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वातरक्त

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वातरक्त
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Uric acid.png
यूरिक अम्ल
आईसीडी-१० M10.
आईसीडी- 274.0 274.1 274.8 274.9
ओएमआईएम 138900 300323
डिज़ीज़-डीबी 29031
ईमेडिसिन emerg/221  med/924 med/1112 oph/506 orthoped/124 radio/313
एम.ईएसएच D006073

वातरक्त या गाउट (Gout) होने पर रोगी को तीव्र प्रदाह संधिशोथ (acute inflammatory arthritis) का बार-बार दर्द उठता है। गाउट के अधिकांश मामलों में पैर के अंगूठे के आधार पर स्थित प्रपदिक-अंगुल्यस्थि (metatarsal-phalangeal) प्रभावित होती है। लगभग आधे मामले इसी के होते हैं, जिसे पादग्रा (podagra) कहते हैं। किन्तु यह गुर्दे की पथरी, यूरेट वृक्कविकृति (urate nephropathy) या टोफी (tophi) के रूप में भी सामने आ सकती है। यह रोग रक्त में यूरिक अम्ल की मात्रा बढ़ जाने के कारण होता है। यूरिक अम्ल की बढ़ी हुई मात्रा क्रिस्टल के रूप में जोड़ों, कंडरा (tendons) तथा आसपास के ऊत्तकों पर जमा हो जाता है।

यह रोग पाचन क्रिया से संबंधित है। इसके संबंध खून में मूत्रीय अम्ल का अत्यधिक उच्च मात्रा में पाए जाने से होता है। इसके कारण जोड़ों (प्रायः पादांगुष्ठ (ग्रेट टो)) में तथा कभी-कभी गुर्दे में भी क्रिस्टल भारी मात्रा में बढ़ता है। गठिया का रोग मसालेदार भोजन और शराब पीने से संबद्ध है।

यूरिक अम्ल मूत्र की खराबी से उत्पन्न होता है। यह प्रायः गुर्दे से बाहर आता है। जब कभी गुर्दे से मूत्र कम आने (यह सामान्य कारण है) अथवा मूत्र अधिक बनने से सामान्य स्तर भंग होता है, तो यूरिक अम्ल का रक्त स्तर बढ़ जाता है और यूरिक अम्ल के क्रिस्टल भिन्न-भिन्न जोड़ों पर जमा (जोड़ों के स्थल) हो जाते है। रक्षात्मक कोशिकाएं इन क्रिस्टलों को ग्रहण कर लेते हैं जिसके कारण जोड़ों वाली जगहों पर दर्द देने वाले पदार्थ निर्मुक्त हो जाते हैं। इसी से प्रभावित जोड़ खराब होते हैं।

चरक संहिता 29

चित्रदीर्घा

चरक संहिता

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ


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