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इन्दिरा नाथ
इन्दिरा नाथ | |
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जन्म |
14 जनवरी 1938 (1938-01-14) |
आवास | नई दिल्ली, भारत |
नागरिकता | भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जातियता | हिन्दू |
क्षेत्र | प्रतिरक्षा विज्ञान |
संस्थान | अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान |
उल्लेखनीय सम्मान | पद्मश्री |
प्रो॰ इन्दिरा नाथ (जन्म 14 जनवरी 1938) एक भारतीय प्रतिरक्षा वैज्ञानिक हैं। वे भारत की अग्रणी महिला वैज्ञानिक और कुष्ठ रोग की एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानीमानी विशेषज्ञ है। उन्होने लेप्रा-ब्लू हैदराबाद में पीटर रिसर्च सेंटर के निदेशक के रूप में कुष्ठ रोग के खिलाफ भारत की तरफ से लड़ाई लड़ते हुए अहम भूमिका निभाई हैं।
शिक्षा एवं वृत्ति
इन्दिरा नाथ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली से एमबीबीएस किया। 1970 के दशक में उन्होने अपने कैरियर की शुरुआत की और ब्रिटेन में अनिवार्य अस्पताल प्रशिक्षण के बाद एमडी (पैथोलॉजी) के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लौट आई। वे ब्रिटेन में खेतों में फैलोशिप (1970) का लाभ उठाने के बाद इम्यूनोलॉजी में विशेषज्ञ की हैसियत से जब 1980 के दशक में भारत लौटी, तब इम्यूनोलॉजी (प्रतिरक्षा परिक्रिया) अपनी प्रारंभिक अवस्था में थी उस वक्त प्रो नाथ ने एम्स में विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान सक्रिय होकर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के तहत एक इम्मुनोलोजी कार्यशाला विकसित की इसके साथ ही उन्होंने भारत के एम्स में 1986 में पहली बार इम्यूनोलॉजी, आण्विक जीव विज्ञान और आधुनिक जीव विज्ञान पहलू में जैव चिकित्सा कर्मियों को प्रशिक्षित करने की दृष्टि के साथ विभाग को विकसित किया। उन्हें मलेशिया में चिकित्सा, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के एशियाई संस्थान में मेडिसिन के स्कूल के डीन के रूप में आमंत्रित किया गया था और बाद में ब्लू पीटर रिसर्च सेंटर, हैदराबाद के निदेशक के रूप में। उन्होने पियरे और मैरी क्यूरी विश्वविद्यालय, पेरिस से वर्ष-2002 में डी एस सी (एचसी) की डिग्री ली।
वे 1995 से 1997 तक भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की वैज्ञानिक सलाहकार समिति, विदेश सचिव (भारत) आईएनएसए की सदस्य, 1992 से 1994 और 1998 से 2006 तक परिषद् की सदस्य रह चुकी हैं। इसके अलावा 2001 से 2003 तक वे राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, इलाहाबाद की उपाध्यक्ष और 2003 में महिला वैज्ञानिक कार्यक्रम, डीएसटी की अध्यक्ष रह चुकी हैं।
खोज/अनुसंधान
उन्होने मानव कुष्ठ में सेलुलर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पर अनुसंधान किया है। इसके अंतर्गत हाल के घटनाक्रम पर उन्होने 120 से अधिक प्रकाशनों, आमंत्रित समीक्षा, राय और विचारों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में टिप्पणी की है। उनकी यह खोज कुष्ठ रोग के लिए उपचार और टीकों के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सम्मान/पुरस्कार
- जलमा ट्रस्ट ऑरेशन ( 1981, आई सी एम आर)
- एस एस भटनागर अवार्ड (1983, भारत सरकार)
- कनिष्का अवार्ड (1984, आई सी एम आर)
- प्रथम नित्यानन्द इंडोमेंट लेक्चर अवार्ड (1987, आई एन एस ए)
- क्लेटन मेमोरियल लेक्चर अवार्ड (1988)
- ओमप्रकाश भसीन अवार्ड (1990)
- बसंती देवी अमीर चंद अवार्ड, आई सी एम आर (1994)
- आर डी बिरला अवार्ड (1995)
- कोक्रेन रिसर्च अवार्ड (1995, ब्रिटेन सरकार)
- पद्मश्री (1999, भारत सरकार)
- वोमेन इन साइंस एशिया-पैसिफिक अवार्ड (2002, ल 'ओरियल यूनेस्को)
- शेवेलियर ऑर्डर नेशनल डु मेरिट (2003, फ्रांस सरकार)
- सिल्वर बैनर (2003, इटली)
फ़ेलोशिप
- भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, इलाहाबाद (1988)
- भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, बंगलौर (1990)
- भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत (1992)
- रायल कॉलेज ऑफ पैथोलॉजी (1992)
- अकादमी ऑफ साइंस फॉर दि देवलपिंग वर्ल्ड (1995)