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प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण

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कमल का फूल जिसकी पत्तियां पानी में रह कर भी नहीं भीगती
कमल की पत्तियों पर पानी नहीं चिपकता, इसके आधार पर एक नये तरह का पेंट तैयार किया गया है जो पानी से खराब नहीं होता

प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण (अंग्रेज़ी: Biomimicry) विज्ञान की एक ऐसी नवीन विधा है, जो कि पूरी तरह से प्राकृतिक रचनाओं द्वारा प्रेरित होती है। इसे एक नवीन विधा कहने के बजाए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहना अधिक उचित होगा। अभियांत्रिकी, आधुनिक प्रौद्योगिकी और दैनिक जीवन में इस अवधारणा का व्यापक उपयोग होता है।

प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण/जैव अभिप्रेरित निर्माण

प्रकृति हमारे लिए मात्र संसाधनों की स्रोत न होकर प्रेरणा की भी स्रोत होती है। प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण की अवधारणा कोई नई नहीं है। वैज्ञानिक विधा के रूप में इसका अनुप्रयोग जरूर नया है। इसकी अवधारणा का उपयोग प्रकृति की संरचनाओं और इसकी क्रियाविधि को आदर्श मानते हुए किसी भी कृत्रिम निर्माण या किसी भी घटना की व्याख्या करने के लिए किया जाता है। यह देखा गया है कि ऐसे मॉडल या यंत्र जो कि किसी प्राकृतिक घटक या संरचना पर आधारित होते हैं वे पंरपरागत मॉडल या यंत्रों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावशाली और उपयोगी सिद्ध होते हैं। प्रकृति की कोई भी संरचना अनेक तरह के बलों और उत्परिवर्तनात्मक प्रक्रिया के फल स्वरूप बनती है। वातावरणीय घटकों से होने वाला निरंतर आदान प्रदान इसके पुनः परिवर्तन के लिए जिम्मेदार होता है। बार बार होने वाला यह परिवर्तन आगे एक नई रचना को जन्म देता है।
यह रचना प्रकृति की सार्थकता को व्यक्त करती है। संक्षेप में कहा जाए तो प्रकृति की किसी भी रचना में निरर्थकता नहीं होती है और यह रचना सतत् होने वाले परिवर्तनों के लिए ग्राह्य भी होती है। मानव की उत्कृष्ट बौद्धिक क्षमता ने अभियांत्रिकी के इस अभूतपूर्व सिद्धांत को मूर्त रूप देते हुए इसका दैनिक जीवन में अनुप्रयोग आरंभ किया।

प्रकृति एक आदर्श मॉडल और शिक्षक के रूप में

क्या एक पत्ती की जैविकी का अध्ययन एक परिष्कृत सौर ऊर्जा सेल के निर्माण में सहायक हो सकता है? हरी पत्तियों में होने वाली प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया ऊर्जा रूपांतरण और संचयन का सर्वोत्तम उदाहरण है। सौर ऊर्जा बैटरी द्वारा भी यहीं कार्य किया जाता है लेकिन दोनो की क्रियाविधि और दक्षता में अंतर होता है। एक बात और है। प्रकृति के बारे में सीखने और प्रकृति से सीखने में बहुत अंतर होता है। प्रकृति को देखने की दूसरी दृष्टि भी है। यदि इसे एक गुरु और आदर्श के रूप में देखेंगे तो हम पाएंगे कि 3.8 अरब वर्षों के उत्परिवर्तन और सतत् विकास का अनुभव हमारे सामने उपलब्ध है। क्या चीज अनुप्रयोग में लाई जा सकती है और सृष्टि के विकास में कौन सी चीजे महत्वहीन हैं। महत्वपूर्ण रचनाओं को कैसे प्रोत्साहन दिया जाता है और महत्वहीन रचनाएं कैसे धीरे धीरे विलुप्त हो जाती हैं। यह सब कुछ हमें यहां सीखने को मिलता है। प्राकृतिक चयन और योग्यतम की उत्तरजीविता और अनुकूलन की घटना इसका एक अच्छा उदाहरण है।

