैं। खड़िया जल में घुलती नहीं है, वह जल में अविलेय (insoluble) है। पर बहुत महीन खड़िया यद्यपि पानी के साथ घुलती नहीं है, तथापि वह पायस या इमल्शन बन जाती है। नमक जल में विलेय है। क्या नमक अपरिमित मात्रा में जल में घुल सकता है? नहीं, जल में नमक के, वस्तुत: किसी भी लवण के, जल में घुलने की एक सीमा होती है। यह सीमा ताप और, गैसों की दशा में, दबाव पर भी निर्भर करती है। जिस नमक के विलयन में और नमक न घुल सके, उसे हम नमक का संतृप्त (saturated) विलयन कहते हैं। जिस विलयन में और नमक घुल जाता है, उसे असंतृप्त (unsaturated) विलयन कहते हैं। कभी कभी हम कुछ ठोस पदार्थों को इतनी मात्रा में घुला सकते हैं कि विलयन में उनकी मात्रा संतृप्त विलयन में उपस्थित मात्रा से अधिक रहे, तो ऐसे विलयन को अतिसंतृप्ता (supersaturated) विलयन कहा जाता है। अतिसंतृप्ता विलयन सामान्यत: अस्थायी होते हैं और किसी विशिष्ट परिस्थिति में ही बनते हैं। अधिक घुला हुआ ठोस उससे कभी भी निकल कर अलग हो जा सकता है। घुलनेवाले पदार्थ को विलेय (solute) और घुलानेवाले पदार्थ को विलयाक (solvent) कहते हैं। जब गैसें या कोई ठोस किसी द्रव में घुलता है, तब द्रव को विलायक एवं गैस या ठोस को विलेय कहते हैं। जब एक द्रव दूसरे द्रव में घुलता है, तब अधिक मात्रावाले द्रव को विलायक और कम मात्रावाले द्रव को विलेय कहते हैं।

विलायक

विलायक 2 प्रकार के होते हैं : एक को ध्रुवीय (Polar) और दूसरे को अध्रुवीय (Nonpolar) कहते हैं। ध्रुवीय विलायकों में हाइड्रॉक्सिल या कार्बोक्सिल समूह रहते हैं और ये अपेक्षया सक्रिय होते हैं तथा इनका परावैद्युतांक ऊँचा होता है। अध्रुवीय विलायक रसायनत निष्क्रिय होते हैं और इनका परावैद्युतांक निम्न होता है। ध्रुवीय विलायक अधिक प्रबल होते हैं और अनेक पदार्थों को घुलाते हैं। एक दूसरी दृष्टि से विलायकों को अकार्बनिक और कार्बनिक विलायकों में विभाजित किया गया है। अकार्बनिक विलायकों में जल का स्थान सर्वोपरि है। विलायक के रूप में इसकी श्रेष्ठता इस कारण है कि यह सरलता से शुद्ध रूप में प्राप्य है। यह न विषाक्त और न ज्वलनशील होता है। ऊष्मा से इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता और अनेक पदार्थों को यह घुलाता है। ओषधियों में भी विलायक के रूप में इसका व्यवहार व्यापक रूप से होता है। पर अनेक कार्बनिक पदार्थ जल में नहीं घुलते हैं। इन कार्बनिक पदार्थों को घुलाने के लिए जिन विलायकों का व्यवहार होता है, उन्हें कार्बनिक विलायक कहते हैं। अनेक उद्योगधंधों में कार्बनिक विलायकों का व्यवहार होता है। कुछ कार्बनिक विलायक हाइड्रोकार्बन, कुछ हैलोजेन यौगिक, कुछ ऐल्कोहॉल, कीटोन, ईथर और एस्टर होते हैं। कुछ विलायक बड़े वाष्पशील होते हैं तथा कुछ विषाक्त भी। अत: इनके प्रयोग में बड़ी सावधानी बरतनी होती है। ऐसे वाष्पशील एवं विषाक्त विलायक पेट्रोल, नैफ्था, बेंज़ीन, टॉलूइन, मेथेनॉल, एथानॉल, ब्यूटेनॉल, एसीटोन, ईथर, क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड, ऐमिल ऐसीटेट आदि हैं। इन विलायकों का बहुत बड़ी मात्रा में उपयोग पेंट, वार्निश, लाक्षारस और अन्य नाना प्रकार के आवरण चढ़ाने के लेपों में होता है।

