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नेतृत्व
अभिषेक कुर्मी देवरी
नेतृत्व (leadership) की व्याख्या इस प्रकार दी गयी है" अभिषेक कुर्मी एक बहुत अच्छे लीडर के रूप में उभर का आए । इनकी राजनैतिक कार्यों में जनभागीदारी देखने को मिली इनके द्वारा अनेक सामाजिक कार्य किए गए । (9301641845)
नेतृत्व एक प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति सामाजिक प्रभाव के द्वारा अन्य लोगों की सहायता लेते हुए एक सर्वनिष्ट (कॉमन) कार्य सिद्ध करता है। एक और परिभाषा एलन कीथ गेनेंटेक ने दी जिसके अधिक अनुयायी थे "नेतृत्व वह है जो अंततः लोगों के लिए एक ऐसा मार्ग बनाना जिसमें लोग अपना योगदान दे कर कुछ असाधारण कर सकें.
ओसवाल्ड स्पैगलर ने अपनी पुस्तक 'मैन ऐण्ड टेक्निक्स' (Man and Techniques) में लिखा है कि ‘‘इस युग में केवल दो प्रकार की तकनीक ही नहीं है वरन् दो प्रकार के आदमी भी हैं। जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति में कार्य करने तथा निर्देशन देने की प्रवृति है उसी प्रकार कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिनकी प्रकृति आज्ञा मानने की है। यही मनुष्य जीवन का स्वाभाविक रूप है। यह रूप युग परिवर्तन के साथ कितना ही बदलता रहे किन्तु इसका अस्तित्व तब तक रहेगा जब तक यह संसार रहेगा।’’
शासन करना, निर्णय लेना, निर्देशन करना आज्ञा देना आदि सब एक कला है, एक कठिन तकनीक है। परन्तु अन्य कलाओं की तरह यह भी एक नैसर्गिक गुण है। प्रत्येक व्यक्ति में यह गुण या कला समान नहीं होती है। उद्योग में व्यक्ति के समायोजन के लिए पर्यवेक्षण (supervision), प्रबंध तथा शासन का बहुत महत्व होता है। उद्योग में असंतुलन बहुधा कर्मचारियों के स्वभाव दोष से ही नहीं होता बल्कि गलत और बुद्धिहीन नेतृत्व के कारण भी होता है। प्रबंधक अपने नीचे काम करने वाले कर्मचारियों से अपने निर्देशानुसार ही कार्य करवाता है। जैसा प्रबंधक का व्यवहार होता है, जैसे उसके आदर्श होते हो, कर्मचारी भी वैसा ही व्यवहार निर्धारित करते हैं। इसलिए प्रबंधक का नेतृत्व जैसा होगा, कर्मचारी भी उसी के अनुरूप कार्य करेंगे।
स्मिथ ने कहा है- यदि किसी व्यक्ति के पास सुन्दर बहुमूल्य घड़ी है और वह सही तरह से काम नही करती है तो वह उसे मामूली घड़ीसाज को सही करने के लिए नहीं देगा। घड़ी की जितनी बारीक कारीगरी होगी, उसे ठीक करने के लिए भी उतना ही चतुर कारीगर होना चाहिए। कारखाने या फैक्ट्री के विषय में भी यही बात है। कोई भी मशीन इतनी जटिल और नाजुक नहीं और न ही इतना चातुर्यपूर्ण संचालन चाहती है, जितना प्रगतिशील प्रबंध नीति। यह आवश्यक नहीं कि प्रबंध नीति प्रगतिशील हो। आवश्यकता इस बात की होती है कि प्रबंध नीति सुचारू रूप से हो, यदि सुचारू रूप से प्रबंध नीति चलेगी तो प्रगति अपने आप होने लगेगी।
नेतृत्व संगठनात्मक संदर्भों के सबसे प्रमुख पहलुओं में से एक है। हालांकि, नेतृत्व को परिभाषित करना चुनौतीपूर्ण रहा है।
प्रबंध जगत में नेतृत्व का अपना एक विशिष्ट स्थान है एक संस्था की सफलता या असफलता हेतु काफी हद तक नेतृत्व जिम्मेदार होता है कुशल नेतृत्व के अभाव में कोई भी संस्था सफलता के सोपान ओ को पार नहीं कर सकती है यहां तक भी माना जाता है कि कोई भी संस्था तभी सफल हो सकती है जब उसका प्रबंधन ने नेतृत्व भूमिका का सही निर्वहन करता है फिटर एक ट्रकर के शब्दों में प्रबंधक किसी व्यवसायिक उपक्रम का प्रमुख एवं दुर्लभ प्रसाधन है अधिकांश व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के सफल होने का प्रमुख कारण कुशल नेतृत्व ही है
अनुक्रम
- 1 नेतृत्व का अर्थ
- 2 नेतृत्व की विशेषताएं
- 3 नेतृत्व का महत्त्व
- 4 नेता के कार्य
- 5 अधिकारियों की भूमिका
- 6 नेतृत्व की प्रकृति एवं प्रारूप
- 7 नेतृत्व-प्रशिक्षण
- 8 उद्योग में सफल नेता के गुण
- 9 जनतांत्रिक नेता के कार्य
- 10 नेतृत्व के नियम
- 11 अधिकारियों से संबंधित अनुसंधान
- 12 नेतृत्व के सिद्धांत
- 13 नेतृत्व की शैलियाँ
- 14 नेतृत्व प्रदर्शन
- 15 नेतृत्व के संदर्भ
- 16 नेतृत्व पर ऐतिहासिक दृष्टिकोण
- 17 दल के कार्य प्रधान नेतृत्व कौशल
- 18 प्राधिकार पर बल देने वाले शीर्षक
- 19 नेतृत्व की अवधारणा की आलोचना
- 20 यह भी देखिये
- 21 सन्दर्भ
- 22 बाहरी कड़ियाँ
नेतृत्व का अर्थ
विद्वानों ने नेतृत्व को भिन्न-भिन्न प्रकार से स्पष्ट किया है। कभी-कभी इसका अर्थ प्रसिद्धि से समझा जाता है। लोकतांत्रिक दृष्टि से इसका अर्थ उस स्थिति से समझा जाता है जिसमें कुछ व्यक्ति स्वेच्छा से दूसरे व्यक्तियों के आदेशों का पालन कर रहे हों। कभी-कभी यदि कोई व्यक्ति शक्ति के आधार पर दूसरों से मनचाहा व्यवहार करवा लेने की क्षमता रखते हो तो उसे भी नेतृत्व के अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है। वास्तविकता यह है कि नेतृत्व का तात्पर्य इनमें से किसी एक व्यवहार से नहीं है बल्कि नेतृत्व व्यवहार का वह ढंग होता है जिसमें एक व्यक्ति दूसरों के व्यवहार से प्रभावित न होकर अपने व्यवहार से दूसरों को अधिक प्रभावित करता है। भले ही यह कार्य दबाव द्वारा किया गया है अथवा व्यक्तिगत सम्बंधी गुणों को प्रदर्शित करके किया गया हो।संस्कृत भाषा में नेता शब्द का अर्थ नीयते यः अनेन अर्थात जो दूसरों का नेतृत्व करने की क्षमता रखता हो।
इसका अर्थ यह हुआ कि जो व्यक्ति स्वयं को आदर्श रूप में प्रस्तुत करें तथा दूसरे उसका अनुसरण करें वही ने
पिंजर (Pingor) ने नेतृत्व को इस प्रकार परिभाषित किया है- ‘‘नेतृत्व व्यक्ति और पर्यावरण के संबंध को स्पष्ट रखने वाली एक धारणा है, यह उस स्थिति का वर्णन करती है जिसमें एक व्यक्ति ने एक विशेष पर्यावरण में इस प्रकार स्थान ग्रहण कर लिया हो कि उसकी इच्छा भावना और अन्तर्दृष्टि किसी सामान्य लक्ष्य को पाने के लिए दूसरे व्यक्तियों को निर्देशित करती है तथा उन पर नियंत्रण रखती है।’’ इस परिभाषा के आधार समीकरण के रूप में इस प्रकार रखा जा सकता है- विशिष्ट पर्यावरण, व्यक्ति की स्थिति, निर्देश, नेतृत्व अर्थात् व्यक्ति एक विशेष पर्यावरण (आर्थिक, धार्मिक आदि) में एक विशेष स्थिति को प्राप्त कर लेता है जो वह अपनी क्षमताओं अथवा गुणों के द्वारा दूसरे व्यक्तियों को प्रभावित करने लगता है। यही नेतृत्व की स्थिति है। लेपियर और फार्न्सवर्थ (Lapiere and Farnisworth) के अनुसार- ‘‘नेतृत्व वह व्यवहार है जो दूसरों के व्यवहार को उससे अधिक प्रभावित करता है जितना कि दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार नेता को प्रभावित करते हैं।’’ सीमेन तथा मौरिस (Seemen and Morris) के अनुसार- ‘‘नेतृत्व व्यक्तियों द्वारा दी जाने वाली उन क्रियाओं में है जो दूसरे व्यक्तियों को एक विशेष दिशा में प्रभावित करती हो।’’ किंवाल यंग के अनुसार- ‘‘नेतृत्व की विवेचना प्रभुत्त्व के रूप में की जानी चाहिए।’’
नेतृत्व की विशेषताएं
नेतृत्व की विशेषताएं इस प्रकार हैं-
- 1. नेतृत्व वह विशेष व्यवहार है जिसमें प्रभुत्व, सुझाव तथा आग्रह sabका सम्मिश्रण होता है।
- 2. नेतृत्व के लिए दो पक्ष नेता और अनुयायी का होना अनिवार्य है। नेता अनुयायियों के व्यवहार को अधिक सीमा तक प्रभावित करता है।
- 3. नेतृत्व सम्बंधित प्रभाव दबाव युक्त नहीं होता। इसे साधारण तथा स्वेच्छापूर्वक ग्रहण किया जाता है। दबाव केवल नेता के नैतिक प्रभाव का होता है।
