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नाभिकीय चिकित्सा
नाभिकीय चिकित्सा (अंग्रेज़ी:न्यूक्लियर मेडिसिन) एक प्रकार की चिकित्सकीय जाँच तकनीक होती है। इसमें रोग चाहे आरंभिक अवस्था में हों या गंभीर अवस्था में, उनकी गहन जाँच और उपचार संभव है। कोशिका की संरचना और जैविक रचना में हो रहे परिवर्तनों पर आधारित इस तकनीक से चिकित्सा की जाती है। इस पद्धति को न्यूक्लियर मेडिसिन भी कहा जाता है। वर्तमान प्रचलित चिकित्सा पद्धति में रोगों का मात्र अंदाजा या अनुमान ही लगाते हैं और उपचार करते हैं, जबकि नाभिकीय चिकित्सा में न केवल रोग को बहुत आरंभिक अवस्था में पकड़ा जाता है, वरन यह प्रभावशाली ईलाज और दवाइयों के बारे में भी स्पष्टता से बहुत कुछ बता पाने में सक्षम है। इससे किसी भी बीमारी की विस्तृत जानकारी, उसके प्रभाव और उसके उपचार निपटने के प्रभावशाली उपायों आदि के बारे में पता चलता है। इतना ही नहीं, इससे बीमारी के आगे बढ़ने के बारे में यानी भविष्य में इसके फैलने की गति, दिशा और तरीके का भी ज्ञान हो जाता है।
यह तकनीक सुरक्षित, कम खर्चीली और दर्द रहित चिकित्सा तकनीक है। सामान्यतः किसी प्रकार का रोग होने के बाद ही सी. टी. स्कैन, एम.आर.आई और एक्स-रे आदि से परीक्षण करने से प्रभावित अंगो की स्थिति का पता चल पाता है। इस पद्धति में रोगी को एक रेडियोधर्मी समस्थानिक को दवाई के रूप में इंजेक्शन के रास्ते शरीर में दिया जाता है। फिर उसके रास्ते को स्कैनिंग के जरिये देखकर पता लगाय़ा जाता है, कि शरीर के किस भाग में कौन सा रोग हो रहा है। इसके साथ ही इनकी स्कैनिंग के कुछ दुष्प्रभाव (साइड इफैक्ट) की भी संभावना होती है।
नाभिकीय चिकित्सा में रोगी के शरीर में इंजेक्शन द्वारा बहुत ही कम मात्रा में रेडियोधर्मी तत्व प्रविष्ट किये जाते हैं, जिसे शरीर में संक्रमित या प्रभावित कोशिका इसे अवशोषित कर लेती है। इससे होने वाले विकिरण को एक विशेष प्रकार के गामा कैमरे में उतार कर रोग की सटीक और विस्तृत जाँच की जाती है। न्यूक्लियर मेडिसिन स्कैनिंग से मिले अलग फिल्म में प्रभावित अंग की विस्तृत जानकारी मिलती है। नाभिकीय चिकित्सा तकनीक में रेडियो धर्मी तत्व का प्रयोग इतनी कम मात्र में किया जाता है कि इससे होने वाले विकिरण का प्रभाव कोशिकाओं पर नहीं पड़ता है।
नाभिकीय चिकित्सा द्वारा कैंसर, हृदय, मस्तिष्क, फेफड़ा, थायरॉइड अपटेक स्कैन और बोन स्कैन किए जाते हैं। इसके अलावा अन्य रोगों का ईलाज भी नाभिकीय चिकित्सा द्वारा किया जाता है।अवटु ग्रंथि में आई खराबी और हड्डी में लगातार हो रहे दर्द का इलाज इसी तकनीक से होता है।
हृदय स्कैनिंग
हृदय के थैलियम परीक्षण के द्वारा हृदय की विभिन्न मांसपेशियों के ऊतकों की कार्यक्षमता को जाँचा जा सकता है। इसके अलावा वहाँ की धमनियों में होने वाले रक्त प्रवाह को जाँचा जाता है। इस प्रकार एंजियोग्राफी की आवश्यकता नहीं रहती है। इस जाँच से हृदयाघात की संभावना का अनुमान बहुत पहले पता लगाया जा सकता है जिससे सही समय पर उचित उपचार द्वारा जीवन की रक्षा की जा सकती है।
हड्डी स्कैन
नाभिकीय चिकित्सा द्वारा हड्डियों व संधियों में होने वाले सूक्ष्मतम परिवर्तन की जाँच की जाती है। हड्डियों में होने वाली गाँठों की जाँच भी संभव होती है। इसके द्वारा सूक्ष्मतम फ्रैक्चर (हेयरलाइन फ्रैक्चर) की जाँच व गंभीर ऑस्टियोमेलाइटिस की जाँच भी की जाती है। इसके द्वारा पीठ दर्द के निवारण के लिए रीढ़ की संपूर्ण जाँच भी संभव है।
वृक्क स्कैन
वृक्क (गुर्दा) जो शरीर का अत्यन्त महत्वपूर्ण शोधक अंग है, इस पद्धति द्वारा उसकी स्थिति व कार्यक्षमता का सही मूल्यांकन किया जा सकता है। गुर्दे के प्रत्यारोपण की आवश्यकता और प्रत्यारोपण के पश्चात उसकी कार्यक्षमता की जाँच इस पद्धति द्वारा की जाती है। उपरोक्त रोगों के अलावा पेट व अन्य रोगों की जाँच गामा स्कैनिंग द्वारा संभव है।
शिक्षण संस्थान
भारत में इसकी शिक्षा उपलब्ध कराने वाले संस्थानों में से कुछ प्रधान हैं:-
- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली, वेबसाइट - [1]
- वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली, वेबसाइट - [2]
- किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ, वेबसाइट - [3]
- संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनउ, वेबसाइट - [4]
- कस्तूरबा गांधी मेडिकल कॉलेज, मणिपाल, वेबसाइट - [5]
- स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान चण्डीगढ
- टाटा मेमोरियल हॉस्पीटल मुम्बई