Мы используем файлы cookie.
Продолжая использовать сайт, вы даете свое согласие на работу с этими файлами.

यकृत शोथ

Подписчиков: 0, рейтинг: 0
यकृत शोथ
Alcoholic hepatitis.jpg
अल्कोहलिक हैपेटाइटिस as seen with a microscope, showing fatty changes (white circles), remnants of dead liver cells, and Mallory bodies (twisted-rope shaped inclusions within some liver cells). (H&E stain)
विशेषज्ञता क्षेत्र Infectious disease, gastroenterology, hepatology
लक्षण पीलिया, मन्दाग्नि, पेट दर्द
जटिलता लिवर सिरोसिस, लिवर फेल, लिवर कैंसर
अवधि अल्पकालिक अथवा दीर्घकालिक
कारण वायरस, मदिरापान, विषाक्त भोजन, ऑटोइम्यून
निवारण टीकाकरण (वायरल हेपाटाइटिस के लिए)
चिकित्सा दवा, लिवर ट्रांसप्लांट
आवृत्ति > 500 मिलियन केस
मृत्यु संख्या > एक मिलियन प्रतिवर्ष

हेपाटाइटिस या यकृत शोथ यकृत को हानि पहुंचाने वाला एक गंभीर और खतरनाक रोग होता है। इसका शाब्दिक अर्थ ही यकृत को आघात पहुंचना है। यह नाम प्राचीन ग्रीक शब्द हेपार (ἧπαρ), मूल शब्द हेपैट - (ἡπατ-) जिसका अर्थ यकृत और प्रत्यय -आइटिस जिसका अर्थ सूज़न है, से व्युत्पन्न है। इसके प्रमुख लक्षणों में अंगो के उत्तकों में सूजी हुई कोशिकाओं की उपस्थिति आता है, जो आगे चलकर पीलिया का रूप ले लेता है। यह स्थिति स्वतः नियंत्रण वाली हो सकती है, यह स्वयं ठीक हो सकता है, या यकृत में घाव के चिह्न रूप में विकसित हो सकता है। हैपेटाइटिस अतिपाती हो सकता है, यदि यह छः महीने से कम समय में ठीक हो जाये। अधिक समय तक जारी रहने पर चिरकालिक हो जाता है और बढ़ने पर प्राणघातक भी हो सकता है। हेपाटाइटिस विषाणुओं के रूप में जाना जाने वाला विषाणुओं का एक समूह विश्व भर में यकृत को आघात पहुंचने के अधिकांश मामलों के लिए उत्तरदायी होता है। हेपाटाइटिस जीवविषों (विशेष रूप से शराब (एल्कोहोल)), अन्य संक्रमणों या स्व-प्रतिरक्षी प्रक्रिया से भी हो सकता है। जब प्रभावित व्यक्ति बीमार महसूस नहीं करता है तो यह उप-नैदानिक क्रम विकसित कर सकता है। यकृत यानी लिवर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। वह भोजन पचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शरीर में जो भी रासायनिक क्रियाएं एवं परिवर्तन यानि उपापचय होते हैं, उनमें यकृत विशेष सहायता करता है। यदि यकृत सही ढंग से अपना काम नहीं करता या किसी कारण वे काम करना बंद कर देता है तो व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते हैं। जब रोग अन्य लक्षणों के साथ-साथ यकृत से हानिकारक पदार्थों के निष्कासन, रक्त की संरचना के नियंत्रण और पाचन-सहायक पित्त के निर्माण में संलग्न यकृत के कार्यों में व्यवधान पहुंचाता है तो रोगी की तबीयत ख़राब हो जाती है और वह रोगसूचक हो जाता है। ये बढ़ने पर पीलिया का रूफ लेता है और अंतिम चरण में पहुंचने पर हेपेटाइटिस लिवर सिरोसिस और यकृत कैंसर का कारण भी बन सकता है। समय पर उपचार न होने पर इससे रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।

प्रकार

अवस्था के आधार पर वर्गीकृत करें तो हेपेटाइटिस की मुख्यतः दो अवस्थाएं होती हैं:

  • प्रारंभिक यानि अतिपाती (एक्यूट) और
  • पुरानी यानि चिरकालिक या दीर्घकालिक (क्रॉनिक)

