Мы используем файлы cookie.
Продолжая использовать сайт, вы даете свое согласие на работу с этими файлами.

जैविक तंत्रिका तंत्र

Подписчиков: 0, рейтинг: 0
Blausen 0657 MultipolarNeuron.png
इन्हें भी देखें: शरीर के तंत्र

तंत्रिका विज्ञान में जैविक तंत्रिका नेटवर्क ऐसे न्यूरांस के समूह को कहाँ जाता है जो मस्तिष्क से सूचना का आदान प्रदान करने के काम आते है। इस सूचना का प्रसारण एक विद्युत-रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा होता है।

इसको दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं :

  • केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तथा
  • स्वतंत्र तंत्रिका तंत्र।

केंद्रीय तंत्रिका तंत्र

केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को मस्तिष्क मेरु तंत्रिका तंत्र भी कहते हैं। इसके अंतर्गत अग्र मस्तिष्क, मध्यमस्तिष्क, पश्च मस्तिष्क, अनुमस्तिष्क, पौंस, चेतक, मेरुशीर्ष, मेरु एवं मस्तिष्कीय तंत्रिकाओं के 12 जोड़े तथा मेरु तंत्रिकाओं के 31 जोड़े होते हैं।

मस्तिष्क करोटि गुहा में रहता है तथा तीन कलाओं से, जिन्हें तंत्रिकाएँ कहते हैं आवृत रहता है। भीतरी दो कलाओं के मध्य में एक तरल रहता है, जो मेरुद्रव कहलाता है। यह तरल मस्तिष्क के भीतर पाई जानेवाली गुहाओं में तथा मेरु की नालिका में भी रहता है। मेरु कशेरुक नलिका में स्थित रहता है तथा मस्तिष्कावरणों से आवृत रहता है। यह तरल इन अंगों को पोषण देता है, इनकी रक्षा करता है तथा मलों का विसर्जन करता है।

मस्तिष्क में बाहर की ओर धूसर भाग तथा अंदर की ओर श्वेत भाग रहता है तथा ठीक इससे उल्टा मेरु में रहता है। मस्तिष्क का धूसर भाग सीताओं के द्वारा कई सिलवटों से युक्त रहता है। इस धूसर भाग में ही तंत्रिका कोशिकाएँ रहती हैं तथा श्वेत भाग संयोजक ऊतक का होता है।

तंत्रिकाएँ दो प्रकार की होती हैं : (1) प्रेरक (Motor) तथा (2) संवेदी (Sensory)।

मानव का तंत्रिकातंत्र


मस्तिष्क के बारह तंत्रिका जोड़ों के नाम निम्नलिखित हैं:

(1) घ्राण तंत्रिका,

(2) दृष्टि तंत्रिका,

(3) अक्षिप्रेरक तंत्रिका,

(4) चक्रक (Trochlear) तंत्रिका,

(5) त्रिक तंत्रिका,

(6) उद्विवर्तनी तंत्रिका (Abducens),

(7) आनन तंत्रिका,

(8) श्रवण तंत्रिका,

(9) जिह्वा कंठिका तंत्रिका,

(10) वेगस तंत्रिका (Vagus),

(11) मेरु सहायिका तंत्रिका तथा

(12) अधोजिह्वक (Hypoglossal) तंत्रिका।

मस्तिष्क एवं मेरु के धूसर भाग में ही संज्ञा केंद्र एवं नियंत्रण केंद्र रहते हैं। मेरु में संवेदी (पश्च) तथा चेष्टावह (अग्र) तंत्रिका मूल रहते हैं।

अग्र मस्तिष्क दो गोलार्धों में विभाजित रहता है तथा इसके भीतर दो गुहाएँ रहती हैं जिन्हें पाश्र्वीय निलय कहते हैं। संवेदी तंत्रिकाएँ शरीर की समस्त संवेदनाओं को मस्तिष्क में पहुँचाकर अनुभूति देती हैं तथा चेष्टावह तंत्रिकाएँ वहाँ से आज्ञा लेकर अंगों से कार्य कराती हैं। केंद्रीय तंत्रिकाएँ विशेष कार्यों के लिए होती हैं। इन सब तंत्रिकाओं के अध: तथा ऊध्र्व केंद्र रहते हैं। जब कुछ क्रियाएँ अध: केंद्र कर देते हैं तथा पश्च ऊध्र्व केंद्रों को ज्ञान प्राप्त होता है, तब ऐसी क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Reflex action) कहते हैं। ये कियाएँ मेरु से निकलनेवाली तंत्रिकाओं तथा मेरु केंद्रों से होती हैं। मस्तिष्क का भार 40 औंस होता है। मस्तिष्क की घमनियाँ अंत: घमनियाँ होती हैं, अत: इनमें अवरोध होने पर, या इनके फट जाने पर संबंधित भाग को पोषण मिलना बंद हो जाता है, जिसके कारण वह केंद्र कार्य नहीं करता, अत: उस केंद्र से नियंत्रित क्रियाएँ अवरुद्ध हो जाती हैं। इसे ही पक्षाघात (Paralysis) कहते हैं।

स्वतंत्र तंत्रिका तंत्र

यह स्वेच्छा से कार्य करता हैं। इसमें एक दूसरे के विरुद्ध कार्य करनेवाली अनुकंपी (sympathetic) तथा सहानुकंपी (parasympathetic), दो प्रकार की तंत्रिकाएँ रहती हैं। शरीर के अनेक कार्य, जैसे रुधिरपरिसंचरण पर नियंत्रण, हृदयगति पर नियंत्रण आदि स्वतंत्र तंत्रिका से होते हैं। अनुकंपी शृंखला करोटि गुहा से श्रोणि गुहा तक कशेरुक दंड के दोनों ओर रहती है तथा इसमें कई गुच्छिकाएँ (ganglions) रहती हैं।

इन्हें भी देखें


Новое сообщение