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पुनरावृत्त तनाव क्षति

पुनरावृत्त तनाव क्षति

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पुनरावृत्त तनाव क्षति
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
डिज़ीज़-डीबी 11373
ईमेडिसिन pmr/97 
एम.ईएसएच D012090

पुनरावृत्त तनाव क्षति (अंग्रेज़ी:रेपीटीटिव स्ट्रेन इंजरी, लघुरूप:आर.एस.आई), जिसे रेपीटीटिव मोशन इंजरी, रेपीटीटिव मोशन डिसॉर्डर, क्यूमुलेटिव ट्रॉमा डिसॉर्डर आदि नाम भी मिले हैं, मांसपेशियों और तन्त्रिका तन्त्र में समस्या के कारण होने वाली क्षति होती है। आर.एस.आई होने का प्रमुख कारण बार-बार काम को दोहराने, अत्यधिक मानसिक परिश्रम करने, कंपन, याँत्रिक संपीड़न (मैकेनिकल कंप्रेशन) और बैठने की खराब मुद्रा होता है। इस रोग के रोगियों में मुख्यतः तीन तरह के लक्षण देखने में आते हैं। बाहों में दर्द, सहनशक्ति में कमी और कमजोरी जैसी समस्याएं इस तरह की क्षति में आम होती हैं। शारीरिक के साथ-साथ मानसिक समस्या भी होने लगती हैं। २००८ में हुए एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि ब्रिटेन के ६८ प्रतिशत कर्मचारी आर.एस.आई की समस्या से पीड़ित हैं जिसमें सबसे आम समस्या पीठ, कंधे, हाथ और कलाई की थी।

आरएसआई होने के मुख्य कारक खराब तकनीक, कंप्यूटर का सीमा से ज्यादा प्रयोग, जोड़ों का कमजोर होना, प्रतिदिन व्यायाम करने में कमी, अधिक वजन, मानसिक दबाव, अंगुलियों के नाखून लंबे होने, देर रात तक सोने, तनाव और खराब जीवनशैली होते हैं। इसके प्राथमिक लक्षण के रूप में अंगुलियों, हथेली, कुहनी और कंधों में जलन और दर्द होता है। लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करने से दर्द बढ़ सकता है। इन सबके साथ ही सुन्नपन, झनझनाहट, कड़ापन और सूजन आ जाती है और कभी-कभी नसों का नष्ट होना भी दिखाई दिया है।

उपचार

डाटाहैण्ड प्रोफ़ैश्नल II कीबोर्ड, दायीं ओर

चिकित्सकों के अनुसार आरएसआई के उपचार में विलंब नहीं करनी चाहिए। इसके उपचार मुख्यतः ३ भागों में होते हैं। प्रथम तो इर्गोनॉमिक्स में हाथों और मुद्रा बदलकर शरीर का इलाज किया जाता है। दूसरे भाग में एडॉप्टिव टेक्नोलॉजी आती है, जिसमें कंप्यूटर के कीबोर्ड, माउस को बदल दिया जाता है। इनके स्थान पर विशेष प्रकार के कीबोर्ड और माउस प्रयोग में लाये जाते हैं। इस प्रकार के विशेष कंप्यूटर हार्डवेयर निर्माताओं में डाटाहैंड, ऑर्बिटच, मैल्ट्रॉन और काइनेसिस प्रमुख हैं।

कुर्सी में बदलाव

एर्गोनॉमिक्स - कार्य, कार्यस्थल और उपकरण अभिकल्पन विज्ञान

आर.एस.आई से बचने हेतु कुर्सी पर सही मुद्रा व सीधी पीठ करके बैठना चाहिये। घुटने ९० अंश के कोण पर होने चाहिए। सही तरीके से बैठने के लिए फुट रेस्ट का प्रयोग किया जा सकता है। कंप्यूटर स्क्रीन का लेवल आंखों के समानांतर होना चाहिए।

आर.एस.आई एवं थकान आदि से बचाव हेतु लंबे समय तक प्रयोग में ली जाने वाली कुर्सियों में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये:

  • कूल्हों को आधार मिले:कूल्हों को उचित आधार मिले ऐसी कुर्सी देखें। इन्हें लंबर सपोर्ट चेयर्स कहते हैं। ऐसा होने से व्यक्ति ७-८ घंटों तक तनाव मुक्त बैठ सकता है। पीठ के निचले हिस्से को सहारा मिलनेपर रीढ़ की का अंग्रेज़ी में S-आकार प्राकृतिक अवस्था में बनाया रखा जा सकता है। ऐसी कुर्सी में झुकते समय पीठ का निचला हिस्सा हल्का सा ही झुके।
  • समायोज्य ऊंचाई:ऊंचाई उपयोक्ता के अनुकूल बदली जा सके यानि हाइट एडजस्टेबिलिटी वाली कुर्सी होनी चाहिये। जब कुर्सी पर बैठें तो पैर पूरी तरह जमीन पर लगने चाहिए। यदि पैर लटक रहे हैं तो आगे को झुकेंगे जिससे आपकी पीठ की एस-वक्र में गड़बड़ी होगी। पिंडलियां फर्श के समांतर होनी चाहिए।
  • पीठ के कोण:ऐसी कुर्सी होनी चाहिये जिसपर पीठ के आगे या पीछे होने पर सहयोग मिलता है। इन पर बैक इन्क्लाइन सुविधा होती है।
  • आरामदायक हत्थे:आरामदायक एवं गुदगुदे हत्थे यानि आर्मरेस्ट होने चाहिये। हत्थों के बिना कुर्सी से मुक्त घुमाव तो मिलता है, किंतु यदि हाथ कुछ ऊपर की ओर हैं तो कंधों में तनाव हो सकता है। ऐसे में हत्थे कंधों का यह तनाव दूर करते हैं। फ्लैक्सिबल हत्थों से व्यक्तिगत आकार पर कुर्सी की सीमा पहचान में आती है और बाजुओं को शरीर से निश्चित दूरी पर रखने में भी मदद मिलती है।
  • सीट स्पैन :उपयोक्ता की थाईबोन की लंबाई के अनुसार ही गद्दी की गहराई होनी चाहिए जिससे पीठ को भी आराम मिलता है। सीट की चौड़ाई विभिन्न आकार के व्यक्तियों के अनुसार होनी चाहिए।

बाहरी कड़ियाँ


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