प्रारंभिक अवस्था रोग आरंभ होने के आरंभिक तीन माह तक रहती है। किंतु छः माह तक भी इसका उचित उपचार न होने पर यह दीर्घकालिक रोग में बदल जाती है। प्रारंभिक अवस्था में हेपेटाइटिस के साथ ही पीलिया भी हो जाने पर और फिर इसका पर्याप्त उपचार न किये जाने पर यह दीर्घकालिक बी या सी में बदल जाती है। इतने पर भी उचित उपचार न होने पर यह लिवर सिरोसिस में परिवर्तित हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप पूरा यकृत ही क्षतिग्रस्त हो जाता है और आगे चलकर यकृत कैंसर भी होने की संभावना होती है। अतएव उपचार आरंभ करने से पहले इसकी अवस्था का ज्ञान होना अत्यावश्यक होता है, क्योंकि दोनों का उपचार अलग होता है। इन दोनों की ही तरह हेपेटाइटिस का उपचा यदि आरंभ में ही हो जाये तो पूरी तरह से स्वस्थ होने की संभावना अधिक रहती है, किन्तु अधिक विलंब होने पर यकृत क्षतिग्रस्त होता जाता है और फिर उपचार के बहुत अच्छे परिणाम नहीं मिल पाते। इनमें २० से २५ प्रतिशत रोगी औषधि के साथ परहेज करने से ठीक हो जाते हैं, लेकिन ८० प्रतिशत में यह रोग दीर्घकालिक हो जाता है।

यकृत शोध मूलत: पांच प्रकार का होता है हैपेटाइटिस ए, बी, सी, डी, व ई। भारत में आंकड़ों के अनुसार देखें तो ए, बी, सी और ई का संक्रमण है किन्तु हैपेटाइटिस डी का संक्रमण यहां नहीं है।

विषाणु जनित

अतिपाती हैपेटाइटिस के अधिकांश मामले विषाणुजनित संक्रमण से होते हैं। विषाणुजनित यकृत शोथ में निम्न प्रकार आते हैं:

हेपेटाइटिस ए

हैपेटाइटिस विषाणु का इलेक्ट्रॉन माइक्रोग्राफ

हैपेटाइटिस-ए रोग प्रमुखतया जलजनित रोग होता है। आंकड़ो के अनुसार हर वर्ष भारत में जलजनित रोग पीलिया के रोगियों की संख्या बहुत अधिक हैं। यह बीमारी दूषित खाने व जल के सेवन से होती है। जब नालियों व मल-निकासी का गंदा पानी या किसी अन्य तरह से प्रदूषित जल आपूर्ति के माध्यम में मिल जाता है जिससे बड़ी संख्या में लोग इससे प्रभावित होते हैं। आमतौर पर यह बीमारी तीन-चार हफ्तों के मात्र परहेज से ठीक हो जाती है किंतु गर्भवती महिलाओं को पीलिया होने से अधिक समस्या होती है। ऐसे में माँ और बच्चा दोनों की जान को खतरा होता है। यकृत में कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जिनके कारण रक्त के बहाव में अवरोध उत्पन्न होता है। इन्हें थ्रॉम्बोसाइट कहते हैं। इस कारण बहते खून को रोकने की क्षमता आती है। यकृत के क्षतिग्रस्त होने पर इन पदार्थो का अभाव हो जाता है। ऐसे में शरीर के किसी भाग से रक्त बहने पर प्राणघातक हो सकता है। हेपेटाइटिस बी और सी से भिन्न, हेपेटाइटिस ए संक्रमण चिरकालिक रोग उत्पन्न नहीं करता और अपेक्षाकृत कम घातक होता है, किन्तु ये दुर्बलता ला सकता है।

हेपेटाइटिस बी

हैपेटाइटिस बी विषाणु का माइक्रोग्राफ़

आंकड़ों पर आधारित अनुमान के अनुसार विश्व भर में दो अरब लोग हेपेटाइटिस बी विषाणु से संक्रमित हैं और ३५ करोड़ से अधिक लोगों में चिरकालिक यकृत संक्रमण होता है, जिसका मुख्य कारण मद्यपान है। हेपेटाइटिस-बी में त्वचा और आँखों का पीलापन (पीलिया), गहरे रंग का मूत्र, अत्यधिक थकान, उल्टी और पेट दर्द प्रमुख लक्षण हैं। इन लक्षणों से बचाव पाने में कुछ महीनों से लेकर एक वर्ष तक का समय लग सकता है। हेपेटाइटिस बी दीरअकालिक यकृत संक्रमण भी पैदा कर सकता है जो बाद में लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर में परिवर्तित हो सकता है। नियमित टीकाकरण के एक भाग के तहत तीन या चार अलग-अलग मात्रा में हेपेटाइटिस बी का टीका दिया जा सकता है। नवजात बच्चों, छह माह और एक वर्ष की आयु के समय में यह टीका दिया जाता है। ये कम से कम २५ वर्ष की आयु तक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

