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अनुमान (तर्क)

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तर्कशास्त्र में अनुमान या अनुमिति (inference) तर्क-वितर्क द्वारा आधार कथनों से तार्किक नष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया को कहते हैं। अनुमिति के दो मुख्य प्रकार होते हैं: निगमन (deduction) और आगमन (induction)।

तर्कशास्त्र का विषय परोक्ष ज्ञान अथवा अनुमान है। तर्कशास्त्र का सम्बन्ध वास्तव में शुद्ध अनुमान के नियमों और सिद्धान्तों से है जिनका पालन कर हम सत्य परोक्ष ज्ञान की प्राप्ति कर सकें। तर्कशास्त्र शुद्ध तथा अशुद्ध अनुमान में भेद करने के तरीकों को हमारे सामने रखते हुए सही ढंग से अनुमान और तर्क करने के नियमों का निरूपण करता है। इस प्रकार तर्कशास्त्र का सम्बन्ध हमारे परोक्ष ज्ञान से है, जिसका विकसित ज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ा अंश है। वैज्ञानिक ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान पर आधारित अवश्य होता है, परन्तु उसका ज्यों-ज्यों विकास होता है, परोक्ष ज्ञान का अंश उसमें बढ़ता जाता है। दूसरे शब्दों में वैज्ञानिक ज्ञान के विकास में अनुमान एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सहायक क्रिया है। परन्तु यदि यह अनुमान सही रास्ते पर न हो, तो फिर ज्ञान का विकास होने के बजाय ह्रास होगा तथा वह जीवन के लिए घातक सिद्ध होगा। और सही अनुमान के तरीकों को हमारे सामने रखना ही तर्कशास्त्र का मुख्य काम है।

ज्ञान मनुष्य-जीवन की निधि है। जीवन-यापन के ही अपने क्रम में मनुष्य अपनी बाल्यावस्था से लेकर आगे तक सदैव ज्ञान की प्राप्ति करता चला जाता है। नित्य के उसके सामान्य अनुभव भी उसकी ज्ञान-बुद्धि में सहायक होते हैं तथा और अधिक ज्ञान के लिए वह तरह-तरह के शास्त्र, विज्ञान आदि का अध्ययन करता है। मनुष्य जितने प्रकार के ज्ञान अनेकों साधनों से प्राप्त करता है उन्हें एक वृहत् दृष्टि से दो भागों में बाँटा जा सकता है-(१) प्रत्यक्ष ज्ञान तथा (२) परोक्ष ज्ञान । प्रत्यक्ष ज्ञान से तात्पर्य वैसे ज्ञान से है जो मनुष्य अपने आन्तरिक अथवा बाह्य ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा साक्षात् रूप से प्राप्त करता है। जैसे, संसार की अनेकों वस्तुओं को देखकर या उनकी आवाज सुनकर या उनका गन्ध अथवा स्वाद लेकर हम इस बात का ज्ञान प्राप्त करते हैं कि कोई वस्तु नारंगी है, कोई गुलाब है, कोई घड़ा है आदि । परन्तु हमारा समस्त ज्ञान प्रत्यक्ष ही नहीं होता। यदि ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान तक ही सीमित रखा जाए तो मनुष्य के ज्ञान की परिधि बहुत ही छोटी हो जाएगी। हमारे ज्ञान का एक बहुत बड़ा भाग परोक्ष ज्ञान का होता है। परोक्ष ज्ञान, प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त ज्ञान तो नहीं है, परन्तु प्रत्यक्ष ज्ञान के ही आधार पर बुद्धि की कुछ खास क्रिया की सहायता से यह ज्ञान प्राप्त किया जाता है। कहा जा सकता है कि प्रत्यक्ष के आधार पर बुद्धि की क्रिया की सहायता से अप्रत्यक्ष के सम्बन्ध में जो ज्ञान हम प्राप्त करते हैं वह परोक्ष ज्ञान है।

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