Продолжая использовать сайт, вы даете свое согласие на работу с этими файлами.
मनोचिकित्सा
किसी मनोचिकित्सक द्वारा किसी मानसिक रोगी के साथ सम्बन्धपूर्वक बातचीत एवं सलाह मनोचिकित्सा या मनश्चिकित्सा (Psychotherapy) कहलाती है। यह लोगों की व्यवहार सम्बन्धी विविध समस्याओं में बहुत उपयोगी होती है। मनोचिकित्सक कई तरह की तकनीकें प्रयोग करते हैं, जैसे- प्रायोगिक सम्बन्ध-निर्माण, संवाद, संचार तथा व्यवहार-परिवर्तन आदि। इनसे रोगी का मानसिक-स्वास्थ्य एवं सामूहिक-सम्बन्ध (group relationships) सुधरते हैं।
डॉ॰ विक्टर फ्रैंकलिन ने गहन अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पूरा मनोविज्ञान और मनोचिकित्सा की पद्धति जीवन की सार्थकता के विचार पर ही आधारित होती हैं। मनोचिकित्सा शास्त्र में किसी रोगी की बुनियादी दिक्कतों को समझने की कोशिश की जाती है। प्रबुद्ध सोसाइटी रामवृक्ष धाम नेचुआ जलालपुर गोपालगंज बिहार के अध्यक्ष डा0 श्रीप्रकाश बरनवाल का कहना है कि आधुनिक समाज में हम वास्तविक खुशियों से दूर होते जा रहे हैं तथा सयुंक्त परिवार की अवधारणा लुप्त होती जा रही है एवं एकल परिवार वाद का बोल बाला का प्रचलन बढता जा रहा है आज हमलोग आधुनिकता का सही मतलब नहीं समझते हैं। जीवन के लिए क्या और कितना जरूरी है। क्या गैर-जरूरी है। आंख मूंद कर, तर्क किए बगैर हम चीजों का अनुसरण करने लग जाते हैं। जीवन का लुत्फ उठाना और पीड़ा की उपेक्षा करना ही केवल मनुष्य को प्रेरित नहीं करती है।
मनोचिकित्सा या एक मनोचिकित्सक के साथ व्यक्तिगत परामर्श, एक साभिप्राय अंतर्वैयक्तिक सम्बन्ध होता है, जिसका प्रयोग प्रशिक्षित मनोचिकित्सक एक ग्राहक या रोगी की जीवनयापन संबंधी समस्याओं के निवारण में सहायता के लिए करते हैं।
इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति में अपने कल्याण के प्रति भावना को बढाना होता है। मनोचिकित्सक अनुभवजनित सम्बन्ध निर्माण, संवाद, संचार और व्यवहार पर आधारित तकनीकों की एक विस्तृत श्रंखला का प्रयोग करते हैं, इन तकनीकों की संरचना ग्राहक या रोगी के मानसिक स्वास्थ अथवा समूह के साथ उसके व्यवहार में सुधार करने वाली होती है, (जैसे परिवार में रोगी का व्यवहार).
मनोचिकित्सा भिन्न प्रकार की योग्यताओं से युक्त चिकित्सकों द्वारा अभ्यास में लायी जा सकती है, जिसमे मनोरोग चिकित्सा, नैदानिक मनोविज्ञान, सलाहात्मक मनोविज्ञान, मानसिक स्वास्थ संबंधी परामर्श, नैदानिक या मनोरोग संबंधी सामाजिक कार्य, विवाह और परिवार संबंधी मनोचिकित्सा, पुनर्सुधार परामर्श, संगीत मनोचिकित्सा, व्यवसाय संबंधी मनोचिकित्सा, मनोरोग संबंधी परिचर्या, मनोविश्लेषण और अन्य सम्मिलित हैं। यह अधिकार क्षेत्र के आधार पर वैध रूप से नियमित, ऐच्छिक रूप से नियमित या अनियमित हो सकता है।
अनुक्रम
- 1 नियमन
- 2 शब्द व्युत्पत्ति
- 3 प्रारूप
- 4 प्रणाली
- 5 इतिहास
- 6 सामान्य प्रयोजन
-
7 विशेष विचार-पद्धति एवम शैलियां
- 7.1 मनोविश्लेषण
- 7.2 जेसटाल्ट पद्धति
- 7.3 समूह मनोचिकित्सा
- 7.4 चिकित्सकीय और गैर चिकित्सकीय प्रतिदर्श
- 7.5 संज्ञानात्मक व्यवहारगत पद्धति
- 7.6 व्यवहार संबंधी पद्धति
- 7.7 शरीर उन्मुख मनोचिकित्सा
- 7.8 अभिव्यक्तिपूर्ण पद्धति
- 7.9 अंतर्वैयक्तिक मनोचिकित्सा
- 7.10 वर्णनात्मक पद्धति
- 7.11 एकीकृत मनोचिकित्सा
- 7.12 सम्मोहन चिकित्सा
- 7.13 बच्चों के उपचार के लिए रूपांतरण
- 7.14 गोपनीयता
- 8 प्रभावशीलता के सम्बन्ध में आलोचनाएँ और प्रश्न
- 9 सन्दर्भ
- 10 इन्हें भी देखें
- 11 बाहरी कड़ियाँ
नियमन
जर्मनी में, मनोचिकित्सा (PSYchTHG, 1998) मनोचिकित्सा के अभ्यास को मनोविज्ञान और मनोरोग चिकित्सा तक ही सिमित कर देता है; इटली में, द औसुकिनी एक्ट (नंबर. 56/1989, लेख. 3) मनोचिकित्सा के अभ्यास को मनोविज्ञान यां उपचार से स्नातक, जोकि मनोचिकित्सा में राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त किसी प्रशिक्षण केंद्र से एक चार वर्षीय परास्नातक पाठ्यक्रम कर चुके हों; फर्न्सीसी कानून, राष्ट्रीय रजिस्टर में अंकित व्यवसायिओं द्वारा शीर्षक "साइकोथेरेपी" के प्रयोग को अवोरोधित करता है, ऑस्ट्रिया में एक कानून है जो अनेकों बहुशैक्षिक माध्यमों को मान्यता देता है; अन्य यूरोपीय देशों ने अब तक मनोचिकित्सा को नियमित नहीं किया है।
यूनाइटेड किंगडम में, मनोचिकित्सा स्वेच्छा से विनियमित है। मनोचिकित्सकों और परामर्शदाताओं की राष्ट्रीय सूची की देखरेख तीन प्रमुख समुच्चयिक हस्तियों द्वारा होगी: द युनाइटेड किंगडम काउंसिल फॉर साइकोथेरेपी (UKCP), द ब्रिटिश एसोसियेशन फॉर काउंसिलिंग एंड साइकोथेरेपी (BACP) और द ब्रिटिश साइकोएनालिटिकल काउंसिल (BPC- जिसका पूर्व नाम ब्रिटिश साइकोथेरेपिस्ट कन्फ़ेडेरेशन). कई छोटे व्यवसायिक व्यक्ति और संसथान, जैसे की द एसोसियेशन ऑफ़ चाइल्डसाइकोथेरेपिस्ट (ACP) और द ब्रिटिश एसोशियेशन ऑफ़ साइकोथेरेपिस्त (BAP).