हेपेटाइटिस सी

हेपेटाइटिस सी शांत मृत्यु या खामोश मौत की संज्ञा दी जाती है। आरंभ में इसका कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता और जब तक दिखना आरंभ होता है, यह फैल चुका होता यह रोग रक्त संक्रमण से फैलता है। हाथ पर टैटू गुदवाने, संक्रमित खून चढ़वाने, दूसरे का रेजर उपयोग करने आदि की वजह से हेपेटाइटिस सी होने की संभावना रहती है। हेपेटाइटिस सी के अंतिम चरण में सिरोसिस और लिवर कैंसर होते हैं। हेपेटाइटिस के अन्य रूपों की तरह हेपेटाइटिस सी, यकृत में सूजन पैदा करता है। हेपेटाइटिस सी वायरस मुख्य रूप से रक्त के माध्यम से स्थानांतरित होता है और हेपेटाइटिस ए या बी की तुलना में अधिक स्थायी होता है। सौंदर्य चिकित्सा में कई पदार्थो से मृत कोशिकाओं को हटाया जाता है। यहां तक कि जहां मृत त्वचा कोशिकाएं गिरी होती हैं, उसकी सतह पर कई दिनों तक हेपेटाइटिस सी का वायरस पनपता रहता है। यदि स्पा या सैलून स्ट्रिंजेंट स्टरलाइजेशन तकनीकों का प्रयोग नहीं करते हैं तो उनके ग्राहक विषाणुओं के संपर्क में आ सकते हैं। इसएक अलावा औषधि इंजेक्ट करने वाले सांझे उपकरणों, किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित संभोग, कभी-कभार प्रसव के दौरान संक्रमित माता से उसके बच्चे में हो सकता है।

हेपेटाइटिस डी

यह रोग तभी होता है जब रोगी को बी या सी का संक्रमण पहले ही हो चुका हो। हेपेटाइटिस डी विषाणु इसके बी विषाणुओं पर जीवित रह सकते हैं। इसलिए जो लोग हेपेटाइटिस से संक्रमित हो चुके हों, उनके हेपेटाइटिस डी से भी संक्रमित होने की संभावना रहती है। जब कोई व्यक्ति डी से संक्रमित होता है तो सिर्फ बी से संक्रमित व्यक्ति की तुलना में उसके यकृत की हानि की आशंका अधिक होती है। हेपेटाइटिस बी के लिये दी गई प्रतिरक्षा प्रणाली कुछ हद तक हेपेटाइटिस डी से भी सुरक्षा कर सकती है। इसके मुख्य लक्षणों में थकान, उल्टी, हल्का बुखार, दस्त, गहरे रंग का मूत्र होते हैं।

हेपेटाइटिस ई

हेपेटाइटिस ई एक जलजनित रोग है और इसके व्यापक प्रकोप का कारण दूषित पानी या भोजन की आपूर्ति है। प्रदूषित जल इस महामारी के प्रसार में अच्छा सहयोग देता है और कई स्थानीय क्षेत्रों में कुछ मामलों के स्रोत कच्चे या अधपके शेलफिश का सेवन भी होता है। इससे विषाणु के प्रसार की संभावना अधिक होती है। हालांकि अन्य देशों की तुलना में भारत के लोगों में हेपेटाइटिस ई न के बराबर होता है। बंदर, सूअर, गाय, भेड़, बकरी और चूहे इस संक्रमण के प्रति संवेदनशील हैं।

अन्य प्रकार

कारण

हेपेटाइटिस ए, दूषित भोजन, जल इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के संपर्क में आने के कारण फैलती है। लक्षण प्रकट होने से पहले और बीमारी के प्रथम सप्ताह में अंडे तैयार होने के 15 से 45 दिन के दौरान ग्रस्त व्यक्ति के मल से हेपेटाइटिस ए वायरस फैलता है। रक्त एवं शरीर के अन्य द्रव्य भी संक्रामक हो सकते हैं। संक्रमण समाप्त होने के बाद शरीर में वाइरस नहीं रहता है और न ही वाहक ही रहता है। (कोई व्यक्ति या पशु, जो बीमारी को एक से दूसरे में फैलाते हैं पर स्वयं बीमार नहीं पड़ते)। हेपेटाइटिस ए के लक्षण फ्लू जैसे ही होते हैं, किंतु त्वचा तथा आंखे पीली (पीलिया) हो जाती हैं क्योंकि जिगर रक्त से बिलीरूबिन को छान नहीं पाता है। अन्य सामान्य हेपेटाइटिस वायरस, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी है, किंतु हेपेटाइटिस ए सबसे कम गंभीर है और इन बीमारियों में सबसे मामूली है। अन्य दोनों बीमारियां लंबी बीमारियों में परिवर्तित हो सकती है। किंतु हेपेटाइटिस ए नहीं।