- 4. नेतृत्व अनियोजित न होकर विचारपूर्वक अनुयायियों के व्यवहारों को निश्चित दिशा में मोड़ दिया जाता है।
- 5. पीगर्स के अनुसार- नेतृत्व पारस्परिक उत्तेजना की प्रक्रिया (Process of mutual stimulation) है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नेतृत्व के द्वारा व्यवहारों में किया जाने वाला परिवर्तन उत्तेजना से प्रभावित होता है।
- 6. नेतृत्व की एक विशेष परिस्थिति (क्षेत्र) होती है। इस प्रकार एक ही व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से नेतृत्व से प्रभावित हो सकता है।
नेतृत्व का महत्त्व
प्रत्येक समूह के लिए नेतृत्व की आवश्यकता होती है। चाहे वह राजनैतिक हो या सामाजिक, धार्मिक हो या औद्योगिक। कोई भी समूह बिना नेतृत्व के आस्तित्वहीन होता है। औद्योगिक क्षेत्र में मालिक या कर्मचारी ही नेता का चयन करते है। होना यह चाहिए कि मालिक और कर्मचारी दोनों मिलकर नेता का चुनाव करें। इस प्रकार की आदर्श चयन प्रणाली के द्वारा मालिक और कर्मचारी के बीच के छोटे-छोटे झगड़ों को रोका जा सकता है। इससे समस्याओं का समाधान भी जल्दी हो सकता है। मालिकों तथा प्रबंधकों द्वारा चुना व्यक्ति अधिक स्वामि-भक्ति रखता है और कर्मचारियों के हितों को उपेक्षित कर सकता है। इसके विपरीत कर्मचारियों द्वारा चुना व्यक्ति कर्मचारियों के प्रति उत्तरदायी होता है। इस प्रकार नीति संघर्ष बढ़ने लगता है। इसलिए प्रभावशाली नेतृत्व के लिए आवश्यक है कि मालिक और कर्मचारी दोनों मिलकर योग्य, अनुभवी और व्यवहार कुशल व्यक्ति को नेता चुनें। नेतृत्व को तीन स्तर पर तीन वर्गो में बांटा गया है-
- (१) उच्चतम स्तर का प्रबंध (Top management),
- (२) मध्यम स्तर का प्रबंध (Middle management),
- (३) सम्मुख व्यक्ति का प्रबंध (Front line management)।
प्रथम स्तर के प्रबंध में उच्च श्रेणी के बिग बॉस (Big Boss), मध्यम स्तर में केवल बॉस (Boss) तथा तीसरी श्रेणी में फोरमैन या सुपरवाइजर आते है। ये तीनों प्रकार के नेता भिन्न-भिन्न स्तरों पर कार्य करते है। इनके उत्तरदायित्व व कर्त्तव्य भी भिन्न होते है। नेता को अपने पद पर बने रहने के लिए आवश्यक होता है कि वह अपने समूह के प्रत्येक पक्ष पर संबंध बनाए रखने में समर्थ हो। इसलिए सुचारू कार्य के लिए यह आवश्यक होता है कि नेता अपने समूह के कर्मचारियों से हमेशा निकट के संबंध बनाए रखें, इससे नेता और कर्मचारियों के बीच तनाव की स्थिति नहीं आएगी और न ही कोई अन्य समस्याएं उत्पादन को प्रभावित करेंगी।
नेता के कार्य
समुदाय अनेक प्रकार के होते हैं यथा -- स्थायी , अस्थायी , संगठित , असंगठित आदि । इन समुदायों के अपने - अपने नेता तथा लक्ष्य होते है । इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समुदाय के सदस्य गण क्रियाशील रहते हैं । इस हेतु वे नेता से आदेश प्राप्त करते हैं व लक्ष्य - प्राप्ति हेतु गतिशील हो जाते हैं । इस प्रकार नेता का प्रमुख कार्य अपने समुदाय के उद्देश्य को प्राप्त करना होता है । नेता समुदाय तथा उसकी नैतिक शक्ति को दृढ़ बनाता है । लेकिन सर्वाधिकारी नेता का कार्य प्रजातांत्रिक नेता से भिन्न होता है । फिर भी नेता का प्रमुख कार्य समुदाय की रचना करना , उसे सुदृढ़ बनाना तथा उसके उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये नीति व योजना आदि का निर्माण करना होता है । नेता के प्रमुख कार्य अधोलिखित हैं
( 1 ) कार्यपालिका का कार्य करना - नेता का प्रमुख कार्य अपने समुदाय का प्रबन्ध करना होता है । समुदाय की क्रियाओं को उचित रूप देने का कार्यभार नेता पर ही रहता है । प्रत्यक्ष रूप से घाहे नेता का हाथ नीति - निर्माण में न हो , परन्तु उस नीति का सही सम्पादन करना नेता का ही कार्य होता है । नेता कार्य को अपने अनुयायियों के बीच बांट देता है और स्वयं उनकी क्रियाओं का निरीक्षण करता है । कभी - कभी समूह के उद्देश्यों को शीघ्र प्राप्त करने के लिये वह उपसमिति का निर्माण भी करता है । इस उपसमिति को वह विशिष्ट कार्य - भार सौंपता है और स्वयं उसकी देखभाल करता है ।
( 2 ) योजना तैयार करने का कार्य — नेता समुदाय के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु योजना का निर्माण करता है । इस योजना में वह उद्देश्य - प्राप्ति का उचित मार्ग तथा साधनों को निर्धारित करता है । तत्पश्चात् वह अन्य सदस्यों को बताता है कि किस प्रकार उद्देश्य की प्राप्ति की जाये । भविष्य की सारी बातों को ध्यान में रख कर ही योजना का निर्माण किया जाता है । नेता को इस योजना का रक्षक माना जाता है क्योंकि वह योजना के प्रत्येक अंग को अच्छी तरह समझता है । नेता का उत्थान अथवा पतन इस योजना की सफलता पर निर्भर करता है ।
( 3 ) नीति - निर्माण का कार्य करना -योजना - निर्माण के पश्चात् नेता के । समक्ष योजना को कार्यान्वित कराने हेतु समूह की नीति पर दृष्टिपात करना होता है , क्योंकि बिना प्रभावी नीति के योजना की सफलता की सम्भावना संदिग्ध होती है । इसे ध्यान में रखते हुए नेता समुदाय की नीति का निर्माण करता है । यह नीति उद्देश्य तथा योजना को दृष्टिगत रखते हुये ही तैयार की जाती है ।
( 4 ) विशेषज्ञ के रूप में कार्य करना - प्रायः यह देखा जाता है कि जो व्यक्ति समुदाय का नेता होता है , उसके उद्देश्यों को अच्छी तरह समझता है । अतः योग्य तथा गुणवान व्यक्ति ही समुदाय का नेता चुना जाता है । योग्य नेता अपने अनुयायियों को उचित परामर्श देने में सक्षम होते हैं । इस प्रकार नेता विशेषज्ञ का कार्य भी करता है ।
अधिकारियों की भूमिका
कारखाने के प्रत्येक कार्य में प्रधान कार्य कर्मचारियों पर ही निर्भर रहता है। कर्मचारी ही कार्य संचालन की महत्वपूर्ण इकाई होता है। भले ही तकनीकी ढंग से प्रशिक्षण प्राप्त हो या नहीं, फिर भी उसी के द्वारा उत्पादन का प्रथम चरण आरंभ होता है। कर्मचारी के बाद सुपरवाइजर फिर कार्य की प्रवृत्ति के अनुरूप विभिन्न प्रकार के एक ऊपर एक अधिकारी होते हैं। अधिकारी के अनेक कार्य होते है। अधिकारी कार्य का सुचारू रूप से संचालन, कर्मचारी की जिम्मेदारियां, उत्पादन की मात्रा, उसका गुण आदि पक्षों को देखता है। दूसरी ओर वह कर्मचारियों को समय-समय पर निर्देश देना, उन पर नियत्रंण रखना, उनके आपसी झगड़ों का निपटारा, उनकी उचित-अनुचित मांगों को ध्यान से सुनना तथा उनका निवारण करना आदि कार्य अधिकारी के कार्य क्षेत्र में आते हो जिन पर अधिकारी को हर समय तत्पर रहना होता है। यदि ऐसा न हुआ तो व्यवस्था में भंग हो जाती हैं। जिससे उत्पादन, कर्मचारी तथा प्रंबधक इससे प्रभावित होते हैं।
नेता के रूप में अधिकारी
कर्मचारियों के कार्य के निरीक्षण हेतु सुपरवाइजर नेता होते हैं। उत्पादन के लिए यह आवश्यक होता हैं कि कर्मचारी अपने कार्य के साथ समायोजन करें। कर्मचारियों का यह समायोजन अधिकारियों और उनकी शासन प्रणाली पर निर्भर करता है। उद्योगों में अव्यवस्था जैसे हड़ताल, तालाबंदी, कर्मचारी एवं प्रबंधकों के बीच आपसी संबंध आदि ऐसे पक्ष हैं जिनका संबंध कर्मचारी और प्रबंधकों की गलत फहमी से होता हैं। लेकिन जो प्रमुख कारण है वह है बुद्धिहीन नेतृत्व। नेतृत्व ही ऐसा विकल्प है जो कार्य-प्रणाली में संतुलन बनाये रखता है। इस प्रकार का नेतृत्व अधिकारी वर्ग करता है इसलिए अधिकारी या प्रबंधक को नेता की संज्ञा दी जाती है। उद्योग में वेतन तथा अन्य सुविधाएं प्राप्त करने वाले कर्मचारियों में कई कर्मचारी ऐसे होते जो मन लगाकर सम्पूर्ण शक्ति से कार्य करते हैं। जबकि कई कर्मचारी ऐसे भी होते हैं जो कार्य में बाधा डालते हैं। इसी प्रकार के कर्मचारी नेता के लिए समस्या पैदा करते हैं। ऐसे कर्मचारियों से व्यावहारिक तारतम्य बना लेना ही नेतृत्व की विशेषताएं और शीलगुण हैं।
