Мы используем файлы cookie.
Продолжая использовать сайт, вы даете свое согласие на работу с этими файлами.
धातु (आयुर्वेद)

धातु (आयुर्वेद)

Подписчиков: 0, рейтинг: 0

आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्‍तों में सप्‍त धातुओं का बहुत महत्‍व है। इनसे शरीर का धारण होता है, इसी कारण से इन्हें 'धातु' कहा जाता है (धा = धारण करना)। ये संख्‍या में सात हैं -

  • 1- रस
  • 2- रक्‍त
  • 3- मांस
  • 4- मेद
  • 5- अस्थि
  • 6- मज्‍जा
  • 7- शुक्र

सप्‍त धातुयें वातादि दोषों से कुपित होंतीं हैं। जिस दोष की कमी या अधिकता होती है, सप्‍त धातुयें तदनुसार रोग अथवा शारीरिक विकृति उत्‍पन्‍न करती हैं।

आधुनिक आयुर्वेदज्ञ सप्‍त धातुओं को 'पैथोलांजिकल बेसिस‍ आंफ डिसीजेज' के समतुल्‍य मानते हैं।

सुश्रुत के अनुसार मनुष्य जो पदार्थ खाता है, उससे पहले द्रव स्वरूप एक सूक्ष्म सार बनता है, जो रस कहलाता है। इसका स्थान ह्वदय कहा गया है। यहाँ से यह धमनियों द्वारा सारे शरीर में फैलता है। यही रस तेज के साथ मिलकर पहले रक्त का रूप धारण करता है और तब उससे मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र आदि शेष धातुएँ बनती है।


Новое сообщение