अतिपाती

दीर्घकालिक

== लक्षण == iske lakshan me twacha aur aakho ka peelapan our taral padartho ka JAMA hone se pet ka badhna Shamil h , Thakan lgna . Bhukh na lgna. Ovr aakho our twacha ka peelapan hona

फैटी लीवर होने के क्या लक्षण हो सकते हैं?

शुरुआत में बिना गहन जांच किये, फैटी लिवर होने के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। जब दिखाई देने शुरू होते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इस बीमारी में लिवर का वह भाग जो कि चिकनाई से प्रभावित हुआ है, वह किसी भी दवाई से सही नही होता है। हाँ डॉक्टर्स इसका इलाज करते हैं कि उस हिस्से के अलावा लिवर के किसी हिस्से में यह न फैले। मैं स्वयं के बारे में ही बता रहा हूँ कि मेरा लिवर 30 प्रतिशत फैटी है। डॉक्टरों के अनुसार मेरे द्वारा अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन करना, लिवर फैटी होने का प्रमुख कारण था। डॉक्टरों द्वारा अल्ट्रा साउंड करवाने के उपरांत ही इस बीमारी का पता चला था।

मुझे लगभग एक महीने से भूख लगनी बंद हो गई थी। मैं कुछ भी खाता था तो वह वॉमिटिंग के द्वारा बाहर निकल जाता था। अगर वॉमिटिंग के बाद भी खाने का कुछ हिस्सा पेट में चला जाता था तो वह भी तुरंत शौच के रास्ते बाहर निकल जाता था। मेरा वजन मात्र एक ही महीने में 28 किलोग्राम कम हो गया था। मुझे बेड रूम से शौचालय तक जाने पर भी चक्कर आते थे। पूरा शरीर पीला पड़ गया था। उस समय मेरी माता जी जीवित थी जो कि आयुर्वेदिक पद्यति से इलाज करवाने में विश्वास करती थी। हमारे पारिवारिक डॉक्टर ने भी यही बताया कि मुझे जोंडिक्स हो गया है। मेरी माता जी ने कई बार मुझे पीलिया सही करवाने के लिए झाड़ा लगवाया। कई आर्युवेदिक दवाइयों का मुझे सेवन करना पड़ा। परंतु सेहत में कोई भी सुधार नहीं हो रहा था बल्कि तबियत और खराब होती जा रही थी। आखिरकार मैंने मैक्स सुपर स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल, साकेत के गेस्ट्रोलॉजी विभाग में डॉक्टर राकेश कुमार श्रीवास्तव की देखरेख में अपना इलाज शुरू करवाया। अल्ट्रासाउंड से साबित हो गया था कि मेरा लिवर चिकनाई के कारण 16 mm से ज्यादा बढ़ गया था तथा 30 प्रतिशत शक्तिग्रस्त हो गया था। उसके उपरांत मेरी एंडोस्कोपी करवाई गई कि इसके अलावा तो कोई अन्य ऑर्गन प्रभावित नही हुआ है। परंतु भगवान की कृपा से बस लिवर ही प्रभावित हुआ था। डॉक्टर ने नुझे साफ साफ बता दिया था कि जो हिस्सा शक्तिग्रस्त हो गया है वह अब सही नही होगा परंतु दवाइयों तथा परहेज के कारण के कारण और ज्यादा खराब नही होगा। इसके लिए उन्होंने मुझे सबसे पहले तो शराब का सेवन करने से मना किया तथा बताया कि इस हालत में शराब जहर के समान है। अधिक मसाले तथा तैलीय भोजन खाने के लिए मना कर दिया। मुझे लगभग दो साल से भी ज्यादा समय हो गया है परंतु परहेज करने तथा दवाई सही समय पर लेने के कारण मेरी तबियत में सुधार होना शुरू हो गया। मैं अन्न के नाम पर मात्र, दलिया, खिचड़ी के साथ मौसमी फलो का सेवन कर रहा हूँ एवं जीवन भर यही खाना पड़ेगा।