अनेक वस्तुओं की सफाई में विलायक काम में आते हैं। लकड़ी और धातु के सामानों की सफाई भी विलायकों द्वारा होती है। इनसे मैल धुलकर निकल जाती है और वस्तु साफ हो जाती है। एक समय ऊनी वस्त्रों की धुलाई में पेट्रोल, या बेंजाइन व्यापक रूप से प्रयुक्त होता था। ज्वलनशीलता के कारण हाइड्रोकार्बनों का स्थान क्लोरीनवाले यौगिक, ट्राइक्लोरोएथिलीन और कार्बन टेट्राक्लोराइड ले रहे हैं। भोज्यपदार्थों, ओषधियों और अंगरागों में विषहीन विलायकों का ही प्रयोग होना चाहिए। इनमें अरुचिकर गंध या स्वाद भी न रहना चाहिए। इसलिए टिंचर निष्कर्षों आदि में केवल एथिल ऐल्कोहॉल का व्यवहार होता है। जहाँ अवाष्पशील या मीठे स्वादवाले विलायक की आवश्यकता पड़ती है, वहाँ ग्लिसरॉल और ग्लाइकॉल प्रयुक्त होते हैं। अनेक प्राकृतिक पदार्थों से किसी विशिष्ट यौगिक के निकालने में भी विलायकों का उपयोग होता है। प्राकृतिक स्रोतों से विलायकों के द्वारा ही ऐल्केलॉइड, क्लोरोफिल, पेनिसिलिन, तेल आदि नाना प्रकार के पदार्थ निकाले जाते हैं।

गैस

यदि दो गैसों को एक दूसरे के संपर्क में लाया जाए, तो उसके दो परिणाम हो सकते हैं :

  • (1) दोनों के बीच में रासायनिक क्रिया होकर एक तीसरा पदार्थ बन सकता है, जैसे अमोनिया गैस और हाइड्रोजन क्लोराइड गैसों के मिलाने से होता है;
  • (2) यदि दोनों गैसों के बीच कोई रासायनिक क्रिया नहीं होती है, तो दोनों परस्पर मिल जाते हैं, जैसे नाइट्रोजन और ऑक्सीजन गैसों को मिलाने से होता है। ऐसी दशा में दोनों गैसे मिलकर एक समांग मिश्रण बन जाती है। यहाँ दोनों गैसें किसी भी अनुपात में मिलाई जा सकती हैं। यहाँ संतृप्ति का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

यदि गैस को द्रव के संपर्क में लाया जाए, तो विशिष्ट ताप और दाब पर गैस द्रव में घुलकर संतृप्त विलयन बनाती है। कुछ गैसें, जैसे अमोनिया, या हाइड्रोजन क्लोराइड, जल में बहुत अधिक घुलती हैं और कुछ गैसें, जैसे नाइट्रोजन, या ऑक्सीजन, जल में कम घुलती हैं। गैसों की विलेयता गैसों की प्रकृति, विलायकों की प्रकृति, ताप और दबाव पर निर्भर करती है, जैसा नीचे की सारणी से प्रकट है :

कुछ गैसों की विलेयता

(एक लिटर जल में विलेय का आयतन लिटर में)

गैस का नाम 0° और 760 मिमी. दाब 20° और 760 मिमी. दाब
अमोनिया 1,300 710
हाइड्रोजन क्लोराइड 506 442
कार्बन डाइऑक्साइड 1.71 0.878
नाइट्रोजन 0.0235 0.164
ऑक्सीजन 0.049 0.031
हाइड्रोजन 0.0215 0.0184

ऊपर की सारणी से स्पष्ट है कि ऊँचे ताप से गैसों की विलेयता कम हो जाती है और अधिक दबाव से विलेयता बढ़ जाती है। सोडावाटर की बोतल में अधिक दबाव पर ही कार्बन डाइऑक्साइड अधिक घुला हुआ रहता है और बोतल के खोलने पर दबाव कम होने पर अधिक घुली हुई गैस बुदबुद करके निकल जाती है। यदि गैसों के मिश्रण को घुलाया जाए, तो विभिन्न गैसें स्वतंत्र रूप से अपनी विलेयता के अनुसार घुलती हैं तथा दूसरी गैस की उपस्थिति से उनकी विलेयता पर कोई असर नहीं पड़ता है।

द्रव

कई द्रव एक दूसरे में किसी भी अनुपात में मिलाने से घुल जाते हैं। जल और मेथेनॉल सब अनुपात में विलेय हैं। इन्हें हम मिश्रणीय (miscible) कहते हैं। वे ही द्रव मिश्रणीय द्रव होते हैं, जिनमें परस्पर रसायनत: समानता होती है। कुछ द्रव ऐसे हैं जो एक दूसरे में बिल्कुल नहीं घुलते, जैसे पारा और पानी, पानी और बेंज़ीन। इन्हें हम अमिश्रणीय (nonmiscible) कहते हैं। कुछ द्रव ऐसे होते हैं जो एक दूसरे में कुछ घुल जाते हैं और घुलकर दो स्तर बनाते हैं। ऐसे दो द्रव जल और ईथर हैं। जल और ईथंर के मिलाने से दो स्तर बन जाते हैं। ऊपर का स्तर ईथर का और नीचे का स्तर जल का होता है। परंतु ऊपर के ईथर के स्तर में कुछ जल तथा नीचे के जल के स्तर में कुछ ईथर भी घुला हुआ रहता है। ये अंशत: मिश्रणीय द्रव होते हैं और इन दोनों स्तरों को संयुग्मी स्तर (conjugate layers) कहते हैं। यहाँ भी विलेयता ताप और कुछ सीमा तक दाब पर निर्भर करती है।