प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण के कुछ सिद्धांत

गेको के पैर के तलवों में दीवारों से चिपकने का गुण होता है। इसके आधार मानते हुए एक बिना गोंद के चिपकने वाले कागज का विकास किया गया है।
किंगफिशर पक्षी की चोंच ऐसी होती है कि उड़ते समय इस पर हवा का प्रतिरोध कम से कम लगता है।
हवा का प्रतिरोध कमतर करने केलिए जापान की बुलेट ट्रेन का अगला भाग किंगफिशर पक्षी की चोंच के आकार का बनाया गया है।

प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण के कुछ अपने सिद्धांत भी हैं। किसी भी निर्माण को तभी वास्तविक रूप में प्रकृति द्वारा अभिप्रेरित कहा जा सकता है जब वह कुछ परिस्थितियों में खरा उतरता है। ऐसे एक आदर्श निर्माण के निम्नलिखित सिद्धांत होते हैं।

  1. निर्माण सामग्री का संतुलित और कम से कम उपयोग
  2. निर्माण कार्य में ऊर्जा का दक्षतापूर्ण और कम से कम उपयोग
  3. वातावरण और निवास (habitat) में उपलब्ध संसाधनों द्वारा और वातावरण और निवास के लिए निर्माण
  4. प्राकृतिक संसाधनों के संदोहन न होता हो
  5. जैव मंडल के साथ पूरा संतुलन
  6. प्रकृति की कोई भी वस्तु बेकार नहीं होती और उसका कुछ न कुछ उपयोग होता ही है। अतः निर्माण में अगर कुछ बच गया हो तो उसका संपूर्ण पुनः उपयोग

प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण की विधियां

अनुप्रयोगात्मक रूप में प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण की तीन विधियां प्रयोग में लाई जाती हैं।

  1. किसी प्राकृतिक संरचना को केन्द्र में रख कर निर्माण
  2. किसी प्राकृतिक घटना की क्रियाविधि को केन्द्र में रख कर निर्माण और
  3. विभिन्न जीवों के सामाजिक व्यवहार के आधार पर किसी घटना की व्याख्या (उदाहरण के लिए दीमकों, चीटियों और मधुमक्खियों के समाज में श्रम विभाजन)

हम अपने आस पास देखें तो हमें ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जहां इन विधियों का प्रयोग करते हुए कोई निर्माण किया गया है।

प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण के कुछ उदाहरण तथा अनुप्रयोग

लिओनार्दो दा विंची ने १४४५ में सर्वप्रथम चित्रों द्वारा उड़ने वाले यंत्र की कल्पना की थी। उन्होंने पक्षियों की शारीरिक संरचना और इनके उड़ने की विधियों का सूक्ष्म निरीक्षण किया और इसके आधार पर पैराशूट और जहाज के विविध चित्र बनाए। इनके चित्र प्रकृति अभिप्रेरित परिकल्पना के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। एक ऐसा ही उदाहरण स्मार्ट कपड़ों के संबंध में दिया जा सकता है। इसका अन्वेषक को कोनिफर प्रजाति के कुछ पौधों से प्रेरणा मिली। ऐसे पौधे एक विशेष तापमान रेंज में खुलकर अपने बीजों का प्रकीर्णन करते हैं। इस जैविक प्रक्रिया से प्रेरित जिन रेशों का इजाद किया वे ताप के लिए अनुकूलित थे। ऐसे कपड़ों के रेशे कम तापमान होने पर बंद हो जाते हैं और अधिक तापमान में खुल जाते हैं। एक अन्य उदाहरण कमल के फूल की एक विशेषता जिसे जल कमलवत संबंध कहते हैं पर आधारित है। कमल के फूल और पत्तों पर पानी नहीं ठहरता और ये जल में रह कर भी नहीं भीगते और स्वच्छ रहते हैं। इस विशेष गुण को ध्यान में रख कर एक नये तरह के पेंट का निर्माण किया गया जिसके अंदर स्वयं साफ हो जाने का गुण होता है। इसी तरह से अभी हाल ही में एक विशेष तरह के चिपकाने वाले टेप की खोज की गई है। इस टेप में किसी भी तरह के गोंद का प्रयोग नहीं होता है। वैज्ञानिकों को इसे बनाने की प्रेरणा एक तरह के सरीसृप गेको (Gecko) से मिली। इस सरीसृप के तलवों में सूक्ष्म ब्रश जैसी संरचनाएं होती हैं जिनकी वजह से यह दीवारों से नहीं फिसलता है और आराम से चल लेता है।
एक दूसरे उदाहरण में किंगफिशर पक्षी की संरचना को ध्यान में रख कर हवा से बिल्कुल कम प्रतिरोध करने वाली जापान की बुलेट ट्रेन की संरचना निर्धारित की गई। वैज्ञानिकों नें ट्रेन की नाक को किंगफिशर की चोच जैसा बनाकर देखा तो पाया कि अब हवा का प्रतिरोध कम से कम लगता है।
जैव अभिप्रेरणा के आधार कर एक कंपनी के संगठन और क्रियाविधि की व्याख्या की जा सकती है। एक कंपनी को अगर हम एक जीव के रूप में माने जो कि एक आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र का एक भाग है तो हम देखेंगे कि दूसरे जीवों कंपनियों के साथ इसके संबंध एक तरह के सहजीवन (symbiosis) को निरूपित करते हैं। यहां भी योग्यतम की उत्तरजीविता और अनुकूलन के सिद्धांत लागू होते हैं।