अधिकारियों की मनोवैज्ञानिक भूमिका
अधिकारियों को कर्मचारियों के सम्पर्क में रहना चाहिए, उन्हें उद्योग में एक इकाई के रूप में मानना चाहिए। इससे आपसी मतभेद, घृणा, द्वेष आदि को कम किया जा सकता है। कर्मचारी भी अधिकारियों की तरह एक सम्भ्रांत व्यक्ति होता है, उसकी भी अपनी मान-प्रतिष्ठा होती है। अधिकारी ऐसा व्यवहार न करे जिससे कर्मचारी यह महसूस करे कि उसे अलग समझा जा रहा है या उससे दबाब पूर्वक कार्य लिया जा रहा है। अधिकारी को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि कर्मचारी की भी अपनी इच्छाएं होती हैं। वे उद्योग में एक महान शक्ति के रूप में हैं। यह संगठन ही उद्योग की भलाई और उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसलिए अधिकारियों व मालिकों को इस संगठन के लिए अच्छे विचार रखने चाहिए जिससे संगठन के अंदर बुरी भावनाएं पैदा न हों। विपरीत जा रहे कर्मचारियों को सही मार्ग-दर्शन देना चाहिए, उनके बीच में विचार गोष्ठी का आयोजन करना चाहिए तथा उनके विचारों को सही दिशा देनी चाहिए। कर्मचारियों के हित की बात अधिकारियों को सोचनी चाहिए तथा उनकी उचित मांगों को ध्यान में रखना चाहिए। कर्मचारियों की मांग वेतन, लाभांश आदि से सम्बंधित होती हैं। अपनी चिकित्सा और निवास सम्बंधी मांगों को भी वे महत्व देते हैं। वे समाजोत्थान की बात भी करते हैं लेकिन उद्योग में अव्यवस्था उत्पन्न करते हैं। तोड़-फोड़, अनशन, हड़ताल आदि सिलसिला चलता रहता है। ऐसी विषम परिस्थितियों में ही प्रबंधकों, मालिकों तथा अधिकारियों को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है। कर्मचारी की वृत्तियों तथा मांगों को गम्भीरता से लेना चाहिए। यह याद रहे कि मूल्यवृद्धि के साथ मंहगाई भत्ते की मांग भी उचित है। ऐसी परिस्थितियों में अधिकारियों को चाहिए कि वे कर्मचारियों के साथ विचार गोष्ठी रखें और आपसी विचार-विमर्श द्वारा एक-दूसरे को समझें तथा समझौते के द्वारा समस्या का हल निकालें। हमेशा सही दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। अधिकारियों की योग्यता एवं गुण इसी बात का परिचालक है कि वे नजदीक से एक-दूसरे को समझें।
नेतृत्व की प्रकृति एवं प्रारूप
उद्योग में कर्मचारी के कार्य की देखभाल हेतु सुपरवाईजर या निरीक्षक होते है, ये निरीक्षक ही नेता कहलाते हैं। निरीक्षकों की विशेषताएं और सौम्य व्यवहार इस बात पर निर्भर करता है कि कारखाने की नीतियां किस तरह की हैं। इन नीतियों का निर्माण प्रबंधकगण द्वारा किया जाता है। नीतियां इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे कर्मचारियों में विश्वास की भावना जागे। इन नीतियों को कार्य रूप देने वाला निरीक्षक होता है इसलिए यह आवश्यक है कि कारखाने में निरीक्षकों के चुनाव में उनकी ईमानदारी, सहानुभूति, कार्य के प्रति लगन तथा सभी अच्छे गुणों को महत्व दिया जाए। योग्य निरीक्षक ही कर्मचारियों और कार्य के बीच संतुलन स्थापित कर सकता है। व्यवहारकुशल और सहनशील निरीक्षक कर्मचारियों पर विशिष्ठ छाप छोड़ते हैं। वे इच्छानुसार कर्मचारियों से कार्य करवाने में सफल होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि निरीक्षक अधिक बुद्धिमान हो लेकिन यह आवश्यक है कि निरीक्षक को व्यवहारकुशल होना चाहिए, निरीक्षक को प्रशिक्षित होना चाहिए।
नेतृत्व-प्रशिक्षण
यदि निरीक्षक प्रशिक्षित होता है तो कर्मचारियों से समायोजन स्थापित करने में आसानी होती है। इसलिए नियुक्ति पद निरीक्षक को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। प्रशिक्षित और अनुभवी निरीक्षक एक कुशल नेता ही नहीं वरन् वह कठिन परिस्थितियों में भी समस्या का समाधान किर सकता है। ऐसा कुशल जनतांत्रिक नेता कर्मचारियों के साथ समझौते या मन-मुटाव के समय अपनी प्रतिष्ठा को आगे नहीं आने देता। वह अपने संवेगों पर नियंत्रण करता है और निष्पक्ष व्यवहार करता है। सज्जन, ईमानदार व मेहनती कर्मचारियों को महत्व देता है, उन कर्मचारियों को उत्पीड़न से बचाता है। कर्मचारियों को अधिक से अधिक सुविधाएं प्रदान करता है तथा
- उसे आवश्यकता से अधिक भावुक, संवेदनशील और संवेगात्मक नहीं होना चाहिए।
- विचार-विमर्श में निपुणता तथा तर्कपूर्ण ढंग से कर्मचारियों से अपने विचारों को स्वीकार करा लेने की क्षमता हो।
- कर्मचारी और मालिक के बीच तनाव की स्थिति पैदा होने पर उसे दोनों की मध्यस्थता करते हुए समस्याओं के समाधान हेतु पर्याप्त योग्यता होनी चाहिए।
- कर्मचारियों के विचारों में तालमेल बिठाने की योग्यता हो।
- अधीनस्थ कर्मचारियों को यह महसूस कराने में सक्षम हो कि कर्मचारी उसे अपना ही एक भाग समझे।
उद्योग में सफल नेता के गुण
क्रेग एवं चार्ट्स ने एक सफल नेता ने निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक माना है-
- 1. समर्थता (Forcefulness) अर्थात् नेता में यह कौशल हो कि वह कर्मचारी से काम ले सके।
- 2. नेता में ऐसे गुण होने चाहिए जिससे कर्मचारी उसको सम्मान दे सके।
- 3. नेता का कर्मचारियों से पक्षपात रहित व्यवहार होना चाहिए।
- 4. नेता को प्रशिक्षित होना चाहिए, अनुभवी होना चाहिए जिससे वह कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित कर सके।
- 5. कर्मचारियों के साथ वादिता रखने वाला हो तथा किसी भी कर्मचारी से दूसरे कर्मचारी की बुराई न करें।
- 6. उसमें सरल आत्मविश्वास होना चाहिए, ताकि विषय प्रतिस्थितियों में भी वह अपने को कमजोर न समझे।
- 7. नेता में अपने क्र्रोध को नियंत्रित करने की क्षमता होनी चाहिए।
- 8. उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कर्मचारी उसके आदेशों का पालन कर रहे है या नहीं।
- 9. अथीनस्थ कर्मचारियों के उचित को भी मानने वाला तथा अपनी योग्यता और सुझावों द्वारा कर्मचारियों से कार्य लेने की क्षमता हो।
- 10. बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से कर्मचारियों को डांटने की क्षमता तथा समय आने पर उनकी प्रशंसा करने की योग्यता हो।
- 11. परिस्थितियों का सामना करने की योग्यता हो।
ब्लम (Blum) ने पांच सिद्धातों का वर्णन किया है। उनके अनुसार सफल नेता को निम्न पाँच सिद्धातों अन्तर्गत कार्य करना चाहिए-
- 1. कार्य का उचित मूल्याकंन
- 2. अधिकारियों का पर्याप्त मात्रा में प्रतिनिधित्व।
- 3. समस्त कर्मचारियों के साथ समान व उचित व्यवहार।
- 4. जब कभी कर्मचारी मिलना चाहे तो उसे अपना समय देना।
- 5. कर्मचारियों की समस्याओं का प्रबंधकों और मालिकों से विस्तार में विचार-विमर्श करना।
इस संदर्भ में ब्लम एक सफल नेता के लिए ऐसे कार्य न करने के लिए निर्देश देते हैं जिससे कर्मचारी और नेता के बीच दूरी बनी रहे। वे कार्य है-
- 1. कर्मचारियों की इज्जत करना- नेता को चाहिए कि वह कर्मचारियों पर अपनी श्रेष्ठता का प्रभाव न डाले। उनके सामने ऐसा प्रदर्शन न करे कि वह सबसे योग्य, अधिक वेतन भोगी और अनुभवी है। नेता को चाहिए कि वह अपनी तकनीकी योग्यता द्वारा कर्मचारियों की जटिलताओं का निवारण करे। जिससे कर्मचारी स्वयं यह अनुभव करे कि उनका नेता वास्तव में एक योग्य तकनीकी व्यक्ति है।
