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जच्चा संक्रमण
जच्चा संक्रमण वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
स्ट्रेप्टोकोकस पायोजनेज (लाल-दाग वाले क्षेत्रों) गंभीर ज़च्चा ज्वर के कई मामलों के लिए जिम्मेदार हैं। (900x आवर्धन) | |
आईसीडी-१० | O85. |
आईसीडी-९ | 672 |
ईमेडिसिन | article/796892 |
एम.ईएसएच | D011645 |
जच्चा संक्रमण, प्रसवोत्तर संक्रमण,जच्चा ज्वर या प्रसूति ज्वर, के नाम से भी जाना जाता है, प्रसव या गर्भपात के बाद [[महिला प्रजनन नली]] का कोई बैक्टीरिया संक्रमणहै। संकेत और लक्षण में आम तौर पर ज्वर38.0 °से. (100.4 °फ़ै), से अधिक ठंड लगना, पेट के निचले भाग में दर्द, और संभवतः खराब महक वाला योनि स्राव शामिल होता है। यह आम तौर पर पहले 24 घंटों के बाद और प्रसव के बाद दस दिनों के भीतर होता है।
गर्भाशय और आस-पास के ऊतकों जिसे ज़च्चा पूति (puerperal sepsis) या प्रसवोत्तर गर्भाशयशोथ (postpartum metritis) के रूप में जाना जाता है, सबसे आम संक्रमण है। जोखिम कारकों में अन्य के साथ शल्यजनन (Cesarean section), कुछ बैक्टीरिया जैसे कि योनि में समूह बी स्ट्रेप्टोकोकस की जैसे मौजूदगी, झिल्ली के समय से पहले फटना, और लंबे समय का प्रसव शामिल है। अधिकांश संक्रमण में कई प्रकार के बैक्टीरिया शामिल होते हैं। संवर्धन योनि या रक्त द्वारा निदान में शायद ही कभी मदद मिलती है। उन में जिन में सुधार नहीं होता है, मेडिकल इमेजिंग की आवश्यकता हो सकती है। प्रसव के बाद ज्वर के अन्य कारणों में शामिल है:स्तन अधिरक्तता, मूत्र नली का संक्रमण, पेट चीरा के संक्रमण या भगछेदन (Episiotomy), और श्वासरोध (Atelectasis)।
शल्यजनन के बाद के जोखिम के कारण यह अनुशंसा की जाती है कि सभी महिलाओं को शल्य के समय एंटीबायोटिक जैसे एम्पीसिलीन की खुराक प्राप्त करें। स्थापित संक्रमण का उपचार एंटीबायोटिक दवाओं के से होता है जिसमें ज्यादातर महिलाएँ दो से तीन दिनों में सुधार प्राप्त करती हैं। उन हल्के रोगों वालों में मौखिक एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है अन्यथा अन्तःशिरा एंटीबायोटिक दवाओं की अनुशंसा की जाती है। सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं में योनि प्रसव के बाद एम्पीसिलीन और जेंटामाइसीन या जिन का शल्यजनन हुआ हो उन के लिए क्लिंडामाइसीन और जेंटामाइसीन का संयोजन शामिल है। जिन महिलाओं में उचित इलाज से सुधार नहीं हो रहा है, अन्य जटिलताओं जैसे पस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
विकसित दुनिया में एक से दो प्रतिशत के बीच योनि प्रसव के बाद गर्भाशय में संक्रमण होता है। यह उन के बीच जिनके अधिक मुश्किल प्रसव होते हैं, पांच से तेरह प्रतिशत और निरोधक एंटीबायोटिक के उपयोग से पहले शल्यजनन में पचास तक बढ़ जाता है। इन संक्रमणों के कारण 2013 में 24,000 मृत्यु हुई थी जो 1990 के 34,000 की मौतों से कम है। इस स्थिति का पहला ज्ञात विवरण कम से कम 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व हिप्पोक्रेट्स के लेखन में मिलता है। कम से कम 18 वीं शताब्दी में शुरु और 1930 तक जब एंटीबायोटिक पेश किए गए थे, बच्चों के जन्म के समय यह संक्रमण मौत का एक बहुत ही सामान्य कारण थे। 1847 में, ऑस्ट्रिया में, इग्नाज सेमीमेलवेस ने क्लोरीन से हाथ धोने के माध्यम से बीमारी से मृत्यु में बीस प्रतिशत से दो प्रतिशत तक कमी की।