यूके की हेल्थ प्रोफेशनल काउंसिल ने हाल ही में मनोचिकित्सकों और परामर्शदाताओं के संभावित संवैधानिक नियमों पर विचार विमर्श किया है। एचपीसी एक आधिकारिक राज्य नियंत्रनकर्ता है जो वर्तमान में लगभग 15 प्रकार के व्यवसायों को नियंत्रित करती है।
शब्द व्युत्पत्ति
साइकोथेरेपी शब्द की व्युत्पत्ति, प्राचीन ग्रीक शब्द साइकी से हुयी है, जिसका अर्थ होता है श्वास या आत्मा और थेरैपिया या थेरेपिउईन का अर्थ होता है, परिचर्या करना या उपचार करना. इसने प्रथम प्रयोग का उल्लेख 1890 के आसपास है। इसे एक विशिष्ट सिद्धांत या प्रतिमान पर आधारित माध्यम के प्रयोग द्वारा चिंता से आराम या, एक व्यक्ति में किसी दूसरे के द्वारा विकलान्गता के रूप में व्यक्त किया जा सकता है और इस उपचार का संपादन करने वाले प्रतिनिधि के पास इसके निष्पादन के लिए किसी प्रकार का प्रशिक्षण भी होता है। अंत के दोनों बिंदु ही मनोचिकित्सा को परामर्श और देखरेख के अन्य प्रारूपों से अलग करते हैं।
प्रारूप
मनोचिकित्सा के अधिकांश प्रारूपों में बातचीत का प्रयोग होता है। कुछ संचार के तमाम अन्य माध्यमों का प्रयोग करते हैं जैसे, लिखित शब्द, कलात्मक कार्य, ड्रामा, कथा वर्णन या संगीत. माता-पिता और उनके बच्चों के साथ मनोचिकित्सा में प्रायः नाटक, ड्रामा (अर्थात भूमिका निभाना) और कला करना आदि शामिल होता है जोकि पारस्परिक क्रिया की अमौखिक और विस्थापित विधि से सह-निर्मित वर्णन के साथ किया जाता है। मनोचिकित्सा एक कुशल चिकित्सक और उसके रोगी (ग्राहक) के मध्य एक नियोजित समागम के भीतर की जाती है। उद्देश्य मूलक सैद्धांतिक मनोचिकित्सा की शुरुआत 19 वीं शताब्दी में मनोविश्लेषण से हुयी; और तब ही से, अनेकों अन्य माध्यम विकसित हो रहे हैं और लगातार बन रहे हैं।
इस चिकित्सा का उपयोग अनेकों प्रकार की रोग विषयक आधारों पर निदानयोग्य और/या अस्तित्वपरक संकट के विशिष्ट या अविशिष्ट प्रत्यक्षीकरण की प्रतिक्रिया के रूप में किया जाता है। रोजमर्रा की समस्याओं के इलाज को साधारणतया परामर्श (मूल रूप से कार्ल रोजर द्वारा अंगीकृत विभेद) के नाम से जाना जाता है। हालांकि, परामर्श शब्द का प्रयोग कभी-कभी "मनोचिकित्सा" के लिए भी किया जाता है।
एक और जहां कुछ मनोचिकित्सकीय मध्यवर्तन रोगी का चिकित्सकीय प्रतिदर्श के आधार पर उपचार करने के लिए बनाये गए हैं, वहीँ दूसरी और कई मनोचिकित्सकीय माध्यम "बीमारी/इलाज" के मात्र लक्षण आधारित माध्यम का ही अनुसरण नहीं करते. कुछ चिकित्सक, जैसे कि मानववादी चिकित्सक, स्वयं को अधिकांशतः सुसाध्यक/सहायक की भूमिका में अधिक देखते हैं। मनोचिकित्सा के दौरान प्रायः संवेदनशील और अधिक निजी विषयों पर चर्चा की जाती है, सामान्य रूप से चिकित्सक से ऐसी आशा की जाती है और इसके लिए वह कानूनी रूप से बाध्य भी होता है कि, वह अपने ग्राहक या रोगी की गोपनीयता का सम्मान करेगा. गोपनीयता की अत्यावश्यक महत्ता मनोचिकित्सकीय संस्थाओं की नियामक आचार संहिता में भी लिखित रूप से प्रतिष्ठित है।
प्रणाली
मनोचिकित्सा की अनेकों प्रमुख व्यापक प्रणालियाँ हैं:
- मनोवैश्लेषिक - यह पहला उपचार था जिसे मनोचिकत्सा के नाम से जाना गया। यह रोगी के सभी विचारों की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करता है, जिसमे, कल्पनाएं और स्वप्न शामिल होते हैं, जिसके द्वारा विश्लेषक उस अचेतन संघर्ष का निरूपण करता है जो रोगी में लाक्षणिक और व्यवहारगत समस्या का कारण हैं।
- व्यवहार सम्बन्धी चिकित्सा/प्रयुक्त व्यवहार विश्लेषण - अनुकूलन में कठिनाई के अभ्यास को बदलने पर केंद्रित रहता है जिससे भावात्मक प्रतिक्रियाओं, संज्ञान और दूसरों के साथ पारस्परिक क्रिया में सुधार किया जा सके.
- संज्ञानात्मक व्यवहार - आम तौर पर व्यवहार करना चाहता है बेकार लक्ष्य को प्रभावित करने की विनाशकारी नकारात्मक भावनाओं और समस्याग्रस्त प्रतिक्रियाओं के साथ और विश्वासों की पहचान मलादाप्तिवे अनुभूति, मूल्यांकन,. संज्ञानात्मक स्वभावजन्य - यह सामान्यतया अनुकूलन में कठिनाई पैदा करने वाले संज्ञानों, मूल्यांकन, विनाशकारी नकारात्मक भावनाओं और समस्यात्मक दुश्क्रियाशील व्यवहार को प्रभावित करने का उद्देश्य रखने वाले भावनाओं और प्रतिक्रिया की खोज करती है।
- मनोवेगीय - गहन मनोविज्ञान का एक रूप है, जिसका प्राथमिक कार्य एक ग्राहक/रोगी के मानसिक चिंता को कम करने के प्रयास में मन के अचेतन विचारों को प्रकट करना है। हालांकि इसकी जड़ें मनोविश्लेषण में हैं, फिर भी मनोवेगीय चिकित्सा स्वाभाव से परंपरागत मनोविश्लेषण की तुलना में संक्षिप्त और अल्प गहन है।
- अस्तित्वपरक - यह इस अस्तित्वपरक मत पर आधारित है कि मानव इस दुनिया में अकेला है। यह एकांकीपन निरर्थकता की भावना को जन्म देता है, जिस पर विजय पाने का एक मात्र तरीका स्वयं की मान्यताओं व् उद्देश्य के निर्माण में है। अस्तित्वपरक चिकित्सा दार्शनिक दृष्टि से तथ्यवाद से सम्बंधित है।
- मानववादी - यह व्यवहारवाद और मनोविश्लेषण की प्रतिक्रिया के रूप में अवतरित हुए और इसीलिए मनोविज्ञान के विकास में इन्हें तीसरी शक्ति के नाम से जाना जाता है। यह स्पष्ट रूप से व्यक्ति विशेष के विकास के मानवीय सन्दर्भ से सम्बंधित है जिसमे यह विस्तृत अर्थ, दृदनिश्चय के बहिष्कार और निदान के स्थान पर सकारात्मक विकास के लिए चिंता पर अधिक जोर देता है। यह अन्तर्निहित शक्ति को अधिकतम सीमा तक बढाने की स्वाभाविक मानवीय क्षमता में विश्वास रखता है। मानववादी चिकित्सा का कार्य एक सम्बन्धमूलक वातावरण का निर्माण है जिससे कि इस प्रवृत्ति का विकास हो सके. मानववादी मनोविज्ञान की जड़ें दार्शनिक रूप से अस्तित्ववाद में निहित हैं।
- संक्षिप्त - "संक्षिप्त चिकित्सा" मनोचिकित्सा के अनेकों माध्यमों के लिए एक अधिसमुच्चयिक शब्दावली है। यह चिकित्सा के अन्य मतों से इस मामले में भिन्न है कि यह (1) विशिष्ट समस्याओं और (2) सीधे हस्तक्षेप पर ध्यान केंद्रित करने पर अधिक जोर देता है। यह समस्या पर आधारित न होकर समाधान पर आधारित है। इसमें चिंता का विषय यह नहीं होता कि कोई समस्या किस प्रकार पैदा हुई, अपितु इस बात पर चिंता की जाती है कि वह कौन से कारण हैं जो इस समस्या को बनाये रखने और परिवर्तित न होने देने के लिए ज़िम्मेदार हैं।
- सर्वांगी - प्रायः चिकित्सा के अन्य रूपों के केंद्र में रहने के कारण यह व्यक्ति स्तर पर लोगों से सम्बंधित नहीं है, लेकिन यह निम्न परिस्थितियों में लोगों से सम्बद्ध रहती है जब वह किसी रिश्ते से जुड़े हों, समूहों की पारस्परिक क्रिया में, उनकी शैली और गतिशीलता आदि में, (जिसमे परिवार के स्तर पर चिकित्सा और विवाह सम्बन्धी परामर्श भी शामिल है). सामुदायिक मनोविज्ञान सर्वंगी मनोविज्ञान का ही एक प्रकार है।
- परावैयक्तिक - यह चेतना के आत्मिक बोध के सम्बन्ध में रोगी की सहायता करता है।
इस समय अनेकों प्रकार के मनोचिकित्सकीय माध्यम या मत प्रचलन में हैं। 1980 तक 250 से भी अधिक माध्यम थे; 1996 तक यह 450 से भी अधिक हो गए। सैद्धांतिक पृष्ठभूमि की व्यापक विविधता के साथ नए और संकर माध्यमों का विकास जारी है। अनेकों चिकित्सक अपने कार्य में कई शैलियों का प्रयोग करते हैं और रोगी (ग्राहक) की आवश्यकता के अनुसार अपनी शैली बदलते रहते हैं।
- मनोचिकित्सा के भिन्न प्रकारों की विस्तृत सूची के लिए मनोचिकित्सा सूची देखें .