- 2. नेता को चाहिए कि वह कर्मचारी के किसी भी कार्य मे बाधा न डाले। अकारण बाधा से वह हतोत्साहित हो जाता है और कार्य में रूचि नहीं ले पाता है। इससे मशीन को नुकसान हो सकता है या किसी दुर्घटना की संभावना बढ़ सकती है। कर्मचारियों को उचित तरीके से समझाना चाहिए ताकि कर्मचारी को यह विश्वास न हो कि नेता उनके कार्य में कमी निकाल रहा है।
- 3. कर्मचरियों में अनुशासन को बनाए रखने के लिए पक्षपात रहित व्यवहार करना चाहिए। जो नेता कुछ कर्मचारियों को अपना कृपापात्र बना लेते हैं, उससे न तो उद्योग में सफल होते हो न ही संतुलन व अनुशासन बन पाता है।
- 4. कर्मचारियों को ऐसे आदेश न दें जो अस्पष्ट हों या जो मानसिक तनाव पैदा करने वाले हों। यदि नेता ऐसा करता है तो उसके तथा कर्मचारियों के बीच द्वन्द्वात्मक स्थिति पैदा हो जाती है और संघर्ष की स्थिति चालू हो जाती है। गलती से कभी कोई त्रुटिपूर्ण सुझाव या आदेश दिए जाने पर उसे स्वीकार करना अधिक लाभदायक रहता है। उसे मुद्दे पर बहस नहीं करनी चाहिए तथा न ही कर्मचारियों पर दोष लगाना चाहिए। एक सफल नेता के लिए आवश्यक है कि वह न ही जल्दी में आदेश दे और न ही जल्दी में अकारण अपने सुझावों को ध्यान करे।
- 5. नेता को चाहिए कि वह कर्मचारियों की आलोचना न करे, उसे एकान्त में समझाए। किसी के सामने डांट फटकार न करे। इससे कर्मचारी का अहं सुरक्षित रहता है तथा वह अपमान महसूस नहीं करता है।
जनतांत्रिक नेता के कार्य
एक जनतांत्रिक नेता के निम्न कार्य हैं-
समस्याओं की ओर ध्यान देना- नेता को चाहिए कि वह कर्मचारी की समस्याओं पर ध्यान दे, इससे कर्मचारी में निराशा की स्थिति पैदा नहीं होती। यदि उनकी समस्याओं को नजरअन्दाज किया जाता है या उन्हें दबाने का प्रयास किया जाता है तो कर्मचारी पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए उनकी समस्याओं पर उचित विचार-विमर्श करना चाहिए।
सामूहिक बैठक - नेता को कर्मचारियों के साथ में सामूहिक बैठक का आयोजन करना चाहिए। जिसमें कर्मचारियों के विचारों को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए तथा अपने सुझाव देने चाहिए। कर्मचारियों को सामूहिक कार्य करने की प्रेरणा देनी चाहिए। समूह में बैठकर कर्मचारियों की समस्याओं पर विचार-विमर्श का आदान-प्रदान करना चाहिए।
निश्चित उद्देश्य की जानकारी देना - कर्मचारियों को उनके समूह के उद्देश्य की भलीभांति जानकारी देनी चाहिए। साथ में यह भी आवश्यक है कि उद्देश्य तक पहुंचने वाले साधनों में किसे, किस तरह अपनाया जाय आदि कार्य जन तांत्रिक नेता को करने चाहिए। इससे कर्मचारी को लक्ष्य प्राप्ति के लिए उचित कार्यों की जानकारी हो जाती है।
कार्यक्षमता के मापदण्ड निश्चित करना - जनतांत्रिक नेता को चाहिए कि वह कर्मचारियों की कार्यक्षमता के मापदण्ड निश्चित कर दे और उससे परिचित करा दे।
उचित निर्णय - नेता को चाहिए कि वह उचित निर्णय ले और कर्मचारियों को भी वे निर्णय मान्य हों। कर्मचारी वर्ग यदि निर्णयों में शंका व्यक्त करे तो उसे यह भी बताना चाहिए कि वे अपनी शंका का समाधान सामूहिक बैठक में कर सकते हैं।
प्रेरणा देना - कर्मचारी को इस बात का आभास करना चाहिए कि उसकी कठिन मेहनत, ईमानदारी आदि से उत्पादन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इससे संस्था की प्रगति होती है। जिसमें कर्मचारियों की ही प्रगति है। इस प्रगति के लिए कर्मचारियों को विशेष पारितोषिक, आर्थिक लाभांश, पदोन्नति आदि दिए जाने की चर्चा करना, जनतांत्रिक नेता का कार्य है। इससे कर्मचारी को एक प्रकार की राहत मिलती है, वह कार्य के प्रति उत्साहित होता है।
नेतृत्व के नियम
उद्योग में नेता की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने व्यवहार में कुछ मूलभूत नियमों को भी शामिल करे। इससे कर्मचारी और नेता के बीच सन्तुलन बना रहता है। कुछ नियम इस प्रकार हैं-
समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुनना- कर्मचारियों की अपनी समस्याएं होती हैं जिन्हें नेता के सम्मुख रखते हैं। ऐसे में यदि नेता उत्तेजित हो जाता है तो कर्मचारी अपनी बात को पूरा नहीं बता पाता है। इससे कर्मचारी हतोत्साहित हो जाता है। इसलिए कर्मचारी को बात करते समय बीच में भी नहीं टोकना चाहिए या उसे रोकना नहीं चाहिए। इससे कर्मचारी के मन में उपेक्षा का भाव पैदा होता है। इसके विपरीत कर्मचारी की बातों को शांतिपूर्वक एवं धैर्यता से सुनना चाहिए। इससे कर्मचारी का विश्वास अपने नेता के प्रति बना रहता है। वे नेता की अवहेलना भी नहीं करते हैं।
सोच समझकर निर्णय लेना - नेता को चाहिए कि वह कोई भी निर्णय लेने में जल्दबाजी न करे। सोच-समझकर लिया हुआ निर्णय बाधक नहीं बनता है। इससे कई समस्याओं को उचित तरीके से सुलझाया जा सकता है।
कर्मचारियों को हतोत्साहित न करना - यदि नेता कर्मचारियों को हतोत्साहित करेगा तो निश्चित ही उसका प्रभाव उद्योग में पड़ेगा। कर्मचारियों को समय-समय पर उत्साहित करना चाहिए ताकि कर्मचारी अपने कार्य के प्रति जागरूक रह सकें। यदि कर्मचारी अपनी समस्या लेकर आता है तो भी उसे डांट-फटकार नहीं देनी चाहिए। वरन् उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए।
नेता कम से कम संवेदनशील व संवेगशील हो - उद्योग में प्रायः नेता के सामने सम तथा विषम परिस्थिति आती रहती है। यदि नेता इन परिस्थितियों में ही अपने को समाहित कर ले तो वह उद्योग के लिए अच्छा नहीं होगा। नेता की शिकायत अधिकतर संवेगपूर्ण होती है। ऐसे में यदि नेता स्वयं पर नियंत्रण न रखकर कर्मचारियों के साथ संवेगपूर्ण ढंग से व्यवहार करे तो समस्या और भी उलझ सकती है। इसके विपरीत यदि कर्मचारी पर आवश्यकता से अधिक संवेदना करता है तो भी कर्मचारी इसका लाभ उठा सकते हैं। इसलिए नेता को विवेकपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
नेता स्वयं वाद-विवाद से बचा रहे - प्रायः देखा जाता है कि वाद-विवाद वैमनस्यता पैदा करता है। इसलिए नेता को कर्मचारियों के साथ वाद-विवाद से बचना चाहिए। अधिक वाद-विवाद से कर्मचारी भी अपने को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। कर्मचारियों को आज्ञाएं दी जा सकती हैं। उन्हें थोपने का प्रयास नहीं करना चाहिए, इससे कर्मचारी एक अतिरिक्त बोझ समझने लगता है।
कर्मचारियों की प्रशंसा करना- कर्मचारी उद्योग में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। नेता को चाहिए कि वह समय आने पर उसकी प्रशंसा करे। प्रशंसा सबके सामने हो। इससे कर्मचारी प्रसन्नता का अनुभव करता है। उसका मनोबल इससे बढ़ता है। वह अपने कार्य को मेहनत तथा लगन से करने लगता है। इसके विपरीत यदि कर्मचारी की बुराइयों को सबके सामने कहा जाय तो कर्मचारी की स्थिति तनावपूर्ण होगी। उसका प्रभाव उद्योग पर पड़ेगा। इसलिए नेता कर्मचारी की बुराइयों को एकान्त में कहे इससे कर्मचारी का अहम सुरक्षित रहता है।
अधिकारियों से संबंधित अनुसंधान
हाउजर (J. D. Houser) नामक मनोवैज्ञानिक ने अधिकारियों के मनोविज्ञान को समझने के लिए प्रश्नावली तैयार की। इससे यह जानने का प्रयास किया गया कि अधिकारी जो कि औद्योगिक वातावरण से घिरे रहते हैं और जिनका कर्मचारियों से सीधा संपर्क रहता है तो उनकी मनोदशा क्या होगी? यह प्रश्नावली इस प्रकार है-
- 1. औद्योगिक क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं क्या है?
