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बोलती कठपुतली कला
बोलती कठपुतली कला एक मंच-कला है जिसमें एक व्यक्ति (एक बोलती कठपुतली कलाकार )उसकी आवाज में इस तरह परिवर्तन करता है जिससे ऐसा लगता है कि आवाज कहीं और से, आमतौर पर एक कठपुतली प्रतिकृति से ,आ रहा है।
अनुक्रम
इतिहास एवं उत्पत्ति
मूल रूप से,बोलती कठपुतली कला ,'ventriloquism' एक धार्मिक प्रथा थी। इसका नाम लैटिन से आता है, अर्थात venter (पेट) और loqui (बोलना)।
बोलती कठपुतली कलाकार इस कला की व्याख्या मृतको से बात करने के लिए , साथ ही भविष्यवाणी करने में सक्षम होने के लिए करते थे।
इस तकनीक का सबसे पुराना उपयोग पाइथिया के पुजारियों द्वारा , डेल्फी में अपोलो के मंदिर में, किया गया था वे इस कला से डेल्फी के सर्वज्ञ होने का दावा करते थे । सबसे सफल प्रारंभिक बोलती कठपुतली कलाकार में से एक "युर्कलेस" , एथेंस में एक पुजारी था; उनके सम्मान में बोलती कठपुतली कलाकार को युक्लीडस के नाम से जाना जाने लगा। मध्य युग में, यह जादू टोना करने के लिए प्रयुक्त होने लगा था। अध्यात्मवाद ने बाद में जादू और एस्केपॉलोजी का रूप लके लिया था , इसलिए बोलती कठपुतली कला ,19 वीं सदी के आसपास एक प्रदर्शन कला के रूप में प्रसिद्ध हुई ,तथा इसका रहस्यमय अवतार समाप्त हुआ।
दुनिया के अन्य भागों में भी अनुष्ठान या धार्मिक उद्देश्यों के लिए बोलती कठपुतली कला की एक परंपरा है; ऐतिहासिक दृष्टि से वहां ज़ुलु, इनुइट, और माओरी लोगों के बीच इस कला को अपनाया गया है।
मनोरंजन के रूप में उद्भव
बोलती कठपुतली कला का आध्यात्मिक शक्तियों की अभिव्यक्ति के रूप से ,मेलों और बाजार ,कस्बों में मनोरंजन के रूप में परिवर्तन ,अठारहवीं सदी में हुआ। बोलती कठपुतली कला का सबसे पुराना उदाहरण इंग्लैंड में 1753 में मिलता है , जहां ऐसा प्रतीत होता है की सर जॉन पार्नेल अपने हाथ के माध्यम से,विलियम होगार्थ के रूप में बोल रहे है। 1757 में ऑस्ट्रिया के बैरन डी मेंगें ने अपने प्रदर्शन में एक छोटी सी गुड़िया को प्रयुक्त किया था। 18 वीं शताब्दी के अंत तक, ventriloquist प्रदर्शन, इंग्लैंड में मनोरंजन का माध्यम थे, हालांकि ज्यादातर कलाकारों के कार्यक्रमो में ऐसा लगता था की आवाज़ दूर से आ रही है, एक कठपुतली का उपयोग करने की आधुनिक विधि काफी बाद में आयी। 1790 की अवधि में एक प्रसिद्ध बोलती कठपुतली कलाकार, यूसुफ अस्किन्स , ने में लंदन में "सैडलर वेल्स" रंगमंच पर अभिनय प्रदर्शन किया था जिसमे वे अपने और अपने अदृश्य परिचित,लिटिल टॉमी, के बीच संवाद स्थापित करते प्रतीत होते थे .हालांकि अन्य कलाकारों ,विशेष रूप से आयलैंडवासी जेम्स बरने ने कठपुतली का उपयोग शुरू किया। 'बोलती' कठपुतली की कला को उत्तर भारत में यशवंत केशव पाध्ये और दक्षिण भारत में एम एम रॉय द्वारा लोकप्रिय किया गया , जिन्हें भारत में इस क्षेत्र की अग्रणी माना जाता है। यशवंत केशव पाध्ये के बेटे रामदास पाध्ये उनसे इस कला को सीखा और टेलीविजन पर अपने प्रदर्शन के माध्यम से इस कला को जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया। रामदास पाध्ये के बेटे सत्यजीत पाध्ये भी एक 'बोलती कठपुतली कलाकार' है। इसी तरह, बैंगलोर से "इंदुश्री " नमक एक महिला 'बोलती कठपुतली कलाकार' ने इस कला के लिए बहुत योगदान दिया है। वह 3 कठपुलियो से एक साथ काम करती है। वेंकी बंदर और नकलची श्रीनिवास, एम एम रॉय के विद्यार्थी है जिन्होंने भारत और विदेशों में शो देकर इस कला को लोकप्रिय बनाया। नकलची श्रीनिवास ने , विशेष रूप से, बोलती कठपुतली कला में कई प्रयोग किये थे। उन्होंने इस कला को "ध्वनि भ्रम" के नाम से लोकप्रिय बनाया गया है.