इसलिए मैं लोगो को सलाह देना चाहता हूं कि वह शराब, चिकनाई तथा कैलेस्ट्रोल बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन ना करे।

फैटी लीवर होने पर लीवर में फैट जमा हो जाता है।

आंखों में पीलापन आ जाता है।

व्यक्ति को कमजोरी महसूस होती है।

खाना हजम नहीं होता है।

गैस ज्यादा बनती है।

पेट के ऊपर वाले हिस्से में हल्का हल्का दर्द रहता है।

इस तरह से अगर कुछ लक्षण दिखाई दें तो अपने लीवर की आवश्यक जांच करानी चाहिए और समय रहते उचित इलाज कराना चाहिए।

फैटी लिवर के अन्य लक्षण...

पीलिया.... लिवर की बीमारी के कारण पढ़ने के लिए

त्वचा और आंखों का पीला होना भी फैटी लिवर का लक्षण हो सकता है। यकृत रोगों की पहचान करने के लिए समय-समय पर त्वचा और आंखों की जांच करें।

पेट दर्द....

फैटी लिवर की समस्या की शिकायत करने वाले पेट में दर्द होता है। अगर आपको भी बार-बार पेट में दर्द होता है, तो इस समस्या को गंभीरता से लें और चिकित्सीय जांच करवाएं। पेट के ऊपरी दाहिने भाग में या पसलियों के नीचे दाहिने भाग में दर्द होता है।

थकान....

लिवर से जुड़ी समस्याओं के कारण थकान, चक्कर आना, याददाश्त कम होना, दिमागी कमजोरी आदि परेशानियां होने लगती हैं। उन्हें भूलकर भी नजरअंदाज न करें।

भूख में कमी....

वजन कम होना या भूख कम लगना भी फैटी लिवर का लक्षण है। इस समस्या में रोगी बहुत कमजोर हो जाता है।

पाचन संबंधी गड़बड़ी....

लिवर से जुड़ी समस्याओं के मामले में, ठीक से खाना न खाना और एसिडिटी की समस्या जैसी समस्याएं परेशान करने वाली हो सकती हैं।

लीवर को ठीक करने का घरेलु आयुर्वेदिक इलाज…..

अतिपाती

नैदानिक रूप से, अतिपाती हेपाटाइटिस का कोर्स उपचार के लिए अनावश्यक हल्के लक्षणों से लेकर अचानक और तेजी से यकृत का कार्य करना बंद कर देने के कारण यकृत प्रत्यारोपण की आवश्यकता वाले लक्षणों के लिये व्यापक रूप से भिन्न होता है। अतिपाती हेपाटाइटिस युवाओं में संभवतः अलक्षणात्मक होती है। 7 से 10 दिनों के स्वास्थ्य लाभकारी चरण के बाद लक्षणात्मक व्यक्ति पुनः उपस्थित हो सकता है। इस प्रकार बीमारी की कुल अवधि 2 से 6 सप्ताह तक हो सकती है।

आरंभिक विशेषताएं फ़्लू के सामान अनिश्चित लक्षण हैं, जो सभी अतिपाती विषाणुजनित संक्रमणों में सामान्य रूप से देखने को मिलते हैं और इसमें शामिल हैं अस्वस्थता, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, बुखार, मिचली या उल्टी, दस्त और सिर में दर्द. अतिपाती हेपाटाइटिस में किसी कारण से पाये जा सकने वाले अधिक विशिष्ट लक्षण हैं भूख में बहुत अधिक कमी, धुम्रपान करने वालों में धुम्रपान करने के प्रति अरुचि, मूत्र का रंग गहरा होना, आंख और त्वचा का पीलापन (अर्थात पीलिया) और उदर संबंधी कष्ट. पीलिया (33%) और यकृत के आकार में असामान्य वृद्धि (10%) के अलावे शारीरिक जांच परिणाम सामान्य रूप से अल्पतम होता है। कभी-कभी लसीका गांठ में असामान्य वृद्धि (5%) या प्लीहा के आकार में असामान्य वृद्धि (5%) हो सकती है।