- 2. एक अधिकारी के रूप में कर्मचारियों के प्रति क्या दायित्व होने चाहिए?
इसी प्रकार के कई प्रश्न बनाए गए। इन प्रश्नों से जो उत्तर सामने आए उनका विश्लेषण करने पर निम्न जानकारी प्राप्त हुई-
- 1. आशंका तथा भय की स्थिति - अधिकारी वर्ग, नेता आदि को एक विशेष प्रकार का भय बना रहता है। अधिकारी हमेशा इसलिए आशंकित रहता है कि कर्मचारियों की संख्या ज्यादा होती है। यदि वे संगठित हो जाएंगे तो वे मालिकों को किसी प्रकार का कष्ट पहुंचा सकते हैं। अधिकारी वर्ग इसलिए भी भयभीत रहता है कि यदि कर्मचारियों पर कार्य के लिए दबाब डाला जाए तो भी कर्मचारी उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- 2. अधिकार से संबंन्धित आत्मसंतोष की भावना- उद्योग में असंतोष का कारण होता है अधिकारी का तानाशाहपूर्ण व्यवहार। वह अधिकारी अधिक संतुष्ट रहता है तो तानाशाही पर अधिक विश्वास करता है। जबकि वे अनायास रूप से दबाव और कुंठा की स्थिति में रहते हैं। तानाशाही का मूल होता है- अधिकार लिप्सा। इससे आए दिन हड़ताल होती रहती है, जिससे उत्पादन का स्तर गिर जाता है।
- 3. आत्म-अभिव्यक्ति- अधिकारी प्रायः अन्य अधिकारियों की परवाह के बिना अपनी तथा प्रबंधकों की नीति के विरुद्ध अपनी आत्माभिव्यक्ति के लिए अनुचित कदम उठा लेते हैं। इस कारण अन्य प्रबन्धकों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
- 4. सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति उदासीनता- अधिकारियों को चाहिए कि वह कर्मचारियों की समस्याओं का विश्लेषण सामाजिक पर्यावरण को दृष्टि में रखते हुए करें। कर्मचारियों की सामाजिक परेशानियों को कार्यदक्षता और उत्पादन से जोड़ना चाहिए, अधिकारी को सदैव इस बात के प्रति जागरूक रहना चाहिए जिससे कर्मचारी का सामाजिक समायोजन और पारिवारिक संतुलन बना रहे।
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नेतृत्व के सिद्धांत
नेतृत्व की शैलियाँ
नेतृत्व प्रदर्शन
अतीत में, कुछ शोधकर्ताओं ने तर्क दिया है कि संगठनात्मक परिणामों पर नेताओं का वास्तविक प्रभाव अहंकारी है और नेताओं की पक्षपाती विशेषताओं के परिणामस्वरूप वह औपन्यासिक हो गया है (मिंडिल और एहरलिच, 1987). इन दावों के बावजूद, यह काफी हद तक मान्यता प्राप्त है और अभ्यासकर्ता और शोधकर्ताओं द्वारा स्वीकार किये जाते हैं। उनका मानना है कि नेतृत्व महत्वपूर्ण है और अनुसंधान की धारणा है कि नेता महत्वपूर्ण संगठनात्मक परिणामों में योगदान कर समर्थन करते हैं (डे और लार्ड, 1988, कैसर, होगन और क्रेग, 2008). सफल प्रदर्शन को सुगम बनाने के लिए नेतृत्व प्रदर्शन को समझना और मापना जरूरी है।
कार्य प्रदर्शन आमतौर पर उस व्यवहार को दर्शाता है जो संगठनात्मक सफलता (कैम्पबेल, 1990) में योगदान देता है। (कैम्पबेल,1990) कैम्पबेल ने विशिष्ट प्रकार के प्रदर्शन आयामों को पहचाना, इनमें से नेतृत्व आयाम एक है। नेतृत्व प्रदर्शन की कोई निश्चित और समग्र परिभाषा नहीं है। (युक्ल, 2006) नेतृत्वप्रदर्शन की ओट में कई विशिष्ट धारणाएं आ जाती हैं, जैसे - नेता की प्रभावशीलता, नेता की उन्नति, नेता का उद्भव (कैसर एट अल, 2008). उदाहरण के लिए, नेतृत्व प्रदर्शन का प्रयोग, व्यक्तिगत नेता की सफलता, समूह या संगठन के प्रदर्शन या नेता के उद्भव के लिए होता है। इनमें से प्रत्येक उपाय की धारणा अलग है। हालांकि ये पहलु एक दूसरे से संबंधित हो सकते हैं, उनके परिणाम अलग हो सकते हैं और उनका समावेश आवेदन / अनुसंधान केंद्रीभूत होने पर निर्भर होता हैं।
नेतृत्व के संदर्भ
संगठनों में नेतृत्व
एक संगठन जो साधन के रूप में स्थापित है या परिभाषित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए गठित है तो उसे औपचारिक संगठन कहा जा सकता है। इसका नमूना इस बात को निर्दिषित करता है कि किस तरह एक संगठन में लक्ष्यों को वर्गीकृत और निर्दिष्ट करते हैं जो संगठन के उपविभागों में परिलक्षित होता है। प्रभागों, विभागों, वर्गों, स्थिति, रोजगार और कार्य, कामसंरचना बनाते है। इस प्रकार, औपचारिक संगठन को ग्राहकों या अपने सदस्यों के साथ अव्यक्तिगत रूप से पेश आना चाहिए.वेबर की परिभाषा के अनुसार, प्रवेश और बाद की प्रगति योग्यता या वरिष्ठता के द्वारा होती है। प्रत्येक कर्मचारी एक वेतन प्राप्त करता है और कार्यकाल का एक डिग्री हासिल करता है जो वरिष्ठों या शक्तिशाली ग्राहकों का मनमाने प्रभाव से निगरानी करता है। पदानुक्रम में जैसे उसकी स्थिति होगी वैसी ही संगठन के निम्न स्तर के कार्य को सम्पन्न करने में उसकी अनुमानित विशेषज्ञता समस्याओं को सुलझाते समय उत्पन्न हो सकती है। यह एक नौकरशाही संरचना है जो संगठन में प्रशासनिक प्रभागों के प्रमुखों की नियुक्ति के लिए आधार होता है और अपने प्राधिकारों से जुडा रहता है।
एक इकाई के नियत प्रशासनिक अध्यक्ष या प्रमुख के विपरीत एक नेता औपचारिक संगठन के अधीन स्थित अनौपचारिक संगठन से उभर कर आता हैं। अनौपचारिक संगठन व्यक्तिगत सदस्यता के निजी उद्देश्य औरलक्ष्य को व्यक्त करता है। उनके उद्देश्य और लक्ष्य औपचारिक संगठन के साथ मेल खा भी सकते हैं या नहीं भी खा सकते हैं। अनौपचारिक संगठन एक विकसित सामाजिक ढांचों का प्रतिनिधित्व करता है जो प्रायः मानव जीवन में अचानक उद्भूत होने वाले समूहों और संगठनों के समान उद्भव होते हैं और अपने आप में ही समाप्त हो जाते हैं।
प्रागैतिहासिक काल में, आदमी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा, रखरखाव, सुरक्षा और जीवन निर्वाह करने में व्यस्त था। अब आदमी अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा संगठनों के लिए काम करने में बिताता है। उसको सुरक्षा, संरक्षण, अनुरक्षण प्रदान करने वाले एक समुदाय को पहचानने की उसकी चाह और अपनेपन की भावना प्रागैतिहासिक काल से अपरिवर्तित ही बनी हुई है। यह जरूरत अनौपचारिक संगठन और इसकी, आकस्मिक या अनधिकृत, नेताओं के द्वारा पूरी होती है।
अनौपचारिक संगठन के ढांचे के भीतर से ही नेता उभरते हैं। उनके व्यक्तिगत गुण, स्थिति की मांग, या इन दोनों का संयोजन और अन्य पहलू अनुयायियों को आकर्षित करते हैं जो एक या कई उपरिशायी संरचनाओं में उनके नेतृत्व को स्वीकार करते हैं। एक प्रधान या अध्यक्ष द्वारा नियुक्त होकर एक आकस्मिक नेता अपने अधिकारों के बजाय, प्रभाव और शक्ति को संभालता है। प्रभाव एक व्यक्ति की क्षमता है जो दूसरों के सहयोग, अनुनय और पुरस्कार पर नियंत्रण के माध्यम से हासिल किया जाता है। अधिकार प्रभाव का एक मजबूत विधान है क्योंकि यह एक व्यक्ति की क्षमता, उसके कार्यों से सज़ा को नियंत्रण करता है।
नेता एक ऐसा आदमी है जो एक विशिष्ट परिणाम के प्रति लोगों के एक समूह को प्रभावित करता है। यह अधिकार या औपचारिक अधिकार पर निर्भर नहीं है। (एलिवोस, नेताओं के रूपांतरण, बेन्निस और नेतृत्व की उपस्थिति, हल्पेर्ण और लुबर). नेताओं की पहचान, अन्य लोगों की देखभाल के लिए उनकी क्षमता, स्पष्ट संचार और एक प्रतिबद्धता से होती है। एक व्यक्ति जो एक प्रबंधकीय स्थिति के लिए नियुक्त किया जाता है उसके पास अधिकार होता है कि वह आज्ञा दे सकें और वह अपने अधिकार की स्थिति को लागू करता है। उसके अधिकारों से मेल खाती हुईं उसकी पर्याप्त व्यक्तिगत विशेषताएँ होनी चाहिए, क्योंकि अधिकार से ही उसमे सक्रियता होती है। पर्याप्त व्यक्तिगत योग्यता के अभाव में एक प्रबंधक जो एक आपात नेता द्वारा जिस भूमिका को चुनौती दे सकता है उस संगठन में उसकी भूमिका को उसके कल्पित सरदार से कम सामना किया होता है। बहरहाल, पद का अधिकार औपचारिक प्रतिबंधों का समर्थन करता है। ऐसा लगता है कि जो कोई भी व्यक्तिगत पद या अधिकार संभालता है, वह न्यायसंगत रूप से केवल पदानुक्रम में औपचारिक स्थिति, अनुरूप प्राधिकारी रूप से, प्राप्त करता है। नेतृत्व की परिभाषा दूसरे लोगों की इच्छानुसार चलाने की क्षमता है। हर संगठन को हर स्तर पर नेताओं की जरूरत है।