सही आवाज़ निकालने की कला
एक कठिनाई जो सभी 'बोलती कठपुतली कलाकार' महसूस करते है कि प्रदर्शन के समय उन्हें होंठो थोड़ा अलग करना पड़ता है।होठों के प्रयोग से निकलनेवाले शब्द जैसे एफ, वी ए, बी, पी, और एम् के लिए उन्हें दुसरे शब्दो का चुनाव करना पड़ता है । ध्वनियों के रूपांतरों वे , थ , डी, टी, और एन जल्दी बोल जाते है , यह अंतर श्रोताओं के लिए भांपना मुश्किल होता है।
बोलती कठपुतली की डमी
आधुनिक ventriloquists की प्रस्तुतियों में कठपुतलियों के बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री का उपयोग किया जाता है जैसे मुलायम कपड़े या फोम कठपुतलियों (जिसमे वेरना फिन्ली का काम उल्लेखनीय है), लचीला लेटेक्स से बनी कठपुतलियों (जैसे स्टीव एक्सटेल की कृतियों के रूप में) और पारंपरिक और जाने पहचाने लकड़ी की कठपुतलिया (टिम सेल्बेर्ग के यंत्रीकृत नक्काशियों युक्त पुतली )।
परंपरागत ventriloquists द्वारा इस्तेमाल किये गए डमी की ऊंचाई आमतौर पर चौंतीस और बयालीस इंच के बीच होती है ,कई बार बारह इंच से लेकर मानव आकार तक लंबे और बड़े डमी का उपयोग भी होता है। परंपरागत रूप से, कठपुतली को कागज की लुगदी या लकड़ी से बनाया जाता है। आधुनिक समय में अन्य सामग्री जैसे फाइबरग्लास, प्रबलित रेजिन, यूरेथेन्स , हार्ड लेटेक्स और नेओप्रीन आदि से बनाया जाता हैं।
बोलती कठपुतली और डरावनी फिल्मे
फिल्में और कार्यक्रम जिनमे जीवित भयावह और खूनी खिलौने शामिल हैं उनमे 1978 की फिल्म 'मैजिक', फिल्म डेड ऑफ़ नाईट , ट्वाईलाईट जोन , पोल्टरजीस्ट , डेविल डॉल , डेड साइलेंस , 1988 की फिल्म चाइल्ड्स प्ले , टीवी सीरियल 'बफी द वैम्पायर स्लेयर , गूज़बम्पस , सेइन्फ्लेड श्रृंखला कड़ी "द चिकेन रोस्टर ", अल्फ आई एम् योर पपेट , और डॉक्टर हू प्रमुख है। भयावह बोलती कठपुतली डमी के उदाहरणों में गेराल्ड क्रश की हॉरिबल डमी और जॉन केयर क्रॉस द्वारा "द ग्लास आई "कहानी प्रमुख है।
नोट
- Vox,Valentine I Can See Your Lips Moving, the history and art of ventriloquism (1993) 224 pages. (3000 year history of the practice. Plato Publishing/Empire publications ISBN 0-88734-622-7
- Leigh Eric Schmidt (1998) "From Demon Possession to Magic Show: Ventriloquism, Religion, and the Enlightenment". Church History. 67 (2). 274-304.
- Ventriloquism, A Dissociated Perspective by Angela Mabe
- The Catholic Encyclopedia's Necromancy entry