दीर्घकालिक

बहुसंख्यक रोगी रोग के संबंध में अलक्षणात्मक या थोड़े बहुत लक्षणात्मक रहेंगे. उनकी एक मात्र पहचान असामान्य रक्त परीक्षणों के रूप में होंगी. लक्षण यकृत को होने वाली नुकसान की मात्रा या हैपेटाइटिस होने के कारण से संबंधित हो सकते हैं। अनेक लोग अतिपाती हेपाटाइटिस से संबंधित रोग लक्षण पुनः महसूस करते हैं। परवर्ती लक्षण के रूप में पीलिया हो सकता है और यह व्यापक नुकसान की सूचना दे सकता है। अन्य विशेषताओं में बढ़े हुए यकृत या प्लीहा से उदर संबंधी पूर्णता, हल्का बुखार और जल अवरोधन (उदर में जल का असामान्य जमाव). यकृत को व्यापक नुकसान और उस पर घाव के निशान (अर्थात् सिरोसिस) से वजन में कमी आती है, शीघ्र खरोंच आ जाता है और रक्त स्राव होने की प्रवृत्ति हो जाती है। स्व-प्रतिरक्षित हेपाटाइटिस से प्रभावित महिलाओं में मुंहासे, असामान्य मासिक धर्म, फेफड़ों में घाव के निशान, थाइरॉयड ग्रंथि और वृक्क (गुर्दे) में सूजन पाए जा सकते हैं।

नैदानिक परीक्षण से संबंधित जांच परिणाम आम तौर पर सिरोसिस या रोग की उत्पत्ति से संबंधित होते हैं।

अन्य विषाणुजनित (वायरल) कारण

अन्य विषाणुजनित संक्रमण हैपेटाइटिस (यकृत में सूजन) उत्पन्न कर सकते हैं: हेपाटाइटिस

एल्कोहोल से होने वाले हैपेटाइटिस

अधिकांशतः एल्कोहोल संबंधी पेय पदार्थों में पाया जाने वाला इथेनॉल हैपेटाइटिस का एक महत्वपूर्ण कारण है। आम तौर पर एल्कोहोल से होने वाला हेपाटाइटिस एल्कोहोल के बढ़ते हुए सेवन के फलस्वरूप होता है। एल्कोहोल संबंधी विशेषता रोग-लक्षणों का भिन्न समूह है, जिसमें अस्वस्थ महसूस करना, यकृत के आकार में वृद्धि, उदर जलोदर में जल की वृद्धि और यकृत के रक्त परीक्षणों में थोड़ी सी वृद्धि शामिल हो सकते हैं। एल्कोहोल से होने वाला हेपाटाइटिस केवल यकृत परीक्षण में वृद्धि से लेकर पीलिया के रूप में विकसित होने वाले यकृत के गंभीर सूजन, प्रोथॉम्बिन के बढ़े हुए समय और यकृत का काम करना बंद कर देने के रूप में भिन्न हो सकता है। गंभीर मामलों की विशेषता या तो तीव्रता में कमी (संवेदनाशून्य चेतना) या बिलीरूबिन के बढ़े हुए स्तरों और प्रोथॉम्बिन के बढ़े हुए समय का सम्मिश्रण होती है; दोनों श्रेणियों में मृत्यु दर रोग के आक्रमण होने के 30 दिनों के भीतर 50% होती है।

एल्कोहोल से होने वाला हेपाटाइटिस एल्कोहोल का लंबे समय तक सेवन करने से होने वाले सिरोसिस से भिन्न है। एल्कोहोल सिरोसिस और अल्कोहल से होने वाला हेपाटाइटिस दीर्घकालिक एल्कोहोल संबंधी यकृत रोग से प्रभावित रोगियों में हो सकता है। एल्कोहोल से होने वाला हेपाटाइटिस से स्वतः सिरोसिस नहीं होता है, लेकिन एल्कोहोल का लंबे समय तक सेवन करने वाले रोगियों में सिरोसिस अधिक सामान्य तौर पर देखने को मिलती है। जो रोगी अत्यधिक मात्रा में एल्कोहोल पीते हैं उनमें अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा हेपाटाइटिस C अधिक पाया जाता है। [14] हेपाटाइटिस C और एल्कोहोल के सेवन का सम्मिश्रण सिरोसिस के विकास को तेज करता है।

औषधि द्वारा प्रेरित

अनेक औषधियां हेपाटाइटिस उत्पन्न कर सकती हैं:

औषधि द्वारा प्रेरित हेपाटाइटिस की अवधि बिलकुल परिवर्तनशील है, जो औषधि और औषधि के प्रति रोगी की प्रतिक्रिया व्यक्त करने की प्रवृत्ति पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, हैलोथेन हेपाटाइटिस INH-प्रेरित हेपाटाइटिस के सामान हल्का से लेकर प्राणघातक तक हो सकता है। हार्मोन संबंधी गर्भनिरोधक यकृत में संरचनात्मक परिवर्तन उत्पन्न कर सकता है। ऐमियोडैरोन हेपाटाइटिस असाध्य हो सकता है क्योंकि औषधि के लम्बे आधे जीवन (60 दिनों तक) का अर्थ है कि इस औषधि से संसर्ग रोकने के लिए कोई प्रभावकारी उपाय नहीं है। स्टैटिन यकृत के कार्य संबंधी रक्त परीक्षणों में बढ़ोतरी ला सकता है। अन्ततः, मानव परिवर्तनशीलता इस प्रकार की है कि कोई भी औषधि हैपेटाइटिस होने का कारण हो सकता है।

अन्य जीवविष

अन्य जीवविष हेपाटाइटिस उत्पन्न कर सकते हैं:

चयापचय संबंधी विकार

कुछ चयापचय संबंधी विकार विभिन्न प्रकार के हेपाटाइटिस उत्पन्न करते हैं। हेमोक्रोमैटोसिस (लौह तत्वों के जमाव के कारण) और विल्सन रोग (ताम्र तत्वों का जमाव) यकृत में सूजन और कोशिका मृत्यु का कारण बन सकते हैं।

एल्कोहोल रहित स्टीटोहैपेटाइटिस नैश (NASH) प्रभावकारी रूप से चयापचय संबंधी संलक्षण का एक परिणाम है।

प्रतिरोधात्मक

"प्रतिरोधात्मक पीलिया" एक शब्द है जिसका प्रयोग पित्त नली में अवरोध के कारण होने वाले पीलिया (पित्ताश्म के द्वारा या कैंसर के द्वारा बाह्य प्रतिरोध के द्वारा) के लिए किया जाता है। अधिक लम्बे समय तक रहने पर यह यकृत ऊतक का नाश करता है और यकृत ऊतक में सूजन उत्पन्न करता है।

स्व-प्रतिरक्षा

संभवतः अनुवांशिक प्रवृत्ति या यकृत के गंभीर संक्रमण के कारण यकृत के पैरेनाकईमा कोशिका की दीवार की सतह पर मानव सितकेशा प्रतिजन वर्ग II की अनियमित उपस्थिति शरीर के अपने यकृत के विरुद्ध कोशिका द्वारा मध्यस्थता वाली [[प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया|प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है। इसके परिणामस्वरूप स्व-प्रतिरक्षित हैपेटाइटिस]] होता है।

अल्फा-1 ऐन्टिट्रिप्सिन की कमी

अल्फा-1 ऐन्टिट्रिप्सिन (A1AD) की कमी के कई मामलों में, अन्तः प्रदव्ययी जलिका में एकत्रित प्रोटीन यकृत कोशिका को नुकसान पहुंचाता है और उसमें सूजन उत्पन्न करता है।

एल्कोहोल-रहित वसामय यकृत रोग

एल्कोहोल-रहित वसामय यकृत रोग (NAFLD) उन लोगों में वसामय यकृत पाए जाने की घटना है जिनका एल्कोहोल के सेवन का कोई इतिहास नहीं है। यह सबसे आम तौर पर मोटापा से संबंधित है (मोटापे से ग्रस्त सभी लोगों में से 80% लोगों के वसामय यकृत होते हैं).यह महिलाओं में ज्यादा आम बात होती है। गंभीर NAFLD सूजन उत्पन्न करता है, जिस स्थिति को एल्कोहोल-रहित स्टीटोहैपेटाइटिस (NASH) कहा जाता है। यकृत के बायोप्सी करने पर यह एल्कोहोल से होने वाले हैपेटाइटिस के समान होता है (जिसमें वसा की छोटी बूंदें और सूजन पैदा करने वाली कोशिकाएं पायी जाती हैं, लेकिन कोई भी मैलोरी निकाय नहीं पाया जाता है).

रोग-निदान चिकित्सा का इतिहास, शारीरिक परीक्षण, रक्त परीक्षण, [[रेडियोलोजी|विकिरण प्रतिमाओं और कभी-कभी यकृत की बायोप्सी]] पर निर्भर करता है। यकृत में चर्बीदार अन्तः स्पंदन की उपस्थिति का पता लगाने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन चिकित्सा संबंधी चित्रण है, जिसमें अल्ट्रासाउंड, परिकलित टोमोग्राफी (CT), या चुम्बकीय अनुकम्पन (MRI) शामिल हैं। हालांकि, चित्रण तकनीक आसानी से यकृत में सूजन की पहचान नहीं कर सकता है। इसलिए, स्टीटोसिस और NASH के बीच अंतर जानने के लिए अक्सर यकृत के एक बायोप्सी की आवश्यकता होती है। जब रोगी का एल्कोहोल के सेवन का इतिहास है तो एल्कोहोल के सेवन से होने वाले हैपेटाइटिस और NASH के बीच अंतर पहचानना कठिन भी हो सकता है। कभी-कभी ऐसे मामलों में एल्कोहोल के साथ परहेज करने के परीक्षण के साथ-साथ आगे के रक्त परीक्षण और बार-बार होने वाले यकृत की बायोप्सी की जरुरत होती हैं।