नेतृत्व बनाम प्रबंधन
अनेक वर्षों से प्रबंधन और नेतृत्व का सम्बन्ध इतने निकट का रहा है कि आम तौर पर लोग उन को एक दूसरे का पर्याय मानने लगे हैं। हालांकि, यह मामला विचारणीय नहीं है कि अच्छे प्रबंधकों में नेतृत्व कौशल और अच्छे नेताओं में अच्छे प्रबंधक गुण होते हैं। मन में इस विचार के साथ, नेतृत्व को इस रूप में देखा जा सकता है:
- केंद्रीकृत या विकेन्द्रीकृत
- विस्तृत या केंद्रित
- निर्णय उन्मुख या मनोबल केंद्रित
- आंतरिक या किसी प्राधिकारी से प्राप्त
कोई भी द्विध्रुवी नाम की परंपरागत शैली जो प्रबंधन के लिए लागू होती है वह नेतृत्व शैली के लिए भी लागू होती है। हेर्सेय और बलानचार्ड इस दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं : उनका दावा है कि प्रबंधन नेतृत्व व्यापार की स्थितियों से पूर्ण होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो प्रबंधन व्यापक नेतृत्व प्रक्रिया का ही एक भिन्न रूप है। वे कहते हैं कि : "नेतृत्व तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी भी समय या असमय, बिना किसी कारण के किसी एक व्यक्ति या समूह के व्यवहार को प्रभावित करने का प्रयास करता है। प्रबंधन एक प्रकार का नेतृत्व है जिसमें संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति सर्वोपरि होता है।" वॉरेन बेन्निस और दान गोल्डस्मिथ के अनुसार एक अच्छा प्रबंधक सब कार्य ठीक करता है . एक नेता सही कार्य करता है।
हालांकि, प्रबंधन और नेतृत्व के बीच स्पष्ट अंतर भी उपयोगी साबित हो सकता है। यह नेतृत्व और प्रबंधन के बीच पारस्परिक संबंधों की अनुमति देता है, एक प्रभावी प्रबंधक में नेतृत्व कौशल होने चाहिए और एक प्रभावी नेता में प्रबंधन कौशल होने चाहिए. एक स्पष्ट अंतर निम्नलिखित परिभाषा प्रदान कर सकता है:
- पद के अनुसार प्रबंधन की स्थिति में अधिकार प्राप्त है।
- नेतृत्व में प्रभाव से अधिकार आते है।
इब्राहीम ज़लेज्निक (1977), ने नेतृत्व और प्रबंधन के बीच मतभेदों को चित्रित किया है। उसने नेताओं को प्रेरणादायी दूरदर्शी कहा है जो त्तत्व के बारे में चिंतित रहते हैं जबकि प्रबंधक अच्छे नियोजक हैं जो प्रक्रियाओं को लेकर चिंतित रहते है। वॉरेन बेन्निस (1989) ने प्रबंधकों और नेताओं के बीच निर्देशों का विस्तार किया है। उन्होंने दोनों के बीच बारह भेद बताए हैं :
- प्रबंधक प्रशासन चलाते है; नेता नवीनताएँ लाते है।
- प्रबंधक पूछते हैं - कैसे और कब; नेता पूछते हैं - क्या और क्यों.
- प्रबंधक प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं ; नेता लोगों पर ध्यान केंद्रित करते है।
- प्रबंधक काम सही करते हैं, नेता सही काम करते हैं।
- प्रबंधक बनाये रखते हैं ; नेता विकास करते हैं।
- प्रबंधक नियंत्रण पर निर्भर करते हैं ; नेता भरोसा प्रेरित करते हैं।
- प्रबंधक के पास अल्पकालिक परिप्रेक्ष्य होते हैं ; नेता के पास दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य होते हैं।
- प्रबंधक एक स्तर को बनाए रखते हैं, नेता स्तर को चुनौती देते हैं।
- प्रबंधक की नजर निम्न पंक्ति पर होती हैं, नेता की नजर क्षितिज पर होती है।
- प्रबंधक नकल करते हैं ; नेता नया कर दिखाते हैं।
- प्रबंधक एक अच्छे सिपाही का अनुकरण करते हैं ; नेता अपने आप में निराले होते हैं।
- प्रबंधक अनुकरण करते हैं; नेता मौलिकता दिखाते हैं।
पॉल बिर्च (1999) भी नेतृत्व और प्रबंधन के बीच अंतर को स्पष्ट करते है। वे कहते हैं कि एक व्यापक सामान्यकरण के रूप में प्रबंधक कार्यों के साथ सम्बन्ध रखते हैं जबकि नेता लोगों के साथ संबंध रखते हैं। बिर्च ने नेता कार्य "पर ध्यान केंद्रित नहीं करते, ऐसा सुझाव नहीं दिया. वास्तव में वे चीजें जिससे एक नेता महान बनते हैं इस तथ्य को उजागर करते हैं कि वे उन्हें प्राप्त करते हैं। प्रभावी नेता रचना करते हैं, उसे कायम रखते हैं, लागत नेतृत्व की प्राप्ति, राजस्व नेतृत्व, समय नेतृत्व, बाजार मूल्य नेतृत्व के माध्यम से प्रतियोगी लाभ को बनाए रखते हैं। प्रबंधक आम तौर पर नेता की दूरदृष्टि का एहसास कर उसका पालन करते हैं। अंतर इतना ही है कि नेता कार्य की उपलब्धि, सद्भावना और दूसरों के समर्थन (प्रभाव) के माध्यम से प्राप्त करते हैं जबकि प्रबंधक ऐसे नहीं करते है।
यह सद्भावना और समर्थन नेता में लोगों के रूप में लोगों को देख कर पैदा होती है, ना कि उसे एक संसाधन के रूप में देख कर नहीं.प्रबंधक अक्सर कुछ करवाने के लिए संसाधनों का आयोजन करता है। इन संसाधनों में लोग प्रमुख है और खराब प्रबंधक लोगों को एक और विनिमय वस्तु के रूप में देखते है। एक नेता दूसरों को राह दिखाने की भूमिका अदा करते हैं ताकि वे एक दृष्टि को केन्द्रित कर एक कार्य को संपन्न करें.अक्सर लोग कार्य को दर्शन के अधीनस्थ देखते हैं। उदाहरण के लिए, एक संगठन समग्र कार्य को पूर्ण कर लाभ देखता है पर एक अच्छा नेता लाभ को एक उप-उत्पादन के रूप में देखता हैं जो उसके उत्पाद की दृष्टि से प्रवाहित होते हैं, ताकि उनकी कंपनी प्रतियोगिता से अलग रहे.
नेतृत्व न केवल स्वयं को प्रकट करता है परन्तु पूरी तरह एक व्यावसायिक घटना के रूप में प्रकट होता है। बहुत से लोग एक प्रेरणादायक नेता के बारे में सोच सकते हैं जिनका कारोबार से कोई लेना देना नहीं है : एक राजनीतिज्ञ, सशस्त्र बलों का अधिकारी, एक स्काउट गाइड या नेता, एक शिक्षक, आदि. इसी प्रकार प्रबंधन केवल विशुद्ध कारोबार घटना नहीं है। फिर हम यहाँ उन लोगों के कुछ उदाहरण देख सकते हैं जो प्रबंधन को अव्यापारिक संगठनों के आला को पूर्ण करता है। अव्यापारिक संगठन बिना पैसों के प्रेरणा देने वाली दृष्टी को समर्थन देता है। हालांकि, कई बार यह घटित नहीं होता है।
पेट्रीसिया पिचर (1994) ने नेताओं और प्रबंधकों के वर्गीकरण को चुनौती दी है। उन्होंने एक कारक विश्लेषण (विपणन में) तकनीक का प्रयोग 8 वर्षों से एकत्रित आंकड़े पर किया। वे इस तथ्य पर पहुँचीं कि नेता तीन प्रकार के होते हैं : हरेक नेता अलग मनोवैज्ञानिक रूपरेखा लिए हुए होते हैं : कलाकार (कल्पनाशील, प्रेरक, दूरदर्शी, उद्यमशील, निडर, सहज ज्ञान युक्त और भावनात्मक) संपन्न होते हैं, शिल्पकार (संतुलित, स्थिर, उचित, समझदार, पूर्वानुमानित और विश्वसनीय) होते हैं, तकनीकज्ञ (प्रमस्तिष्क, विस्त्रित्केंद्रिय, दुराराध्य, असम्मत और हठी) होता है। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति की रूपरेखा नेतृत्व शैली के लिए पर्याप्त नहीं है। अगर हम एक नेता बनाना चाहते हैं तो एक 'कलाकार नेता' को बनाना चाहिए, अगर हम स्थिति को मजबूत करना चाहते है तो एक 'शिल्पकार नेता' को बनाना चाहिए, अगर हमारे पास एक बदसूरत नौकरी है जिसे हमे जकड़ी के द्वारा जल्दी करना है तो एक 'तकनीकज्ञ नेता' को खोजना होगा.पिचर ने यह भी कहा है कि एक संतुलित नेता बहुत मुश्किल से मिलते है, किसी भी नेता में ये सभी तीन आभास है, उनके अपने अध्ययन काल में उन्हें कोई भी ऐसा नहीं मिला.