ठोस

द्रवों में ठोसों की विलेयता सीमित होती है। प्रत्येक ताप पर ठोसों की एक निश्चित मात्रा ही द्रव में घुलती है। यह बहुत कुछ विलेय और विलायक की प्रकृति पर निर्भर करती है। साधारणतया अनेक लवण जल में विलयशील होते हैं। कुछ लवण, जैसे अमोनियम नाइट्रेट, जल में बहुत विलयशील हैं और कुछ लवण, जैस कैल्सियम सल्फेट, जल में अल्प विलेय होते हैं। जब कोई ठोस किसी द्रव में घुलता है, तो सामान्यतया ऊष्मा का अवशोषण होता है। ताप की वृद्धि से सामान्यत: ठोसों की विलेयता बढ़ जाती है, पर इसमें कुछ अपवाद भी हैं। कैल्सियम सल्फेट और कैल्सियम ऐसीटेट की विलेयता ताप की वृद्धि से कुछ कम हो जाती है। यदि किसी ठोस की विलेयता उच्च ताप पर अधिक है, तो क्रिस्टलन द्वारा उस ठोस का शोधन किया जा सकता है। ऊँचे ताप पर संतृप्त विलयन बनाकर, उसको ठंढा करने से अधिक मात्रा में विलेय पदार्थ के क्रिस्टल पृथक होकर शुद्ध रूप में प्राप्त होते हैं। अशुद्धियों की मात्रा कम रहने से संतृप्त विलयन नहीं बनता और ठंढा करने से क्रिस्टल नहीं निकलते हैं।

ठोसों का ठोसों में भी विलयन बनता है। या तो ये पूरा घुल कर मिश्रणीय ठोस बन सकते हैं अथवा अंशत: घुलकर संयुग्मी स्तर (conjugate layer) बना सकते हैं। अनेक मिश्रधातुएँ ठोसों के विलयन है, या अंशत: मिश्रणीय मिश्रण हैं। ठोसों के विलयन मात्र ठोसों के मिलाने से नहीं बनते, अपितु इन्हें पूरा गलाकर मिलाने पर बनते हैं।

विलयनों का सांद्रण

साधारणतया किसी वस्तु की विलेयता को उसके प्रतिशत संघटन में प्रदर्शित करते हैं। जब हम कहते हैं कि नमक का अमुक विलयन 15% विलयन है, तो इसका आशय यही होता है कि 100 आयतन विलायक में 15 ग्राम नमक घुला हुआ है। यह रीति वैज्ञानिक नहीं है। वैज्ञानिक रीति में सांद्रण को ग्राम-अणु-सांद्रण द्वारा प्रदर्शित करते हैं। एक लिटर विलयन में जितनी ग्राम-अणु-भार की मात्रा घुली हुई होती है उसी से सांद्रण की माप जानी जाती है। इसे ग्राम-अणुकता (molarity) कहते हैं। चूँकि ताप और दाब से विलयन का आयतन घटता बढ़ता है, अत: सांद्रण प्रदर्शित करने के लिए यह उपयुक्त नहीं है। इसके स्थान में ग्राम आण्वता (molality) का व्यवहार होता है। 100 ग्राम विलयन में विलेय का कितना ग्राम अणु (moles) घुला हुआ है यह ग्राम आण्वता दर्शाती है। यदि विलयन तनु है, तो किसी विशिष्ट विलेय और विलायक के लिए ग्राम अणुकता और आण्वता विभिन्न सांद्रण के लिए एक दूसरे के समानुपात में होते हैं। विश्लेषण में विलयनों का सांद्रण नॉर्मलता (normality, N) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। नॉर्मल विलयन के एक लिटर में किसी विलेय का एक ग्रामतुल्यांक घला रहता है। विलयनों के अन्य सांद्रण नार्मलता में ही सूचित किए जाते हैं, जैसे 2 नार्मल, 5 नार्मल 10 नार्मल, दशांश नार्मल, सहस्रांश नार्मल इत्यादि।


विलयन हेतु राउल्ट नियम

राउल्ट नामक वैज्ञानिक ने विलयन (solution) के वाष्प दाब तथा विलेय के सांद्रण के मध्य एक मात्रात्मक सम्बंध स्थापित किया जिसे राउल्ट नियम कहते है।

सिद्धान्त

किसी विलयन में अवाष्पशील विलेय उपस्थित होने पर स्थिर ताप पर अवाष्पशील विलेय के विलयन के उपर present विलायक का वाष्प दाब विलायक के मोल प्रभाज के समानुपाती होता है।

इन्हें भी देखें


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