इतिहास
- इन्हें भी देखें: मनोचिकित्सा के इतिहास एवं मनोचिकित्सा के घटनाक्रम
एक अनौपचारिक मायने में मनोचिकित्सा के लिए उम्र के माध्यम से अभ्यास कर दिया गया है कहा जा सकता है, व्यक्तियों के रूप में दूसरों से मनोवैज्ञानिक सलाह और आश्वासन प्राप्त किया। अनौपचारिक रूप से, यह कहा जा सकता है कि मनोचिकित्सा का अभ्यास कई युगों से चल रहा है, जैसा कि लोग अन्य लोगों के माध्यम से मनोवैज्ञानिक परामर्श और आशवासन प्राप्त करते आये हैं। दर्शन का हेलेनवादी मत और चिकत्सा को मानने वाले दार्शनिक और चिकित्सक लगभग चौथी शताब्दी ईपू और चौथी शताब्दी ईसा पश्चात से प्राचीन ग्रीक और रोमवासियों के बीच इस मनोचिकित्सा का अभ्यास करते आये हैं। ग्रीक चिकित्सक हिप्पोक्रेट (460-377 BC) मानसिक अस्वस्थता को एक ऐसी घटना के रूप में देखता था जिसका अध्ययन और उपचार प्रयोगसिद्ध आधार पर किया जा सकता है। उद्देश्यपूर्ण, सिद्धांत आधारित मनोचिकित्सा का सर्वप्रथम विकास संभवतया मध्य पूर्व में नौवीं शताब्दी में पर्शिया के चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक विचारक हेजेस (AD 852-932) द्वारा हुआ था, जो एक समय में बगदाद अस्पताल के प्रमुख चिकित्सक थे। उस समय यूरोप में, गंभीर मानसिक विकार को सामान्यतया पैशाचिक या चिकित्सीय अवस्था के रूप में देखा ह\जाता था जिसमे दंड या कारावास की आवश्यकता होती थी, अट्ठारहवीं शताब्दी में नैतिक उपचार शैली के आगमन से पूर्व तक यही स्थिति थी।[कृपया उद्धरण जोड़ें] इसने मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप की सम्भावना की ओर ध्यान आकर्षित किया - जिसमे तर्क, नैतिक प्रोत्साहन और सामुदायिक क्रियाएं - "उन्मादी" का पुनर्सुधार, शामिल था।
संभवतः मनोविश्लेषण मनोचिकित्सा का प्रथम विशिष्ट मत था, जिसका विकास सिगमंड फ्रायड और अन्य ने 1900 की शुरुआत में किया था। एक स्नायुविज्ञानी के रूप में प्रशिक्षित फ्रायड ने उन समस्याओं की और ध्यान केंद्रित करना शुरू किया जिनके लिए कोई ज्ञेय चेतन आधार नहीं था और यह सिद्धान्तीकरण किया कि उनकी इन समस्याओं के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हैं जो अवचेतन मस्तिष्क और बचपन के अनुभवों से पैदा हुए हैं। स्वप्न विवेचना, मुक्त सम्बन्ध, आईडी, स्व और स्व की श्रेष्ठता का रूपांतरण और विश्लेषण, आदि तकनीकों का विकास किया गया। कई सिद्धांतवादी, जिसमे एन्ना फ्रायड, एल्फ्रेड एडलर, कार्ल जंग, केरन हौर्नी, ओट्टो रैंक, एरिक एरिक्सन, मिलैनी क्लेन और हेंज कोहुत शामिल थे, ने फ्रायड के मौलिक विचारों पर सिद्धांतों का निर्माण किया और कई बार उनसे भिन्न अपनी स्वयं की मनोचिकत्सा की विभेदित प्रणालियों का निर्माण किया। इन सभी को बाद में मनोवेगीय की श्रेणी में रखा गया था, जिसका अर्थ किसी भी उस अवस्था से है जिसमे मन का चेतन/अवचेतन प्रभाव बाह्य सम्बन्धों और स्वयं पर पड़े. यह सत्र कई सैकड़ों वर्षों तक चला.
1920 में व्यवहारवाद की शुरुआत हुयी और एक चिकित्सा के रूप में व्यवहार रूपांतर 1950 और 1960 में प्रसिद्द हो गया। प्रमुख योगदान करने वालों में साउथ अफ्रीका में जोसेफ वोल्प, ब्रिटेन में एम.बी.शिप्रियो और हैंस सेंक और संयुक्त राज्य में जोन बी. वाटसन और बी.एफ. स्किनर थे। व्यवहार संबंधी चिकित्सा की शैली औपरेंट कंडीशनिंग, क्लासिकल कंडीशनिंग और सोशल लर्निंग के सिद्धांतों पर आधारित थी जिससे सुस्पष्ट लक्षणों में चिकत्सकीय परिवर्तन लाया जा सके. इस शैली का प्रयोग भीतियों और अन्य विकारों के लिए प्रचलित हो गया।
कुछ चिकित्सकीय शैलियां यूरोपीय अस्तित्वाद के दर्शन के मत से विकसित हुईं. यह मुख्यतः किसी व्यक्ति में आजीवन अर्थपूर्णता और उद्देश्य के विकास और संरक्षण के प्रति केन्द्रित रहती है, इस क्षेत्र में यू.एस. से प्रमुख योगदानकर्ता (जैसे., इरविन एलोम, रोलो मे) और यूरोप से (विक्टर फ्रैंकल, ल्युडविग बिन्स्वेंगर, मेड्रड बॉस, आर.डी लेंग, एम्मी वें ड्युरजें) ने ऐसी चिकित्सा पद्धति के निर्माण का प्रयास किया जोकि मानव के स्वचेतना की मूलभूत उदासीनता से जनित सामान्य 'जीवन संकट' के प्रति संवेदनशील हो, जोकि पहले अस्तित्ववादी दर्शनशास्त्रियों (जैसे., सोरेन कियार्कगार्ड, जीन-पॉल सरट्रे, गैबरियल मार्सेल, मार्टिन हेडेगर, फ्रेडरिक नित्ज़ेक) के जटिल लेख के द्वारा ही अभिगम्य थी। इस प्रकार रोगी-चिकित्सक सम्बन्ध की विशेषता चिकित्सकीय जांच के लिए एक माध्यम बनाती है। मनोचिकत्सा में इसीसे सम्बद्ध मत का प्रारंभ 1950 में कार्ल रॉजर्स के साथ हुआ। अस्तित्ववाद और अब्राहम मैस्लो के कार्यों एवम उनके मानव आवश्यकताओं के अनुक्रम के आधार पर, रॉजर्स, व्यक्ति- केन्द्रित मनोचिकित्सा को मुख्यधारा केंद्र में लेकर आये. रॉजर्स की प्राथमिक आवश्यकता यह है कि रोगी (ग्राहक) को अपने परामर्शदाता या चिकित्सक द्वारा तीन मूलभूत 'कंडीशंस' प्राप्त होनी चाहिए: अन्कंडीश्नल पॉजिटिव रिगार्ड, जिसका वर्णन कभी-कभी व्यक्ति को 'पुरस्कृत' करने या व्यक्ति विशेष की मानवता का सम्मान करने के रूप में किया जाता है, कौन्ग्रुएंस (सर्वान्गसमता) [प्रमाणिकता/वास्तविकता/पारदर्शिता] और तदानुभूतिक सहमति. 'कोर कंडीशंस' के प्रयोग का उद्देश्य रोगों की मनोवैज्ञानिक स्वस्थता को प्रोत्साहित करने में सहायक, एक गैर-निर्देशात्मक सम्बन्ध के अंतर्गत चिकित्सकीय परिवर्तनों की सहायता करना है। इस प्रकार की पारस्परिक क्रिया रोगी को स्वयं के पूर्ण अनुभव व् स्वयं को पूर्ण रूप से व्यक्त करने में समर्थ करती है। अन्य लोगों ने भी कई पद्धतियों का विकास किया, जैसे फ्रिट्ज़ और लारा पर्ल्स ने जेस्टाल्ट चिकित्सा का निर्माण किया और नौन वायलेंट कम्युनिकेशन के संस्थापक मार्शल रोजेनबर्ग व् ट्रानजेक्शनल अनालिसिस के संस्थापक एरिक बर्नी ने भी इसमें योगदान दिया. बाद में मनोचिकित्सा के यह क्षेत्र आज के मानववादी मनोचिकित्सा के रूप में बदल गए। स्व सहायता समूह और किताबें व्यापक स्तर पर प्रचलित हो गयीं.
1950 के दशक दौरान, एल्बर्ट एलिस ने रेशनल इमोटिव बेहवियर थेरेपी (REBT) का निर्माण किया। कुछ वर्षों बाद, मनोचिकित्सक एरन टी.बेक ने मनोचिकत्सा का एक प्रारूप विक्सित किया जिसे संज्ञानात्मक चिकित्सा कहते हैं। इन दोनों में ही साधारणतया तुलनात्मक रूप से लघु, संरचानात्नक और वर्तमान केन्द्रित चिकित्सा शामिल थी जिसका उद्देश्य व्यक्ति के विशवास, मूल्यांकन और प्रतिक्रिया रीति को पहचानना और बदलना था, यह अधिक स्थायी और निरीक्षण आधारित मनो-वेगीय या मानववादी चिकित्सा की पद्धति के विपरीत थी। संज्ञानात्मक और व्यवहारवादी चिकित्सा पद्धति संयोजित कर दी गयीं और समुच्चयिक शब्दावली और मुख्य बिंदु संज्ञानात्मक व्यवहारवादी चिकित्सा (CBT) के अंतर्गत वर्गबद्ध कर दी गयीं. सीबीटी के भीतर कई पद्धतियां सक्रिय/निर्देश सहयोगी अनुभववाद और मानचित्रण की ओर उन्मुख थी, रोगी के मूलभूत विश्वासों व् दुष्क्रियाशील आतंरिक आरेख का मूल्यांकन और सुधार इनका कार्य है। इन पद्धतियों (शैलियीं) को अनेकों विकारों के प्राथमिक उपचार के रूप में व्यापक स्वीकृति प्राप्त हुई. संज्ञानात्मक और व्यवहारवादी चिकित्सा की एक "तीसरी लहर" विकसित हुई, जिसमे अक्सेप्टेंस (स्वीकृति) और कमिटमेंट (प्रतिबद्धता) के सिद्धांत और डायालेक्टिकल बिहेवियर सिद्धांत जिसने इस सिद्धांत का विस्तार अन्य विकारों तक किया और/या इअमे नए घटक और सचेतन अभ्यासों को जोड़ा.समाधान केन्द्रित चिकित्सा और सर्वांगी प्रशिक्षण की परामर्श पद्धतियाँ विकसित हो गयीं.