प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण के क्षेत्र में संभावनाएं

विशेषतौर पर अभियांत्रिकी और निर्माण के क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। नये उभरते क्षेत्र के रूप में इसने वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित किया है। कार्य और ऊर्जा दक्षता, पर्यावरण के अनुकूल और सुलभ होने जैसे गुणों के कारण प्रकृति अभिप्रेरित उत्पाद लोकप्रिय होते हैं और दूसरे उत्पादों की तुलना में कहीं अच्छे होते हैं। वर्तमान परिवेश में जबकि पूरा विश्व पर्यावरण संकट से जूझ रहा है। ऐसे में यह उत्पाद अपने जैविक संतुलन के कारण अधिक उपयोगी हो सकते हैं। और भी कुछ निम्नलिखित कारण हैं जोकि प्रकृति आधारित निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं।

  1. प्रदूषण नियंत्रण हेतु
  2. हमारे प्राकृतिक संसाधनो के संरक्षण हेतु
  3. ऊर्जा संरक्षण हेतु
  4. समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने हेतु

प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण और धारणीय विकास

पर्यावरण विज्ञान में धारणीय विकास (Sustainable Development) की चर्चा की जाती है। इसके अनुसार हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का ऐसे प्रयोग करे कि यह वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ साथ भविष्य के लिए भी उपलब्ध हो तथा हर स्थिति में पर्यावरण संरक्षण के अनुरूप हो। ऐसे में हम देखते हैं कि जैव अभिप्रेरित निर्माण इसमें बहुत हद तक सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
यह सर्वमान्य है कि प्रकृति में पहले से ही उन अनेक समस्याओं का समाधान है जिन्हें हम हल करने का अभी तक प्रयास ही कर रहें हैं। आवश्यकता बस इसी बात की है कि अपनी दृष्टि को व्यापक बनाया जाए। यदि हमें इस प्राकृतिक बौद्धिकता का सर्वोत्तम उपयोग करना है तो हमें सबसे पहले अपनी उस विचारधारा को त्यागना होगा जिसमें हम इसे संसाधनों का स्रोत मात्र मानते हैं और इसके संदोहन के लिए एक हद तक पागल बने रहते हैं। अंत में एक संदेश के रूप में महात्मा गांधी के इस प्रकृति दर्शन का उल्लेख अपरिहार्य होगा-

प्रकृति में सभी व्यक्तियों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने की पूरी सामर्थ्य है, लेकिन इसमें एक व्यक्ति के भी लालच के लिए कोई स्थान नहीं।

जैव अभिप्रेरित निर्माण, विज्ञान (विज्ञान परिषद् प्रयाग से प्रकाशित), अक्टूबर 2008, पृष्ठ 19-21.

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