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क्रिप्टोगैम
क्रिप्टोगैम (cryptogam ; वैज्ञानिक नाम : CryptogamaeKriptogaims phanerogams ke vibhodo ko samjhiye in hndi उन पादपों (व्यापक अर्थ में, साधारण अर्थ में नहीं) को कहते हैं जिनमें प्रजनन बीजाणुओं (spores) की सहायता से होता है। ग्रीक भाषा में 'क्रिप्टोज' का अर्थ 'गुप्त' तथा 'गैमीन' का अर्थ 'विवाह करना' है। अर्थात् क्रिप्टोगैम पादपों में बीज उत्पन्न नहीं होता।
क्रिप्टोगैम को कभी-कभी 'थैलोफाइटा', 'निम्न पादम' (lower plants), तथा 'बीजाणु पादप' (spore plants) आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। क्रिप्टोगैम समूह पुष्पोद्भिद (Phanerogamae या Spermatophyta) समूह के 'विलोम समूह' है। क्रिप्टोगैम में शैवाल (algae), लाइकेन (lichens), मॉस (mosses) और फर्न (ferns) आते हैं।
एक समय क्रिप्टोगैम को पादप जगत में एक समूह के रूप में मान्यता थी। कार्ल लिनियस ने पादपों के अपने वर्गीकरण में सम्पूर्ण पादप जगत को २४ वर्गों में बाँटा था जिसमें से एक 'क्रिप्टोगैमिया' था जिसको पुनः चार गणों में विभाजित किया गया था - शैवाल, मस्सी (Musci) या ब्रायोफाइट, फिलिसेस या फर्न तथा कवक।
आधुनिक वर्गिकी ने क्रिप्टोगैम को पादप जगत में स्थान नहीं दिया है क्योंकि समझा गया कि क्रिप्टोगैम कई असंगत समूहो का जमघट मात्र है। वर्तमान वर्गिकी के अनुसार क्रिप्टोगैम में आने वाले केवल कुछ पादपों को ही पादप जगत में स्थान दिया गया है, सभी को नहीं। विशेषतः कवक (फंजाई) को एक अलग जगत के रूप में स्वीकार किया गया है और उन्हें पादपों के बजाय जन्तुओं का निकट सम्बन्धी माना जाता है। इसी प्रकार कुछ शैवालों को अब जीवाणुओं का सम्बन्धी मान लिया गया है।
शैवाल
पर्णहरित रहित क्रिप्टोगैम
शैवाल तो पर्णहरितयुक्त क्रिप्टोगैम हैं। जो क्रिप्टोगैम पर्णहरित रहित हैं, उन वर्गों के नाम हैं : जीवाणु अथवा बैक्टीरिया (Bacteria), विषाणु या वाइरस और कवक या फंगी (Fungi) हैं।
बैक्टीरिया - इसको शाइज़ोमाइकोफाइटा या शाइज़ोमाइकोटा समूह में रखा जाता है। ये अत्यंत सूक्ष्म, लगभग छह या सात माइक्रॉन तक लंबे होते हैं। ये मनुष्यों के लिये हितकर और अहितकर दोनों प्रकार के होते हैं।
वाइरस - वाइरस (Virus) बैक्टीरियों से बहुत छोटे होते हैं। सूक्ष्म से सूक्ष्म सूक्ष्मदर्शियों से भी ये देखे नहीं जा सकते। इनकी छाया का अध्ययन इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शियों द्वारा किया जाता है, जो इनके आकार को 5,000 गुना बढ़ा देते हैं। ये भी पौधों, जंतुओं तथा मनुष्यों में नाना प्रकार की बीमारियाँ पैदा करते हैं।
मिक्सोमाइसीटीज़ (Myxomycetes) - यह भी एक छोटा सा पर्णहरित रहित समूह है। इनके शरीर के चारों ओर दीवार प्राय: नहीं के बराबर ही होती है। ये लिबलिबे होते हैं। इनके कुछ उदाहरण डिक्टिओस्टीलियम (Dictyostelium), प्लैज़मोडियम (Plasmodium) इत्यादि हैं।
कवक - यह पर्णरहित रहित पादप का सर्वप्रमुख गण है, जिसके तीन मुख्य उपगण हैं :
- फाइकोमाइसीटीज़ (Phycomycetes),
- ऐस्कोमाइसीटीज़ (Ascomycetes) और
- बैसीडिओमाइसीटीज़ (Basidiomycetes)।
इन उपगणों को आजकल और ऊँचा स्थान दिया जाने लगा है। फाइकोमाइसीटीज़वाले फफूंद के बीच की दीवार नहीं होती और ये सीनोसिटिक कहलाते हैं। ऐस्कोमाइसीटीज़ भी छोटे फफूंद हैं। यीस्ट (yeast) से दवाइयाँ बनती हैं और शराब बनाने में इसका योग अत्यावश्यक है।
लाइकेन (Lichen)
यह एक बड़ा, लगभग 16,00 जातियों का गण है। ये पेड़ की छाल अथवा चट्टान पर अधिक उगते हैं तथा शैवाल और कवक दोनों से मिलकर बनते हैं। इनके तीन रूप हैं :
- पर्पटीमय (crustose), जो चप्पड़ में उगते हैं
- पर्णिल (foliose), जो पत्ती जैसे होते हैं और
- क्षुपिल (fructicose), जिसमें फल जैसे आकार लगे होते हैं। कुछ पौधों के नाम इस प्रकार हैं - क्लैडोनिया (Cladonia), पारमीलिया (Parmelia), असनिया (Usnea) इत्यादि। मनुष्य इनके कुछ पौधे, जैसे जटामासी, बालछड़ इत्यादि को गरम मसाले के रूप में खाता है।
पर्णिल जो हम सूक्ष्मदर्शी में देख सकते है।
Bina seed ke hote he