उत्तराधुनिक मनोचिकित्सा जैसे की नैरेटिव चिकिसा और कोहेरेंस चिकित्सा ने मानसिक स्वस्थ और अस्वस्थता की परिभाषा को अधिरोपित नहीं किया, अपितु चिकित्सा के उद्देश्य को इस रूप में देखा कि जिससे रोगी और चिकित्सक समाज के सन्दर्भ में कुछ निर्माण (योगदान) कर सकें. सर्वांगी चिकित्सा और परावैयाक्तिक मनोविज्ञान का भी विकास हुआ, जो मुख्यतः परिवार और समूह की गतिशीलता पर केन्द्रित है और मानवीय अनुभवों के आत्मिक पक्ष पर अधिक ध्यान देती है। अंतिम तीन दशकों में अन्य महत्त्वपूर्ण अभिसंस्करण भी विकसित हुए, जिसमे फेमिनिस्ट थेरेपी, ब्रीफ थेरेपी, सोमेटिक थेरेपी, एक्सप्रेसिव थेरेपी, व्यवहारिक सकारात्मक मनोविज्ञान और ह्युमन गिवेंस सिद्धांत शामिल हैं, जोकि पूर्वघतित घटनाओं से सर्वोत्तम पर विकसित ही रहे हैं। 2006 में यू.एस के 2,500 से भी अधिक चिकित्सकों पर किये गए सर्वेक्षण में पिछले 25 वर्षों में सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली चिकित्सा पद्धति और 10 सर्वाधिक प्रभावशील चिकित्सकों के नाम का खुलासा हुआ।
सामान्य प्रयोजन
रोगी को अपने सर्वोत्तम सामर्थ्य की प्राप्ति या जीवन की समस्याओं से बेहतर संघर्ष के लिए, मनोचिकित्सा को एक मनोचिकित्सक द्वारा रोगी की सहायता के पारस्परिक आमंत्रण के रूप में देखा जा सकता है। साधारणतया मनोचिकित्सकों को अपना समय व् कौशल लगाने के लिए किसी न किसी रूप में बदले में पारिश्रमिक मिलता है। यह एक तरीका है जिससे इस सम्बन्ध को सहायता के परहितवादी प्रस्ताव से अलग किया जा सकता है।
मनोचिकित्सकों व् परामर्शदाताओं को प्रायः एक चिकित्सकीय वातावरण का निर्माण करने की ज़रूरत होती है, जिसे फ्रेम यां ढांचा कहते हैं, इसकी विशेषता एक मुक्त किन्तु सुरक्षित माहौल है जो रोगी को खुलने में समर्थ करता है। रोगी जिस स्तर तक चिकित्सक से जुड़ा हुआ अनुभव करेगा, यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि चिकित्सक या परामर्शदाता किन पद्धतियों और माध्यमों का प्रयोग कर रहा है।
मनोचिकत्सा में प्रायः जागरूकता बढाने वाली, स्व निरीक्षण, व्यवहार यां संज्ञान परिवर्तन और तदानुभूति एवम दूरदर्शिता को विकसित करने वाली तकनीकों का प्रयोग होता है। ऐच्छिक परिणाम की प्राप्ति से अन्य वैचारिक विकल्पों, भावनाओं और क्रिया को भी सहायता मिलती है, जिससे कल्याण की भावना में वृद्धि होती है और व्यक्तिपरक अशांति या चिंता का बेहतर प्रबंधन हो पाता है। संभवतः वास्तविकता के बोध में भी सुधार होता है। कष्टों पर दुःख व्यक्त करना बढ सकता है जिससे दीर्घकालिक अवसाद कम ही जायेगा. मनोचिकित्सा द्वारा उपचारों की प्रतिक्रिया में भी सुधार आ सकता है, जहाँ इन प्रकार के उपचारों की भी आवश्यकता पड़ती है वहां चिकित्सक और रोगी के बीच आमने- सामने, जोड़ों और पूर्ण परिवार सहित समुदाय चिकित्सा, में मनोचिकित्सा का प्रयोग किया जा सकता है। यह आमने-सामने (व्यक्ति स्तर पर), फोन के द्वारा, या, गैर-प्रचलित रूप से इंटरनेट के द्वारा की जा सकती है। इसकी समयावधि कुछ सप्ताह यां कई वर्ष हो सकती है। चिकित्सा के अंतर्गत नैदानिक मानसिक अस्वस्थता, यां निजी रिश्तों का प्रबंधन व् उनको बनाये रखना और निजी लक्ष्यों की प्राप्ति जैसी रोजमर्रा की समस्याओं के विशिष्ट पहलुओं पर विचार किया जा सकता है, बच्चों वाले परिवार में इस प्रकार की चिकित्सा के द्वारा बच्चों के विकास पर हितकर प्रभाव डाला जा सकता है जो आजीवन उनके साथ रहेगा और आने वली पीदियों में भी. बेहतर परवरिश इसका एक अप्रत्यक्ष परिणाम हो सकता है या इसे उद्देश्यपूर्ण तरीके से परवरिश की तकनीक के रूप में सीखा भी जा सकता है। इसके द्वारा तलाकों को रोका जा सकता है, या उन्हें कम दुखदायी बनाया जा सकता है। रोजमर्रा की समस्याओं का उपचार प्रायः परामर्श (कार्ल रॉजर्स द्वारा अंगीकृत एक विभेद) के नाम से जाना जाता है, लेकिन इस शब्द का प्रयोग कभी-कभी मनोचिकत्सा के लिए भी किया जाता है। चिकित्सकीय कौशल का प्रयोग व्यवसायिक और सामाजिक संस्थाओं के मानसिक स्वस्थता परामर्श के लिए किया जा सकता है, जिससे की उनकी दक्षता में सुधार आ सके और ग्राहक व् सहकर्मियों से सम्बंधित सहायता मिल सके.
मनोचिकित्सक रोगी को रोड़ी द्वारा तय दिशा को स्वीकार करने या उसे बदलने हेतु रोगी पर दबाव बनाने और उसे प्रभावित करने के लिए तकनीकों की विस्तृत श्रंखला का प्रयोग करते हैं। यह व्यवहार परिवर्तन की योजना पर उनके विकल्पों की स्पष्ट सोच; अनुभाविक सम्बन्ध निर्माण; संवाद; संचार और अंगीकरण पर आधारित हो सकता है। इनमे से प्रत्येक की रचना रोगी या ग्राहक के मानसिक स्वास्थ के सुधार या सामूहिक सम्बन्ध (जैसे कि परिवार में) के सुधार के लिए होती है, मनोचिकित्सा के कई रूप सिर्फ मौखिक बातचीत का प्रयोग करते हैं, जबकि अन्य संचार के अन्य माध्यमों जैसे लिखित शब्द, कलात्मक कार्य, ड्रामा, कथा वर्णन या चिकित्सकीय स्पर्श का भी प्रयोग करते हैं। मनोचिकित्सा एक चिकित्सक व रोगी के मध्य संरचनात्मक समागम में होती है। क्यूंकि मनोचिकित्सा के दौरान प्रायः संवेदनशील विषयों पर चर्चा होती है, इसलिए चिकित्सकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने ग्राहक या रोगी की गोपनीयता का सम्मान करें और इसके लिए वह कानूनी रूप से बाध्य भी होते हैं।
मनोचिकित्सक प्रायः प्रशिक्षित, प्रमाणिक और अनुज्ञापत्र धारक होते हैं और कार्यक्षेत्र की आवश्यकताओं के आधार पर भिन्न भिन्न प्रकार के प्रमाणीकरणों व अनुज्ञापत्र रखते हैं। मनोचिकित्सा का कार्य नैदानिक मनोचिकित्सक, परामर्श मनोचिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता, परिवार-विवाह परामर्शदाता, वयस्क एवम बाल मनोचिकित्सक और अभिव्यक्तिपरक चिकित्सक, प्रशिक्षित परिचारिकाओं, मनोचिकित्सक, मनोविश्लेषक, मानसिक स्वास्थ परामर्शदाता, विद्यालयीय परामर्शदाता, या अन्य मानसिक स्वास्थ विषयों के पेशेवरों द्वारा किया जा सकता है।