ब्रूस लिन्न 'नेतृत्व' और 'प्रबंधन' के बीच तथ्यों को उजागर करते हैं। विशेष रूप से, "एक नेता अवसर को उभार कर लेते हैं, एक प्रबंधक नकारात्मक जोखिमों को कम करता चलता है।" उन्होंने कहा कि एक सफल कार्यशाली को उद्यम और उसके संदर्भ में पूरी तरह से संतुलन बनाये रखनी है। बिना प्रबंधन के नेतृत्व के कदम आगे नहीं बढ़ते हैं, लेकिन बिना प्रबंधन के नेतृत्व को कुछ कदम पीछे ले जाती है। प्रबंधन के बिना नेतृत्व पीछे जाता है, लेकिन आगे नहीं बढ़ता.
एक समूह द्वारा नेतृत्व
व्यक्तिगत नेतृत्व के बजाय, कुछ संगठनों ने समूह नेतृत्व को अपनाया है। इस स्थिति में, एक से अधिक व्यक्ति समूह के लिए दिशा प्रदान करते है। कुछ संगठनों ने इसे इस उम्मीद से अपनाया है, ताकि वे रचनात्मकता में बाधा कर सकें, लागत को कम कर सकें और आकार को कम कर सकें.कुछ लोग पारंपरिक नेतृत्व को देखते हैं जिसमें एक समूह प्रदर्शन के समय मालिक पर बहुत अधिक लागात आती है। कुछ स्थितियों में, मालिक का रखरखाव भी महंगा हो जाता है - या तो समूह के रूप में सारे संसाधन ख़त्म हो जाते हैं या अनजाने में पूरे दल की रचनात्मकता को ख़त्म कर देता है।[52]
उदाहरण के लिए एक समूह के नेतृत्व में कई कार्य संलग्न होते हैं। विविध कौशल से पूर्ण एक दल संगठन के सभी हिस्सों से एकत्रित होकर एक परियोजना का नेतृत्व करते हैं। एक दल की संरचना समान रूप से अधिकारों को सभी मुद्दों पर साझेदार के रूप में देती है, आमतौर पर यह नेतृत्व बदलते हुए चलता है .इस दल के सदस्य (ओं) परियोजना के किसी भी चरण को संभाल सकते हैं। ओग्बोंनिया (2007) के अनुसार, "प्रभावी नेतृत्व की इतनी क्षमता होती है कि वे सफलतापूर्वक एकीकृत होकर उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग करते हैं और संगठनात्मक या सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति करते हैं। ओग्बोंनिया के अनुसार एक प्रभावी नेता वह व्यक्ति है जो अपनी क्षमता से लगातार सफलता हासिल करते हुए किसी भी परिस्थिति में एक बैठक और संगठन की अपेक्षाओं को पूर्ण करता है। इसके अतिरिक्त क्योंकि हर एक दल के हर आदमी को अवसर दिए जाते हैं इसलिए वे उच्च स्तर पर सशक्तिकरण का अनुभव करते हैं और उनके कर्मचारी को सफलता प्रदान करने में शक्ति प्रदान करते हैं।
जिस नेता में लगन, दृढ़ता, दृढ़ संकल्प और अच्छे संचार कौशल हैं वह अपने समूह में भी इन्हीं गुणों को उभर कर ले आते हैं। अच्छे नेता अपने आतंरिक गुणों का प्रयोग करते हुए अपने दल और संगठनों को सफलता प्रदान कराते हैं।
मनुष्य-सदृश जानवरों में नेतृत्व
रिचर्ड व्रंग्हम औरडेल पीटरसन, नेराक्षसी नर में : वानर और मूल मानव में हिंसा मौजूद होने का सबूत देते हैं, वे कहते हैं किपृथ्वी पर रहने वाले अन्यजानवरों की तुलना में केवल मनुष्य और चिम्पान्जीयों के बीच सामान व्यवहार होते हैं, हिंसा, प्रादेशिकता और देश के लिए एक प्रमुख के रूप में सिद्ध करने के लिए प्रतियोगिता होती रहती है।यह स्थिति विवादास्पद है। http://www.washingtonpost.com/wp-srv/style/longterm/books/chap1/देमोनिच्मालेस.htm. वानर से परे कई पशु प्रादेशिक होते हैं, प्रतिस्पर्धा दिखाते हैं, हिंसा दिखाते हैं और प्रमुख पुरुष प्रधान (शेर, भेडिए, आदि) द्वारा नियंत्रित एक सामाजिक संरचना भी उजागर करते हैं। व्रंग्हम और पीटरसन के सबूत अनुभवजन्य नहीं है। हालांकि, हमें, हाथी जैसे अन्य प्रजातियों जैसे - मातृसत्तात्मक (जो बेशक मादाओं द्वारा पालन किया जाता है), मीर्काट्स (जो मातृसत्तात्मक जैसे ही होते हैं) और कई अन्य की जांच करनी चाहिए.
यह लाभप्रद होगा यदि हम पिछले कुछ सहस्राब्दियों से नेतृत्व के सभी खातों (ईसाई धर्म की रचना के बाद) की जांच करें जो एक पितृसत्तात्मक समाज के परिप्रेक्ष्य में क्रिश्चियन साहित्य की स्थापना के माध्यम से कर रहे हैं। अगर हम इससे पहले के समय को देखेगें तो यह पता चलता है कि बुतपरस्त और पृथ्वी-जनजातियों में महिला नेता ही होती थीं। एक बात यह भी महत्वपूर्ण है कि एक जनजाति की विशिष्टताएं दूसरों के लिए उल्लेखनीय नहीं है, जैसे हमारे आधुनिक समय के रीति-रिवाज भी बदलते हैं। वर्तमान समय के हमारे पितृवंशीय रिवाज हाल ही के आविष्कार हैं और पारिवारिक प्रथाओं के बारे में हमारी मूल विधि मातृविधि है जो अभी पितृविधि हैं। (डॉ॰ क्रिस्टोफर शेले और बिआनका रस, यूबीसी). एक मौलिक धारणा यह है कि दुनिया के 90% देशों में प्राकृतिक जैविक समलिंगी पितृसत्ता से बनते हैं। दुर्भाग्य से, इस विश्वास ने महिलाओं को विभिन्न स्तरों में व्यापक उत्पीड़न का कारण बनाया.(होल अर्थ रिव्यू, विंटर 1995 थॉमस लेयर्ड, माइकल विक्टर द्वारा कृत). इस ईरोक़ुओइअन, पहले राष्ट्र के जनजाति मातृविधि जनजाति का उदाहरण है। इनके साथ-साथ मायन जनजाति को भी ले सकते हैं जो मेघालय, भारत का समाज है। (लेयर्ड और विक्टर, 1995).
बोनोबो, देश की दूसरी प्रमुख पुरुष की करीबी जनजाति है जो कभी उनका काठ नहीं देती.यह बोनोबोस एक अल्फा या सर्वोच्च पद पर आसीन महिला है जो दूसरी महिलाओं के साथ मिलकर अपने आप को वैसे ही ताकतवर सिद्ध करती है जैसे एक पुरुष के प्रति श्रद्धा दिखाते हैं। इस प्रकार, यदि नेतृत्व सबसे ज्यादा मात्रा में अनुयायिओं को बनाना है तो बोनोबोस में, एक महिला हमेशा प्राभावी और मजबूत नेतृत्व बनाती है। लेकिन, सभी वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हैं कि बोनोबो की शांतिपूर्ण प्रकृति या उसकी प्रतिष्ठा एक "हिप्पी चिम्प के रूप में है।Http://www.newyorker.com/reporting/2007/07/30/070730fa_fact_parker
नेतृत्व पर ऐतिहासिक दृष्टिकोण
संस्कृत साहित्य में दस प्रकार के नेता बताये जाते हैं। नेताओं के दस प्रकार की विशेषताओं की परिभाषा देते हुए इतिहास और पौराणिक कथाओं से उदाहरण ले कर इस बात को समझाया गया है।
अभिजातीय विचारकों का मानना है कि नेतृत्व किसी भी व्यक्ति के खून में याजींस पर निर्भर करता है : राजशाही इसी विचार का एक अतिवादी दृष्टिकोण लेता है और अभिजात वर्गीय दिव्य मंजूरी को उद्दीप्त करता है। राजा के दिव्य अधिकारों को देखिये. इसके विपरीत लोकतंत्र की ओर झुके योग्य नेता, जैसे -नपालियान मार्शल ने अपनी प्रतिभा से अपनी जीवनचर्या की शुरूआत की.
