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बीज
वनस्पति विज्ञान में, बीज एक अविकसित पौधा भ्रूण और एक सुरक्षात्मक बाह्यावरण में संलग्न खाद्य भंडार है। अधिक सामान्यतः, "बीज" शब्द का अर्थ कुछ भी है जिसे बोया जा सकता है, जिसमें बीज और भूसी या कन्द शामिल हो सकते हैं। बीज पके हुए बीजाण्ड के उत्पाद हैं, पराग से शुक्राणु द्वारा भ्रूण की थैली को निषेचित करने के बाद, एक युग्मज का निर्माण होता है। एक बीज के भीतर भ्रूण युग्मज से विकसित होता है, बीजाण्ड के चारों ओर एक आवरण बनाता है, और विकास रुकने से पहले मातृ पौधे के भीतर एक निश्चित आकार तक बढ़ता है।
बीज का निर्माण पुष्पोद्भिदों में प्रजनन की प्रक्रिया का एक भाग है। फ़र्न, हरिता और लिवरवॉर्ट जैसे अन्य पौधों में बीज नहीं होते हैं और स्वयं को फैलाने हेतु जल पर निर्भर साधनों का उपयोग करते हैं। बीज पौधे अब गर्म और शीतल दोनों मौसमों में वनों से लेकर तृणभूमियों तक भूमि पर जैविक नीशों पर निर्भर हैं।
सपुष्पक पौधों में, अण्डाशय एक फल के रूप में पकता है जिसमें बीज होता है और इसका प्रसार करने का कार्य करता है। सामान्यतः "बीज" के रूप में सन्दर्भित कई संरचनाएँ वास्तव में शुष्क फल हैं। सूर्यमुखी के बीजों को कभी-कभी व्यावसायिक रूप से तब बेचा जाता है जब वे फल की कठोर दीवार के भीतर बन्द रहते हैं, जिसे बीज तक पहुँचने के लिए खुला विभाजित करना चाहिए। पौधों के विभिन्न समूहों में अन्य रूपान्तरण होते हैं, तथाकथित अष्ठिल फल में एक कठोर फल की परत (अन्तः फलभित्ति) होती है जो वास्तविक बीज से और उसके निकट होती है। बादाम कुछ पौधों के एक-बीज वाले, शक्त छिलके वाले फल होते हैं, जिनमें एकोर्न या हेज़लनट जैसे अस्फुटनशील बीज होते हैं।
अनुक्रम
वानस्पतिक परिभाषा
क) ऐसी रचना जो साधारणतया गर्भाधान के बाद भ्रूण से विकसित होती है बीज कहलाती है।
ख) विस्तारणीय ऐसी इकाई को भ्रूण से उत्पन्न होती है बीज कहलाती है।
ग) ऐसा परिपक्व भ्रूण जिसमें एक पौधा छिपा होता है। और पौधों के आरंभिक पोषण के लिए खाद्य सामग्री हो तथा यह बीज कवच से ढका हो और अनुकूल परिस्थितियों में एक स्वस्थ पौधा देने में समर्थ हो, बीज कहलाता है।
घ) ऑक्सफ़ोर्ड शब्दकोश के पृष्ठ 2708 के अनुसार पौधे का भ्रूण या पौध का भाग जो बोने के उद्देश्य से इकट्ठा किया गया हो, बीज कहलाता है।
ङ) ब्रिटैनिका विश्वकोष के अनुसार बीज वह आकृति है जिसमें भ्रूण बाहरी रक्षा कवच (बीज आवरण) से ढका हो इसके अतिरिक्त खाद्य पदार्थ एन्डोस्पर्म के रूप में उपलब्ध हो तथा यहां यह पदार्थ एन्प्डोस्पर्म के रूप में न हो यहां, बीज पत्रों के रूप में हो। बीज का विकास अंडे व स्पर्म के गर्भाधान क्रिया के द्वारा होता है। और इस प्रकार से उत्पन्न युग्मज में कोशिका तथा नाभकीय विभाजन होता है तथा भ्रूण के रूप में विकसित होता है बीज निर्माण की यह प्रक्रिया विभिन्न पौधों में भिन्न-भिन्न प्रकार से होती है।
बीज की संरचना
निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड से बीज बन जाते हैं। बीज में प्रायः एक बीजावरण तथा भ्रूण होता है। भ्रूण में एक मूलांकुर एक भ्रूणीय अक्ष तथा एक अथवा दो बीजपत्र होते हैं।