मनोचिकित्सकों के पास चिकित्सकीय योग्यता होती है और वह औसध विधि चकित्सा का भी प्रबंध कर सकते हैं। एक मनोचिकित्सक के प्राथमिक प्रशिक्षण में 'जैव-मनो-सामाजिक' प्रतिदर्श, प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में चिकित्सकीय प्रशिक्षण और व्यवहारिक मनोचिकित्सा का प्रयोग होता है। मनोचिकित्सकीय प्रशिक्षण चिकित्सा विद्यालय में प्रारंभ होता है, पहले बीमार व्यक्तियों के साथ रोगी- चिकित्सक के सम्बन्ध के रूप में और बाद में विशेषज्ञों के लिए मनोचिकित्सकीय कार्यकाल में. केंद्र साधारणतया संकलक होता है किन्तु इसमें जैविक, सांस्कृतिक और सामाजिक पक्ष शामिल होते हैं। वह चिकित्सकीय प्रशिक्षण के आरम्भ से ही रोगियों को समझने में तीव्र होते हैं। मनोवैज्ञानिक विद्यालय में अपने शुरूआती वर्ष अधिकांशतः बौद्धिक प्रशिक्षण को प्राप्त करने में और मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों को सीखने में लगाते हैं जो, कुछ सीमा तक मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और अनुसंधान के लिए प्रयुक्त होते हैं और वह मनोचिकित्सा में गहन प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं लेकिन औपचरिक प्रशिक्षण के अंत में मनोवैज्ञानिकों को लोगों के साथ जो अनुभव प्राप्त होता है वह इसकी तुलना में कहीं अधिक होता है। चिकित्सा में परास्नातक छात्र आवासीय प्रशिक्षण में प्रवेश के समय भी शैक्षिक ज्ञान के मामले में मनोवैज्ञानिकों से पीछे रह जाते हैं। तमाम वर्षों के दौरान मनोवैज्ञानिकों को नैदानिक (यां रोग-विषयक) अनुभन प्राप्त होता है और चिकित्सा में परास्नातक (एमडी) आमतौर पर बौद्धिक स्टार पर सिधार करते हैं जिससे कि दोनों के मध्य प्रतिस्पर्धा में एक प्रकार से समानता आ जाती है। आज मनोविज्ञान में डाक्टरेट के लिए दो उपाधियां हैं, साइडी और पीएचडी. इन उपाधियों के लिए प्रशिक्षण एक ही जैसा है लेकिन साइडी अधिक नै दानिक है और पीएचडी अनुसंधान पर बल देती है और 'अधिक शैक्षिक' है। दोनों ही उपधियोंमे नैदानिक शिक्षा के घटक हैं, सामाजिक कार्यकर्ताओं को मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और, मनोचिकित्सा के तत्वों के अतिरिक्त रोगियों को समुदाय और संस्थागत संसाधनों से जोड़ने में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। विवाह-परिवार परामर्शदाता को संबंधों और पारिवारिक मुद्दों की क्रियात्मकता के अनुभव के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। एक अनुज्ञापत्रधारक व्यवसायिक परामर्शदाता (LPC) के पास आमतौर पर कैरियर, मानसिक स्वास्थ, विद्यालय, या पुनर्सुधार परामर्श पर विशेष प्रशिक्षण पता है जिसमे मूल्यांकन और समीक्षा एवम साथ ही साथ मनोचिकित्सा भी सम्मिलित होती है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों की विस्तृत श्रंखला में से अधिकांश बहुउद्द्यमी होते हैं, अर्थात, मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, मानसिक स्वस्थ परिचारिकाएं और सामाजिक कार्यकर्ता, यह सभी एक ही प्रशिक्षण समूह में पाए जा सकते हैं। यह सभी उपाधियाँ आमतौर पर एक समूह के रूप में साथ में काम करती हैं, विशेषकर संस्थागत परिस्थितियों में. वह सभी जोकि मनोचिकित्सकीय कार्यों में विशेषज्ञता प्राप्त कर रहे हैं, उन्हें कई देशों में मूल उपाधि के बाद भी एक निरंतारात्मक शिक्षक कार्यक्रम की आवश्यकता होती है, या अपनी विशिष्ट उपाधि के साथ जुड़े कई प्रकार के प्रमाणीकरणों और मनोचिकित्सा में; मंडल प्रमाणीकरण' की आवश्यकता होती है। योग्यता को सुनिश्चित करने के लिए विशेष परीक्षाएं होती हैं या मनोवैगानिकों के साथ मंडल परीक्षाएं होती हैं।
विशेष विचार-पद्धति एवम शैलियां
अनुभवी मनोचिकित्सकों के अभ्यासों में, चिकित्सा विशेष रूप से किसी एक विशुद्ध प्रकार की नहीं होती, अपितु कई विचार-पद्धतियों और दृष्टिकोणों के द्वारा पक्ष को निरुपित करती है।
मनोविश्लेषण
मनोविश्लेषण का विकास 18वीं शताब्दी के अंत में सिगमंड फ्रायड द्वारा किया गया था। उनका यह सिद्धांत एक ऐसे मस्तिष्क की गतिशील क्रियात्मकता का अध्ययन करता है जिसके सम्बन्ध में यह मन जाता है कि उसके तीन हिस्से हैं: सुखवादी आईडी (जर्मन:दास एस, 'द इट"), विवेकशील स्व (दास इच, "द आइ") और नैतिक सर्वश्रेष्ठ स्व (दास युबेरिक, "द अबव-आइ"). चूँकि इनमे से अधिकांश गतिशीलातायें लोगों की जानकारी के बगैर घटित मानी जाती हैं, इसलिए फ्रायड का मनोविश्लेषण अनेकों तकनीकों द्वारा अवचेतन को भेदने का प्रयास करता है, जिसमे स्वप्न विवेचना और मुक्त सम्बन्ध भी शामिल हैं। फ्रायड ने यह मत बनाये रखा है कि अवचेतन मष्तिष्क की अवस्था गहन रूप से बचपन के अनुभवों द्वारा प्रभावित होती है। इसलिए, एक अत्यधिक बोझग्रस्त स्व द्वारा प्रयोग की गई रक्षात्मक प्रक्रिया से बरतने के अतिरिक्त, उनका सिद्धांत रोगी की युवावस्था के गहन भेदन के द्वारा असाधारण आसक्ति और अन्य मुद्दों को भी सामने रखता है।
मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों, निजविकास सुकारक, व्यवसायिक चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अन्य मनोवेगीय सिद्धांत और तकनीक भी विकसित एवम प्रयोग किये गए हैं। समुदाय चिकित्सा के लिए भी तकनीक विकसित की गयी हैं। कार्य का उद्देश्य प्रायः व्यवहार होता है, कई शैलियों में भावनाओं और विचारों पर कार्य करने को अधिक महत्व दिया जाता है। मनोचिकित्सा के मनोवेगीय विचार-पद्धति, जो आज जुंग के सिद्धांत और साइकोड्रामा (psychodrama) तथा साथ ही साथ मनोविश्लेषिक विचार-पद्धति को भी सम्मिलित करती है, के बारे में यह विशेष रूप से सत्य है।
जेसटाल्ट पद्धति
जेसटाल्ट पद्धति मनोविश्लेषण का विस्तृत निरीक्षण है। अपने प्रारंभिक विकास के दौरान इसे इसके संस्थापकों फ्रेडरिक और लारा पर्ल्स द्वारा "कंसंट्रेशन थेरेपी" कहा जाता था। हालांकि, इसके सैद्धांतिक प्रभावों का मिश्रण, जेसटाल्ट मनोवैज्ञानिकों के कार्यों के बीच सर्वाधिक व्यवस्थित पाया गया; इस प्रकार जिस समय तक 'जेसटाल्ट थेरेपी, मानव व्यक्तित्व में उत्साह व् विकास' (पर्ल्स, हेफरलाइन और गुडमैन) को लिखा गया, तब तक यह पद्धति "जेसटाल्ट थेरेपी" के रूप में प्रसिद्द हो चुकी थी।
जेसटाल्ट थेरेपी सर्वाधिक भार वहन करने वाली चार अत्यावश्यक सैद्धांतिक दीवारों में सबसे ऊपर स्थित है। कुछ ने इसे अस्तित्ववादी तथ्यवाद के रूप में माना है जबकि अन्य ने इसका वर्णन तथ्यवादात्मक व्यवहारवाद के रूप मे किया है। जेसटाल्ट थेरेपी एक मानववादी, समग्र और आनुभविक पद्धति है जो सिर्फ बातचीत पर निर्भर नहीं है, अपितु क्रियात्मक और प्रत्यक्ष परिस्थितियों से सम्बंधित बातचीत से अपेक्षाकृत भिन्न वर्तमान अनुभव के द्वारा जीवन के तमाम प्रसंगों में जागरूकता को बढावा देती है।
समूह मनोचिकित्सा