NASH यकृत संबंधी रोग के सबसे महत्वपूर्ण कारण के रूप में स्वीकृत होता जा रहा है और सिरोसिस के रोगियों की संख्या के हिसाब से यह हैपेटाइटिस C के बाद केवल दूसरा है।

इस्केमिक हैपेटाइटिस

इन्हें भी देखें: Ischemic hepatitis

इस्केमिक हैपेटाइटिस यकृत कोशिकाओं में रक्त के कम संचरण के कारण होता है। सामान्य रूप से यह घटे हुए रक्तचाप (या आघात) के कारण होता है, जिससे "यकृत अघात" नामक का रोग होता है। इस्केमिक हैपेटाइटिस से प्रभावित रोगी सामान्य रूप से अघात के कारण बहुत बीमार होते हैं। कदाचित, इस्केमिक हैपेटाइटिस यकृत को ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली रक्त वाहिकाओं के साथ स्थानीय समस्याओं से हो सकता है (जैसे कि थ्रॉम्बोसिस, या यकृत कि कोशिकाओं को अंशतः रक्त की आपूर्ति करने वाली यकृत संबंधी रक्त-वाहिनी में रक्त का थक्का बनाना). इस्केमिक हेपाटाइटिसरक्त परीक्षणयकृत समारोह परीक्षणएनज़ाइम(AST and ALT), के बहुत बढ़े हुए स्तर दिखाई देंगे, जो 1000 U/L अधिक हो सकते हैं। इन रक्त परीक्षणों में बढ़ोत्तरी सामान्य रूप से अस्थायी (7 से 10 दिनों तक) होती हैं। यह शायद ही कभी होता है कि इस्केमिक हैपेटाइटिस द्वारा यकृत का कार्य करना प्रभावित होगा.

रोकथाम

अशुद्ध भोजन व पानी से दूर रहें, शौच आदि से निवृत्त होकर हाथ अच्छी तरह से धोएं, तथा प्रभावित व्यक्ति के रक्त, फेसिस या शरीर के द्रव्यों के संपर्क में आने पर अच्छी तरह से अपने आपको साफ करके वायरस को बढ़ने या फैलने से रोका जा सकता है।

दैनिक देखभाल सुविधाएं और लोगो के घनिष्ट संपर्क में आने वाले अन्य संस्थानों के कारण हेपेटाइटिस ए के फैलने की संभावना अधिक हो जाती है। कपड़े बदलने से पहले और बाद में हाथ अच्छी तरह से धोने, भोजन परोसने से पहले और शौचालय के बाद हाथ साफ करने से इसके फैलने को रोका जा सकता है।

हेपेटाइटिस ए से ग्रस्त लोगों के संपर्क में रहने वाले लोगों को इम्यून ग्लोब्युलिन देना चाहिए। हेपेटाइटिस ए संक्रमण के रोकने के लिए टीके उपलब्ध है। टीके की प्रथम खुराक लेने के चार सप्ताह बाद टीका असर करना शुरू कर देता है। लंबे समय तक सुरक्षा के लिए 6 से 12 माह का बूस्टर आवश्यक है।

वे व्यक्ति जिन्हें टीका लगाना आवश्यक है

  • हेपेटाइटिस ए से बहुत अधिक प्रभावित क्षेत्रों या देशों की यात्रा करते हों (पहला टीका लगाने के बाद 4 सप्ताह में अधिक प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा करने वालों को एक और टीका (इम्यून सिरमग्लोब्यूलिन) उसी समय दे दिया जाना चाहिए जब टीका दिया जा रहा हो लेकिन यह टीका उस स्थान पर नहीं दिया जाना चाहिए जहां पहला टीका दिया गया हो)
  • गुदा संभोग करते हों
  • आई वी (नसों में) दवा के उपयोगकर्ता
  • जो गंभीर रूप से हेपेटाइटिस बी या सी से संक्रमित हों

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ


Новое сообщение