एकबीजपत्री
प्रायः एकबीजपत्री बीज भ्रूणपोषी होते हैं किन्तु उनमें से कुछ अभ्रूणपोषी होते हैं।उदाहरणतः ऑर्किड। शस्य बीजों जैसे मक्का में बीजावरण झिल्लीदार, तथा फल भित्ति से संग्लित होता है। भ्रूणपोष स्थलीय होता है और भोजन का संग्रहण करता है। भ्रूणपोष को बाह्य भित्ति भ्रूण से एक प्रोटीनी स्तर द्वारा भिन्न होती है जिसे ऐलूरोन स्तर कहते हैं। भ्रूण आकार में छोटा होता है और यह भ्रूणपोष के एक सिरे पर खाँचे में स्थित होता है। इसमें एक बड़ा तथा ढालाकार बीजपत्र होता है जिसे प्रशल्क कहते हैं। इसमें एक छोटा अक्ष होता है जिसमें प्रांकुर तथा मूलांकुर होते हैं। प्रांकुर तथा मूलांकुर एक चादर से ढके होते हैं, जिसे क्रमश: प्रांकुरचोल तथा मूलांकुरचोल कहते हैं।
द्विबीजपत्री
बीज की बाह्य स्तर को बीजावरण कहते हैं। बीजावरण की दो सतह होती हैं- बाहरी का बीजचोल और भीतरी सतह का प्रवार कहते हैं। बीज पर एक क्षत चिह्न की तरह का नाभिका होता है जिसके द्वारा बीज फल से जुड़ा रहता है। इसे नाभिका कहते हैं। प्रत्येक बीज में नाभिका के ऊपर छिद्र होता है जिसे बीजाण्डद्वार कहते हैं। बीजावरण हटाने के बाद बीजपत्रों के बीच भ्रूण को देखा जा सकता हैं। भ्रूण में एक भ्रूणीय अक्ष और दो गुदेदार बीजपत्र होते हैं। बीज पत्रों में भोज्य पदार्थ संचित रहता है। अक्ष के निम्न नुकीले भाग को मूलांकुर तथा ऊपरी पत्रदार भाग को प्रांकुर कहते हैं। भ्रूणपोष भोजन संग्रह करने वाला ऊतक है जो द्विनिषेचन के परिणामस्वरूप बनते हैं। चना, सेम तथा मटर में भ्रूणपोष पतला होता है। इसलिए ये अभ्रूणपोषी हैं जबकि अरण्डी में यह गूदेदार होने के कारण यह भ्रूण पोषी है।
बीज संरक्षण
हर तीन या चार वर्ष बाद बीज बदलना एक अच्छी नीति है, जिसके परिणामस्वरूप फसल अच्छी होती है। अच्छी उपज के लिए प्रमाणित बीज का प्रयोग करें, जो कि अच्छे संस्थान से ही प्राप्त हो सकता है। इससे अच्छा जमाव और बीज की किस्म की उत्तमता के विषय में सुनिश्चितता होती है, साथ-साथ बीज शारीरिक रोगों से मुक्त होता है।
बीज का महत्व
मनुस्मृति में कहा गया है-
- अक्षेत्रे बीजमुत्सृष्टमन्तरैव विनश्यति।
- अबीजकमपि क्षेत्रं केवलं स्थण्डिलं भवेत्।।
- सुबीजम् सुक्षेत्रे जायते संवर्धते
उपरोक्त श्लोक द्वारा स्पष्ट किया गया है कि अनुपयुक्त भूमि में बीज बोने से बीज नष्ट हो जाते हैं और अबीज अर्थात गुणवत्ताहीन बीज भी खेत में केवल लाथड़ी बनकर रह जाता है। केवल सुबीज-अर्थात् अच्छा बीज ही अच्छी भूमि से भरपूर उत्पादन दे सकता है। अब यह जानना आवश्यक है कि सुबीज़ क्या है सुबीजम् सु तथा बीजम् शब्द से मिल कर बना है। सु का अर्थ अच्छा और बीजम् का अर्थ बीज अर्थात् अच्छा बीज। अच्छा बीज जानने के पूर्व यह जानना भी आवश्यक है कि बीज क्या है?
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- बीज (भारत सरकार का पोर्टल)
- धरती और बीज
- बीज (आदर्श ग्राम एवं ग्रामोद्योग)
- कृषिधन सीड्स लिमिटेड
- Save our seeds, says Bengaluru's seed guardian (द हिन्दू)