आधुनिक नैदानिक अभ्यास में समूहों के चिकित्सकीय प्रयोग की जड़ें 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में पायी जा सकती हैं, जब अमेरिकी छाती चिकित्सक प्रेट ने बोस्टन में कार्य करने के दौरान, क्षयरोग से ग्रस्त 15-20 रोगियों, जिन्हें की अरोग्यनिवास में उपचार के लिए बहिष्कृत कर दिया गया था, की 'कक्षाओं' के निर्माण का वर्णन किया।[कृपया उद्धरण जोड़ें] हालाँकि समूह चिकित्सा, शब्द का प्रथम प्रयोग 1920 के आसपास जेकोब एल. मोरेनो द्वारा मिलता है, जिनका प्रमुख योगदान साइकोड्रामा (psychodrama) के विकास में था, जिसमे नेता के निर्देशन में पुनः व्यवस्थापन के द्वारा व्यक्ति विशेष की समस्याओं का पता लगाने के लिए, समूहों का प्रयोग पात्र व् दर्शक दोनों रूपों में किया जाता था। अस्पताल और आंत्य-रोगियों के सम्बन्ध में समूहों के और अधिक वैश्केशिक और अन्वैशानात्मक प्रयोग का अग्रणी कार्य कुछ यूरोपीय मनोविश्लेषकों द्वारा किया गया था, जोकि यू॰एस॰ए॰ में आकर बस गए, जैसे पॉल शिल्दर, जोकि गंभीर रूप से विक्षिप्त और हल्के विकारग्रस्त आंत्य-रोगियों का इलाज छोटे समूहों के रूप में न्यू यार्क के बैलेव्यु अस्पताल में करते थे। समूहों की शक्ति का सबसे प्रभावशाली प्रदर्शन ब्रिटेन में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ, जब अनेकों मनोविश्लेषकों और मनोचिकित्सकों ने युद्ध कार्यालय चयन समिति के सामने समूह पद्धति के महत्व को सिद्ध कर दिया था। उस समय कई अग्रदूतों को समूह की लकीर पर सेना चिकित्सा ईकाई चलाने का एक अवसर दिया गया था, जिसमे प्रमुखतः विल्फ्रेड बियोन और रिकमैन थे, इनके अतिरिक्त एस.एच. फोल्क्स, मैन और ब्रिद्गर भी शामिल थे। बर्मिंघम के नॉर्थफील्ड अस्पताल ने इसे अपना नाम दिया जो बाद में दो ‘नॉर्थफील्ड प्रयोग’ के नाम से प्रचलित हुआ, जिसने दोनों पद्धतियों, सामाजिक पद्धति, चिकित्सकीय सामुदायिक आंदोलन और विक्षिप्त एवम व्यक्तित्व विकार में छोटे समूहों के प्रयोग, के बीच युद्ध के समय से ही विकास को वेग प्रदान किया। आज समूह पद्धति का प्रयोग नैदानिक और निजी अभ्यास परिस्थितियों में किया जाता है। यह देखा गया है कि यह व्यक्तिपरक पद्धति के सामान ही है या उससे अधिक प्रभावशाली है।
चिकित्सकीय और गैर चिकित्सकीय प्रतिदर्श
एक चिकित्सकीय प्रतिदर्श और एक मानववादी प्रतिदर्श का प्रयोग करने वाली मनोचिकित्सकों के बीच भी विभेद संभव है। चिकित्सकीय प्रतिदर्श में रोगी को अस्वस्थ के रूप में देखा जाता है और चिकित्सक रोगी को पुनः स्वस्थ करने के लिए अपने कौशल का प्रयोग करता है। डीएसएम-आइवी जोकि यू.एस. में मानसिक विकारों की एक नैदानिक और संख्याकिय नें-पुस्तिका है, वह विशिष्ट चिकित्सकीय प्रतिदर्श का एक उदहारण है।
इसके विपरीत मानववादियों का गैर-चिकित्सकीय प्रतिदर्श मानव अवस्थाओं को गैर-रोगविषयक बनाने का प्रयास करता है। इसमें चिकित्सक आत्मीय वातावरण बनाने का प्रयास करता है जोकि आनुभविक अधिगम में सहायक होता है और रोगी में अपनी स्वाभाविक प्रक्रिया पर विश्वास का निर्माण करता है जिसके परिणामस्वरूप स्वयं के प्रति बोध और गहन हो जाता है। इसका एक उदहारण जेसटाल्ट थेरेपी है।
कुछ मनोवेगीय चिकित्सक अधिक अभिव्यक्तिपरक और अधिक सहायतामूलक मनोचिकित्सा के बीच विभेद करते हैं। अभिव्यक्तिपरक पद्धति, रोगी की समस्या की जड़ तक पहुंचाने में रोगी की अंतर्दृष्टि को सहायता प्रदान करने पर जोर देती है। अभिव्यक्तिपरक चिकित्सा का सर्वोत्तम ज्ञात उदाहरण क्लासिकल मनोविश्लेषण है। इसके विपरीत सहायतामूलक मनोचिकित्सा रोगी के रक्षात्मक स्त्रोतों के सशक्तीकरण पर जोर देता है और प्रायः प्रोत्साहन व् सलाह प्रदान करता है। रोगी के व्यक्तित्व के आधार पर, एक अधिक सहायतामूलक या एक अधिक अभिव्यक्तिपरक पद्धति सर्वोत्तम हो सकती है। मनोचिकित्सा की अधिकांश पद्धतियां सहायतामूलक और अभिव्यक्तिपरक पद्धतियों के मिश्रण का प्रयोग करती हैं।
संज्ञानात्मक व्यवहारगत पद्धति
संज्ञानात्मक व्यवहारगत पद्धति उन तकनीकों की ओर संकेत करती है जोकि व्यक्तियों के संज्ञानों, भावनाओं और व्यवहारों के निर्माण और पुनर्निर्माण पर केंद्रित हैं। साधारणतया CBT में चिकित्सक, रुपत्मकताओं की विस्तृत पंक्ति द्वारा रोगी को विचार, भावाभिव्यक्ति और व्यवहार के दुष्क्रियाशील व् समस्यात्मक ढंग को पहचानने, उनका मूल्यांकन करने और उससे निपटने में सहायता करता है।
व्यवहार संबंधी पद्धति
व्यवहार संबंधी पद्धति रोगी के प्रत्यक्ष व्यवहार को परिष्कृत करने और उसे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है। यह पद्धति अधिगम के सिद्धांतों पर बनी है, जिनमे औपेरेंट और रिस्पौन्डेंट कंडीशनिंग शामिल हैं, जोकि व्यावहारिक व्यवहार विश्लेषण और व्यवहार परिष्करण के क्षेत्र का निर्माण करता है। इस पद्धति में एक्सेप्टेंस पद्धति और कमिटमेंट पद्धतियाँ, क्रियात्मक वैश्लेषिक मनोचिकित्सा और डायालेकटिकल बिहेवियर थेरेपी शामिल हैं। कभी-कभी यह संज्ञानात्मक पद्धति के साथ एकीकृत होकर संज्ञानात्मक व्यवहारगत पद्धति का निर्माण करता है। स्वाभाव से व्यवहारगत पद्धतियाँ प्रयोगसिद्ध (आंकड़ों पर निर्भर), प्रासंगिक (वातावरण और प्रसंग पर केंद्रित), क्रियात्मक (किसी व्यवहार के अंतिम प्रभाव या परिणाम में रूचि रखने वाले), प्रयिकतावादी (व्यवहार को सांख्यिक रूप से पूर्वोनुमेय मानने वाली), अद्वैत (मस्तिष्क-शरीर के द्वैतवाद का बहिष्कार करने वाली और व्यक्ति को एक ईकाई के रूप में देखने वाली) और समबंधपरक (द्विपक्षीय पारस्परिक क्रियाओं का विश्लेषण करने वाली) होती हैं।
शरीर उन्मुख मनोचिकित्सा
शरीर उन्मुख मनोचिकित्सा या शारीरिक मनोचिकित्सा, विशेषकर यू.एस. में सोमैटिक मनोचिकित्सा के नाम से भी जानी जाती है। कई भिन्न प्रकार की मनोचिकित्सकीय पद्धतियाँ प्रचलित हैं। ये साधारणतया शरीर और मस्तिष्क के सम्बन्ध पर केंद्रित होती हैं और भौतिक शरीरर और भावनाओं की अधिक जागरूकता द्वारा मन के गहरे स्तरों तक पहुँचाने का प्रयास करती है, जोकि अनेकों शरीर आधारित पद्धतियों को जन्म देती है, रेकियन (विलियम रेक) कैरेक्टर-अनालितिक वैजेटोथेरेपी एंड और्गोनौमी, नियो-रेकियन एलेक्सेंडर लोवेंस बयोएनर्जेटिक एनालिसिस; पीटर लेविन की सोमेटिक एक्स्पीरियांसिंग; जेक रोजेनबर्ग की इन्टीग्रेटिव बॉडी साइकोथेरेपी; रौन कुट्ज़ की हकोमी साइकोथेरेपी; पेट ओडगें की सेंसरीमोटर साइकोथेरेपी; डेविड बौडेला की बयोसिंथेसिस साइकोथेरेपी; ग्रेडा बॉयसन की बायो डाइनेमिक साइकोथेरेपी; इत्यादि. शरीर अभिविन्यस्त मनोचिकित्सा को शरीर-क्रिया की किसी वैकल्पिक चिकित्सा या शारीरिक चिकित्सा, जो प्राथमिक रूप से शरीर पर प्रत्यक्ष कार्य (स्पर्श एवम परिचालन) द्वारा शारीरिक स्वास्थ को सुधारने का प्रयास करती है, समझकर भ्रमित नहीं होना चाहिए, क्यूंकि इस तथ्य के बावजूद कि शारीरिक क्रिया तकनीक (उदहारण के लिए, एलेक्सजेंडर तकनीक, रौल्फिंग और फेल्डेनक्रेस की पद्धतियाँ) भावनाओं को भी प्रभावित कर सकती हैं, यह तकनीक मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर कार्य करने के लिये संरचित नहीं हैं और न ही इसका अभ्यास करने वाले इतने कुशल होते हैं।
अभिव्यक्तिपूर्ण पद्धति