निरंकुश / पितृपरक विचार में, परम्परा का पालन करने वाले रोमन पातर फमिलिअस के नेतृत्व की भूमिका को याद कर सकते हैं। दूसरी ओर यदि हम नारीवादिता पर सोचें, तो ऐसे नमूने जो पितृसत्तात्मक हैं और जो भावनात्मक स्थिति के विरूद्व उत्तरदायी हैं, एक ही ढंग में चलते हैं और सहमति से ह्रदयस्पर्शी होकर मार्गदर्शन करते हैं और मातृसत्तात्मक होते हैं।
कंफ्युशिअसवाद की तुलना यदि हम रोमन परम्परा से करते हैं तो हम कह सकते हैं कि इसे एक विद्वान-नेता एक आदर्श (पुरुष) के उदार नियमों के साथ सम्बन्ध जोड़ता हैं जो नेता अपनी संतान के प्रति पुश्ता है।
नेतृत्व खुफिया, विश्वसनीयता, मानवता, साहस और अनुशासन का मामला है। मात्र विश्वास पर निर्भर करना विद्रोह को जनम देता है। सिर्फ मानवता दिखाना कमजोरी का परिचय देना होता है। मूर्खता में विश्वास करना अज्ञानता को जनम देता है। साहस के बल पर निर्भर रहने से हिंसा को जनम होता है। अत्याधिक अनुशासन और आज्ञा में कठोरता क्रूरता को जनम देता है। जब ये सभी गुण उपयुक्त समय में कार्य आते हैं तब कोई भी व्यक्ति नेता कहलाता है। सुन तजु
19 वीं सदी में, अराजकतावादी विचार ने नेतृत्व की पूरी अवधारणा पर सवाल किया था। (ध्यान दें कि ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोश में 'नेतृत्व' शब्द को 19 वीं सदी से ही शुरू हुआ बताता है।ईलैत्वादी प्रतिक्रया के इनकार के फलस्वरूप लेनिनवादिता का जनम हुआ। वे सर्वहारा वर्ग की तानाशाहीलाना चाहते थे इसलिए उन्होंने एक अनुशासित विशिष्ट समूह को एकअग्र-सेना के रूप में सामाजिक आन्दोलन चलाने की मांग की.
नेतृत्व के अन्य ऐतिहासिक विचारों पर नजर डालने से पता चलता है कि धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक नेताओं के बीच स्पष्ट विभेद हैं।केसरों पपिस्म सिद्धांतों ने दुबारा आकर सदियों से आलोचकों की मात्रा घटा दी है। नेतृत्व पर क्रिश्चियन सोच ने अक्सर गृह्प्रबंधक देव्य-प्रदत्त संसाधनों के प्रबन्ध - मानव और सामग्री - और उनके अनुसार उनकी तैनात होने पर जोर दिया है। दास नेतृत्व की तुलना करें.
और अधिक सामान्य जानकारी के लिए राजनीति में नेतृत्व को लेकर राजनेता की अवधारणा की तुलना कीजिए.
दल के कार्य प्रधान नेतृत्व कौशल
यह एक निराला तरीका है जहां दल नेतृत्व कार्य प्रधान वातावरण पर जोर देता है, जहां प्रभावी कार्यात्मक नेतृत्व छोटे दलों को क्षेत्रों में तैनात कर उनके द्वारा महत्वपूर्ण या प्रतिक्रियाशील कार्य करवाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, छोटे दलों का नेतृत्व जो अक्सर एक स्थिति या महत्वपूर्ण घटना की प्रतिक्रिया के लिए बनायी जाती है।
अधिकांश मामलों में ये दल दूरस्थ और विकार्य वातावरण में भी सीमित समर्थन और सहारे के साथ कार्य कर सकें.(कार्रवाई वातावरण) इस वातावरण में लोगों के नेतृत्व के लिए अग्रगामी प्रबंधन की एक विशेष कौशल की आवश्यकता है। इन नेताओं को कारगर ढंग से दूर संचालित होना चाहिए और एक अस्थिर परिवेश में भी व्यक्ति, समूह और कार्य के बीच सम्बन्ध स्थापित करते हुए कार्य करना चाहिए.इसे कार्य प्रधान नेतृत्व कौशल कहा गया है। कार्य प्रधान नेतृत्व के कुछ उदाहरण दिए गए है : एक ग्रामीण आग बुझाना, एक लापता व्यक्ति को दूंढ़ निकालना, एक दल को अभियान पर ले जाना या एक संभावित खतरनाक माहौल में से एक व्यक्ति को बचाना.
प्राधिकार पर बल देने वाले शीर्षक
कुछ अवस्थाओं में उनके विकास, पद्सोपान के अनुसार सामाजिक श्रेणी, विभिन्न डिग्री या समाज में नेतृत्व के विभिन्न पदों में दिखाई देती है। इस प्रकार एक योद्धा ने राजा से ज्यादा सामान्य या कुछ पुरुषों का नेतृत्व किया। एक बैर्रोनेट (बैरन से नीचे दर्जे के व्यक्ति) ने अर्ल(इंग्लैंड के सामंतो की एक विशिष्ट पदवी) से ज्यादा भूमि का नियंत्रण किया है। इस पद्सोपान पदानुक्रम के लिए और क्रम से चलने वाली विभिन्न प्रणालियों के लिए सामंती देखें.
18 वीं और 20 वीं शताब्दी के दौरान, कई राजनीतिक चालकों ने अपने समाजों को प्रभावी बनने के लिए गैर पारंपरिक रास्तों को अपनाया.उन्होंने और उनकी प्रणालियों ने अक्सर मजबूत व्यक्तिगत नेतृत्व में विशवास जताया. लेकिन मौजूदा शीर्षक और पद ("राजा", "सम्राट", "राष्ट्रपति" आदि) कुछ परिस्थितियों में अक्सर अनुचित, अपर्याप्त लगते थे। ये औपचारिक या अनौपचारिक शीर्षक या विवरण जो उन्हें उनके वर्दीदार चपरासी देते थे, वे एक नियोजित, प्रेरित और निरंकुश किस्म के नेतृत्व के लिए एक सामान्य पूजा पालक के सामान थे। यह निश्चित लेख जब एक निश्चित शीर्षक के रूप में उपयोग में आता है (भाषाओं में जहां निश्चित कारकों का प्रयोग किया जाता है) एक एकमात्र "सच्चे" नेता के अस्तित्व पर जोर देती है।
नेतृत्व की अवधारणा की आलोचना
नोअम चोमस्की ने नेतृत्व की अवधारणा की आलोचना की और कहा कि यह लोगों को अपने अधीनस्थ आवश्यकताओं से अलग किसी और को शामिल करना है। जबकि नेतृत्व का परंपरागत दृष्टिकोण यह है कि लोग चाहते है कि 'उनको यह बताया जाए कि उन्हें क्या करना है। व्यक्ति को यह सवाल करना चाहिए कि वे क्यों कार्यों के अधीन हैं जो तर्कसंगत और वांछनीय है। जब 'नेता', 'मुझ पर विशवास कीजिए', 'विशवास रखिए' कहते हैं तो उसमें प्रमुख तत्व - तर्कशक्ति की कमी होती है। यदि तर्कशक्ति पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है तो लोगों को 'नेता' का अनुसरण चुपचाप करना पड़ता है।[60] नेतृत्व की अवधारणा की एक और चुनौती यह है कि यह दलों और संगठनों के 'अनुसरण की भावना' को बनाता है। कर्मचारिता की अवधारणा हालाँकि, एक नयी विकसित जिम्मेदारी है जो उसके कार्य क्षेत्र में उसके कौशल और नजरिये को उजागर करते हैं, जो सभी लोगों में आम होते हैं और नेतृत्व को एक अस्तित्व रूप में अलग रखता है।
यह भी देखिये
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- नोट्स
- किताबें
- Blake, R.; Mouton, J. (1964). The Managerial Grid: The Key to Leadership Excellence. Houston: Gulf Publishing Co.
- Carlyle, Thomas (1841). On Heroes, Hero-Worship, and the Heroic History. Boston, MA: Houghton Mifflin.
- Fiedler, Fred E. (1967). A theory of leadership effectiveness. McGraw-Hill: Harper and Row Publishers Inc.
- Heifetz, Ronald (1994). Leadership without Easy Answers. Cambridge, MA: Harvard University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-674-51858-6.
- Hemphill, John K. (1949). Situational Factors in Leadership. Columbus: Ohio State University Bureau of Educational Research.
- Hersey, Paul; Blanchard, Ken; Johnson, D. (2008). Management of Organizational Behavior: Leading Human Resources (9th संस्करण). Upper Saddle River, NJ: Pearson Education.
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- Spencer, Herbert (1841). The Study of Sociology. New York: D. A. Appleton.
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- Vroom, Victor H.; Jago, Arthur G. (1988). The New Leadership: Managing Participation in Organizations. Englewood Cliffs, NJ: Prentice-Hall.
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- जर्नल लेख
- House, Robert J. (1971). "A path-goal theory of leader effectiveness". Administrative Science Quarterly. Vol.16: 321–339. डीओआइ:10.2307/2391905.
- House, Robert J. (1996). "Path-goal theory of leadership: Lessons, legacy, and a reformulated theory". Leadership Quarterly. Vol.7 (3): 323–352. डीओआइ:10.1016/S1048-9843(96)90024-7.
- Lewin, Kurt; Lippitt, Ronald; White, Ralph (1939). "Patterns of aggressive behavior in experimentally created social climates". Journal of Social Psychology: 271–301.
- Kirkpatrick, S.A., (1991). "Leadership: Do traits matter?". Academy of Management Executive. Vol. 5, No. 2.
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(मदद) - Vroom, Victor; Sternberg, Robert J. (2002). "Theoretical Letters: The person versus the situation in leadership". The Leadership Quarterly. Vol. 13: 301-323.