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भावनात्मक श्रम
भावनात्मक श्रम को एक भावना विनियमन कह जा सकता है जिससे कर्मचारियों काम पर अपने भावनाओ नियंत्रण या संयम रखते है। इसका मतलभ यह है कि सामाजिक मानदंडों के अनुरूप करने के लिए कुछ भावनाओं को दबाना उचित समझते है। भावनाएँ कर्मचारियों को काम दिन का एक महत्वपूर्ण विशेषता है। भावनात्मक श्रम का विचार सिर्फ कार्यस्थल पर ही नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। भावना का काम तीन तरह के होते है: संज्ञानात्मक, शारीरिक, और अर्थपूर्ण। संज्ञानात्मक भावना काम के भीतर लोगो के साथ जुड़े भावनाओं को बदलने की उम्मीद में छवियों या विचारों को बदलने के लिए प्रयास करता है। उदाहण देते हुए कह सकते है कि खुशी के भावना अपनी परिवार कि तस्वीर से जुडा सकते है और खुशी का प्रयास करने के लिए कह गए तस्वीर को देख सकते है। शारीरिक भावना काम में वांछित भावना पैदा करने के शारीरिक लक्षणों को बदलने का प्रयास करते है। उदाहरण, गहरी साँस लेने से लोग अपने क्रोध को कम करने का प्रयास करते है। अर्थपूर्ण भावना काम में आंतरिक भावनाओं को बदलने के लिए अर्थपूर्ण इशारों को बदलने का प्रयास किया गया है। उदाहरण, खुशी महसूस करने के लिए मुस्कुराने का प्रयास करने लगता है। समाजशास्त्री आर्ली होछशिल्ड के अनुसार भावनात्मक श्रम से जुड़े नौकरियों को उन नौकरियों के नीछे परिभाषित किया जा सकता है जिससे;
- आमने सामने और बातचीत का संपर्क अपेक्षित है।
- दूसरे व्यक्तियो में एक भावनात्मक स्थिति का निर्माण करने के कार्यकर्ता की आवश्यकता है।
- प्रशिक्षण और पर्यवेक्षण के माध्यम से, कर्मचारियों की भावनात्मक गतिविधियों पर नियंत्रण करने के लिए अनुमति देना चाहिए।
होछशिल्ड का तर्क है कि इस बदलाव से सेवा श्रमिकों को कार्यस्थल में अपनी भावनाओं से बिछड़ रहे हैं।
अनुक्रम
संगठनों में भावनात्मक श्रम:
अतीत में, भावनात्मक श्रम की मांग और प्रदर्शन नियमों विशेष व्यवसायों की एक विशेषता के रूप में देखा गया है जैसे कार्यकर्ताओं, कैशियर, अस्पताल कार्यकर्ताओं, बिल जमा करने, सलाहकारों, सचिवों और नर्सों। हालांकि, प्रदर्शन नियमों की अवधारणा किया गया है न केवल विशेष व्यावसायिक समूहों की भूमिका आवश्यकताओं के रूप में ही नहीं बल्कि पारस्परिक नौकरी की मांग के रूप में भी जो व्यवसायों के कई प्रकार के द्वारा साझा गया है।
चिकित्सकों:
लार्सन और याओ (2005) के अनुसार, चिकित्सकों अपने रोगियों के साथ सहानुभूति से बातचीत करन चाहिए क्योकि चिकित्सकों और रोगियों के बीच पारस्परिक संबंध गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य के लिए आवश्यक रहता है। लार्सन और याओ के अनुसार चिकित्सकों दो माध्यम से भावनात्मक श्रम क महसूस करते है, गहरी अभिनय और सतह अभिनय। गहरी अभिनय चिकित्सकों ईमानदारी से सहानुभूति प्रदर्शित करते है। सतह अभिनय में चिकित्सकों रोगी की ओर नकली सहानुभूति का व्यवहार करते है। लार्सन और याओ गहरी अभिनय पसंद किया करते थे लेकिन जब रोगियों के लिए ईमानदारी से सहानुभूति का व्यवहार करना असंभव है तब चिकित्सकों सतह अभिनय पर भरोसा कर सकते हैं। लार्सन और याओ चर्चा करते है कि चिकित्सकों अधिक प्रभावी और अधिक पेशेवर संतुष्टि है जब भावनात्मक श्रम करने के लिए गहरी अभिनय के माध्यम से सहानुभूति में संलग्न करते है।
पुलिस का काम:
पुलिस का काम में अधिकारियों द्वारा संतोषजनक भावनात्मक श्रम शामिल होता है, जो अन्य अधिकारियों और नागरिकों की उपस्थिति में अपने खुद के चेहरे और शरीर प्रदर्शित करने वाले भावना पर नियंत्रण रखना चाहिए। मार्टिन के अनुसार (1999) वो पुलिस अधिकारी जो बहुत ज्यादा क्रोध, सहानुभूति, या अन्य भावना नौकरी पर खतरे के साथ काम करते हुए प्रदर्शन कारता है अन्य अधिकारियों से पुलिस काम के दबाव का सामना करने में असमर्थ के रूप में देखा जायेगा। अन्य अधिकारियों के सामने भावनाओं के इस आत्म प्रबंधन संतुलन के लिए सक्षम किया जा रहा है, जब पुलिस दृढंता आदेश को बहाल करने और नागरिक विश्वास और अनुपालन हासिल करने के लिए प्रभावी पारस्परिक कौशल का उपयोग करना चाहिए। अंत में, प्रभावी रूप से भावनात्मक श्रम में संलग्न करने के लिए पुलिस अधिकारियों की क्षमता, अन्य अधिकारियों और नागरिकों के धारणा को प्रभावित करता है।
खाद्य उद्योग के श्रमिकों:
पौलेस (1991) ने फिलाडेल्फ़िया में वेट्रेस के अध्ययन कर रही थी। उन्होने जांच किया कि जब कर्मचारियो ग्राहकों के साथ बातचीत कर रहे थे वे किस तरह से नियंत्रण का प्रदर्शन करते है और स्वयं की पहचान को रक्षा करते है। पौलेस चर्चा करती है कि, सेवा कार्य के बारे में सांस्कृतिक प्रतीकों के द्वारा जो गहरी जड़ें मान्यताओं उत्पन्न होता है वे ग्राहकों को मज़दूरों के अधीनता को प्रभालित करता है। पौलेस के अध्ययन में वेट्रेसो नियोक्ता के विनियमित में नहीं थे और इसलिए ग्राहको से होते हुये बातचीत को अपने आप ही नियंत्रण करते थे। रेस्तरां काम के छवि और दासता की मान्यताओं होते हुये भी ग्राहकों के साथ उनकी बातचीत पर नकारात्मक प्रभावित नहीं पड़ा। वे अपने भावनाओं को प्रबंधन करने वाले क्षमता को एक मूल्यवान कौशल मानते है जिसे ग्राहकों पर नियंत्रण हासिल करने के लिए इस्तेमाल कर सकते है। पौलेस वेट्रेसो के विशिष्ट जनसंख्या का भावनात्मक श्रम का सकारात्मक परिणामों पर प्रकाश डाला है, अन्य विद्वानों उसका कुछ नकारात्मक परिणामो पर भी प्रकाश डाला है। बयार्ड डे वोलों (2003) अट्ठारा महीने की अवधि तक एक प्रतिभागी अवलोकन अनुसंधान (Paticipant observatory research) का आयोजन किया जिससे उसने देखा कि कैसीनो (Casino) के वेट्रेसो पर अत्यधिक नज़र रखा गया है और कार्यस्थल में भावनात्मक श्रम प्रदर्शन करने के लिए पैसों के रिश्वत दी जाते है।
लिंग
मैक्डोनल्ड और सीरियननी (1996) ( MacDonald and Sirianni ) ने ‘इमोश्नल प्रोलेटरिओट’ ( Emotional Proliteriat ) शब्द का इस्थमल किया है जिसका मतलाभ यह है कि, ’श्रमिकों ग्राहको से मित्रता और सम्मान प्रदर्शित करना आवश्यक हैं जिसमें भावनात्मक श्रम का व्यायाम करते है। सम्मान (Deference) की वजहसे इन व्यवसायों महिला रोजगार के रूप में टकसाली हो जाते हैं। मैक्डोनल्ड और सीरियननी का दावा है कि, मजदूरी श्रम का कोई अन्य क्षेत्र में इतनी दृढ़ता से काम की प्रकृति के साथ जुड़े कार्यकर्ताओं की व्यक्तिगत विशेषताओं नहीं होता है। मैक्डोनल्ड और सीरियननी के अनुसार सेवा अर्थव्यवस्था के भीतर कार्यरत सभी श्रमिकों भावनात्मक श्रम की मांग के कारण अपनी गरिमा और आत्म-पहचान को बनाए रखना कठिन हो सकता है। एसा एक समस्था विशेष रूप से महिला श्रमिकों के लिए संकट हो सकता है।
निहितार्थ
इस तरह मुस्कुरा रही है और मित्रता के संदेश के रूप में सेवा बातचीत में सकारात्मक भावात्मक प्रदर्शन, सकारात्मक ग्राहको के सकारात्मक भावनाओं के साथ जुड़े हुये हैं। यह भी साबित किया गया है कि भावनात्मक श्रम को प्रदर्शन करने से कर्मचारी का भावनात्मक थकावट भी हो सकता है जिससे कर्मचारी की नौकरी से संतुष्टि कम होने लगता है। अनुभवजन्य सबूत है कि उच्च स्तर के भावनात्मक श्रम मांगों को समान रूप से अधिक वेतन के साथ पुरस्कृत नहीं कर रहे हैं। बल्कि, इनाम नौकरी के लिए आवश्यक सामान्य संज्ञानात्मक मांगों के स्तर पर निर्भर है।