अभिव्यक्तिपूर्ण पद्धति एक ऐसी पद्धति है जो रोगी का इलाज करने के लिए कलात्मक अभिव्यक्ति को अपने मूलभूत साधन के रूप में प्रयोग करती है। अभिव्यक्तिपूर्ण पद्धति के चिकित्सक सृजनात्मक कला के विभिन्न क्षेत्रों का प्रयोग चिकित्सकीय हस्तक्षेप के रूप में करते हैं। इसमें अन्य के साथ-साथ रूपात्मक नृत्य पद्धति, ड्रामा पद्धति, कला पद्धति, संगीत पद्धति, लिखावट पद्धति शामिल हैं। अभिव्यक्तिपूर्ण पद्धति के चिकित्सक यह मानते हैं कि प्रायः एक रोगी के उपचार का सर्वाधिक प्रभावशाली तरीका किसी सृजनात्मक कार्य द्वारा कल्पना की अभिव्यक्ति और इस कार्य में जनित मुद्दों का एकीकरण और प्रक्रमण है।
अंतर्वैयक्तिक मनोचिकित्सा
अंतर्वैयक्तिक मनोचिकित्सा (आइपीटी) एक समय-सीमित मनोचिकित्सा है जो अंतर्वैयक्तिक कुशलताओं के निर्माण और अंतर्वैयक्तिक प्रसंगों पर केन्द्रित है। IPT इस विश्वास पर आधारित है कि अंतर्वैयक्तिक मुद्दे मनिवैज्ञानिक समस्याओं पर काफी प्रभाव डाल सकते हैं। इसे साधारणतया अंतरात्मिक प्रक्रियाओं के स्थान पर अंतर्वैयक्तिक प्रक्रियाओं पर अधिक जोए देने के कारण चिकित्सा की अन्य पद्धतियों से अलग रखा जाता है। IPT का उद्देश्य वर्तमान अंतर्वैयक्तिक भूमिकाओं और अवस्थाओं के प्रति अनुकूलन के प्रोत्साहन द्वारा व्यक्ति के अंतर्वैयक्तिक व्यवहार को बदलना है।
वर्णनात्मक पद्धति
वर्णनात्मक पद्धति चिकित्सकीय बातचीत द्वारा प्रत्येक व्यक्ति की "डौमिनेंट स्टोरी" पर ध्यान देती है, जो व्यर्थ विचारों और उनके प्रभावी होने के कारणों की खोज को भी सम्मिलित कर सकती है। यदि रोगी को सहायत के लिए यह उचित लगे तो संभावित सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों को भी खोजा जा सकता है।
एकीकृत मनोचिकित्सा
एकीकृत मनोचिकित्सा एक से अधिक चिकित्सकीय पद्धतियों के विचारों और योजनाओं के संयोजन का एक प्रयास है। इन पद्धतियों में मूलभूत धारणाओं और सिद्ध तकनीकों का संयोजन शामिल है। एकीकृत मनोचिकित्सा के प्रकारों में मल्टीमौडल थेरेपी, द ट्रांसथियोरेटिकल मॉडल, साइक्लिकल साइकोडाइनेमिक्स, सिस्टेमेटिक ट्रीटमेंट सलेक्शन, कॉग्निटिव एनालिटिक थेरेपी, इन्टरनल फैमिली सिस्टम्स मॉडल, मल्टीथियोरेटिकल साइकोथेरेपी और कन्सेप्चुअल इंटरएक्शन शामिल हैं। व्यवहार में, अधिकाधिक अनुभवी मनोचिकित्सक समय के साथ अपनी स्वयं की एकीकृत पद्धति विकसित कर लेते हैं।
सम्मोहन चिकित्सा
सम्मोहन चिकित्सा एक ऐसी पद्धति है जो एक व्यक्ति को सम्मोहन में लेकर की जाती है। सम्मोहन चिकित्सा प्रायः रोगी के व्यवहार, भावात्मक विचार और प्रवृत्ति को बदलने के लिए प्रयोग की जाती है, इसके साथ ही साथ इसमें परिस्थितियों की श्रंखला होती है जिसमे दुष्क्रियाशील आदतें, चिंता, चिंता सम्बंधित अस्वस्थता, पीड़ा संचालन और व्यक्तिगत विकास शामिल हैं।
बच्चों के उपचार के लिए रूपांतरण
परामर्श और मनोचिकित्सा को बच्चों की विकास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अवश्य ही अपनाया जाना चाहिए. परामर्श की तैयारी करने वाले कई कार्यक्रमों में मानव विकास का पाठ्यक्रम भी सम्मिलित होता है। चूंकि प्रायः बच्चे अपनी बह्वानाओं व् विचारों को व्यक्त कर पाने म असमर्थ होते हैं, इसलिए उनके साथ परामर्शदाता कई प्रकार के माध्यमों का प्रयोग करते हैं जैसे मोम के रंग, अन्य रंग, खिलौने बनाने वाली मिट्टी, कठपुतली, किताबें, खिलौने, बोर्ड पर खेले जाने वाले खेल इत्यादि. खेल पद्धति के प्रयोग की जड़ें प्रायः मनोवेगीय पद्धति में होती हैं, लेकिन अन्य पद्धति जैसे समाधान केन्द्रित संक्षिप्त परामर्श में भी परामर्श के लिए खेल पद्धति का प्रयोग किया जा सकता है। कई मामलों में परामर्शदाता बच्चे की देखरेख करने वाले के साथ कार्य करने अधिक उचित समझते हैं, विशेषकर यदि बच्चे की उम्र 4 वर्ष से कम हो. फिर भी, ऐसा करने से परामर्शदाता अनुकूलन में बाधक पारस्परिक अभ्यास और विकास पर इसके विपरीत प्रभावों के जारी रहने का जोखिम लेता है, जोकि पहले ही बच्चे की और से सम्बन्ध को प्रभावित कर चूका है इसीलिए इतनी कम उम्र के बच्चों पर कार्य करने की समकालीन सोच बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता से भी पारस्परिक क्रिया के अंतर्गत, या आवश्यकतानुसार व्यक्तिगत रूप से, बातचीत की ओर झुकाव रखती है।
गोपनीयता
साधारणतया गोपनीयता चिकित्सकीय संबंधों और मनोचिकित्सा का एक अभिन्न अंग है।
प्रभावशीलता के सम्बन्ध में आलोचनाएँ और प्रश्न
मनोचिकित्सकीय समुदाय के भीतर प्रयोगसिद्ध तथ्यों पर आधारित मनोचिकित्सा के सम्बन्ध में कुछ चर्चा हुई है, जैसे.
वास्तव मे भिन्न प्रकार की मनोचिकित्सा के मध्य लम्बे समय से कोई तुलना नहीं हुई है। हेलेंसकी द्वारा मनोचिकित्सा पर किया गया अध्ययन एक अनियमित नैदानिक परीक्षण था, जिसमे अध्ययन संबंधी उपचारों के शुरू होने के बाद रोगियों को 12 महीने तक निगरानी में रखा गया था, जिसमे से प्रत्येक लगभग 6 महीने तक जारी रहा. इसका मूल्यांकन आधाररेखा परीक्षण पर 3, 7 और 9 महीनों तथा 1, 1.5, 2, 3, 4, 5, 6 और 7 वर्षों में जांच कार्यवाही के दौरान पूरा होना था। इस परीक्षण का अंतिम परिणाम अभी भी प्रकाशित नहीं हो सका है क्यूंकि जांच की कार्यवाही 2009 तक चलती रही.
मनोचिकित्सा का कौन सा रूप अधिक प्रभावशाली है, यह काफी विवाद का विषय है और विशेषतः किस प्रकार की पद्धति किस प्रकार के रोगी के उपचार के लिए सर्वोत्कृष्ट होगी यह और भिविवादास्पद है। इससे आगे, यह भी विवादस्पद है कि पद्धति का प्रकार या उभयनिष्ठ तत्वों की उपस्थिति, दोनों में से कौन सबसे अच्छी तरह से प्रभावशाली और अप्रभावशाली पद्धतियों में विभेद कर सकता है। उभयनिष्ठ तत्वों का सिद्धांत यह कहता है कि अधिकांश मनोचिकित्सों में शुद्ध रूप से उभयनिष्ठ तत्व ही वह करक हैं जो किसी मनोचिकित्सा को सफल बनाते हैं: यह चिकित्सकीय संबंधों की विशेषता है।
छोड़ने वालों का स्तर काफी उच्च है; 125 अध्ययनों के एक मेटा-विश्लेषण के द्वारा यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि छोड़ने वालों की माध्य दर 46.86 प्रतिशत है। छोड़ने वालों की उच्च दर ने मनोचिकित्सा की व्यवहारिकता और गुणवत्ता के सम्बन्ध में कुछ आलोचनाएं की हैं।
मनोचिकित्सा परिणाम अनुसंधान- जिसमे उपचार के दौरान और उसके बाद मनोचिकित्सा के प्रभाव को मापा जाता है- को भी चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियों के बीच सफल और असफल का विभेद करने में कठिनाई हो रही थी। जो अपने चिकित्सक के साथ लम्बी अवधि तक जुड़े रहते हैं, उनसे दीर्घकालिक संबंधों के रूप में विकसित हो जाने के विषय पर सकारात्मक उत्तर प्राप्त करने की आशा अधिक है। ससे यह पता चलता है कि "उपचार" बदती हुई आरती लगत से जुडी चिंता के सम्बन्ध में खुला हो सकता है।
1952 जैसे शुरूआती समय से ही, मनोचिकित्सकीय उपचार के सर्वाधिक प्रारंभिक अध्ययन में, हेंस आइसेंक ने यह बताया कि रोगियों में से दो तिहाई ने महत्त्वपूर्ण सुधार किया या दो वर्ष के भीता स्वयं ही ठीक हो गए, चाहे उन्हें मनोचिकित्सा प्राप्त हुयी या नहीं.
कई मनोचिकित्सक यह मानते हैं कि मनोचिकित्सा की बारीकियां प्रश्नावली-शैली के परीक्षण के द्वारा पकड़ में नहीं आ सकतीं और वह किसी भी पद्धति के उपचार के समर्थन के लिए स्वयं के नैदानिक अनुभवों और सैद्धांतिक तर्कों पर अधिक विश्वास करते हैं।
2001 में, विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के ब्रूस वैम्पौल्ड ने किताब द ग्रेट साइकोथेरेपी डिबेट प्रकाशित की. इसमें वैम्पौल्ड, जो कि पहले एक संख्या शास्त्री थे और जो एक परामर्श मनोवैज्ञानिक के रूप में प्रशिक्षण देने लगे, उन्होंने बताया कि
- मनोचिकित्सा वास्तव में प्रभावी होती है।
- उपचार का प्रकार इसमें एक घटक नहीं है,
- प्रयोग की गई तकनीकों का सैद्धांतिक आधार और उन तकनीकों के अवलंबन की कठोरता, दोनों ही इसके घटक नहीं हैं,
- तकनीक के प्रभाव पर चिकित्सक के विश्वास की शक्ति अवश्य ही एक घटक है,
- चिकित्सक का व्यक्तित्व एक महत्त्वपूर्ण घटक है,
- रोगी और चिकित्सक के बीच साझेदारी (अर्थात चिकित्सक के प्रति स्नेह और विश्वास की भावना, रोगी की प्रेरणा और सहकारिता और चिकित्सक की तदानुभूतिक प्रतिक्रिया) एक प्रमुख घटक है।
अंततः वैम्पौल्ड ने यह निष्कर्ष दिया कि "हम नहीं जानते कि मनोचिकित्सा क्यूँ कार्य करती है।"
हालांकि पुस्तक द ग्रेट साइकोथेरेपी डिबे ट मुख्यतः अवसाद ग्रस्त रोगियों से सम्बंधित आंकड़ों पर केन्द्रिथई, लेकिन बाद के लेखों ने अभिघात पश्चात चिंता विकार और युवाओं में होने वाले विकारों के सम्बन्ध में भी सामान विश्कर्ष परिणाम प्राप्त किये हैं।
कुछ ने यह बताया कि उपचार को योजनाबद्ध करने या नियम आधारित बनाने के प्रयास में, मनोचिकित्सक इसके प्रभाव को घटा रहे हैं, हालांकि अनेकों मनोचिकित्सकों की असंरचनात्मक पद्धति, पूर्व की "गलतियों" से भिन्न विशिष्ट तकनीकों के प्रयोग द्वारा अपनी समस्या का समाधान करने के लिए प्रेरित रोगियों को आकर्षित नहीं करेगी.
मनोचिकित्सा के आलोचक मनोचिकित्सकीय संबंधों की आरोग्यकारक क्षमता के विषय मे संशय रखते हैं। क्यूंकि किसी भी हस्तक्षेप में समय लगता है, अतः आलोचकों को यह ध्यान देना चाहिए कि प्रायः बिना किसी मनोचिकित्सकीय हस्तक्षेप के भी अकेले इस समयावधि के द्वारा ही मनो-सामाजिक आरोग्य का परिणाम प्राप्त हुआ है। अन्य लोगों के साथ सामाजिक सम्बन्ध सर्वत्र मनुष्यों के लिए लाभप्रद माने जाते हैं और किसी से नियमित रूप से निर्धारित भेंट संभवतः हलके और गंभीर दिनों प्रकार की भावनात्मक समस्याओं को कम करेगी.
भावनात्मक चिंता का अनुभव कर रहे व्यक्ति के लिए अनेक संसाधन उपलब्ध हैं- मित्रों का मित्रवत समर्थन, साथी, परिवार के सदस्य, चर्च के सम्बन्ध, लाभप्रद व्यायाम, अनुसंधान और स्वतंत्र सामना- यह सभी यथेष्ट महत्त्वपूर्ण हैं। आलोचकों ने कहा है कि मनुष्य संकटों का सामना करता आया है, गंभीर सामाजिक समस्याओं से होकर गुजरता है और मनोचिकित्सके अवतार में आने से बहुत पहले से ही अपनी इन समासों के समाधान dhun रहा है। निस्संदेह, यह रोगी के अन्दर स्थित ही कुछ हो सकता है जो उपचार के लिए आवश्यक इस "स्वाभाविक" समर्थन को विकसित नहीं होने देता.
फेमिनिस्ट, कंस्ट्रकशनिस्ट और डिसकर्सिव स्त्रोतों के द्वारा और आलोचनाओं का जन्म हुआ है। इनकी कुंजी शक्ति के मुद्दे में है। इस संबध में चिंता का विषय यह है कि रोगी पर दबाव बनाया जाता है- परामर्श कक्ष्के अन्दर और बहार दोनों और से- कि वह स्वयं को और अपनी समस्या को उन विधियों से समझे जो चिकित्सकीय विचारों के अनुरूप हों. इसका अर्थ यह है कि वैकल्पिक विचार (जैसे., फेमिनिस्ट, इकोनोमिक, स्पिरिचुअल) कभी-कभी अस्पष्ट रूप से अवमूल्यांकित किये जाते हैं। आलोचकों का सुझाव है कि जब हम चिकित्सा को मात्र सहायक सम्बन्ध के रूप में सोचते हैं तब हमें उस परिस्थिति के आदर्श स्वरुप को प्रस्तुत करना चाहिए. यह मौलिक रूप से भी एक राजनीतिक प्रथा रही है, जिसमे कुछ सांस्कृतिक विचार और प्रथा को समर्थन मिलता है जबकि अन्य को अवमूल्यांकित कर दिया जाता जय यां अयोग्य बताया जाता है। अतः, चिकित्सक-रोगी का सम्बन्ध सदैव समाज के शक्तिशाली संबंधों और राजनीतिक गतिशील्ताओं में भागीदार होता है, किन्तु ऐसा कभी भी इरादतन नहीं किया जाता.
- हेनरिक, आर. (एड) द साइकोथेरापी हैण्डबुक .द ए-ज़ेड (A-Z) हैण्डबुक टू मोर दैन 250 साइकोथेरापिज़ एस यूस्ड टूडे (1980) नियु अमेरिकन लाइब्रेरी.
- मैकलेंनन, निगेल. काउंसिलिंग फॉर मैनेजर्ज़ (1996) गोवर. आईएसबीएन (ISBN) 0-566-08092-3
- एसेय, टेड पी. और माइकल जे. लैमबर्ट (1999). चिकित्सा मात्रात्मक निष्कर्ष में आम कारक के लिए अनुभवजन्य प्रकरण. हबल, डंकन, मिलर (एड्स) में, द हार्ट एंड सोल ऑफ़ चेंज (पीपी 23-55)
मनोविज्ञान विद्यालाएं
- Aziz, Robert (1990). C.G. Jung's Psychology of Religion and Synchronicity (10 संस्करण). The State University of New York Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-7914-0166-9.
- Aziz, Robert (1999). "Synchronicity and the Transformation of the Ethical in Jungian Psychology". प्रकाशित Becker, Carl (संपा॰). Asian and Jungian Views of Ethics. Greenwood. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-313-30452-1.
- Aziz, Robert (2007). The Syndetic Paradigm: The Untrodden Path Beyond Freud and Jung. The State University of New York Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7914-6982-8.
- Aziz, Robert (2008). "Foreword". प्रकाशित Storm, Lance (संपा॰). Synchronicity: Multiple Perspectives on Meaningful Coincidence. Pari Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-88-95604-02-2.
- Bateman, Anthony; Brown, Dennis and Pedder, Jonathan (2000). Introduction to Psychotherapy: An Outline of Psychodynamic Principles and Practice. Routledge. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-415-20569-7.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
- Bateman, A.; and Holmes, J. (1995). Introduction to Psychoanalysis: Contemporary Theory and Practice. Routledge. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-415-10739-3.
- ओबर्स्ट, यु.ई (U.E) और स्टीवर्ट, एई (A.E) (2003). अडलेरियन मनोचिकित्सा: व्यक्तिगत मनोविज्ञान के लिए एक उन्नत दृष्टिकोण. न्यू यॉर्क: ब्रन्नर-रूटलेज. आईएसबीएन (ISBN) 1-58391-122-7
- Ellenberger, Henri F. (1970). The Discovery of the Unconscious: The History and Evolution of Dynamic Psychiatry. Basic Books.
मानववादी विद्यालाएं
-
Schneider , Kirk; एवं अन्य (2001). The Handbook of Humanistic Psychology. SAGE Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-7619-2121-4. Explicit use of et al. in:
|last=
(मदद) - Rowan, John (2001). Ordinary Ecstasy. Brunner-Routledge. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-415-23632-0.
-
Ansel Woldt, Sarah Toman (eds) (2005). Gestalt Therapy History, Theory, and Practice. Gestalt Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-7619-2791-3 (pbk.)
|isbn=
के मान की जाँच करें: invalid character (मदद).सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link) -
Crocker, Sylvia (1999). A Well-Lived Life, Essays in Gestalt Therapy. SAGE Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-88163-287-2 (pbk.)
|isbn=
के मान की जाँच करें: invalid character (मदद). नामालूम प्राचल|middle=
की उपेक्षा की गयी (मदद) -
Russon, John (2003). Human Experience: Philosophy, Neurosis, and the Elements of Everyday Life. State University of New York Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780791457542 (pbk.)
|isbn=
के मान की जाँच करें: invalid character (मदद). नामालूम प्राचल|middle=
की उपेक्षा की गयी (मदद) -
Yontef, Gary (1993). Awareness, Dialogue, and Process. The Gestalt Journal Press, Inc. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-939266-20-2 (pbk.)
|isbn=
के मान की जाँच करें: invalid character (मदद).
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- उजाले की ओर (केन्द्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान द्वारा निर्मित विविध मानसिक रोगों और उनकी चिकित्सा से सम्बन्धित जानकारी)
- सोशल फोबिया (Social Phobia)
- मनोचिकित्सा - उपचार, प्रक्रिया और साइड इफेक्ट्स
- क्यों करते हैं लोग 'आत्महत्या'?
- Indian systems of psychotherapy (Google Book By Prakash Veereshwar]
- सैकोथेरापिस्ट्स के राष्ट्रीय परिषद ब्रिटेन
- रॉयल कॉलेज ऑफ साइकाइट्रिस्ट ब्रिटेन